Wednesday, October 27, 2021

पतंजलि कैवल्य पाद के 34 सूत्र

 

पतंजलि कैवल्य पाद में प्रवेश पाने से पहले निम्न 05 प्रमुख बिषयों को ठीक - ठीक समझ लेना चाहिए क्योंकि यह पाद समाधि पाद , साधन पाद और विभूति पाद की सिद्धियाँ प्राप्त होने के बाद जो दिखता है , उस ज्ञान को कैवल्य पाद में दिया गया है  ⬇️

1⃣ पतंजलि योग सूत्र के 04 पादों से संक्षिप्त परिचय 

2⃣  कैवल्य पाद सार 

3⃣ कैवल्य पाद में चित्त स्थिर रखने का उपाय 

4⃣ धारणा , ध्यान और समाधि

5⃣ कैवल्य पाद में प्रकृति - पुरुष रहस्य



1⃣

पतंजलि योगसूत्र के 04 पादों से   परिचय 🔽

कैवल्य पाद महर्षि पतंजलि के योग दर्शन सूत्र के 04 पादों में अंतिम पाद है इसमें कुल 34 सूत्र हैं ।

◆ पहला पाद समाधि पाद योग परिचय  , चित्र की वृत्तियाँ और संप्रज्ञात - असंप्रज्ञात समाधि से सम्बंधित है । 

◆ दूसरे पाद साधन पाद में समाधि प्राप्त करने के साधनों को स्पष्ट किये हैं । 

◆ तीसरे पाद विभूति पाद में समाधि  सिद्धि से मिलने वाली सिद्धियों को बताए हैं ।

◆ चौथे पाद कैवल्य पाद , कैवल्य प्राप्ति से सम्बंधित है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके




2⃣

कैवल्य पाद  सार 

क्र. सं 

बिषय

संबंधित सूत्र

1

सिद्धि प्राप्त करनेके उपाय

1

2

सिद्धि प्राप्त योगी तथा धर्म प्रकृतिको नहीं चलाते

2 , 3

3

चित्तक्या है ?

4 - 6,15, 

17-21, 24 ,

4

भोग कर्मके भेद

7

5

वासनाएँ

8 से 11 तक

6

धर्म सहित सभीं वस्तु त्रिगुणी हैं

12- 14 , 16

7

पुरुष क्या है?

22

8

चित्त , प्रकृति , पुरुष

23

9

● समाधिष्ठ योगी , 

● धर्ममेघ समाधि ,

 ◆ वस्तुओंका

 ज्ञान कैसे होता है ?

25- 33


10

कैवल्य क्या है?

34

योग >

कैवल्य पाद में  कुल

34 सूत्र हैं 


~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके



3⃣ 

कैवल्य पाद में चित्त स्थिर रखने का उपाय ⬇️

कैवल्य पाद में  चित्त शांत रखने के  उपाय

क्र. सं

सूत्र

बिषय

1

6

ध्यान से निर्मित चित्त क्लेष +कर्म वासनाओं से मुक्त होता है 


ध्यान अष्टांगयोग का सातवाँ अंग है । जब यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार और धारणा की सिद्धियाँ मिल जाती हैं तब ध्यान साधना प्रारम्भ होती है । ध्यान के बाद सबीज समाधि की सीमा प्रारम्भ होती है ।

धारणा , ध्यान और सबीज समाधी6 को आगे और स्पष्ट किया गया है । ध्यान में चित्त किसी सात्त्विक आलंबन से बाध दिया जाता है और चित्त पूरी तरह उस आलंबनाकार बन जाता है । पतंजलि कैवल्य पाद - 6 में कह रहे हैं ," ध्यान से निर्मित चित्त क्लेष और कर्म वासनाओं से मुक्त होता है । कर्म वासनाओं के सम्बन्ध में आगे विस्तार से दिया गया है लेकिन यहाँ इतना समझ लेना चाहिए कि ध्यान निर्मित चित्त राजस और तामस गुणों की वृत्तियों से अछूता रहता है


~~◆◆ ॐ◆◆~~ ओके


4⃣

धारणा , ध्यान और समाधि

4 . 1 धारणा क्या है ?

