Thursday, April 28, 2011


ज्ञान शब्द के भाव को गीता में समझो




पिछले अंक मे हमनें देखा : - - - - - -


योग – सिद्धि ज्ञान का द्वार है,


और


अब … ....




गीता सूत्र – 4.35


ज्ञान के साथ मोह नहीं रहता


Wisdom and delusion do not coexist


गीता सूत्र – 18.72


मोह अज्ञान की पहचान है


delusion is the symptom of ignorance




गीता -सूत्र 10.3


मोह से सम्मोहित ब्यक्ति प्रभु को नहीं पहचानता


man influenced by delusion can not have divine – glimpses


गीता सूत्र – 4.37


ज्ञान से मोह दूर होता है






wisdom does not allow ignorance to dwell in the mind – intelligence mechanism




और


गीता सूत्र – 13.3


क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है


Awareness of materials and divine power is wisdom




गीता के पांच सूत्रों को आप ऊपर देखे,क्या आप जो ज्ञान का अर्थ समझते थे,गीता भी वही अर्थ बता रहा है ?


अंग्रेजी मे दो शब्द हैं ; knowledge – wisdom लेकिन संस्कृत में ज्ञान शब्द उस बोध के लिए


प्रयोग किया जाता है जो सत्य से जुड़ा होता है /


Knowledge is which is obtained through books and wisdom is alive knowledge which is the


the obtained as a bliss . Wisdom is the purest form of awareness of the existence .




प्रोफ.अल्बर्ट आइन्स्टाइन कहते हैं :


ज्ञान दो प्रकार का होता है ; एक मुर्दा ज्ञान जो किताबों से मिलता है और दूसरा सजीव ज्ञान जो


कभीं-कभीं चेतना से टपकता है /


Sunday, April 24, 2011

ज्ञान कैसे मिलता है

साधना- सूत्र

गीता श्लोक – 4.38

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते|

तत्स्वयं योगसंसिद्ध:कालेनात्मनि विन्दति||

योग – सिद्धि ज्ञान के द्वार को खोलती है||


Perfection of yoga opens the door of wisdom .


गीता में प्रभु एक सांख्य – योगी के रूप में हैं और सांख्य एवं वैशेषिका साधना

के प्राचीनतम दो ऐसे मार्ग हैं जो आज के पार्टिकल – फिजिक्स जैसे हैं जिनका

मूल उद्देश्य है तर्क के आधार पर परम सत्य को पकड़ना|


आज जनेवा में पृथ्वी के अंदर टनेल बना कर भौतिक वैज्ञानिक आत्मा को प्रयोग शाला

मे बनानें का जो प्रयत्न कर रहे हैं वह है तो उत्तम लेकिन उसका परिणाम क्या होता है?

अभीं अंदाजा लगाना ठीक नहीं|जिस दिन वैज्ञानिक ऐसा परम् कण खोज लिया

जिससे जीव बनाया जा सकता है तो समझना उस दिन के एक और पांचवा योग का प्रारम्भ होगा|


========= ओम =========


Thursday, April 21, 2011


श्लोक – 27




गीता सूत्र – 6.2




गीता में प्रभु कह रहे हैं:


कर्म – योग एवं कर्म – संन्यास एक हैं


Lord Krishna says :


Karma – yoga and action renunciation both are same .


कर्म – योग और कर्म संन्यास दोनों एक कैसे हैं ?


कर्म क्या है ? पहले इसे समझना जरूरी है ; कर्म तीन प्रकार के होते हैं , सात्त्विक , राजस


एवं तामस . मनुष्य तन , मन एवं बुद्धि से जो कुछ भी करता है , उसे कर्म कहते हैं


गीता कहता है:


कोई भी जीवधारी एक पल के लए भी कर्म रहित नहीं रह सकता , कर्म तो करना ही है चाहे


करनें की चाह हो या न हो क्योंकि …....


कर्म मनुष्य नहीं करता , गुण मनुष्य से कर्म करवाते हैं जबतक मनुष्य के अंदर गुण हैं


तबतक मनुष्य कर्म रहित नहीं हो सकता


गीता आगे कहता है:


जब कर्म करना ही है तो जो तुमसे हो रहा है उसे योग में बदलनें की कोशीश करते रहो


अर्थात सामान्य कर्मो में योग साधना से गुजरो और तब --------


कर्म तो तुमसे होते रहेंगे लेकिन कर्म – तत्त्वों की पकड़ समात होनें लगेगी


कर्म में जब कम – तत्त्वों की पकड़ न हो तो वह कर्म निर्वाण का मार ्ग बन जाता है


गीता कहता है:


भोग भाव से कर्म को मुक्त रखना ही कर्म संन्यास है और …...


वह जो भावातीत में पहुंचाए उसे कहते हैं , कर्म


Gita says …..


Three natural modes compel beings to do work and hence beings are not the doers .


Beings could not be free from the modes and so could not be without action even for a moment .


No body could be free from action so long as he is in the body .


