Friday, December 28, 2012

नानक , कबीर एवं मीरा

कबीर -        1440 - 1518
नानक -        1469 - 1539
मीरा   -         1498 - 1546 


  • श्री नानक जी साहिब और श्री कबीर जी साबिब 49 साल इस पृथ्वी पर एक साथ रहे 
  • श्री नानक जी साहिब , श्री कबीर जी साहिब और मीरा 20 साल इस पृथ्वी  पर एक साथ रहे 
  • नानक जी साहिब का ब्याह 19 साल की उम्र में हुआ 
  • 10 - 11 साल का भोग नानक को आदि गुरु नानक जी साहिब बना दिया 
  • Kali Bein दरिया श्री नानक को अपनें साथ दो दिन तक रखा 
  • दरिया दो दिनों के अंदर श्री नानक जी को जो दिया उसे वे 40 सालों तक बाटते रहे और जितना बाटा  वह उतना ही बढ़ता रहा / 

कबीर जी साहिब 


  • कुरान शरीफ में खुदा के 100 नामों की चर्चा है लेकिन गणना करनें पर 99 नाम मिलाते हैं /
  • अल कबीर उन सौ नामों में 37वां नाम है 

कुरान शरीफ यह भी कहता है : -----

जो ऑवल है वही आखिरी है
 अर्थात ......
अल्लाह से अल्लाह तक की यात्रा का नाम है , कुरान शरीफ 
अल्लाह से यात्रा प्रारम्भ होती है अल कबीर पर विश्राम होता है [ अल्लाह ओ अकबर ] और फिर .....
अल्लाह ध्वनि से जो यात्रा प्रारम्भ होती है वह कब और कैसे अल्लाह में पहुंचाती है , कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इतनी बात जरुर समझाना कि -----
सभीं मनुष्य एक को खोज रहे हैं चाहे वे किसी जाति  , सम्प्रदाय के हों और वह है वह जिसको किसी नाम से पुकारा जा सकता है / 

शांडिल्य ऋषि कहते हैं ----

सभीं नाम उसके हैं लेकिन हैं अधूरे ....

==== एक ओंकार =====


Tuesday, December 25, 2012

आदि गुरु श्री नानक जी साहिब की परम पवित्र यात्रा - iii

काशी से कर्बला तक ------

आदि गुरु श्री नानक जी की काशी की यात्रा का पता श्री कबीर जी साहिब को चल गया था , श्री कबीर जी साहिब के शिष्यों में एक कौतुहल की लहर बह रही थी , वे यही सोच रहे थे कि वह परम पवित्र घडी कब आयेगी जब इस पृथ्वी के दो परम सिद्ध योगी हम सब के बीच होंगे / श्री कबीर जी साहिब के शिष्य सोच रहे थे कि देखते हैं इनके मध्य किस प्रकार की  चर्चा होती  है ? 
एक दिन वह घडी आ ही गयी ; श्री नानक जी और श्री कबीर जी गले मिले और तीन दिन तक श्री नानक जी साहिब श्री कबीर जी साहिब के यहाँ मेहमान बन कर रहे और चौथे दिन सुबह नानक जी पूरी को प्रस्थान
 किया /श्री कबीर जी साहिब अपनी कुटिया से श्री नानक जी साहिब के साथ बाहर निकले , दोनों गले मिले , दोनों कि आंखे भरी थी और फिर नानक जी आगे चल पड़े  और कबीर जी साहिब अपनी कुटिया में प्रवेश
 किया /
श्री नानक जी तीन दिनों तक श्री कबीर जी के साथ रहे लेकिन दोनों योगी आपस में कोई वार्ता नहीं किये , लेकिन उन दोनों का मौन यह जरुर ब्यक्त करता था की दोनों की सोच एक है , दोनों की पहुँच एक है और दोनों ऐसे हैं जैसे एक गंगा जल दो बोतलों में भरा हुआ हो / 
काशी ! काशी  वह स्थान  है जहाँ कभी भूकंप नहीं आता और जिस दिन काशी भूकंप के झटके को देखेगा , समझना प्रलय बहुत दूर नहीं / शिव की नगरी काशी वह तीर्थ है जहाँ सभीं प्रश्नों के समाधान हैं / काशी और कैलाश , दो ऐसे स्थान हैं जहाँ की ऊर्जा साधकों को अपनी ओर खीचती रहती है और दोनों तीर्थों का सम्बन्ध शिव से हैं /
काशी,  काश शब्द से बना है जो एक आर्य - प्रजाति हुआ करती थी / सिंध घाटी की सभ्यता से काशी और अयोध्या का सीधा सम्बन्ध है लेकिन अभी तक शोध कर्ता इस बिषय को अपनें शोध का बिषय नहीं बना सके हैं / काशी वह तीर्थ है जहाँ न दिन होता है न रात और जिनको  वहाँ दिन - रात दिखता है ,  वे काशी में रह कर भी काशी से दूर हैं / आज का काशी उस शिव नगरी काशी का द्वार है जहाँ निराकार शिव की ऊर्जा एक वर्तुल में एक चक्र की भांति गतिमान रहती है और जो समयातीत है / काशी ; शिव की काशी,  जहाँ शिव - ऊर्जा के अलावा और कुछ नहीं , वह तीर्थ उनको दिखता है जो -----
काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहँकार को गंगा में प्रवाहित करके परम ज्योतिर्लिंगम काशी विश्वनाथ के पास खीचे चले जाते हैं / वह जिसको परम ज्योति दिख जाती है वे ऐसे हो उठाते हैं जैसे एक कस्तूरी मृग / 
क्रमशः .......[  अगले अंक में ]