 चित्तको किसी देश ( सात्त्विक आलंबन ) से बाध देना , धारणा है । 

आलंबन स्थूल और सूक्ष्म दो में से कोई एक हो सकता हैं । स्थूल आलंबन से साधना प्रारम्भ होती है और स्वतः सूक्ष्म में प्रवेश कर जाती है । अब इसे समझते हैं ⬇️

आलंबन के 03 अंग होते हैं  ; शब्द , अर्थ और ज्ञान । शब्द स्थूल अंग है और अर्थ एवं ज्ञान सूक्ष्म अंग हैं । स्थूल पञ्च महाभूत आधारित होते हैं जिन को इन्द्रियां पकड़ती हैं । सूक्ष्म तन्मात्र आधारित हैं जिनका सम्बन्ध मन - बुद्धि से होता है । 

धारणा अष्टांगयोग का 6 वां अंग है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके


4. 2 ध्यान क्या है  ?

विभूति पादसूत्र : 2

" तत्र , प्रत्यय , एकतानता , ध्यानम् "

सूत्र रचना को देखते हैं 👇

 ' तत्र प्रत्यय ' सूत्र - 1 के लिए संबोधन है जिसमें धारणा को स्पष्ट किया गता है । एकतानता अर्थात लगातार बिना किसी रुकावट , ध्यान - ध्यान 

सूत्र भावार्थ ⬇️

 बिना किसी अवरोध , धारणामें चित्तका स्थिर रहना , ध्यान है । ध्यान अष्टांग योगका 7 वाँ अंग है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके


4.3 समाधि  क्या है ?

विभूति पाद सूत्र - 3 को देखें ⬇️

अष्टांग योगका आठवां अंग  समाधि है

सूत्र के शब्द ⬇️

" तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं स्वरुपशून्यम् इव समाधि "

ध्यान जब सिद्ध होता है तब ध्यान का आलंबन नाम मात्र रह जाता है अर्थात बीज रूप में रहता है और उस सूक्ष्म आलंबन पर चित्त शून्य हो जाता हैसबीज आलंबन के साथ चित्त की शून्यावस्था सबीज समाधि या सम्प्रज्ञात समाधि कहलाती है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके

यहाँ तक


5⃣

कैवल्य पाद में प्रकृति - पुरुष 

कैवल्य पाद में कुल 34 सूत्र हैं और उनमें निम्न 08 सूत्रों का सीधा संबंध प्रकृति - पुरुष से है । आगे इन 08 सूत्रों को समझेंगे ⬇️

9

14

18

19

20

22

23

24


सूत्र - 9 >

अगला जन्म चाहे जिस योनि में हो , जिस जगह हो पर पिछले जन्मकी स्मृति और संस्कार में कोई परिवर्तन नहीं आता ।

सूत्र - 14 >  

प्रकृति निर्मित वस्तु त्रिगुणी  होगी है।

सूत्र - 18 >

चेतन ( पुरुष ) अपरिणामी होने के साथ - साथ चित्त वृत्तियों का स्वामी भी होता है । 

चित्त परिणामी ( परिवर्तनीय ) है और चित्तका स्वामी पुरुष अपरिणामी ( अपरिवर्तनीय ) है ।

पुरुषको चित्त - वृत्तियों का सदैव ज्ञान रहता है ।

सूत्र : 19 - 20 > 

चित्त जड़ है अतः  उसे न तो स्वयं का ज्ञान होता है और न दूसरों का । पुरुष केवल ज्ञानवान् हैचित्त , स्मृतियों में पुरुषके साक्षित्वमें धारण करता है । 

मूलतः चित्त पुरुष का tool है , जो करता है , वह पुरुष है । चित्त एक दर्पण जैसा है , जो मात्र वस्तु - प्रतिविम्ब को धारण करता है और यह भी तब संभव होता है जब उसे पृरुष की ऊर्जा मिलती है ।


सूत्र : 22 > 

◆ पुरुष स्वभावतः निष्क्रिय है । जब वह शरीर धारण करता है तब उस शरीरके इंद्रिय , मन , बुद्धि और अहंकार के अनुकूल क्रियाशील हो जाता है । 

◆ पुरुषको शरीरमें भोक्ता रूपमें  सक्रीय रहते हुए भी अपनें मूल स्वभावका ज्ञान रहता है । 

◆ पुरुष अपनी ऊर्जा से शरीर माध्यम से  कर्म करता है। 


सूत्र : 23 >

दृष्ट्र दृश्य उपरक्तं चित्तं सर्व अर्थम् "