Gita further says :


The action done without any attachment , passion and ego leads to NIRVANA .


Gita ,s simple theory is ----


Action with desire and ego leads to HELL


Action without desire and ego leads to NIRVANA




======= ओम =========




Saturday, April 16, 2011

संन्यासी कौन


गीता के दो सौ साधना सूत्रों की श्रृंखला में यह 26 वां सूत्र है ,

आइये देखते हैं … ..

सूत्र –5.3

ज्ञेयः स:नित्य संन्यासी

:न द्वेष्टि न काङ्क्षति

निः द्वन्द्वः हि महाबाहो

सुखं बंधात प्रमुच्यते||


उसे संन्यासी कहना चाहिए जो----

द्वेष रहित हो

द्वंद्व रहित हो

कामना रहित हो

ऐसा योगी कर्म बंधनों से मुक्त खुश रहता है ||


He who neither loathes nor desires, unaffected by dualities , free from

bondage , is a true yogin and he remains happy under all circumstances.


==== ओम ========


Monday, April 11, 2011

कर्म योगी खोज का बिषय नहीं है




कर्म – योगी कौन है?




अनाश्रित:कर्मफलम् कार्यं करोति य:


स संन्यासी च योगी च न नि:अग्नि:न चाक्रिय:


गीता- 6.1


कर्म – योगी वह हैं जिसके द्वारा जो कर्म हो रहा है उसके प्रति


उसके अन्तः करण में कर्म – फल की सोच न हो




Action without attachment , without any expectation specially without the


expectation of its end result makes one Karma – Yogi .




गीता के इस सूत्र में और क्या गुंजाइश है कि इसे और स्पष्ट किया जाए


गीता प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा से परिपूर्ण है इसमें बहुत अधिक कहीं कोई गुंजाइश नहीं दिखती कि किसी भी सूत्र को और स्पष्ट किया जाए,


सभी सूत्र पूर्ण रूप से स्पष्ट हैं और अपनें में पूर्ण भी हैं




गीता के सूत्रों को धारण करना ज़रा कठीन जरुर है लेकिन समझना


कठिन नहीं गीता सूत्रों को समझते तो सभीं हैं लेकिन इन सूत्रों की


ऊर्जा को अपनें जीवन में कोई – कोई प्रयोग में लाता है और जो लाता है वह संसार का द्रष्टा होता है




=====ओम=============


Wednesday, April 6, 2011

गीता साधना सूत्र




गीता अमृत बचन



ओम शांति ओम में गीता के दो सौ अमृत बचनों को यहाँ दिया जा रहा है जो साधना - श्रोत का काम करते हैं इस श्रृंखला में यह अगला सूत्र चौबीसवाँ सूत्र है ,


आइये देखते हैं इस सूत्र को ----------------



गीता सूत्र – 4.41



सूत्र कहता है … ...................


जिसके कर्म में ------


[]कोई चाह न हो


[]संदेह रहित कर्म हो


वह कर्म करनें वाला -------


[] कर्म – बंधन मुक्त होता है


[] संन्यासी होता है


[] ज्ञानी होता है



Here Gita says -----------


Action without desire and doubt is the action of …........


[a] A saint


[b] A man established in wisdom


and …


such man is not dependent on his action .




========= om ===========


Friday, April 1, 2011

ज्ञानी क्या है ?









ओम शांति ओम में हम दो सौ श्लोकों की श्रृखला में अब अगला श्लोक देखनें जा रहे हैं जो


इस प्रकार है-------



श्लोक – 4.19



यस्य सर्वे समारम्भा:कामसंकल्पवर्जिता:


ज्ञान अग्नि दग्ध:कर्मानं तम् आहु:पण्डितं बुद्धा:



काम,कामना एवं संकल्प रहित ब्यक्ति ज्ञानी होता है



गीता सूत्र – 4.10 में पिछले अंक में हमनें देखा कि …....



ज्ञानी राग,भय एवं क्रोध रहित होता है और यहाँ श्लोक – 4.19 में देख रहे हैं कि …....


ज्ञानी काम,कामना एवं संकल्प रहित होता है


यदि हम इन दो सूत्रों को जोड़ कर गुण – विज्ञान कि दृष्टि से देखें तो जो बात सामनें आती है


वह कुछ इस प्रकार से है ….....


ज्ञानी राजस् एवं तामस गुणों से अप्रभावित रहता है



गीता संदेह की गणित है , यहाँ आप अर्जुन के बारीक संदेह को देखते हैं जो श्री कृष्ण को


गुरु , मित्र एवं परमात्मा कहता रहता है लेकिन उनकी बातों पर यकीन नहीं करता , इतना बारीक संदेह होना इतना आसान नही गीता से यदि कुछ प्राप्त होगा तो वह होगा परम सत्य और यह संभव तब होगा जब हम अपनें उन पृष्ठों को खूब गंभीरता के साथ देखें जिनको


लोगों से छिपा कर रख रखा है



=====ओम========