==== ओम् ==== 



Wednesday, December 19, 2012

आदि गुरु नानकजी साहिब की परम पवित्र यात्रा - ii

लाहौर से अमरकंटक ----

अमरकंटक वह परम पवित्र तीर्थ है जहाँ ----

[क] आदि गुरु श्री नानकजी साहिब [ 1469 - 1539 CE ] और ....
[ख] कबीर जी साहिब [ 1398 - 1518 CE ]
दोनों परम प्राप्त सिद्ध योगियों की आपस में मूक वार्ता हुयी थी /
अदि गुरूजी साहिब और कबीर जी साहिब दोनों इस भारत धरती पर एक साथ लगभग 50 वर्षों तक अपनी - अपनी ऊर्जा को बाटते रहे /
अमरकंटक 1000 मीटर समुद्र तल से ऊँचा है और यह वह स्थान है जहाँ ---
* सतपुरा पहाड़
* विंध्याचल पहाड़ मिलाते हैं , और
जहाँ से ....
[1] नर्वदा
[2] सोन
[3] जोहिला एवं ...
[4] अमदोह [ Amadoh ]
चार नदियाँ जन्म लेती हैं /
सतपुरा और विन्ध्य पर्वत जहाँ मिलते हैं वह मैकल पहाडियों के नाम से जाना जाता है /
अमरकंटक और काशी , इस पृथ्वी पर मात्र दो ऐसे स्थान हैं जहाँ एक निराकार शिव ऊर्जा हजार साकार शिव लिंगों के रूप में प्रकट होती है : इस बात को समझना चाहिए -----
काशी क्षेत्र एवं अमरकंटक क्षेत्र , दोनों शिव से सम्बंधित हैं और दोनों ही क्षेत्रों में एक हजार शिव लिंगों के होनें की बात हमारे शास्त्र कहते हैं /
अमरकंटक से सोन नदी पूर्व की यात्रा पर निकलती है और नर्मदा पश्चिम की यात्रा पर /
नर्मदा की उम्र 150 million years गंगा से अधिक है अर्थात नर्मदा नदी गंगा से काफी अधिक बुजुर्ग नदी है / नर्मदा नदी जबलपुर पहुँच कर जिसकी उचाई 400 m. समुद्र तल से है , वहाँ के मार्बल के पहाड़ को चीरती हुयी गुजरात की ओर यात्रा करती है / जबलपुर में आप उस दृश्य को देखें जहाँ मार्बल जैसे कठोर को नर्मदा का पानी किस तरह से काट रहा है / जैसे नर्मदा का तरल पानी मार्बल के कठोरता को समाप्त करता है ठीक उसी तरह आदि गुरु श्री नानकजी साहिब एवं कबीर जी साहिब के बचन मनुष्य के अहँकार को समाप्त करते हैं /

आप कुछ घडी एकांत में बैठ कर सोचना कि -----

अमरकंटक में कबीर जी साहिब और नानक जी साहिब अपनी मूक भाषा में किस ऊर्जा का आदान - प्रदान किया होगा ?