● पुरुष और प्रकृति से रगा हुआ चित्त सभीं अर्थोंवाला भाषता है ।

👉 चित्त प्रकृति और पुरुषके संयोगकी भूमि है ।  बिषयोंका प्रतिविम्ब  चित्त पर उभड़ता है । चित्त पुरुषकी ऊर्जा से कार्य करता है । चित्त माध्यमसे पुरुष  चित्त पर बने प्रतिविम्बों को देखता है ।

➡️पुरुषको  चित्त माध्यम से बिषय - बोध होता है ।


सूत्र : 24 > 

● चित्तअसंख्य वासनाओं से विचित्त होने के साथ संहत और परार्थ भी है । 

◆ संहत > मिलजुल कर कार्य करनेवाला ।

◆ परार्थ (पर + अर्थ ) > जो दूसरे के लिए हो ।

★ चित्त स्वयं भोगी नहीं ,चित्त माध्यमसे पुरुष भोगी है। 

👌प्रकृति की वस्तुएं मिली जुली हैं अर्थात 23 तत्त्वों के योगका परिणाम हैं ( बुद्धि - अहँकार - 11 इन्द्रियाँ - 05 महाभूत और 05 तन्मात्र ) ।

~~◆◆ ॐ◆◆~~




सूत्र : 01

सिद्धियाँ प्राप्त करनेके माध्यम 🔽

🐧सिद्धि प्राप्ति के निम्न 05 साधन हैं ⬇️

जन्म , औषधि , मन्त्र , तप और समाधि 

1 - जन्म : पिछले जन्म में साधना के जिस स्तर पर शरीर छूट जाता है , वर्तमान जन्म में साधना वही से आगे बढ़ती है । 

2 - औषधि :कर्म बंधनों से जो मुक्ति दिलाये , वह औषधि है । अब कर्म बंधनों को समझ लें !

✡️ कर्म बंधन क्या हैं ? आसक्ति , कामना , काम , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य , राग - द्वेष और अहँकार  कर्म बंधन हैं । इनसे मुक्त होने का एक मात्र उपाय है , ईश्वर प्रणिधान ।

 3 - मन्त्र : परम सत् के संबोधन - शब्दों के समूहको मन्त्र कहते हैं ।  

4 - तप : तप के लिए पतंजलि साधन पाद

 सूत्र - 43 और महाभारत वनपर्व 260 /25 में महर्षि बेदव्यास जी द्वारा कहे गए सूत्र को दिया जा रहा है ⬇️

5 - समाधि : विभूति पाद सूत्र - 3 को देखें ⬇️

अष्टांग योगका आठवांअंग  समाधि है

सूत्र के शब्द ⬇️

" तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं स्वरुपशून्यम् इव समाधि "

ध्यान जब सिद्ध होता है तब ध्यान का आलंबन नाम मात्र रह जाता है अर्थात बीज रूप में रहता है और उस सूक्ष्म आलंबन पर चित्त शून्य हो जाता हैसबीज आलंबन के साथ चित्त की शून्यावस्था सबीज समाधि या सम्प्रज्ञात समाधि कहलाती है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके



सूत्र : 02

# सिद्धि प्राप्त योगी की क्षमता #

⏩जन्मके अंतरका परिणाम , प्रकृतिकी आपूर्ति से होता है , इस सूत्र को समझते हैं ⬇

▶️सिद्धि प्राप्त योगी अपने संकल्प मात्र से कोई भी रूप धारण करनें में सक्षम होता है और उसे ऐसा करने में प्रकृति उसका सहयोग करती है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके



सूत्र : 03

धर्म - सत्कर्म प्रकृतिको नहीं चलाते

सूत्र रचना 👉निमित्तम् अप्रयोजकम् प्रकृतीनाम् 

वरण भेदः तु ततः क्षेत्रिवत । निमित्त का अर्थ है ,  धर्म - सत्कर्म ।

सूत्र भावार्थ 

धर्म एवं सत्कर्म प्रकृति को नहीं चलाते लेकिन बाधाओं को दूर करते हैं । जैसे किसान एक खेत से दूसरे खेत में पानी भेजने के लिए बीच की मेडको काट देता है और पानी स्वतः दूसरे खेत में पहुँच जाता है ठीक उसी तरह प्रकृतिके मार्ग में आने वाले अवरोधों को धर्म - सत्कर्म दूर कर देते हैं ।

निमित्ति (धर्म - सत्कर्म ) प्रकृतिका प्रयोजन नहीं ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके





