Tuesday, December 31, 2013

भागवत स्कन्ध - 11.1 कथा सार

● भागवत स्कन्ध - 11-1 ● 
~ इस स्कन्ध में 31 अध्याय हैं और उनमें 1345 श्लोक हैं ।
 * भाग - 01 ( द्वारका का अंत ) *
 ~ सन्दर्भ : स्कन्ध -1.13 से 1.16 तक + 11.6-11.30+11.31~ 
महत्वपूर्ण बातें : मैरेयक -वारुणी मदिरा , प्रभास क्षेत्र जहाँ से पश्चिम में सरस्वती सागर से मिलती थी , शंखोद्धार क्षेत्र , पीपल बृक्ष जहां से प्रभु स्वधामकी यात्रा की , दारुक प्रभु का सारथी , उद्धव ,मैत्रेय , जरा ब्याध , एरका घास जो यदु कुल के अंत का कारण बनी।द्वारकाके अंत समय सात माहसे अर्जुन द्वारका में 
थे । 
** कथा **
 <> जब द्वारका अंत नज़दीक आया तब  निम्न ऋषि लोग वहाँ प्रभु से मिलने पहुंचे थे   और  द्वारकाके पिंडारक क्षेत्रमें रुके हुए 
थे - विश्वामित्र + असित + कण्व + दुर्बासा + भृगु + अंगीरा + कश्यप + वामदेव+ अत्रि + वसिष्ठ और नारद । 
* ब्रह्मा प्रभु को   कह रहे हैं > आप को पृथ्वीका भार उतारनें हेतु आये 125 वर्ष हो चुके हैं ,आप पृथ्वी को पाप मुक्त बना दिये है अब आपको अपनें परम धाम जाना चाहिये । प्रभु कहते हैं ,आप ठीक कह रहे हैं लेकिन अभीं मुझे यदु कुलका अंत भी करना है । 
 * पिन्डारकर क्षेत्र में ऋषियोंके सामनें कृष्ण पुत्र साम्बको स्त्री बना कर सभी किशोर यदु बंशी ले आये और यह पूछा कि इस स्त्री से पुत्र होगा या पुत्री ? ऋषियों को क्रोध आ गया और बोले - यह ऐसा मूसल पैदा करेगी जो यदु कुलका अंत करेगा । सम्राट उग्रसेन उस मूसलका चुरा बनवा कर समुद्र में भेकवा दिए ,जिसके एक टुकडेको एक मछली निगल गयी थी ।वह टुकड़ा मछली के पेट से एक ब्याध ज़रा को मिला और वह उससे तीरकी नोक बना किया । वह ज़रा ब्याध प्रभु को उसी तीर से उनके पैर में हिरण समझ कर मारा भी था ।समुद्र में फेका गया मूसलका पाउडर बिना गाँठ की एरका घास का रूप ले किया और उस घासको यदु बंशी अंत समयमें अस्त्र रूप में प्रयोग किया था ।
 * जब द्वारका का अंत नज़दीक आया तब वहाँ अपशगुन हो रहे 
थे । प्रभु अपनों को द्वारका से प्रभास क्षेत्र आनें के किये सलाह 
दी , सभीं द्वारका वासी प्रभास क्षेत्र आगये । बच्चे ,बुजुर्ग और स्त्रियाँ शंखोद्धारक क्षेत्र में गये और अन्य सभीं प्रभास क्षेत्र 
पहुंचे । वहाँ पूजा - ध्यान किया और सूर्यास्तके समय सभीं लोग मदिरा पी कर आपस में लड्नें लगे और देखते ही देखते वहाँ लाशें इकट्ठी होनें लगी । बलराम ध्यम माध्यम से शरीर त्याग दिए और बलराम के बाद प्रभु सरस्वती नदी के तट पर पीपल पेड़ के नीचे बैठे रहे जहाँ उद्धव और मैत्रेय ऋषि भी आ गए थे । प्रभु का सारथी दारुक जब वहाँ पहुँचा तब प्रभु उसे द्वारका भेजा इस सन्देश के साथ कि मैं परम धाम जा रहा हूँ ,आज से ठीक 07 दिन बाद द्वारका समुद्र में समा जाएगा वहाँ जो लोग हैं उनको अर्जुन के साथ इन्द्रप्रष्ठ चले जाना चाहिए । दारुण रोता हुआ ज्योंही चलनें लगा प्रभुका गरुण रथ वहाँ उतरा और प्रभु स्वधाम चले गए ।
 * अर्जुनके संग द्वारकासे लोग इन्द्रप्रष्ठ आ गए। बज्र ,कृष्णके प्रपैत्र को मथुरा और शूरसेनका शासक बनाया गया और हस्तिनापुरका सम्राट हुए परीक्षित क्योंकि पांडव लोग स्वर्गारोहण करनें हेतु हिमालय की यात्रा पर निकल गए थे ।
 ~~~ ॐ ~~~

Wednesday, December 25, 2013

भागवत स्कन्ध -6 के सार

●भागवत स्कन्ध - 6 ●
°° इस स्कन्धके 19 अध्यायों में 848 श्लोक हैं ।
* इस स्कन्धकी कुछ अमूल्य बातें :---
1- कर्म से पाप वासनाएं समाप्त नहीं हो सकती लेकिन भोग - कर्म आसक्ति रहित कर्म बन सकता
है । आसक्ति रहित कर्म को कर्म योग कहते हैं और इससे नैष्कर्म्य की सिद्धि प्राप्ति के बाद ज्ञान प्राप्त होता है । ज्ञान एवं वैराग्य साथ साथ रहते हैं और दोनों परम गति की यात्राजे उर्जा श्रोत हैं ।
2- धर्मक्या है ? वेदआधारित कर्म ही धर्म है।
3- जीवधारी बिना कर्म एक पल भी नहीं रह सकता : देखें यहाँ गीता : 3.5+18.11सूत्रों को भी ।
4- माया दोनों ओर बहनें वाली नदी जैसी है : एक है सृष्टि और दूसरी है प्रलय।
5- 25 तत्त्वोंके घरमें पुरुष रहता है : 25 तत्त्व हैं - 10 इन्द्रियाँ + 04 अन्तः करण + गुण + 05 महाभूत +05 बिषय ।।
6- काल निरंतर चलता हुआ चक्र है और काल प्रभु का ही नाम है ।
7- बिषयोंका गहरा अनुभव वैराज्ञमें पहुंचाता है ।
8- मनुष्य जीवनका एक लक्ष्य है ; ब्रह्म और आत्माके एकत्वको समझना ।
9- तीन गुण आत्माके नहीं प्रकृतिके हैं ।
10- स्त्रियाँ अपनी कालासाओं केलिए कुछ भी कर सकती हैं । वे अपनीं लालसाओं की कठपुतली होती हैं ।
* अब कुछ और बातें :---
^ शूरसेनके सम्राट चित्रकेतुको एक करोड़ पत्नियां थी पर थे औलाद हीन ।
^ चित्रकेतु एक करोड़ वर्ष तक सुमेरु पर्वतकी घाटीमें विहार किया ।
^ विन्ध्याचल पर्वतके साथके पर्वतों पर अघमर्षण तीर्थ है जहां दक्षको प्रभुके दर्शन हुए थे ।
^ दक्ष पञ्चजन कन्या असिक्नीसे ब्याह किया और 10,000 पुत्र पैदा किये ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, December 21, 2013

भागवत से कुछ सूत्र

भागवत साधना सूत्र - 03
1- भागवत : 1.3 > अज्ञान की बृत्तियाँ - अविद्या , मोह , राग ,द्वेष ,अभिनिवेश ।
2- भागवत : 1.7 > निर्मल मन माया और मायापति का द्रष्टा होता है ।
3-भागवत : 1.6> जिस बस्तुके खानें से जो रोग होता है उस बस्तु में उस रोग की दवा होती है ।
4-भागवत : 1.1 > इन्द्रिय - मन तंत्रकी पहुँच जहाँ तक है उसकी तह में जो होता है वह है प्रभु ।
5-भागवत : 11.19 > तप क्या है ? जिससे कामनाओं का उठाना समाप्त हो ,वह तप है ।
6-भागवत : 4.20 > शुद्ध चित्तकी स्थिति ही कैवल्य है ।
7-भागवत : 4.18 > बुद्धिमान ब्यक्ति भ्रमर जैसा होता है जो सर्वत्र से ज्ञान अर्जित कर लेता है ।
8-भागवत : 2.1> महत्तत्व क्या है ? आत्मा का नाम महत्तत्व है ।
9- भागवत : 2.7 > वैदिक या लौकिक किसी भी शब्द की पहुँच प्रभु तक नहीं ।
10-भागवत : 2.8 > जीवका कोई सम्बन्ध पञ्च भूतों से नहीं लेकिन जीवका शरीर पञ्च भूतों से निर्मित होता है ।
~~ ॐ ~~~

Tuesday, December 17, 2013

प्रभु रामका बंश

● हे राम ●
~ भागवत आधारित कथा ~
* द्रविण देशके योगी सत्यब्रत जो पिछले कल्पके अंत में हुयी नैमित्तिक प्रलयके एक मात्र द्रष्टा थे , इस कल्पमें विवस्वान् के पुत्र, सातवें मनु श्राद्धदेव हुए । श्राद्धदेवको वैवस्वान मनु भी कहते हैं ।
* श्राद्धदेव पुत्र प्राप्ति हेतु यमुना तट पर 100 वर्ष तक तप किया और 10 पुत्र प्राप्त हुए जिनमें बड़े थे इक्ष्वाकु और इक्ष्वाकुके बड़े पुत्र थे विकुक्षि ।इक्ष्वाकु मनुके छीकनें से उनकी नासिका से पैदा हुए थे । विकुक्षिके बंश में आगे 15वें बंशज हुए युवनाश्व।युवनाश्वके दाहिनें कोख से मान्धाता ( 16वें बंशज - विकुक्षि के ) पैदा हुए । मान्धाताकी पुत्री विन्दुमतीके वंशमें ( 17वें बंशज ) आगे हुए पुरुकुत्स(18वें बंशज -विकुक्षिके ) । पुरुकुत्स नागोंकी बहन नर्वदासे ब्याह किया।
* इस बंशमें आगे त्रिशंकु हुए ,त्रिशंकु के पुत्र थे हरिश्चन्द्र । इस परिवार में आगे रघु हुए , रघुसे दशरथ और दशरथसे श्री राम । श्रीरामके पुत्र कुशके बंशमें कुश के आगे 26 वां बंशज हुआ तक्षक । तक्षक परीक्षित को डसा और परीक्षितका अंत हुआ । ** आप देख रहे हैं कि मान्धाता पुत्री विन्दुमती के पुत्र पुरुकुत्सबंशमें श्री राम पैदा हुए और पुरुकुत्स का ब्याह नागों की बहन से हुआ अर्थात श्री रामके अन्दर सर्प बंशका भी DNA था और श्री राम के बाद उनका 27वां बंशज तक्षक हुआ जो जब चाहे सर्प बन जाए और जब चाहे मनुष्य ।