=== एक ओंकार सत् नाम =====


Monday, December 10, 2012

आदि श्री सत् गुरु नानक जी की परम पवित्र यात्रा


आदि गुरु श्री नानक जी साहिब , पंजाब से जेरुसलम तक , मथुरा से द्वारिका तक एवं काशी से काबा तक की धरती पर अपनीं परम प्रीति को गाते रहे और इस में उनका साथ दिया भक्त मरदाना / मीरा कन्यैया के परम प्रीति में मथुरा से द्वारका तक नाचती रहीं ; कभी प्यार में नाचती तो कभीं वियोग में / कबीरजी साहिब शिव नगरी काशी में राम केंद्रित बैठे - बैठे वहाँ के पंडितों के अहंकार पर हथौड़ा मारते रहे , भक्तों की अपनी - अपनी अलमस्ती होती है और वे अपनी इस मस्ती को किसी भी तरह अपनें से जुदा नहीं होनें देते / भक्त जब प्रभु से जुद्तःई तब नाचता है , गाता है और जब उसके तार प्रभु से टूटते से दिखाते हैं तब वह वियोग – भक्ति में वियोग का मजा लेता है लेकिन देखनें वाले उसे दुखी समझते हैं और उसे पहचानने में भ्रमित हो कर चूक जाते हैं , हाँथ आये हीरे को खो देते हैं /
क्या आप कभी सोचते हैं , नानक जी पंजाब से काबा तक की यात्रा क्यों की ?
सिद्ध योगी यात्रा नहीं करते उनको प्राचीनतम सिद्ध योगियों के क्षेत्र चुम्बक की भांति अपनी ओर
खीचते हैं / जहां भूत काल में सिद्ध - योगी लोग तप , जप और ध्यान किये हुए होते हैं , वह क्षेत्र उनकी उर्जाओं से परिपूर्ण हो गया होता है लेकिन भोगी लोग ऐसे परम पवित्र क्षेत्रों की निर्विकार ऊर्जा के ऊपर विकार ऊर्जा की चादर डालते रहते हैं , फल स्वरुप ऐसे क्षेत्र आनें वाले खोजिओं के ऊपर कोई गहरा प्रभाव नहीं डाल पाते । परम पवित्र क्षेत्र सिद्ध योगियों को अपनी ओर खीचते रहते हैं , जैसे - जैसे कोई योग – सिद्धि में पहुँचता है , वह किसी न किसी तपो भूमि के खिचाव में आ ही जाता है और वह सिद्ध योगी वहाँ जा कर उस क्षेत्र को चार्ज करता है / आदि गुरु नानक जी की काशी से कर्बला , पुरी से काबा तक की जो यात्राएं की वह उनकी तपस्या का अब्यक्त , अचिंतनीय लक्ष्य था जिसको वे भी न जानते रहे होंगे / कर्बला से जेरूसलम , जेरूसलम से काबा तक की यात्रा का जो मार्ग है वह शूफी फकीरों का मार्ग है और नानकी साहिब जहां पैदा हुए वह भूमी शूफी फकीरों की भूमि है / इस मार्ग पर अदृश्य प्राचीनतम एवं अनेक रहस्यों से भरा शूफियों का परम तीर्थ अलकूफा भी है / अलकूफा की खोज हजारों साल से की जा रही है लेकिन अभीं तक किसी को मिल नहीं पाया है / शूफी परम्परा इस्लाम से बहुत प्राचीन है और अरब के शूफी फकीर कुछ – कुछ ऐसे दिखते हैं जैसे भारत में नागा साधू दिखते हैं /
आदि गुरु नानकजी साहिब एक सिद्ध शूफी फकीर थे / कहते हैं , अलकूफा सिद्ध शूफी संतों की आत्माओं की बस्ती है जो ऐसे लोगों को अपनी ओर खीचती रहती है जिनकी ऊर्जा उस क्षेत्र के अनुकूल होती है / जो लोग बुद्धि स्तर पर अलकूफा को खोज रहे हैं वे तो पहले पहुँच नहीं पाते और यदि पहुँच भी गए तो वहाँ से वापिस आनें पर वहाँ के बारे में बतानें लायक नहीं होते / अलकूफा हजारों सालो से एक रहस्य है और रहस्य ही रहेगा / अलकूफा पहुँचते हैं श्री गुरु नानक जी साहिब जैसे फकीर जो निर्गुण निराकार के साकार रूप होते
हैं / कर्बला हुसेन साहिब की जगह है और अलकुफा के क्षेत्र में पड़ता है जो सूफी फकीरों की आत्माओं का अति सघन क्षेत्र है । नानक जी ईराक में जिस मार्ग से गुजरे हैं वह भाग बैबीलोंन - सुमेरु सभ्यता का क्षेत्र है जहां से ज्योतिष - गणित का जन्म हुआ है । मक्का , मदीना एवं जेरुसलेम मोहम्मद साहिब , जेसस क्राइस्ट एवं मूसा जी [ मोजेस ] का क्षेत्र है जो दुनियाँ का प्राचीनतम सभ्यता का क्षेत्र है /