सूत्र : 04- 05

अस्मिता से निर्मित चित्त 


# संकल्पसे निर्मित चित्त , निर्माण चित्त कह लाता है ।

# निर्माण चित्त अस्मितासे निर्मित होता है ।

अस्मिता के लिए साधन पाद - 6 देखें ↙️

जब योगी अनेक शरीर बना लेता है तब उनमें अपनें -  अपने निर्माण चित्त भी होते हैं जिनका नियंत्रण योगीके मूल सिद्ध चित्त से होता है ।

(इन दो सूत्रों का सीधा संबंध सूत्र - 2 से है ) ~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके



सूत्र : 06

ध्यानसे निर्मित चित्त


" ध्यानसे निर्मित चित्त क्लेश और कर्म वासनाओं से मुक्त होता है "

सूत्र - 1 में जन्म , औषधि , मन्त्र , तप और समाधि से सिद्धियों की प्राप्ति के माध्यम बताये गए हैं । इन में से समाधि को छोड़ शेष चार कर्म आशय  हैं अर्थात इनके साथ भी वासनाएं रहती हैं लेकिन जब  ध्यान सिद्ध होता है तब चित्त क्लेश - कर्म वासनाओं से मुक्त हो जाता है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके



सूत्र : 07

भोगी के कर्म 03 प्रकार के हैं


भोगी के कर्म निम्न  03 प्रकार के होते हैं 

1 - अशुक्ल  2 - अकृष्ण  3 - मिश्रित 

लेकिन योगी का कर्म अशुक्ल , अकृष्ण रहित होते हैं , इन्हें गीता में निष्काम कर्म कहा गया है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆ ~~ ओके



सूत्र : 08

कर्म वासनाएँ 

ऊपर सूत्र - 7 में बताये गए 03 प्रकार के कर्मों में कर्म फलानुसार उनकी कर्म वासनाएं उत्पन्न होती हैं ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके




सूत्र : 09

👉पिछले जन्म के संस्कार 

जाति , देश और काल का व्यवधान होने पर भी स्मृति - संस्कार में एक रूपता होने के कारण कोई व्यवधान नहीं होता । 

अर्थात 

अगला जन्म चाहे जिस योनि में हो , जिस जगह हो पर पिछले जन्म की स्मृति और संस्कार में कोई परिवर्तन नहीं आता ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके



सूत्र : 10

👉 बासनाएँ अनादि हैं 

प्राणियों में सदैव जीवित  रहने की गहरी सोच के कारण , वासनाएं अनादि होती हैं ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ ओके



कैवल्य पाद सूत्र :11

बासनाओं की संग्रह भूमियाँ 

वासनाओं की निम्न 04 संग्रह भूमियाँ हैं ; 

1 - हेतु 2 - फल 3 - आश्रय 4 - आलंबन 

 ➡️हेतु > अर्थात वासनाओं के उठने का कारण । 

वासनाओं के उठने का कारण अविद्या है ।

2 - फल >

वासनाओं के फल अर्थात परिणाम की सोच बासनाओं की संग्रह भूमि है ।

3 -  आश्रय > चित्त वासनाओं का  आश्रय  है। 4 - आलंबन > तन्मात्र वासनाओं के आलंबन  हैं ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके





कैवल्य पाद सूत्र :12

धर्म समयाधीन है 


काल भेद के कारण धर्म में अंतर पड़ता है "

संसारकी सभीं वस्तुएं सत्य हैं अर्थात हर कालमें रहती हैं पर काल भेद ( भूत , वर्तमान एवं भविष्य ) के कारण कभीं होती हैं तो कभीं नहीं होती सी भाषती हैं । 

धर्मकी सत्ता तीनों कालोमें रहती है पर धर्म में अंतर आता रहता है ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~ओके




कैवल्य पाद सूत्र :13

धर्म और गुण


➡ सारे धर्म व्यक्त , अव्यक्त ( सूक्ष्म ) अवस्थामें त्रिगुणी होते हैं ।


//ॐ //ओके




कैवल्य पाद सूत्र :14

प्रकृति निर्मित वस्तु त्रिगुणी होती हैं 

 " परिणाम एक होने से वस्तु तत्त्व एक होता है "