** यह वही तक्षक है जो ज्ञान -विज्ञान की संसारका पहला विश्वविद्यालय स्थापित किया उस स्थान पर जो संसारके ब्यापारिक मार्गोंका संगम था और जिका नाम रखा गया तक्षिला जो आज पाकिस्तान में इस्लामाबाद के पास है ।तक्षिलासे पाणिनि , चरक और कौटिल्य जैसे ज्ञानी - विचारक पैदा हुए ।
~~ ॐ ~~

Monday, December 9, 2013

कुरुक्षेत्र कहाँ है ?

● कुरुक्षेत्र क्या है ? 
● क्या यह एक बस्ती है ? 
● क्या यह एक क्षेत्र है ?
● यह कहाँ है ?
गीताका कुरुक्षेत्र कोई स्थान का नाम न था यह एक क्षेत्रका नाम था जिससे हो कर सरस्वती नदी नदी एवं इक्षुमती नदियाँ बहती थी और दोनों अरब सागरमें पहुँचती थी ।
 * भागवत स्कन्ध - 5 में भूगोल दिया गया है जो यह बताता है कि , जम्बू द्वीपका मध्य भाग इलाबृत्त वर्ष है । इलाबृत्तके दक्षिण में क्रमशः हरि वर्ष , किम्पुरुष वर्ष और भारत वर्ष देश हैं । भारत वर्ष हिमालय पर्वतके दक्षिणमें स्थित वर्ष है अर्थात हिमालय के ऊपर और इलाबृतके मध्य दी देश हैं -हरि और किम्पुरुष ।हनुमानजी किम्पुरुष थे ,इस श्रेणी में ऐसे बानर आते हैं जो मनुष्य जैसा दिखते हों । 
* भागवत : 1.10 > कृष्ण जब महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर से द्वारका निम्न नार्ग से गए थे । हस्तिनापुर - कुरुजांगल - पांचाल - शूरसेन - ब्रह्मावर्त - कुरुक्षेत्र - मत्स्य - सारस्वत - मरुधन्व - सौभिर - आभीर - आनर्त - द्वारका । <> अब जरा सोचिये कि कुरुक्षेत्र की स्थिति क्या है ? अब कुछ और सूचनाएं :---- 
* जम्बू द्वीपके मध्य देश इलाबृत्तके उत्तरमें क्रमशः रम्यक , हिरण्य और कुरु देश ( वर्ष ) हैं । कुरु देशके बाद उत्तर में कोई देश नहीं है सागर है। इलाबृत्तके मध्य में मेरु पर्वत है जहाँ गंगा उतरते ही चार धाराओं में विभक्त हो जाती हैं । गंगा की वह धारा जो कुरु देशको पार करती हुयी सागरसे जा मिलती है उसे भद्रा कहते हैं और भारत वर्ष से बहनें वाली धारा को अलखनंदा कहते हैं । 
* महाभारतके समय मूल कुरु , भूगोल की दृष्टि से चीन , मंगोलिया और रूस का भाग था ।भारत वर्ष में दक्षिण कुरुके अंतर्गत हिमालयके दक्षिणी भाग जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जमुनाके पश्चिम में हरियाणाका भू भाग , दक्षिणी हरियाणा तथा राजस्थानका कुछ पूर्वी भाग आते हैं ।दक्षिण हरियाणा से होती हुयी राजस्थान के कुछ भागों से हो कर सरस्वती , नर्वदा और यमुनाके मध्य से गुजरती हुयी मध्य प्रदेशके अम्बिका पुर तक जाती थी और फिर अम्बिका बन से पश्चिम मुखी हो कर नर्वदा के समानांतर बहती हुयी नारायण सरोवर के पश्चिम में प्रभास क्षेत्रके भी पश्चिम में सागर से मिलती थी ।कुरुक्षेत्र से सरस्वती और इक्षुमती ये दो प्रमुख नदियाँ अहमदाबाद ( गुजरात ) की ओर से होती हुयी आगेअरब सागर से मिलती थी । सरस्वती नरायण सरोवरसे सागर में गिरती थी और इक्षुमती सिंध देश में पहुँच कर सागर में गिरती थी । नरायण सरोवर सरस्वती और सागर के संगम का नाम है <> अब कुछ और बातें :---
 * महाभारत में 18 खंड हैं । * गीतामें 18 अध्याय हैं ।
 * महाभारत युद्ध 18 दिन चला था । * युद्धमें 18 अक्षवनी सेनायें भाग ली थी । * युद्धमें 21870 लोग प्रति दिन मारे गए । * महाभारत में 6वां खंड भीष्मखंड है । 
* भीष्मखंडके 4 उप खंड इस प्रकार से हैं ---
 1- जम्मू खंड निर्वाण पर्व ( 6.1-6.19 ) 
 2- भूमि पर्व ( 6.11 - 6.6.24 ) 
 3- गीता ( 6.25 - 6.42 )
 4- भीष्म पर्व ( 6.43 - 6.122 ) 
* महाभारत युद्ध में पांडव पक्ष में कौन लोग थे ?
 > द्वारका , काशी , एक भाग कैकेयका , मगध , छेदी , पंड्या , मथुराका यदूकुल , ये सभीं पांडव पक्ष में थे और :---
 * कौरव पक्ष में निम्न लोग थे :---
 > प्रागजोतिश , मत्स्य , अंग , कैकेयका एक भाग , सिन्धु देश , माहिष्मती ( इंदौर ) , उज्जैन , गंधार , बालिका , काम्बोजा , यवन , सक , तुसार
 ** कुरुक्षेत्र के सम्बन्ध में निम्न बात को भी देखना चाहिए :--- > उत्तर में सिरहंद ( पंजाब ) बताया गया है ।
 > दक्षिण में खंडवा ( दिल्ली ) का जंगली क्षेत्र बताया गया है । > पूर्व में panin
 > पश्चिम में मरू
 कुरुक्षेत्र की यह स्थिति Buddhist scripture Anguttara Nikaya में दिया गया है । 
● भागवत 12.1-12.2 में दिए गए वर्णन से महाभारत से 2013 तक 3450 वर्ष बनाता है और उस समय भारत भूमि 16 महाजन पदों में बिभक्त था , कुछ इस प्रकार :------ 
अंग  , मगध,  विजी, काशी , मल्ल , कोशल ,पंचाल , वट , चेतिया , अवंती , असाका , मत्या,  सुरसेना ,  कुरु , गंधार , कम्बोज । 
● कुरु जनपद ● 
> गंगा और यमुना के मध्य का भाग …
 > यमुना और सरस्वती के मध्य का भाग…
 > हस्तिनापुर थानेश्वर और हिसारके मध्यका त्रिभुजाकार क्षेत्र कुरुजनपद था ; हस्तिनापुर और यमुनाके मध्यका भाग था कुरुराष्ट्र और शेष भाग दो भागो में था ------ 
1- दिल्ली के आस पासका भाग । 2- कुरु जंगल । 
1- दिल्ली क्षेत्र में निम्न आते थे :--- 
दिल्ली , मेवात , रोहतक तथा आस पासका क्षेत्र
 2- कुरु जंगलकी स्थिति निम्न प्रकारसे थी :--
 > पानीपत से अम्बाला तक तथा अम्बाला से हिसार , हांसी जींद और रोहतक तक का क्षेत्र कुरु जंगल था और यमुना के पूर्व में भी यह जंगल फैला हुआ था । 
°° कुरुक्षेत्र को वेदोंमें स्वर्ग में रह रहे लोगों के तीर्थ रूप में बताया गया है । उत्तरा बेदी और समंत पंचक तीर्थ का भी नाम इससे जुड़ा है । यहाँ शक्ति पीठ भी है । कुरुक्षेत्र से इक्षुमती और सरस्वती नदी बहती थी । परशुराम यहाँ पांच बड़े - बड़े तालाब बनाए थे जिससे महिष्मति में सहस्त्र बाहु अर्जुन के साथ हुए युद्ध में बहने वाला खून इकठ्ठा हो सके । 
** ॐ **

Thursday, December 5, 2013

भागवत साधना सूत्र - 2

1- भागवत : 1.2 > शब्दसे दृश्य एवं द्रष्टा का बोध होता है और शब्द आकाशका गुण है।
2- भागवत : 1.3 > सृष्टि पूर्व न दृश्य था न द्रष्टा
था , जो था , वही परमात्मा है ।
3- भागवत : 3.5> द्रष्टा और द्रश्यका अनुसंधान करनें की उर्जा ही माया है ।
4- भागवत : 1.3> संसारमें दो प्रकारके लोग खुश
हैं ; एक वे जो मूढ़ हैं और दुसरे वे जो स्थिर
प्रज्ञ हैं ।
5- भागवत : 1.3 > अनात्मा बस्तुयें हैं नहीं , हैं जैसा प्रतीत होती हैं ।
6- भागवत : 1.3 > विषयोंका रूपांतरण ही काल का आकार है ।
7- भागवत : 2.1> काल प्रभुकी चाल है ।
8- भागवत :3.21.41> ब्रह्म काल चक्रकी धूरी हैं । 9- भागवत : 7.7 > बुद्धि की बृत्तियाँ - जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्तिकी अनुभूति करनें का श्रोत , भगवान है ।
10- गीता - 10.30 > कालः कलयतां अहम् । 11- भागवत : 5.1> इन्द्रियोंका गुलाम जन्म - मृत्युके भयमें बसता है ।
~~ ॐ ~~

Wednesday, December 4, 2013

भागवत -गीता के साधना सूत्र - 1

1~ सात्विक गुण प्रभुका दर्शन कराता है ।
2~ सृष्टि प्रभुके नारायण रूप से जो 16 कलाओंसे युक्त है ( कलाएं - 10 इन्द्रियाँ + 5 महाभूत + मन ) उससे है ।
3~ प्रभु सभींके अन्दर - बाहर एक रस है ( गीता - 13.15 ) ।
4~ प्रभुका कोई प्रिय - अप्रिय नहीं (गीता - 5.14-5.15 + 9.29 ) ।
5~ धर्म के चार चरण ----- *तप+सत्य+दया+पवित्रता *
6~ होशका एक घडीका जीवन बेहोशीके सौ सालके जीवनसे अधिक आनंददायी होता है
7~ वैराज्ञमें गुण तत्त्वोंकी पकड़ नहीं होती (गीता - 2.52 )।
8- दुःख संयोग वियोगः योगः (गीता - 6.23 )। 9~ योगमें आसन , श्वास , आसक्ति , इन्द्रियों की गति , मनकी चाल पर नियंत्रण रखनेंका अभ्यास किया जाता है ।
10~ मायातीत एक से अनेक होनें में काल, कर्म और स्वभावको स्वीकारा है ।
~~~ ॐ ~~~