आदि गुरू नानकजी अपनी पूरी यात्रा में जब काशी पहुचे , कबीर जी साहिब उनका स्वागत किया ; कहते हैं श्री नानक जी साहिब तीन दिन कबीर जी के साथ रहे लेकिन उन दो महान भक्तो में कोई वार्ता न हुयी , दोनों मौन की वार्ता करते रहे , एक दूसरे को देते और लेते रहे लेकिन कबीर जी साहिब के शिष्यों को बड़ी मायूसी हुयी / कहते हैं जब नानक जी साहिब जानें लगे तब दोनों परम पवित्र भक्त गले मिले और दोनों की आँखें भर आयी और नानक जी आगे पुरी के लिए प्रस्थान किया और कबीरजी साहिब अपनी कुटिया में वापिस आ गए / कितना प्यारा दृश्य रहा होगा जब तो आत्माएं आपस में गले मिली होंगी / कबीर जी के भक्तों ने पूछा , गुरु जी आप लोगों में कोई वार्ता क्यों न हुयी , हम सब इस इन्तजार में थे की दो गुरु जब आमानें - सामनें होंगे तो उनके मध्य हो वार्ता होगी उस से हम सब को भी आनंद आएगा लेकिन ऐसा हो न पाया , आखिर कारण क्या था ? कबीर जी मुस्कुराए और बोले , बेटे ! वार्ता तो हुयी लेकिन तुम न सुन सके तो मैं क्या करूँ ? जो उनको मुझे बताना था , बताया और जो मिझे उनको देना था वह मैंनें उन्हें दिया , बश और क्या होना था ?
भारत भूमि पर काशी , द्वारका , अयोध्या , मथुरा , उज्जैन , हरिद्वार और काँची सात परम तीर्थ हैं जिनमें
काशी को सर्वोच्च स्थान मीला हुआ है / भारत मे चार आदि शक्ति पीठ हैं ; जगन्नाथ पूरी ,
बरहम पुर ओडिसा , कामाक्ष्या [ गुवाहाटी के पास ] , दक्षिणेश्वर कोलकता और 52 शक्ति पीठ है
जिनमें काशी भी एक है / भारत में 11 ज्योतिर्लिंगम हैं जिनमें से एक काशी में काशी
विश्वनाथ मंदिर के अंदर है / काशी मे शूफी फकीरों की आत्माओं से बनाया गया एक मस्जिद भी है जिसके
सम्बन्ध में कहा जाता है की अरब से आ कर शूफी फकीरों की आत्माएं इस मस्जिद का निर्माण किया है /
भारत भूमि पर गुरु वानियों को गुनगुनाते हुए आप अमृतसर - हरमंदर साहिब से काशी तक की यात्रा करें
हो सकता है आप को रास्ते में कहीं आदि गुरु नानक जी साहिब का दर्शन हो जाए । गुरु आप के साथ हर पल है , गुरू की निगाह हर पल आप पर होती है , लेकिन क्या आप उसे देखना चाहते भी हैं मिलना चाहते भी हैं ? क्या कभीं उसे प्यार से पुकारते भी हैं ? कभीं किसी गुरु द्वारा के किसी एकांत जगह में कुछ घडी बैठ कर इमानदारी से इन बातों पर सोचना , हो न हो वहाँ आप को कोई छाया नज़र आ जाए और आप का तन – मन गुरु की ऊर्जा से भर जाए 

एक ओंकार सत् नाम //


Tuesday, December 4, 2012

श्री ग्रन्थ साहिब जी को आप अपना सकते हैं


    ग्रन्थ साहिब उनके लिए है -----

  • जिनमें भक्ति की धुन उठ रही हो
  • जो परम में अपनें को घुलानें को बेताब हो रहे हों
  • जो गुरु की वाणियों में परम धाम का मार्ग देख रहे हों
  • जो तन , मन एवं बुद्धि से पूर्ण रूप से गुरु को समर्पित हों
  • जो जागते सोते गुरु को ही देखते हो
  • और जिसको गुरु के रूप में गोविन्द नज़र आते हों
    नानकजी साहिब कहते हैं , पंचा का गुरु केवल ध्यानु 

    श्री नानकजी साहिब ध्यान को गुरु बता रहे हैं कहते हैं तुम  ध्यान को अपना गुरु बनाओ , आखिर ध्यान है क्या?---
    मनुष्य जो भी करता है उसका सम्बन्ध उसके इंद्रियों मन एवं बुद्धि से होता है लेकिन ध्यान से इन्द्रियाँ , मन एवं बुद्धि में बह रही ऊर्जा का रूपांतरण होता है वह ऊर्जा जिससे हम स्वयं को कर्ता देखते थे वही ऊर्जा अब हमें  द्रष्टा बना देती है और यह जता देती है कि हम कर्ता नहीं करता पुरुष तो वह है हम तो मात्र एक माध्यम हैं
    =एक ओंकार सतनाम    ?