 प्रकृति त्रिगुणी है अतः प्रकृति निर्मित वस्तु त्रिगुणी ही होगी ।

// ॐ //ओके



कैवल्य पाद सूत्र : 15

चित्तानुसार वस्तु दिखती हैं 

➡ वस्तु एक होती है पर चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ।

उदाहरण

एक सेव  काट कर चार लोगों में बाट दीजिये और उसके बारे में उनकी राय पूछें । सब की राय अलग - अलग होगी क्योंकि सब के चित्त अलग - अलग हैं  । 

// ॐ // ओके





कैवल्य पाद सूत्र : 16

यहाँ पतंजलि पहली बार प्रश्न उठा रहे हैं 

 महर्षि पतंजलि पहली बार प्रश्न उठा रहे हैं ⬇️

 संसार चित्तके अधीन नहीं और जब संसार किसी चित्तका बिषय नहीं तब उसका क्या होगा ? 

 प्रकृति और पुरुष नित्य और अनादि हैं लेकिन

प्रकृति निर्मित दृश्य वस्तुएं अनित्य हैं पर उनका निर्माण जिन तत्त्वोंसे  है , वे नित्य हैं । 

// ॐ //

21

कैवल्य पाद सूत्र : 17

संसार और चित्त

🔥चित्तको संसारको समझने के लिए संसारके प्रतिविम्बकी आवश्यकता होती है ।

 🔯जिस वस्तुका चित्त पर प्रतिविम्ब नहीं बना होता  , उस वस्तुका ज्ञान चित्त को नहीं होता , ऐसा क्यों है ? 

👌 क्योंकि चित्त पुरुषके बहुत समीप है । जब चित्त पर किसी का प्रतिविम्ब बनता है तब चित्त उस प्रतिविम्ब से उस वस्तु को जानता है ।

// ॐ //ओके


22

कैवल्य पाद सूत्र : 18

चित्त और पुरुष

  • चेतन ( पुरुष ) अपरिणामी होने के साथ - साथ चित्त वृत्तियों का स्वामी भी होता है ।

  • चित्त परिणामी ( परिवर्तनीय ) है और चित्तका स्वामी पुरुष अपरिणामी है ।

  •  पुरुषको चित्त - वृत्तियों का सदैव ज्ञान रहता है ।

// ॐ //ओके


23


कैवल्य पाद सूत्र : 19 , 20


🌼 चित्त जड़ है अतः  उसे न तो स्वयं का ज्ञान होता है और न दूसरों का । 💐 केवल पुरुष ज्ञानवान् हैचित्त , स्मृतियों में पुरुष के साक्षित्वमें विषय धारण करता है । मूलतः चित्त पुरुष का tool है और पुरुष चित्त tool का प्रयोग करता है । चित्त एक दर्पण जैसा है , जो मात्र वस्तु - प्रतिविम्ब को धारण करता है और यह भी तब संभव होता है जब उसे पुरुष की ऊर्जा मिलती है ।

// ॐ //ओके



24

कैवल्य पाद सूत्र : 21

चित्तान्तर दृश्ये का अर्थ है -  एक चित्त का दूसरे चित्त द्वारा देखा जाना ।

👉यदि एक चित्त दूसरे चित्तका दृश्य है तो वह दूसरा चित्त अन्य चित्तका दृश्य होगा ।  

👍 इस स्थिति में अतिप्रसंग या अनवस्था और स्मृति संकर नामक दोष उपस्थित होंगे । 

👌 इस तरह एक जीवन में अनेक चित्त होंगे और इसका कोई अंत नहीं । 

स्मृति संकर के अर्थ को समझते है ⬇️ 

➡️हर पल बदल रहे चित्त के कारण स्मृतियाँ भी बदल रही हैं । जब सारी स्मृतियां एक साथ उपस्थित होंगी तक चित्त स्मृतियों को स्पष्ट रूप से न देख कर भ्रम की स्थिति में देखने लगेगा पर ऐसा होता नहीं क्योंकि चित्त एक कालांश में एक ही स्मृति से जुड़ सकता है ।

// ॐ //



25

कैवल्य पाद सूत्र : 22पुरुष

◆ प्रतिसंग्रमाया का अर्थ -  क्रियाशीलता 

◆ तदाकार का अर्थ  उसके आकार का 

💐 पुरुष स्वभावतः निष्क्रिय है । जब वह शरीर धारण करता है तब वह उस शरीरके इंद्रिय , मन , बुद्धि और अहंकारके अनुकूल क्रियाशील हो जाता है । शरीरमें भोक्ता रूपमें  सक्रीय रहते हुए भी उसे अपनें मूल स्वभावका ज्ञान रहता है ।