Friday, November 29, 2013

कलियुगकी तस्बीर

● भागवत स्कन्ध 12.1● 
सन्दर्भ : अध्याय 1 से 3 तकका सार कुछ इस प्रकार है :--- * परीक्षितसे सन 2013 तकका समयकी गणना भागवत में इस प्रकारसे है :--- 1115+137+185+2013>3450 वर्ष अर्थात महाभारत युद्ध हुए 3450 वर्ष हुए । 
<> भागवत कलि युग की एक तस्बीर प्रस्तुत करते हुए कह रहा है : 
 ● जैसे -जैसे कलियुग गहराता जाएगा वैसे - वैसे सौराष्ट्र , अवंती , आभीर , शूर , अर्बुद और मालव देशके ब्राह्मण संस्कार शून्य हो जायेंगे और वहाँके राजा शुद्र तुल्य होंगे ।
 ● जिसके हाँथ में शक्ति होगी वही धर्म और न्यायकी ब्यवस्था करेगा । 
● ब्राह्मण साधनासे नहीं यज्ञोपवीत और जातिसे पहचानें 
जायेंगे ।
 ● सत्यकी राह पर चलनें वाला अदालतसे न्याय नहीं प्राप्त कर सकेगा। 
● जो ज्यादा बोलेगा उसे महान पंडित समझ जाएगा । 
● गरीबी एक मात्र पहचान होगी असाधुता और दोषी होनें की ।
 ● अधिक वारिश ,सखा , अधिक गर्मी ,अधिक शर्दी , बाढ़का प्रभाव रहा करेगा । 
● छोटे कद के अन्नके पौधे होंगे ।
 ● बिजली अधिक चमकेगी पर वर्षात कम होगी। 
● मनुष्य बिषयी होंगे । 
● स्त्रियोंका कद छोटा होगा । 
● परीक्षित-जन्मके समयका ज्योतिष :- 
^ जब सप्त ऋषि उदय होता है तब पहले दो तारे दिखते हैं । उनके बीच यदि दक्षिण-उतर दिशामें एक रेखा खीची जाए तो अश्वनी आदि नक्षत्रोंमें से एक उस रेखाके मध्यमें दिखता है । उस नक्षत्रके साथ सप्त ऋषि सौ वर्ष रहते हैं । 
 ● परीक्षितके जन्मके समय और मृत्युके समय मघा नक्षत्र था । * पृथ्वीको जीतनेंकी अभिलाषावाले राजाओं पर पृथ्वी हसती है और कहती है :--
 <> ये स्वयं मौतके खिलौनें हैं और मुझे जीतना चाहते हैं , ये बेहोशीमें भाग रहे हैं । 
* कलियुगमें पाखंडी लोग छा जायेंगे और नया -नया पंथ चलाएंगे तथा वेद बचनको तर्कके आधार पर अपनी सोचके अनुरूप प्रकट करेंगे और लोग उनसे प्रभावित भी होंगे। 
~~ ॐ~~~

Wednesday, November 27, 2013

कृष्ण - धन्वन्तरि

● कृष्ण और धन्वन्तरि ● 
सन्दर्भ : भागवत 9.1+9.15 
* सांख्य योगके जनक प्रभु श्री कृष्ण और आयुर्वेदके जनक धन्वन्तरि का बंश एक है । कृष्ण 20वें अवतारके रूपमें देखे जाते हैं और धन्वन्तरिको 12वें अवतार रूप में देखा जाता है ।अब आगे की कथाको देखते हैं ----
 * धन्वन्तरि 
 > ब्रह्मा पुत्र मरीचि ,मरीचि पुत्र कश्यप ऋषि , कश्यप के पुत्र थे , विवस्वान् विवस्वान् के पुत्र हुए सातवें मनु श्राद्धदेव । एक कल्प में चौदह मनु होते हैं और श्राद्ध देव इस कल्पके सातवें मनु हैं । 
* श्राद्ध देवको कोई संतान न होनेंसे वे चिंतित रहते थे । वसिष्ठ ऋषि मित्रावरुणका यज्ञ कराया , पुत्र प्राप्ति हेतु लेकिन पुत्री प्राप्त हुयी जिसका नाम था इला । 
 * इलाको वसिष्ठ पुत्र में बदल दिया जिसका नाम था सुद्युम्न लेकिन श्राद्ध देव मनुके सामनें गहरी समस्या आ खड़ी हुयी , शिव श्राप से सुद्युम्न एक माह स्त्री रहनें लगे और एक माह पुरुष ।
 * जब ये स्त्री रूप में होते तब इनको इला नाम से जाना जाता था और पुरुष रूप में सुद्युम्न नाम से । 
 <> ब्रह्माके दुसरे पुत्र अत्रिके पुत्र चन्द्रमा बृहस्पतिकी पत्नी को चुरा लिया और उनसे बुध का जन्म हुआ । 
 * बुध और इलासे जो पुत्र पैदा हुआ उसे पुरुरवा नाम मिला । पुरुरवाका उर्बधिसे मिलन हुआ , कुरुक्षेत्रमें सरस्वतीके तट पर और दोनोंसे 06 पुत्र पैदा हुए । 
*पुरुरवाके बड़े पुत्र आयु के 05 पुत्रों में दूसरे पुत्र क्षत्रबृद्ध के बंश में 08वें बंशज हुए धनवन्तरि ।।
 * आयुके बड़े पुत्र नहुषके बंशमें द्वापरके अंतमें शूरसेनके पौत्र रूपमें पैदा हुए प्रभु श्री कृष्ण । धन्वन्तरि और कृष्ण पुरुरवा और उर्बशी से प्रारम्भ हुए चन्द्र बंश में पैदा हुए थे । धन्वन्तरि आयुर्वेदके रूप में मनुष्य को परम ज्ञान दिया और कृष्ण 
सांख्य - योगका प्रयोग महाभारत युद्ध में करके यह दिखाया कि कर्म योग से भी वही मिलता है जो ज्ञान योग योग से मिलता है और कर्म योग आगे चल कर ज्ञान योग में रूपांतरित हो जाता है । 
~~ ॐ ~~