Friday, November 30, 2012

अकाल मूरत


हिमगिरी के उतुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष भीगे नैनों से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
नीचे जल था ऊपर हिम था
एक तरल था एक सघन
एक तत्त्व की ही प्रधानता
कहो उसे जड़ या चेतन 

बाबू जयशंकर प्रसाद सन् उन्नीस सौ छत्तीस में यह कबिता लिखी और अगले साल उनका निधन हो गया/ 
वह उर्जा जो उनके अंदर बह रही थी वह वह थी जिसको आदि गुरु श्री नानकजी  साहिब अकाल मूरत कहते हैं 
प्रकृति अकाल मूरत से है प्रकृति करता है और अकाल मूरत उस कृत्य का द्रष्टा एवं साक्षी 
बाबू जयशंकर प्रसाद अपनी मौत के एक साल पहले इस कबिता को लिख कर यह दिखाया की अंत समय में जो दिखता है वही है अकाल मूरत 
परम सत्य की छाया में बैठा यह कवि वह देख रहा है जिसको देखनें वाले परम  सिद्ध  योगी होते हैं और वे जो देखते हैं उसे ब्यक्त नहीं कर पाते लेकिन बाबू जयशंकर प्रसाद जी उसे ब्यक्त करनें में पूर्ण रूप से कामयाब रहे 
मैं उनको प्रणाम करता हूँ 
==

Wednesday, November 28, 2012

गीता कहता है - 02

राजस गुण के तत्त्वों पर ध्यान करो :

1- गीता 14.7 आसक्ति , कामना , राग एवं रूप का आकर्षण राजस गुण से हैं
2- गीता 14.12 लोभ राजस गुण का तत्त्व है
3- गीता 4.10   राग , भय , क्रोध से अप्रभावित ज्ञानी होता है
4- गीता 2.56   राग , भय , क्रोध से अछूता स्थिर प्रज्ञ समभाव योगी होता है
5- गीता 3.34   सभीं पांच बिषयों में राग - द्वेष की ऊर्जा होती है
6- गीता 2.64   राग - द्वेष से अछूता अनन्य भक्ति में होता है
7- गीता 2.65   राग - द्वेष रहित प्रभु प्रसाद स्वरुप परम आनंद में रहता है
8- गीता 6.27   राजस गुण से अप्रभावित ब्रह्म मय होता है
9- गीता 3.37   काम का रूपांतरण ही क्रोध है और काम राजस गुण से है
=== ओम् ======

Sunday, November 18, 2012

गीता कहता है --- 1


तुम हर पल कुछ न कुछ कर रहे हो , जो तुमसे हो रहा है उसके पीछे कोई कारण भी होगा , जो तुम कर रहे हो उनसे तुमको कभीं सुख तो कभी दुःख मिलता होगा , सुख में तुम फैलते होगे और दुःख में सिकुड़ते होगे , क्या कभीं इस सुख – दुःख की आंख मिचौनी को गंभीरता से समझनें की कोशिश किये हो ? यदि कोशिश किये होगे तो तुम अब गीता योगी बन गए होगे और यदि नहीं किये तो आज से करना प्रारम्भ करो और देखो की इस अभ्यास से तुम कैसे किसी नये ऐसे आयाम में पहुँच जाते हो जहाँ प्रभु श्रो कृष्ण के मंदिर की तलाश नहीं , अपितु तुम स्वयं प्रभु श्री कृष्ण मय हो जाते हो / गीता कुछ देता नहीं , गीता जीनें का एक मार्ग है यहाँ जो भी है वह द्वैत्य से परे , विकारों से परे , अपने - पराये से परे , संदेह से परे , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार से परे है और यहाँ जो भी है वह सब का है लेकिन सभीं उसकी ओर पीठ किये खड़े हैं / 
गीता श्लोक – 2.69 कहता है …...
या निशा सर्भूतानाम् तस्यां जागर्ति संयमी
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने : //
योगी के लिए जो रात्रि जैसा है वह भोगी का दिन है
और भोगी के रात्रि जैसा जो है , वह योगी का दिन है
"गीता कहता है" के 33 समीकरण भोग - कर्म से कर्म - योग में पहुंचाते है , जहाँ कर्म के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति होती है और ज्ञान परम धाम का एक मात्र राह है /आज पहला समीकरण दिया जा रहा है / 

======= हरे कृष्ण ============

Monday, November 12, 2012

गीता से गीता में ------

केवल एक बार .......
मात्र पन्द्रह दिन .....
नित्य ......
प्रातः कालीन संध्या बेला में 
अपनें द्वारा जो हो रहा हो उसे गीता दर्पण में देखनें का प्रयाश करो ......
यदि आप  इस ध्यान विधि में स्वयं को पूर्ण रूप से दुबोनें में कामयाब हुए तो .....
एक दिन ....
प्रातः कालीन संध्या बेला में ......
गीता दर्पण पर आप अपनें कृत्यों के स्थान पर .....
प्रभु श्री कृष्ण को देखनें में कामयाब हो सकते हैं .....
लेकिन .....
आप में समर्पण की पूर्ण ऊर्जा होनी चाहिए //
==== ओम् =====

Sunday, November 4, 2012

हम कहाँ हैं ?