<>  पुरुष अपनी ऊर्जा से शरीर माध्यम से  कर्म करता है ।

// ॐ //


26

कैवल्य पादसूत्र : 23

चित्त - प्रकृति -पृरुष

" दृष्ट्र दृश्य उपरक्तं चित्तं सर्व अर्थम् "

👌 पुरुष और प्रकृति से रंगा हुआ चित्त सभीं अर्थोंवाला भाषता है ।

👉 चित्त प्रकृति और पुरुषके संयोगकी भूमि है । 

बिषयोंका प्रतिविम्ब  चित्त पर उभड़ता है । 

● चित्त पुरुषकी ऊर्जा से कार्य करता है । 

● चित्त माध्यमसे पुरुष  चित्त पर बने प्रतिविम्बों को देखता है ।

● पुरुषको चित्त माध्यम से बिषय - बोध होता है ।

// ॐ //



27

कैवल्य पाद सूत्र : 24

" चित्तअसंख्य वासनाओं से विचित्त होने के साथ संहत और परार्थ भी है "

👉संहत का अर्थ है - मिलजुल कर कार्य करनेवाला 

👉परार्थ (पर + अर्थ ) का अर्थ है -  दूसरे के लिए जो हो .

☝चित्त  स्वयं भोगी नहीं , चित्त माध्यमसे पुरुष भोगी है । 

👌प्रकृतिकी वस्तुएं मिली जुली हैं अर्थात 24 तत्त्वों के योगका परिणाम हैं।

💐 24 तत्त्व 💐

महतत्त्व (बुद्धि ) + अहँकार  +11 इन्द्रियाँ

+ 05 तन्मात्र + 05 महाभूत और  त्रिगुणी प्रकृति

// ॐ //


कैवल्य पाद सूत्र : 25

समाधि में उतरे योगी की स्थिति

पहले सूत्र रचना को देखते हैं 👇

विशेष , दर्शन , आत्म ,भाव , भावना , विनिवृत्ति:

👌 विशेष का अर्थ पुरुष है 

👌 आत्मभाव भावना का अर्थ है ...

 👉 मैं कौन हूँ ? , कहाँ से आया हूँ ? , क्यों आया हूँ ? आदि तत्त्वों की सोच का होना 

👌 विनिवृत्ति का अर्थ है , पूर्ण रूपसे निवृत होना

सूत्र भावार्थ 👇

अपने मूल स्वरुपमें स्थित योगी आत्मभाव भावना मुक्त होता है ।

// ॐ //


28

कैवल्य पाद सूत्र : 26

समाधि युक्त योगी क्रमशः

👌अपनें मूल स्वरूपमें स्थित योगीके चित्त का रुख सदैव कैवल्य की ओर रहता है । 

विवेकका अर्थ है निर्मल बुद्धि जो सत्य - असत्य को हाँथ पर रखे आंवले की भांति देखती है ।

विशेष दर्शी का विवेक कैवल्य मुखी होता है

*विशेष पुरुष का संबोधन है *

// ॐ //


29

कैवल्य पाद सूत्र : 27

समाधि खंडित होने पर 👇

👌जब विवेककी धारा टूटती है तब पूर्व संस्कारों की वृत्तियाँ प्रभावी हो उठती  हैं ।

इस सूत्र में पूर्व संस्कारों की वृत्तियों को समझते हैं⬇️

चित्त की वृत्तियाँ जब क्षीण हो जाती हैं तब सबीज (सम्प्रज्ञात ) समाधि मिलती है । ध्यान रखें कि क्षीण होने पर चित्त - वृत्तियाँ बीज रूप में उपस्थित रहती हैं जो किसी भी समय अंकुरित हो सकती हैं । 

सम्प्रज्ञात समाधि के बाद असम्प्रज्ञात समाधि मिलती है । इस सिद्धि में चित्त बृत्तियों के बीज निर्जीव हो जाते हैं लेकिन संस्कार बचे रहते हैं । पिछले जन्मों के कर्मों के बीज सूक्ष्म रूप में वर्तमान जन्म में भी चित्त में उपस्थित रहते हैं जिन्हें संस्कार कहते हैं । जब धर्ममेघ समाधि की सिद्धि मिलती है तब ये संस्कार निर्मूल हो जाते हैं और इस स्थिति में जब शरीर छूट जाता है तब ऐसा योगी मोक्ष प्राप्त कर जाता है और पुनः आवागमन चक्र में नहीं आता ।

अब ऊपर सूत्र - 27 में कहे गए सत् वचन को ठीक से समझा जा सकता है । विवेक - धारा टूटने पर पूर्व संस्कारों की बृत्तियां कैसे सक्रिय हो जाया

 करती हैं !