Thursday, November 21, 2013

कृष्ण भक्त सुदामा और सुदामा

● कृष्ण भक्त दो सुदामा ( भाग -1)
 भागवत सन्दर्भ : 10.40+10.80+10.81 
# प्रभु कृष्णके एक नहीं दो सुदामा परम भक्त भक्त थे एकसे सभीं परिचित हैं लेकिन दूसरे सुदामा की स्थिति त्रिवेणीमें सरस्वती जैसी है ।
 * जब प्रभु कृष्ण 11 वर्षके होगये तब नारदकी बातोंसे प्रेरित होकर कंश कृष्ण - बलराम , नन्द -यशोदा और अन्य ब्रज बासियों को धनुष यज्ञ उत्सव देखनें केलिए अक्रूर के माध्यमसे आमंत्रित किया ।अक्रूर यदु बंशी थे ,कृष्णके चाचा लगते थे पर रहते थे मथुरा में ।अक्रूर कृष्ण -बलराम को लेकर नन्द गाँव से सुबह यात्रा प्रारम्भ की और सूर्यास्त होते होते मथुरा आ पहुंचे । आज नन्द गाँव - मथुराकी दूरी 30-32 km है ,उस समय और कम रही होगी ।
 * मथुरा क्षेत्रमें पहुँचनें पर अक्रूर चाहते थे अपनें घर ले जाना लेकिन कृष्ण मथुराके बहार ब्रज बासियोंका डेरा डालवाये और अक्रूर से बोले ,मैं और दाऊ आप के घर कंश बधके बाद आयेंगे । अक्रूर कंशको कृष्ण आगमनकी सूचना दी और अपनें घर चले
 गए । 
 * अगले दिन तीसरे पहर कृष्ण -बलराम और उनके साथी ग्वाल मथुरा नगर देखनें निकले और इस यात्रामें उनकी मुलाक़ात कंश प्रेमी धोबीसे हुयी , कृष्ण प्रेमी दर्जी मिला और फिर प्रभु गए अपनें अनन्य भक्त माली सुदामा के घर :---- 
<> प्रभु अक्रूरके घर जानेंके लिए मना कर दिया था लेकिन बिन बुलाये गए सुदामा माली के घर । सुदामा एक साधारण माली
 था ,उसे पता भी न था कि प्रभु उसके घर आ रहे हैं ,प्रभु भक्त सुदामा जो हर पल प्रभुकी स्मृतिमें रहा करता था आज उसकी सभीं स्मृतियाँ उसके सामनें खड़ी थी और वह उनमें डूबा हुआ था। लोग समझते रहे कि सुदामा कंश का माली है लेकिन वह था कृष्ण भक्त जिसके सभीं कर्म कृष्णके लिए होते थे । अभीं तक वह काल्पनिक कृष्णके लिए जो मालाएं बनाता रहा और जिनका प्रयोग कंश करता रहा पर उसे कोई दुःख न था ,क्योंकि वह कंश में कृष्णको देखता था पर आज उसका वह काल्पनिक कृष्ण जिसे वह कभीं न देखा था उसके सामनें खड़ा था और उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह उनको पहचानता है । फिट क्या था ? सुदामा माली की कई जन्मोंकी साधानामें फूल खिल उठे और उन फूलोंकी मालाएं बना कर वह प्रभु कृष्ण और शेष जी ( बलरामजी ) को पहना कर उनमें स्वयं को बिलीन कर दिया । 
* कहते हैं , भक्त प्रभुकी तलाशमें तब तक भागता है जबतक वह अपरा भक्ति में होता है और अपरा भक्ति परा भक्ति का द्वार है । अपरासे पराका द्वार खुलता है , उस भक्तकी भाग समाप्त हो जाती है और संसारको प्रभु से प्रभुमें देखता हुआ वह भक्त शून्यकी स्थिरतामें बस जाता है । 
** कृष्ण प्रेमी दूसरे सुदामा थे ब्राह्मण सुदामा ,एक निर्धन सुदामा जो उज्जैन में सान्दीपनि कश्यप गोत्री मुनिके आश्रममें कृष्ण के सखा थे और 64 दिन तक कृष्णके संग रहे । कृष्ण 11 वर्ष की उम्रसे लगभग 30-35 सालकी उम्र तक मथुरा में रहे लेकिन भागवतके अनुसार सुदामा उनसे मिलनें कभी न आये पर उनसे मिलनें द्वारका पहुंचे ,वह भी पत्नीके सुझाव पर ,उस समय जब उनकी गरीबी उनको जीना मुश्किल कर दिया ,तब ।
 * एक सुदामा वह माली था जिसके घर प्रभु गए ,मिलनें और एक सुदामा यह ब्राह्मण कृष्ण सखा थे जो हजारों km की यात्रा करके प्रभु से मिलनें गए ,अपनी गरीबी दूर करनें हेतु लेकिन वहाँ जा कर कुछ बोल न सके , बोलते भी तो कैसे ? प्यारमें मांगकी उर्जा होती ही नहीं । 
** दोनों सुदामाओं को वहसब बिनु मांगे मिला जो संसारमें बनें रहनें केलिए जरुरी है लेकिन उसके साथ इन दोनोंको 
परमधाम - द्वार की चाभी भी मिल गयी । 
<> कृष्ण और कृष्ण भक्त दोनों सुदामाओंकी यह कथा भागवत आधारित है ।
~~ ॐ~~