" I do not believe in future , it comes so soon " , says Albert Einstein 

आज का विज्ञान जिसकी सोच पर खडा है , वह कह रहा  है -
 मैं भविष्य के ऊपर विश्वास नहीं रखता क्योंकि वह इतना जल्दी आ खडा हो जाता है / अब आप सी सोच भविष्य के सम्बन्ध में क्या हो सकती है ?
भूत , वर्तमान और भविष्य ; समय को समझनें की एक परिकल्पना है लेकिन समय तो समय ही है जो ब्यक्त किया नहीं जा सकता मात्र जिसके होनें का अनुभव जरुर होता रहता है / जहाँ हम हैं , जो हमारा अस्तित्व है जहाँ से भूत - भविष्य में हम कभीं - कभी झांकते रहते हैं , वह है हमारा वर्तमान / वतमान को कुछ इस प्रकार से भी समझा जा सकता है - भूत का आखिरी क्षण और भविष्य का प्रारंभिक क्षण को समझिए और इस समझ के आधार पर इन दोनों के मध्य की स्थिति को भी देखिये , वह आयाम है हमारे वर्तमान का / 

हमारा वर्तमान भविष्य के ब्लू - प्रिंट बनानें में गुजर रहा है जिस पर भूत का रंग स्पष्ट झलकता है पर ताज्जुब होता है कि इस ब्लू - प्रिंट पर कहीं वर्तमान की छाया तक नहीं दिखती जो हमारा ब्यक्त जीवन है / 
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -
 ऐसा कभीं न था जब हम , तुम ,  ये सभीं राजा लोग न थे और आगे भी ऐसा न होगा जब हम सब न होंगे लेकिन मेरे और तुममें एक अंतर है , मैं अपनें भूत की स्थतियों को देख रहा हूँ और तुम्हारी स्मृति में  तेरे भूत की स्थितियां धूमिल हो चुकी है / अपनें भूत कालीन जीवनों को वर्तमान में देखनें का विज्ञान बुद्ध - महाबीर के समय तक था , बुद्ध इस ध्यान को आलय विज्ञान कहा करते थे और महाबीर जाति स्मरण लेकिन आज अगर कोई कहे की मैं पिछले जीवन में सम्राट था या भिखारी  था तो लोग क्या कहेंगे ?
रविन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं .......
Butter fly counts not months but moments and has time enough 
यदि जीवन का मजा लेना चाहते हो तो :..............

  • वर्तमान पर भूत की छाया न पड़नें दो 

और 

  • इसे भविष्य के अँधेरे में खोनें भी न दो 

खुदा यह नहीं देखेगा कि तुम पिछले जीवन में क्या किया
खुदा यह नहीं सोचेगा कि तुम्हारी अगले जीवन की क्या सोच है
वह तो यह पूछेगा कि -----
मैं तुमको इतना सब दिया और तुम फिर भिखारी बन कर  खाली हाँथ आ रहे हो ?
कुछ तो सोचा होता ? कम से कम इतना तो सोचा होता कि मैं कहाँ जानें वाला हूँ ?
जीवो और मस्ती से जीवो 
लेकिन आप की मस्ती का केंद्र परमात्मा हो 
==== ओम् ======

Wednesday, October 31, 2012

परमात्मा हो रहा है ----

परमात्मा है नहीं,  हो रहा है ------
बुद्ध का यह वचन उनको नास्तिक की संज्ञा दिया 
लेकिन जब बुद्ध इस बात को बोला था उस समय एक शिव लिंगम के अलावा और कोई मूर्ति रही हो जिसे पूजा जाता रहा हो , कहना कठिन सा दिखता है / बुद्ध - महाबीर के समय या उनके पहले साकार रूप में परमात्मा को किस ढंग से पूजा जाता रहा होगा ?
बुद्ध - महाबीर मूर्ती पूजा के पक्ष में न थे लेकिन जब वे भौतिक स्तर पर इस संसार में न रहे तब क्या हुआ ? हम सब बुद्ध - महाबीर के बताए मार्ग पर तो चल न सके लेकिन उनकी मूर्तियां बनानें में कोई कसर भी  न छोडी और आज यह कहना कोई गलत न होगा कि बुद्ध - महाबीर के बाद मूर्ति कला खूब फैली /
गाँवों में आप जाते होंगे तो देखते होंगे कि नीम - पीपल के पेड़ के नीचे एक नहीं अनेक अनगढे छोटे - छोटे पत्थर के टुकड़ों पर लोग जल चढाते हुए दिखते हैं , यह अनगढ़ पत्थर के टुकड़े क्या कह रहे हैं ?
ये अनगढ़ टुकड़े यही बात कह रहे हैं जिस बात को बुद्ध बोले थे / प्रकृति उसका नाम  है जो हो रहा है और जो हो रहा है उसकी परिभाषा बनाना संभव नहीं / प्रकृति में स्थित पुरुष हर पल प्रकृति के माध्यम से एक से अनेक हो रहा है और यह क्रम हल रहा है और चलता ही रहेगा /
अनगढ़ पत्थर के टुकड़े कहते हैं .......
आप का स्वागत है , मैं  हूँ नहीं हो रहा हूँ और एक दिन आप के इस जल से अपनी क्रूरता खो दूंगा और बन जाऊँगा शिव लिंगम और उसके बाद भी मैं परिवर्तन से गुजरता रहूँगा /
अनगढ़ पत्थर के टुकड़ों की पूजा के मध्यम से  प्रकृति के चल रहे क्रियता को समझना , क्या प्रभु के रहस्य में झाँकने जैसा नहीं है ?
आप कभी गाव जाए तो अनगढ़ पत्थरों की पूजा को जरुर देखें 
===== ओम् =====