// ॐ //



30

कैवल्य पाद सूत्र : 28

सूत्र : 27 के साथ इस सूत्र को देखें👇

👉 इन अवरोध उत्पन्न करने वाली पूर्व संस्कारों की वृत्तियों का भी नाश वैसे ही करना चाहिए जैसे क्लेशोंका नाश किया जाता है अर्थात धारणा , ध्यान , समाधि और संयम अभ्यास से । 

यहाँ संयम को समझते हैं 

 समाधि में देर तक रहने का अभ्यास , संयम है

अगले सूत्रबमें धर्ममेघ समाधि को देखें जिसे सूत्र - 27 में बताया जा चुका है ।

// ॐ //


31

कैवलयं पाद सूत्र : 29

धर्ममेघ समाधि क्या है ?

🕉️ जब विवेक से मिले ऐश्वर्यों से भी वैराग्य हो जाता है तब उस स्थिति को धर्ममेघ समाधि कहते हैं ।

// ॐ //




32

कैवल्य पाद सूत्र : 30

धरमेघ समाधि क्रमशः⤵️

👉धर्ममेघ समाधि प्राप्त योगी क्लेश  और कर्म मुक्त होते है ।

// ॐ //


33

कैवल्य पाद सूत्र : 31

धर्ममेघ समाधि क्रमशः 🔽

⏩धर्ममेघ समाधि में स्थित योगी के...

1- सभीं आवरण और मल नष्ट हो गए होते  हैं ।

2 - उसका  ज्ञान अनंत हो गया होता है ।

3 - और ज्ञेय अल्प हो गया होता है  ।

// ॐ //



34

कैवल्य पाद सूत्र : 32

धर्ममेघ समाधि युक्त योगी ..

💐 उस कृतार्थ के परिणाम क्रम समाप्त हो जाते हैं 

💐 और वह गुणातीत हो जाता है ।

परिणाम क्रम क्या है ?

👌 समय के साथ - साथ सबकुछ बदल रहा हैं । 

👌समय के साथ - साथ सबकुछ के बदलने के क्रम को समय का परिणाम क्रम कहते हैं ।

★ श्रीमद्भगवत पुराण : 3.10 में बताया गया है कि बिषयों में हर पल हो रहा परिवर्तन काल ( समय ) का आकार है । भागवत : 3.26 में बताया गया है कि गुणों में गति काल से है और काल ही परमात्मा है । भागवत : 1.13 और 6.1 में क्रमशः कहा गया है कि ..

● काल प्राण से भी वियोग कर देता है 

● काल ही वह चक्र है जो सबको अपनी ओर खींच रहा है ।


// ॐ //



35

कैवल्य पाद सूत्र : 33

बस्तु ज्ञान कैसे प्राप्त होता है ?

सूत्र रचना 👇

 क्षण प्रतियोगी परिणाम उपरांत निर्ग्राह्य : क्रमः 

👉यहाँ महर्षि बता रहें हैं कि किसी के संबंध में ज्ञान कैसे प्राप्त होता है ? 

किसी बस्तु या बिषय के अनेक क्षणों के परिणाम को इकट्ठा करने से उसके संबंध में ज्ञान प्राप्त होता है और इस ज्ञान को क्रम कहते हैं ।

पिछले सूत्र में समय के परिणामा क्रम को स्पष्ट किया गया है । 

// ॐ //


36

कैवल्य पाद सूत्र : 34

कैवल्य क्या है ?


पुरुषार्थ का शून्य हो  जाना , कैवल्य है ।

पुरुषार्थ ( पुरुष +अर्थ )के 04 निम्न 

अंग हैं ;

 धर्म +अर्थ + काम + मोक्ष 

💐 तीनों गुणोंका प्रतिप्रसव हो जाना , कैवल्य है अर्थात तीनों गुणों की साम्यावस्था में आ जाना , कैवल्य प्राप्ति है अर्थात गुणातीत की स्थिति पाना , कैवल्य की प्राप्ति है ।

//~~◆◆ ॐ◆◆~~//