Saturday, November 16, 2013

परीक्षित कथा

● परीक्षित ● 
भागवत सन्दर्भ : भागवत : 5.10+5.16+5.17+ 1.7+1.8+1.12- 1.19 + भागवत महात्म्य 1 और 2
 * पाँडव बंशमें अभिमन्यु एवं उत्तराके पुत्र , परीक्षित थे , अभिमन्यु अर्जुनके पुत्र थे और पांडुकी पत्नी कुंती एवँ इंद्रसे अर्जुनका जन्म हुआ था ।पांडु की दो पत्नियाँ थी लेकिन स्त्री प्रसंगकरनें में वे असमर्थ थे । जब महाभारत युद्ध हो रहा था उस समय उत्तराके गर्भमें परीक्षित 10वें माह में थे ।हस्तिनापुरमें गंगाजीमें अपनें परिवारके मरे हुए लोगोंको जलांजलि देकर कृष्ण - पांडव वापिस आ गए थे और कृष्ण की द्वारका वापिसी की तैयारी हो रह थी तब उत्तरा भागती हुयी कृष्णकी ओर आ रही थी, यह बोलते हुए कि बचाओ -बचाओ । उत्तराका पीछा लोहेके पांच बाण कर रहे थे जिनसे अग्नि निकल रह थी । प्रभु समझ गए कि यह अश्वत्थामा द्वारा चलाया गया ब्रह्मास्त्र है । अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलना तो जानते थे पर उसे चला कर नियंतित करने की विद्यासे वे अनभिज्ञ थे। प्रभु अपनी योग मायासे उत्तरा और उसके गर्भकी रक्षा की ।
 * जब परीक्षित पैदा हुए उस समय आकाशमें ग्रहोंकी स्थिति इस प्रकार थी :--- 
<> सप्त ऋषि मंडल जब उदित होता है तब पहले दो तारे दिखते
 हैं , उन दो तारोंसे उत्तर - दक्षिण दिशामें यदि एक रेखा खीची जाए तो उस रेखा पर नक्षत्रो की स्थिति दिखती है।
 <> जो नक्षत्र उस रेखा पर दिखता है वह सप्तऋषि मंडलके साथ 100 वर्ष तक रहता है ।
 <> परीक्षितके जन्म और मृत्युके समय मघा नक्षत्र था अर्थात परीक्षितका जन्म - मृत्यु एक ही शताब्दी में घटित हुये ।
 * परीक्षितको शुकदेव ही भागवत कथा भाद्र पद शुक्ला नौमी को सुनाना प्रारंभ किया ।
 * परीक्षित कुल 30 सालसे कुछ अधिक समय तक राज्य
 किये ।
 * जब द्वारकाका अंत हुआ और कृष्ण स्वधाम चले गए उस समय 07 माहसे अर्जुन द्वारका में थे और जो लोग बच गए थे उनको इन्द्रप्रष्ठ ले आये थे । स्वधाम यात्राके समय कृष्ण अपनें सारथी दारुकके माध्यमसे द्वारका यह संदेशा भिजवाया था कि आजसे ठीक सातवें दिन द्वारका समुद्रमें समानेवाला है अतः सभीं लोग शिघ्रातिशिघ्र वहाँसे अर्जुनके संग इन्द्रप्रष्ठ चले जाएँ । 
 * कृष्णके पौत्र अनिरुद्ध और अनिरुद्धके पुत्र बज्रका शूरसेनाधिपतिके रूपमें मथुरामें अभिषेक हुआ और पृथ्वी सम्राट हस्तिनापुरमें परिक्षित बने ।
 * विदुरको ज्ञात था कि प्रभु स्वधाम जा चुके हैं और द्वारका एवं यदु कुलका नाश हो चुका है पर वे इस सत्यको युधिष्ठिरको नहीं बताया । विदुरको यह बात वृंदाबनमें उद्धव बताये थे । अर्जुन जब द्वारकासे वापिस आये तब यह बात युधिष्ठिरको बताये और युधिष्ठिर तुरंत राज्य त्याग करके स्वर्गारोहणके लिए चल पड़े थे और उनके साथ अन्य उनके सभीं भाई भी हो लिए । विदुर धृतराष्ट्र और गांधारी को लेकर पहले ही सप्त श्रोत जा चुके थे जहाँ धृतराष्ट्र एवं गंघारी कुछ दिन ध्यान करके महा निर्वाण प्राप्त किया था । 
* परीक्षित सम्राट बनते ही केतुमाल ,भारत , उत्तर कुरु , किम्पुरुष एवं अन्य सभीं वर्षोंको जीता और वहाँके राजाओं से भेटें स्वीकार की ।भागवतमें जिन वर्षोंका विस्तार मिलता है वे सभीं जम्बू द्वीपके वर्ष हैं और जम्बू द्वीप का भूगोल इस प्रकार है :--- 1- जम्बू द्वीपके केंद्र में है इलाबृत्त वर्ष , इलाबृत्तके केंद्र में है मेरु पर्वत जिसके ऊपर व्रह्माका निवास है और चारो तरफ इंद्र जैसे दिगपालोंके निवास स्थान हैं ।मेरु के सर्वोच्च शिखर पर गंगा उतरी थी और उतरते ही चार भागों में विभक्त हो गयी थी ; वह जो उत्तर में उत्तर कुरु से हो कर समुद्रसे जा मिली उसे भद्रा नाम 
मिला , दक्षिण हिमालय को पार करके भारतवर्ष से हो कर जो समुद्र पहुंची उसे अलखनंदा बोला गया , पूर्वकी ओर जाने वाली धाराको सीता और पश्चिम को ओर जाने वाली धरा को चक्षु नाम मिला । 
2- इलाबृत्तके उत्तरमें क्रमशः दक्षिणसे उत्तर की ओर नील 
पर्वत , राम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्य वर्ष , श्रृंगवान पर्वत और उत्तर कुरु वर्ष है । 
3- इलाबृत्तके दक्षिण में क्रमशः निषध पर्वत , हरि वर्ष , हेमकूट पर्वत , किम्पुरुष वर्ष , हिमालय पर्वत और इसके दक्षिणमें भारतवर्ष। 
4- इलाबृत्तके पूर्वमें गंध मादन पर्वत और उसके पूर्व में भद्राश्व वर्ष था ।
 5- इलाबृत्तके पध्चिममें माल्यावान पर्वत और उसके पश्चिम में केतुमालवर्ष था । 
* एक दिन परीक्षित बज्रसे मिलनें मथुरा आये और जब बज्र मथुराको एक विरान जगह बता कर अपनी चिंता दिखाई तब परीक्षित इन्द्रप्रष्ठ से कुछ कृष्ण प्रेमी सेठों , पंडितों और बंदरों को मथुरामें बसने हेतु भेजा और शांडिल्य ऋषिको आमंत्रित करके मथुराके रहस्य पर प्रकाश डलवाया । मथुरा क्यों वीरान पड़ गया था ? यह बात ध्यानका विषय है ।
 * सुननेंमें कुछ अजीब सा लगता है कि लगभग 50-60 साल की अवधी में मथुरा - बृंदाबन एवं ब्रजके ऐसे सभीं स्थानों की पहचान और अस्तित्व समाप्त हो चुका था जिनका सम्बन्ध
 कृष्ण - लीलाओं से था । शांडिल्यकी मददसे उन स्थानोंको पुनः बज्र विकसित करवाए । 
 * द्वारकाका अंत होना ,कृष्णका स्वधाम जाना , धृत राष्ट्र -गांधारीका सप्त श्रोत यात्रा एवं वहाँ परम निर्वाण प्राप्त करना , पांडवोंका स्वर्गारोहण , पतिक्षित का पृथ्वी सम्राट वनना ,बज्र का शूरसेनाधिपति बनना ,ये सभीं घटनाएँ एक साथ घटित हुयी थी । * पतिक्षित का ब्याह उत्तरकी पुत्री ईरावतीसे हुआ और जन्मेजय सहित चार पुत्र उत्पन्न हुए । 