Saturday, October 20, 2012

गरुण पुराण कहता है ------ 2

गरुण पुराण अध्याय - 16 भाग - 02

मोक्ष प्राप्ति का माध्यम केवल ज्ञान है ......

शास्त्रों को रटने से मुक्ति नहीं मिलती
वेदों को पढानें से मोक्ष नहीं मिलाता
शुभ कर्म करनें से प्रभु का  द्वार  नहीं दिखता
चारो आश्रम मुक्ति के मार्ग पर नहीं ला सकते
षट्दर्शन मुक्ति के मार्ग नहीं बन सकते

यह मेरा है ....
वह तेरा है ....
यः मेरा नहीं  ....
वह तेरा नहीं ....
ये भाव मुक्ति मार्ग के मजबूत अवरोध हैं

अब आप गरुण पुराण की इन बातों को देखें और समझें कि गरुण पुराण क्या कहना चाह रहा है ?

==== ओम् ======

Wednesday, October 17, 2012

गरुण पुराण कहता है ------

अध्याय - 16
 " ज्ञान दो  प्रकार का होता है ; शास्त्रोक्त और विवेक से उत्पन्न "

शास्त्रोक्त ज्ञान वह जो शास्त्रों के मनन से प्राप्त होता है , जिसे धब्द मय ब्रह्म कि संज्ञा दी गयी  है / विवेक से उत्पन्न ज्ञान परब्रह्म रूप है जो द्वैत्य -अद्वैत्य से परे के आयाम में पहुंचा कर सत्य की किरण दिखता है /

और .....
Prof. Albert Einstein says ,
"Knowledge exists in two forms ; lifeless and alive . Lifeless knowledge is stored in books and alive is one,s consciousness "

अब आप सोचें ....
गरुण पुराण और आइन्स्टाइन वैज्ञानिक की सोच  में कितना गहरा सम्बन्ध है ?
====  ॐ =====

Thursday, October 11, 2012

  • ऋग्वेद का प्रत्येक मन्त्र का पहला अक्षर ॐ है
  • गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ॐ मैं हूँ
  • गायत्री मन्त्र का प्रारम्भ ॐ से है जो ऋषि विश्वामित्र रचित है
  • गुरु ग्रन्थ साहिब एक ओंकार सतनाम बुनियाद पर खडा है
  • संत जोसेफ गास्पेल में कहते हैं :-------
         प्रारम्भ में शब्द था .....
         शब्द के साथ प्रभु थे .....
         शब्द ही प्रभु था ............
         यह इशारा भी एक अक्षर ॐ की ही ओर दिखता है
  • कुरान शरीफ में अल्लाह के 100 नाम है , ऎसी बात लिखी है लेकिन गणना करनें पर 99 नाम मिलते हैं , आखिर 100वां कौन है ?
  • तिब्बत में बौद्ध दर्शन का मूल मन्त्र है :-----
  • मणि पद्में हम
  • पैथागोरस का कहना था कि सभीं ग्रहों की अपनी अपनी धुनें हैं जबकी उस समय विज्ञान का बचपन था , ग्रहों के सम्बन्ध में विज्ञान न के बराबर ही था पर आस्ट्रेलियन वैज्ञानिक अब हाल में पृथ्वी की धुन को पकडनें में कामयाब हुए हैं जो ही है /
  • आज तक संगीत में अभीं तक कोई ऎसी रचना नहीं हो सकती जिसमें ओम् की धुन न गुजती हो
  • अमेरिका के एडगर कायसी Arrr  eee  Oomm .....मन्त्र से हजारों लाइलाज मरीजों को ठीक किया था , जबकी यः मन्त्र हरि ओम् ही है /
=== ॐ =====