* आखिर वह दिन आ ही गया , शिकार करते हुए परिक्षित खुद शिकार हो गए । एक दिन परीक्षित शिकार खेलते हुए हस्तिनापुर से सीतापुर की ओर चल पड़े और कौशिकी नदी के तटीय जंगलमें उनको प्यास लगी ,जब कहीं पानी न दिखा तब जंगल में एक ऋषिकी झोपड़ी में गए जहाँ एक ऋषि समाधिमें पहुँचा हुआ था । परीक्षित को जब ऋषि से सम्मान न मिला तब वे क्रोध में आ कर एक मरे सर्प को उनके गले में लटका कर बाहर निकल आये और चल पड़े । कौशकी नदी के किनारे उस ऋषिका पुत्र था जिसे परिक्षिरके कृत्यका पता चल गया और वह ऋषि पुत्र कौशकी नदी में आचमन करके परीक्षितको श्राप दिया कि जा तूँ , आजसे ठीक सातवें दिन तक्षक सर्पके काटनेंसे मर जाएगा।तक्षक श्री राम कुलमें कुश से आगे 26वें बंशज थे ।श्री राम पुरुकुत्स बंश के थे जिनका ब्याह नाग कन्या से हुआ था । तक्षकके अन्दर सर्प उर्जा थी ,वह जब चाहे सर्प बन जाए और जब चाहे मनुष्य के रूपको धारण कर ले । तक्षकके पुत्रको महाभारत युद्ध में अभिमन्यु मारे थे । 
* वह ऋषि जिसके आश्रम में परीक्षित गए थे , शमीक मुनि थे और उनके पुत्र थे श्रृंगी ऋषि । श्रृंगीके श्रापका परीक्षितको पता चल गया और वे तुरंत अपनें पुत्र जन्मेजय को सत्ता दे कर गंगा - तट पर मृत्यु तक ध्यान करनें हेतु आ गए । वहाँ उनसे मिलनें ऋषि समूह आया और शुकदेव ही भी वहाँ पधारे । परीक्षित गंगा तट पर जहाँ बैठे थे वहाँ गंगा पश्चिमसे पूर्व की ओर बह रही थी , परीक्षितका रुख उत्तर दिशा में था और जो कुश वे बिछाए थे बिछावन की तरह उनके अग्र भाग पूर्व दिशामें थे । 
* ठीक सातवें दिन तक्षक आया एक ब्राह्मण के भेष में और परीक्षितके अंतका कारण बना। जब तक्षक परीक्षितकी ओर आ रहा था उस समय एक कश्यप ब्राह्मण परीक्षितकी ओर आ रहा था जो सर्प बिष उतारनें का ज्ञानी था ,तक्षक उसे बहुत सा धन दे कर वापिस भेज दिया था । 
~~~ ॐ~~~

Sunday, November 10, 2013

महावीरका जन्म स्थान वैशाली

● वैशाली - 1 ●
 ° वैशाली एक प्राचीनतम नगर ° 
सन्दर्भ : श्रीमद्भागवत पुराण : स्कन्ध - 9 अध्याय - 1 ,2 , 14 
 <> इस कल्पके प्रारम्भमें ब्रह्माके मनसे मरीचि पैदा हुए , कश्यप ऋषिका जन्म मरीचि से हुआ और कश्यपसे श्राद्ध देव मनु पैदा
 हुए । श्राद्ध देव मनु पुत्र हीन रहे लेकिन यज्ञके माध्यमसे उन्हें पुत्र न प्राप्त हो कर इला नाम की पुत्री प्राप्त हुयी जिसको बसिष्ठ ऋषि सुद्युम्न नामके पुत्रमें बदल दिया लेकिन सुद्युम्न शिव श्रापके कारण पुनः स्त्री रूप में बदल गए । बसिष्ठजी शिवकी आराधना किये और सुद्युम्न एक माह स्त्री तो एक माह पुरुषमें बदल जाया करते थे । 
2- ब्रह्माके दुसरे पुत्र अत्रिसे चन्द्रमाका जन्म हुआ और चन्द्रमासे बुध जन्मे । बुध और स्त्री सुद्युम्न ( इला ) से पुरुरवा का जन्म हुआ । पुरुरवासे चंद्र बंशी क्षत्रियोंका बंश आगे बढ़ा ।सुद्युम्न को स्त्री - पुरुषका जीवन एक दुःखके सिवाय और कुछ न था अतः वे राज्य अपनें पुत्र पुरुरवाको सौप कर तप करनें चले गए । 
3- श्राद्धदेव मनु यमुना तट पर 100 वर्ष तक पुत्र प्राप्ति हेतु तप किया और उनको 10 पुत्र प्राप्त हुए ; इक्ष्वाकु ,नृग ,शर्याति ,
दिष्ट ,करुष , नरिष्यन्त, पृषध्र ,नभग और कवि ।
 4- दिष्ट का पुत्र नाभाग कर्मसे वैश्य हो गया । नाभाग के वंश में 12वें बंशजके रूप में हुए चक्रवर्ती सम्राट मरुत्त । मरुत्तसे आगे 09वें हुए तृणाविन्दु । 
5- तृणाविन्दुका पुत्र हुआ विशाल जिसनें वैशाली नगर बसाया ।वैशाली नगर मूलतः वैश्य नगरके रूपमें विकसित हुआ ।
 6- यह वैशाली वही वैशाली है जहां बुद्धका आखिरी प्रवचन हुआ था और वैशाली जैन तीर्थंकरोंमें आखिरी तीर्थकर महावीर पैदा हुए ।वैशालीसे लच्छवि क्षत्रिय सम्पूर्ण मिथिला , कोशल और मगधमें फ़ैल गए , महावीर की माँ लच्छवि थी । 
^^^ ॐ ^^^

Friday, November 8, 2013

भागवतमें द्वारका - 01

<> भागवतमें द्वारकाके सम्बन्धमें जो उपलब्ध है उसका सार आप यहाँ देखें --
 1-10.50> द्वारकाका क्षेत्र 48 कोस में फैला था । सत्रह बार 23-23 अक्षौणी सेना के कर मगध नरेश जरासंध मथुरा पर आक्रमण किया जिसमें उसकी सारी सेना तो मारी जाती पर वह बच निकलता। 18वीं बार युद्ध होना था कि कालयबन 03 करोड़ म्लेक्षों की सेना लेकर मथुरा पर आक्रमण कर दिया ।प्रभु सोचे , उधर जरासंध भी आ रहा है और इधर कालयबन आ पहुंचा है , इस परिस्थिति में समस्या गंभीर है अतः उन्होंने समुद्रके अन्दर द्वारकाका निर्माण करके मथुरा बासियोंको वहाँ भेज दिया । 2-11.1 पिन्दारक क्षेत्र द्वारकाके अति समीप था ,एक टापूके रूपमें जहाँ वे 11 ऋषि प्रभुसे मिल कर रुके हुए थे जिनके श्रापसे द्वारकाका अंत हुआ था ।ऋषियोंके नाम इस प्रकार से हैं : विश्वामित्र , नारद ,वसिष्ठ , कश्यप , दुर्बासा, कण्व , असित , भृगु , अंगीरा, वामदेव,अत्रि ।
 3- 11.30 > प्रभास क्षेत्र द्वारकाके लोगोंका तीर्थ था जहाँ पहुँचनेके लिए नावोंसे समुद्र पार करके रथों से जाना होता था । प्रभास क्षेत्रमें यदुबंशके लोगोंका आपस में लड़नें से अंत हुआ था और प्रभु यहाँ से परमधाम गए थे तथा बलरामजी अपना शरीर यहीं त्यागा था ।यहाँ सरस्वती पश्चिम की और सागरसे मिलती थी । 
4-1.10+5.10 > द्वारका से हस्तिना पुर का मार्ग :---- द्वारका - आनर्त - जाभीर - सौभीर ( सिंध का भाग जहां इक्षुमती नदी बहती थी । यह नदी कुरुक्षेत्रसे हो कर द्वारका की ओर जाती थी )।- मरुध्वन - सारस्वत - मत्स्य - कुरुक्षेत्र - ब्रह्मावर्त ( यमुना का तटीय प्रदेश ) - शूरसेन - पांचाल - कुरु जंगल - हस्तिनापुर 
5-4.11> ब्रह्मावर्त में सरस्वती पूर्वमुखी थी 
 6- 1.10 > जामीरके पश्चिममें आनर्त था जहाँ बलराम जी का ब्याह हुआ था । 
7-5.10 > यहाँ ऐसा दिखता है कि सौवीर जो सिंधका भाग था वहाँसे इक्षुमती नदी बहती थी । 
8-11.7 > प्रभुके परम धाम जानेंके बाद ठीक सातवें दिन द्वारका समुद्रमें समा गया था ।
 9- आज का द्वारका समुद्र तलसे न ऊंचाई पर है न नीचे है । 10-खम्भातकी खाड़ीकी खोज बताती है कि जो वहाँ का भाग समुद्र में डूबा था उसके होने की अवधि लगभग 7500 BC से 3500 BC का हो सकता है लेकिन भागवत के अनुसार यह समय लगभग 3400 वर्ष बनता है । 
~~~ ॐ ~~~

Wednesday, November 6, 2013

छठ पर्व

● छठ पर्व ●
* पिरामिड सभ्यता जैसे मिस्र और मेक्सिको और भारतके पूर्वी भागके लोगों का सूर्य से गहरा सम्बन्ध है । मैथिलि ऋषि याज्ञवल्क्य अपनें गुरु वैशम्पायनसे अलग हो कर सूर्य की गहरी उपासना की और कई वैज्ञानिक शोध विषयों पर प्रकाश डाला लेकिन उनकी बातें आजके विज्ञानमें कोई ख़ास जगह न बना
सकी । ऐसी कौन सी घटना हो सकती है जिसके प्रभावके कारण ये लोग सूर्यसे जुड़े होंगे ?
* 1613 AD Alfred Wegener एक जर्मन विचारक का मत है कि अबसे लगभग 200 million साल पूर्व में पृथ्वी के टुकडे हुए और तब विभिन्न महाद्वीपों की रचना हुयी ।पृथ्वी जब एक इकाई थी तब इसे ग्रीक भाषा में Pangea कहते थे जिसका अर्थ होता है one piece ।
* अबसे 200 million वर्ष पूर्व भारतका पूर्वी भाग जहाँके लोग छठ मनाते हैं , मेक्सिकोजे साथ जुड़ा हुआ था । अगर आप मेक्सिको जाएँ और वहाँ के कबिले लोगों से मिले तो आप को ऐसा लगेगा जैसे भारत के पूर्वी भाग के लोगों से आप मिल रहे हैं ।
* उस समय कोई ऐसा हादसा हुआ कि पृथ्वी के टुकडे हो गए और बहुत समय तक उन लोगों को सूर्य न दिखा । सूर्य की अनुपस्थिति लोगों में भय उत्पन्न की और लोग सूर्यकी उपासना करनें लगे । वह दिन और आज का दिन यह परंपरा चल रही है और चलती रहेगी ।
~~ ॐ ~~

Saturday, October 26, 2013

भागवत में यह भी है

● भागवतमें यह भी है - 2 ● 
<> यहाँ जो दिया जा रहा है , उस पर आप दो घडी सोचें :--- 1- भागवत : 10.61 > कृष्णकी 16108 रानियोंसे 161080 पुत्र एवं एक कन्या थी।
 2-भागवत : 10.70 > जरासंध 20800 राजाओं को कैद कर रखा था ।
 3- भागवत : 10.72 > भीम - जरासंध युद्ध 28 दिन
 चला । 
4- भागवत :10.90 > यदु कुलके बच्चोको पढानें हेतु द्वारकामें 03 करोड़ 88 लाख आचार्य थे ।
 5-भागवत : 10.90 > उग्रसेनकी सेना एक नील ( 10,000 billion ) थी । 
6- भागवत : 10.50 > द्वारका का क्षेत्र 48 कोस था ( एक कोस = लगभग दो मील ) ।
 7- भागवत : 9.8 > सगरके 60000 पुत्र गंगा सागर पर कपिल मुनिके तेजसे भष्म हुए थे । 
8 - भागवत : 9.23 > यदुकुलमें शशिबिंदुको 10,000 रानियाँ थी ।
 9 - भागवत : 6.14 > शूरसेन सम्राट चित्रकेतुको 01 करोड़ रानियाँ थी ।
 10 - भागवत : 9.10 > रावणके 14000 पुत्रोंको श्री राम मारे थे ।
 11 - भागवत : 5.7 > ऋषभदेव पुत्र भरत एक करोड़ वर्ष तक राज्य किया ।
 12 - भागवत : 9.20 > दुष्यंत बंशके भरत 27000 वर्ष तक राज्य किया ।
 ~~~ ॐ ~~~

Thursday, October 24, 2013

भागवत में अक्रूर कौन थे ?

●अक्रूर कौन थे ?●
सन्दर्भ : स्कन्ध - 9 + 10
** 1- ब्रह्मा से अत्रि ऋषि ,अत्रिसे चन्द्रमा , चन्द्रमा और ऋषि बृहष्पतिकी पत्नी तारा से बुध पैदा हुए । ** 2- ब्रह्मासे कश्यप ऋषि ,कश्यपसे विवश्वान (सूर्य ) ,सूर्यसे श्राद्धद्रव मनु हुए । श्राद्धदेवसे इला पुत्री पैदा हुयी जो एक माह सुद्युम्न पुत्र रूपमें रहती थी और एक माह इला पुत्री रुपमें। इला पुत्री और बुधसे पुरुरवा हुए जिनसे चन्द्र बंश चला । पुरुरवा और उर्बशी का मिलन कुरुक्षेत्रमें सरस्वती नदीके तट पर हुआ था । पुरुरवासे 06 पुत्र हुए जिनमें आयु के पौत्र ययाति और शुक्राचार्य पुत्री देवयानी से यदु हुए । यदुके 04 पुत्र हुए जिनमें क्रोष्टा के बंश में आगे विदर्भ हुए । विदर्भ के तीन पुत्रों में क्रथके बंश में शकुनि
हुए । शकुनिके बंशमें सात्वक हुए जिनके 07 पुत्र हुए , उन सात में बृण्णिसे श्वफलक और चित्ररथ
हुये । चित्ररथसे कृष्णके दादा शूरसेन हुए और श्वफलक से 12 पुत्रों में एक हुए अक्रूर ।
* अब आगे *
* गोकुलमें बैल रूपमें आये अरिष्टासुरका अंत हो रहा है और उधर मथुरामें नारदजी कंशको सच्चाई बता रहे है कि कृष्ण , बलराम कौन हैं और वह कन्या जिसे तुम मार रहे थे ,वह कौन थी ?
* अक्रूरजी कृष्ण बंशसे सम्बंधित थे लेकिन रह रहे हैं मथुरामें अतः कंश अक्रूरको ब्रज भेज रहा है ,कृष्ण और बलराम को लेनें हेतु । कंश मथुरामें धनुष यज्ञका आयोजन कर रहा है और यह आयोजन मात्र एक बहाना है ।
* आज नन्द गाँव और मथुराकी दूरी 32 km है और अक्रूरजी इस दूरीको एक दिन में पूरी कर रहे हैं ; वे सुबह चल रहे हैं और सूर्यास्तके समय नन्दके यहाँ पहुंच रहे हैं । नन्दके गौशालाके पास कृष्ण - बलरामजी अक्रूरजी से मिले और सादर उनको घरके अन्दर ले गए ।
*कंश बध के बाद बलराम और कृष्ण अक्रूर जी के घर भी गए ।
* कृष्णकी पत्नी सत्यभामा के पिता हैं सत्राजित जो सूर्यके भक्त थे और सूर्यसे उनको स्यमन्तक मणि मिली थी । कृष्ण उस मणि को द्वारकानरेश उग्रसेन जी को देनें की राय दी पर सत्राजित ऐसा न कर सके। उस मणि को सत्राजित के भाई प्रसेन पहनकर शिकार खेलने बनमें गए और एक शेर उनको मार कर मणि ले ली और अंततः वह मणि जाम्बवान के पास पहुँच गयी । कृष्णका नाम आनें लगा की वे प्रसेन जो मार कर मणि ले लिए हैं अतः कृष्ण मणिका पता करते हैं और 28 दिन तक जाम्बवान से युद्ध करते
हैं , जाम्बवान अपनी पुत्री जाम्बवंतीके साथ उस मणिको कृष्ण को दे देता है । कृष्ण उस मणि को सत्राजित को वापिस करते हैं । कृष्ण और बलदेव हस्तिनापुर आये हैं और उधर द्वारका में अक्रूर और कृतवर्मा शतधन्वाको सत्राजितके खिलाफ तैयार कर रहे हैं , फलस्वरुप शतधन्वा सत्राजित को मारता है । मणि अक्रूर जी के पास रख कर शतधन्वा कृष्ण के भय के कारण भाग निकलता है । कृष्ण - बलराम उसका पीछा करते हैं और मिथिला पूरी के पास पहुंचते पहुंचते सतधन्वा को कृष्ण मारते हैं पर मणि तो उसके पास है नहीं । बलराम कई साल विदेहके पास रहे और कृष्ण द्वारका वापिस आगये । अक्रूरजी से उस मणि को लेकर कृष्ण उग्रसेन को देते हैं ।
* कंश बधके बाद कृष्ण अक्रूरजीको हस्तिनापुर भेजते हैं यह पता लगानें हेतु कि कौरओं का पांडवों के साथ कैसा ब्यवहार है । पांडु की मौत हो चुकी है , धृतराष्ट्र हस्तिना पुरके सम्राट बन गए हैं लेकिन अपनें पुत्रोंके बशमें होनेंके कारण उनका पांडवों के साथ ब्यवहार ठीक नहीं है । अक्रूर कई माह हस्तुनापुर में रहते हैं , स्थिति का अध्यन करनें हेतु और वापिस आकर कृष्ण को वहाँ की स्थिति से अवगत कराये हैं। ~~~ ॐ~~~

Monday, October 21, 2013

एक तरफ सुख और दूसरी तरफ दुःख

● सुख और दुःख ●
* सन्दर्भ : भागवत स्कन्ध - 10 *
** आप सभीं लोग जरा इस प्रसंग पर सोचना ।
* कृष्ण और बलराम ब्रजमें 11 साल रहे और कंशको जब नारद द्वारा यह पता चला कि सभीं ब्रजबासी विष्णु भक्त देवता हैं और नन्दके पुत्र रूप में रह रहे , कृष्ण - बलराम बसुदेवके पुत्र हैं , कृष्ण विष्णुका अवतार है और बलराम शेषजीका अवतार
हैं । यह सारा तंत्र देवताओं और विष्णुका फैलाया हुआ है , आपको मारनें के लिए । आपके अंत की सभीं तैयारियां हो चुकी हैं केवल वक़्त का इन्जार किया जा रहा है , अब ऐसी परिस्थितिमें अपनें बचनेंका उपाय आप सोच सकते हैं तो सोचें , देर करना उचित नहीं ।
* कंश बसुदेव कुलके सदस्य अक्रूरके माध्यम से कृष्ण , बलराम , नन्द और सभीं ब्रज बासियोंको मथुरा आनेंका आमंत्रण भेजते हैं , मथुरामें धनुष यज्ञका महा उत्सव आयोजित किया जा रहा है ।कृष्ण सहित सभीं ब्रज बासी मथुरा आते हैं और मथुराके बाहर डेरा डालते हैं ।
* कंश बधके साथ दो घटनाएँ एक साथ घटित होती हैं ; कृष्ण जो अभीं तक यशोदा की उंगली पकड़ कर कन्हैयाके रूपमें ब्रजकी गलियोंमें सबके जीवन रेखाके रूपमें घूमते रहते थे , वही कन्हैया माँके सामनें आ कर कह रहे हैं कि अब आप लोग ब्रजको वापिस लौट जाय , मैं आप सबसे मिलनें आऊंगा , आप को दुःख तो होगा लेकिन वक़्त की चाह यही है और दूसरी घटना यह है की दोनों भाई मथुरा से लगभग 600 km दूर उज्जैन सान्दिपनी मुनिके आश्रम शिक्षा प्राप्तिके लिए जाते हैं ।
**अब दो बातें जो ध्यान - माध्यम हैं **
1- उज्जैन में सांदीपनी मुनिके यहाँ 64 दिनों में 64 विद्याओंको ग्रहण करना ।
2- कृष्णके बिना यशोदाका मथुरासे ब्रज की यात्रा जो लगभग 30 km है किस तरह से कटी होगी ?
* कृष्ण शिक्षा प्राप्तिके बाद माँ यशोदा से स्वयं मिलनें न जा कर अपने मित्र उद्धव को भेजते हैं।
* कृष्ण 11 सालके थे जब मथुरा आये और फिर लौटके यशोदा - नन्द से मिलनें कभीं नहीं गए ।
* माँ यशोदा और नंद को जब पता चला कि कुरुक्षेत्र में सर्बग्रास सूर्य ग्रहणके अवसर पर उनका कान्हा वहाँ आ रहे हैं तब सम्पूर्ण ब्रज , माँ यशोदा एवं नन्द कुरुक्षेत्र आये और सभीं तीन माह कान्हाके साथ रहे लेकिन उस समय उनका कान्हा लगभग 75-80 साल का हो चूका था ,यह घटना महाभारत युद्धसे पहले की है ।
** भक्ति मार्गी यशोदा के ह्रदय पर ध्यान करें ।
* और *
** ज्ञान योगी कृष्णके ऊपर ध्यान करें ।
~~~ ॐ ~~~

Friday, October 18, 2013

भागवत स्कन्ध - 3 भाग - 1

● भागवत स्कन्ध 3 भाग - 1 ( सार ) 
 <> स्कन्ध - 3 में 1410 श्लोक 33 अध्यायों में हैं ।
 <> यह स्कन्ध ऋषि मैत्रेय और विदुरका संबाद है । 
# विदुर महाभारत युद्धसे ठीक पूर्व धृतराष्ट्र को जो सलाह दिए उसे विदुर नीतिके नामसे जाना जाता है । महाभारत युद्धसे ठीक पहले कृष्ण हस्तिनापुर आये , समझौता करानें लेकिन विफल
 हुए , इसी सन्दर्भमें विदुर को अपमानित किया गया और विदुर हस्तिनापुर छोड़ कर तीर्थ यात्रा पर निकल गए ।
 # विदुर इस यात्रामें सरस्वती के तटके 11 तीर्थो का सेवन किया जो निम्न प्रकार से हैं । त्रित , उशना ,मनु , पृथु , अग्नि , असित , वायु , सुदास , गौ , गुह और श्राद्धदेव । # विदुर जब यात्रासे वापिस हुए तब पहले बृंदाबनमें कृष्णके बाल सखा उद्धवसे मिले और फिर कुशावर्त गंगा तट पर ( हरिद्वारके समीप ) मैत्रेयजीके आश्रम पर उनसे ज्ञान प्राप्त किया ।उद्धव देखनेंमें एकदम कृष्ण जैसे थे और 05 साल की उम्रमें कृष्णकी प्रतिमाएं बनाया करते थे । उद्धवजी असुरोंको भी प्रभु भक्तके रूपमें देखते हैं , उद्धव कहते हैं , असुर लोग द्वेष भावसे ही सही लेकिन हर पल प्रभुको अपनी बुद्धिमें बैठाए तो रहते ही हैं । 
# उद्धव प्रभु की बाल लीलाओं का वर्णन विदुर को सुनाया ।
 # विदुर उद्धवसे मिल कर कुशावर्त क्षेत्र हरिद्वार पहुंचे जहां मैत्रेय का आश्रम था । जब द्वारका एवं यदुकुलका अंत हुआ और प्रभु स्वधाम गए तब मैत्रेय प्रभास क्षेत्रमें सरस्वती तट पर पीपल पेड़के नीचे प्रभुके साथ बैठे थे । 
# मैत्रेयका सृष्टि विज्ञान : स्कन्ध 2.5में ब्रह्माके सृष्टि विज्ञान और यहाँ स्कन्ध -3.5 में मैत्रेय के सृष्टि विज्ञानमें कोई विशेष अंतर नहीं है :
 * तामस अहंकार और कालसे ब्रह्माके विज्ञानमें भूतों की उत्पत्ति होती है और भूतोंसे तन्मात्रों की और यहाँ मैत्रेय तन्मात्र से भूतों की रचना बता रहे हैं ।
 मैत्रेय कहते हैं --- 
# तामस अहंकार और कालसे महत्तत्त्व बना
 * महत्तत्व और कालसे शब्द उपजा हो दृश्य -द्रष्टाका बोध कराता है । + शब्दसे आकाश है । 
* आकाश और कालसे स्पर्श उपज + स्पर्शसे वायु है ।
 * वायु और कालसे रूप उपजा । 
* रूपसे तेज है ।
 * तेज और कालसे रस उपजा । 
* रससे जल है ।
 * जल और कालसे गंध उपजा । 
* गंध से पृथ्वी है ।
 ** 23 तत्त्व ( 11 इन्द्रियाँ + 5 भूत +5 तन्मात्र +अहंकार + महत्तत्त्व ) प्रभुकृपा से आपसमें मिले और अधिपुरुष की उत्पत्ति हुयी ।अधिपुरुषसे सृष्टि आगे बढ़ी ।
 ** स्कन्ध - 3 का यह पहला भाग है ।
** भाग - 2 अगले अंकमें आप देख सकते हैं । 
~~~ ॐ ~~~

Tuesday, October 15, 2013

परशुराम और विश्वामित्र

● परशुराम-विश्वामित्र ●
हिन्दू शास्त्रों में विश्वामित्र और परशुरामका महत्वपूर्ण स्थान है और दोनों की मूल भी एक है ।
* ब्रह्मासे अत्रि ऋषि हुए ,अत्रिसे चन्द्रमा और चन्द्रमा वृहस्पतिकी पत्नी तारासे बुध पैदा हुए।
* बुधसे पुरुरवा पैदा हुए । पुरुरवा और उर्बशी का मिलन कुरुक्षेत्र में सरस्वती तट पर हुआ और दोनों ब्याह बंधन में जुड़ गए । पुरुरवा से 06 पुत्र हुए ।
* पुरुरवाके पुत्रोंमें एक थे विजय जिनका पुत्र था
जुह्नु । जुह्नु बंशमें आगे 5वें बंशज हुए कुशाम्बु । कुशाम्बूके पौत्र हुए विश्वामित्र और कुशाम्बू की पौत्री से जम्दाग्नि पैदा हुए जिनके पुत्र थे परशुराम।
* कुशाम्बुके पुत्र गाधि और गाधिके पुत्र विश्वामित्र
थे ।गाधिकी पुत्री सत्यवतीके पुत्र थे जमदाग्नि और जमदाग्निके पुत्र थे परशुराम ।
* सत्यवती बाद में कौशकी नदी बन गयी थी । कौशकी नदी सरयू और गंगाके मध्य हुआ करती
थी ।कौशकी नदीके तट पर श्रृंगी ऋषि परीक्षितको श्राप दिया था ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, October 12, 2013

भरत जिनके नाम से भारतवर्ष है

● रिषभ देव पुत्र भरत -1 ● 
<> सन्दर्भ : भागवत : स्कन्ध -1 , 5 , 11
 ** बंशावली ** 
स्वायम्भुव मनुके पुत्र प्रियब्रत ,प्रियब्रतसे आग्निध्र ,आग्निध्रसे नाभि और नाभिसे ऋषभ देव पैदा हुए। रिषभदेव 08वें विष्णुके अवतार थे और इनके पुत्र हुए भरत ।रिषभ देव जैनधर्म में पहले तीर्थंकर माने जाते हैं । ऋगवेदमें रिषभदेव का सन्दर्भ मिलता है और सिन्धु घाटी की सभ्यताके सन्दर्भ में की गयी खुदाइयों में इनके प्रमाण मिले हैं । 
 °° भरत °° 
 * स्वयाम्भुव मनु ब्रह्मावर्तके सम्राट थे ,ब्रह्मावर्तकी राजधानी
 थी , बहिर्षमती। यमुनातटके इस क्षेत्रमें सरस्वती नदी पूर्वमुखी थी और दुसरे वाराह अवतारमें प्रभु पृथ्वीको रसातलसे ऊपर इसी क्षेत्रमें ले कर आये थे ।
 * स्वायम्भुव मनुकी कन्या देवहूतिका ब्याह कर्मद ऋषि (विन्दुसरआश्रम ) से हुआ था और 05वें अवतारके रूपमें कर्मदके पुत्र रूपमें कपिल का जन्म हुआ । कपिलके सम्बन्धमें प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ( गीता 10.26 ) सिद्धानां कपिलः मुनिः अस्मि । कपिल मुनि सांख्य योगके जनक कहे जाते हैं ।कर्मद ऋषि ब्रह्मा की छाया से पैदा हुए थे ।
 * रिषभदेवका ब्याह इंद्रकी पुत्री जयंतीसे हुआ और इनके 100 पुत्रोंमें भरत बड़े पुत्र थे । रिषभदेव भरतको राज्य देकर स्वयं अवधूत जीवन गुजारा , ब्रह्मावर्तको त्याग कर कुटकाचल (कर्नाटक ) के जंगलमें अजगर बृति अपना ली और दिगंबरके रूपमें जंगलकी दावाग्निमें अपना शरीर त्यागा लेकिन जैन शास्त्र कहतेहैं कि इनके महा निर्वाणका क्षेत्र कैलाश है । 
* भरतका ब्याह पंचजनीसे हुआ और पांच पुत्र पैदा हुए ।भरत एक करोड़ साल राज्य किया। अजनाभवर्ष इनके नामसे भारतवर्ष हो गया। भरत राज्य पुत्रोंमें बाट कर स्वयं हरिहर क्षेत्र पुलहाश्रम,गण्डकी नदी ,शालग्राममें पहुंच गए। वहाँ आश्रममें ध्यान किया लेकिन एक हिरनके बच्चेसे आसक्त हो गए और साधना खंडित हो गयी फलस्वरूप इनको अगला जन्म हिरनके रूपमें कालंजर पर्वत पर हुआ । भरतको उनका पिछला जन्म याद था अतः कालंजर पर्वतको त्याग कर पुनः शालग्राम क्षेत्र पुलहाश्रम , गण्डकी नदीके तट पर आ गए और गण्डकी नदीमें हिरनके रूप में जल समाधि ले ली ।
 * भरतका तीसरा जन्म अंगिरस गोत्रमें एक ब्राह्मण कुलमें
 हुआ । भरतको यहाँ जड़ भरत के नाम से देखा गया । जड़ भरत सिंध सौबीर राज्यके राजा रहूगणको इक्षुमती नदीके तट पर ज्ञान दिया । इक्षुमती नदी कुरुक्षेत्रसे गुजरती थी और सरस्वती - सिंध नदियोंकी तरह अरब सागरमें जा मिलती थी । 
 ~~~ ॐ ~~~

Tuesday, October 8, 2013

बुद्ध पुरुष का महानिर्वाण

● बुद्धका निर्वाण ● 
 ~ बुद्ध पुरुष अपनी मौतका द्रष्टा होते हैं । 
~ बुद्ध पुरुष स्वेच्छासे प्राण त्यागते हैं । 
~ बुद्ध पुरुषकी मौत इन्तजार करती है । 
<> बुद्ध पुरुष कैसे प्राण त्याग करते हैं ? 
* पहले योग्य जगहकी तलाश करते हैं । 
* उसका इन्तजार करते हैं जिसे अपनी ज्योति देनी होती है । 
°° फिर °° 
° वाणीको मनमें ---- 
° मनको प्राणमें ----
 ° प्राणको अपान वायुमें ---
 ° अपान वायुको उसकी क्रियाओं सहित मृत्युमें --- 
° मृत्युको पञ्चभूतमय शरीरमें लीन करते हैं । 
 ^^ यह भागवतका सार है ^^ 
~~~ ॐ ~~~

Wednesday, October 2, 2013

भागवत स्कंदग - 2 ( सार )

● भागवत स्कन्ध - 2 ( सार ) 
 <> भागवत स्कन्ध - 2 में निम्न बातें हैं । 
* 10 अध्याय हैं । 
* 382 श्लोक हैं ।
 * यह स्कंध शुकदेव - परीक्षित संबादके रूपमें है । 
°° स्कन्धके ध्यान सूत्र °°
 1- भोगीका दिन धन संग्रह और रात स्त्रीकी तलाशमें गुजरती
 है । 
2- जीवोंमें मात्र मनुष्य ऐसा जीव है जिसके अन्दर प्रभुकी सोच किसी न किसी रूपमें होती है । 
3- होशमय एक घडीका जीवन बेहोशीके 100 वर्षके जीवनसे उत्तम जीवन है ।
 4- शुकदेव जी कह रहे हैं , परीक्षित अभी तुम्हारी मौत सात दिन आगे है तुम चाहो तो वैराज्ञ माध्यमसे मोह ,माया मुक्त हो कर परम गति प्राप्त कर सकते हो । 
5- आसन , श्वास ,इन्द्रिय और आसक्ति नियंत्रणसे वैराज्ञमें उतरा जा सकता है । 
6- वह जिसको अंत समय तक देश -कालसे विरक्ति हो जाती है वह परम गतिका राही होता है । 
7- भागवत : 2.5 : ब्रह्मा का सृष्टि विज्ञान : 
 * माया पर कालके प्रभावसे > महतत्त्वकी उत्पत्ति हुयी । 
* महतत्त्व पर कालका प्रभाव हुआ और तीन अहंकार उपजे । 
* सात्विक अहंकारसे मन और इन्द्रियोंके अधिष्ठाता देवोंकी उत्पति हुयी ।
 * राजस अहंकारसे 10 इन्द्रियाँ , बुद्धि और प्राण बना ।
 * तामस अहंकारसे आकाश बना और आकाशका गुण है शब्द तन्मात्र । 
^ आकाश पर कालका प्रभाव वायुको उत्पन्न किया और वायुका तन्मात्र है स्पर्श । 
^ वायु कालके प्रभावमें तेजको पैदा किया , तेजका तन्मात्र है
 रूप । 
^ तेज और कालसे जल बना , जलका तन्मात्र है रस । 
^ जल और कालसे पृथ्वी बनी ,पृथ्वीका तन्तात्र है गंध ।
 ^^ 05 बिषय ( तन्मात्र ), 05 महाभूत ,11 इन्द्रियाँ ,
 बुद्धि ,तीन अहंकार और तीन गुणों से ब्रह्माण्ड एवं देह पिंडकी रचना है । 
8- भागवत : 2.9 में भागवतके 10 लक्षणों को ब्यक्य किया गया है जो निम्न प्रकारसे हैं । 
* सर्ग *विसर्ग *पोषण * ऊति *मन्वन्तर *ईशानुकथा *निरोध *मुक्ति *आश्रय । # सर्ग : महतत्त्व +महाभूत +अहंकार + इन्द्रियोंकी उत्पति सर्ग है । # विसर्ग : ब्रह्माकी उत्पत्तियाँ जिंक्स आधार सर्ग हैं , विसर्ग कहलाती हैं । 
< भागवत स्कन्ध - 2 समाप्त < 
~~ ॐ ~~