Monday, October 8, 2012

इन्द्रियाँ

" आसक्त इंद्रिय का मन गुलाम होता है "
गीता - 2.60
मनुष्य दो के मध्य खडा है - प्रकृति और उसका अन्तः करण / गीता में प्रभु श्री कृष्ण श्लोक -  13.20 के माध्यम से 13 करण बताते हैं ; 10 इन्द्रियाँ और मन , बुद्धि एवं अहँकार / मन , बुद्धि एवं अहँकार को अन्तः करण कहते हैं / मनुष्य प्रकृति एवं पुरुष का योग है / प्रकृति 10 कार्य [ पांच बिषय एवं पांच महाभूत ] एवं तेरह करण का योग है [ 10 इन्द्रियाँ एवं अंतःकरण के तीन तत्त्व ] /
प्रकृति में स्थित पांच बिषय अपनें - अपनें इंद्रियों को राग - द्वेष उर्जाओं से सम्मोहित करते रहते हैं और यही  सम्मोहन मनुष्य को उसके मूल से दूर रखता है / वह इंद्रिय जो अपनें बिषय से सम्मोहित हो जाती है , उस मनुष्य का मन उस इंद्रिय का गुलाम बन जाता है , यह बात प्रभु श्री कृष्ण गीता श्लोक - 2.60 के माध्यम से अर्जुन को बता रहे हैं /
अगली बात अगले अंक में
=== ओम् ====

Monday, June 18, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग चार

आइये देखते हैं गरुण पुराण अध्याय दस के चौथे भाग की झांकी

यहाँ प्रभु गरुण जी को बता रहे हैं:-------

  • दाह के बाद स्त्रियों को पहले स्नान करना चाहिए

  • तिल के बीज से जलांजलि देनी चाहिए

  • दाह के दिन घर में भोजन नहीं बनाना चाहिए अन्यत्र कहीं से भोजन मगवायें

  • जिस स्थान पर मृत्यु हुयी हो उस स्थान पर बारह दिन तक दक्षिण दिशा में दीपक जलायें

  • दीपक कभीं बुझाना नहीं चाहिए

  • नजदीकी किसी चौराहे पर तीन दिन तक नित्य सूर्यास्त के बाद जल एवं दूध किसी पात्र में रखना चाहिए और मन्त्र के माध्यम से प्रेत को संबोधित करना चाहिए कि आप श्मशान की अग्नि से जले हो , अपनों से जुदा हुए हो , लो पानी से स्नान करो और दूध पीयो

  • दाह के तीन दिन बाद अस्थियों को एकत्रित करें

  • अस्थियों को इकट्ठा करनें के पहले चिता की अग्नि को दूध – जल से शान्त करें

  • हड्डियों को ढाक के पत्तों पर रखें

  • वामावर्त हो कर तीन बार परिक्रमा करें

  • ययायत्वा मन्त्र का मनन करते रहें

  • हद्धियों को दूध एवं जल से धो कर मिटटी के पात्र में रखें

  • तिकोना मंडल बनाएँ , गोबर से लीपें दक्षिणाभिमुख हो कर तीन दिशाओं में पिण्ड दान करें

आगे अगले अंक में भाग पांच को देखा जाएगा

आज इतना ही

=====ओम्======



Sunday, June 17, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग तीन

गरुण पुराण अध्याय दस भाग तीन में देखते हैं विष्णु भगवान गरुण जी को क्या उपदेश दे रहे हैं /

सती के सम्बन्ध में

  • गर्भवती स्त्री को सात नहीं होना चाहिए

  • सती स्वर्ग में चौदह इन्द्रों के राज्य काल तक अपनें पति के साथ रमण करती है

  • स्वर्ग में अपसराओं के द्वारा पूजित होती है

  • पिता एवं पति दोनों के कुल को पवित्र करती है

  • साढ़े तीन करोड सालों तक सती स्वर्ग में अपनें पति के साथ रमण करती है

  • मनुष्य के देह में साढ़े तीन करोड रोम होते हैं

    सती की तैयारी

  • पति के साथ ही पत्नी का भी दाह एक साथ होता है

  • सती हो रही स्त्री को घर पर स्नान करना चाहिए

  • वस्त्र एवं आभूषणों से स्वयं को नवविवाहिता की तरह सजाना चाहिए

  • नारियल के साथ मंदिर जा कर पूजन करना चाहिए

  • मंदिर में अपनें आभूषणों को छोड़ देना चाहिए

  • नारियल को ले कर श्मशान जाना चाहिए

  • सती को अपनें पति के साथ चिता में बैठना चाहिए और उसकी गोदी में पति का सिर रहे

  • चिता में बैठते समय चिता की परिक्रमा करे और सूर्य को नमस्कार करे

  • चिता में अग्नि लगानें के लिए उसे आदेश देना चाहिते

  • आधा देह जलानें के बाद कपाल क्रिया कहते हैं

    कपाल क्रिया

  • बॉस से पति के सिर को तोडना चाहिए और सती के सिर को नारियल से

    अगले अंक में भाग चार को देखा जायेगा , अभी इतना ही

===== ओम्=======





Saturday, June 9, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग दो

गरुण पुराण अध्याय दस भाग दो में प्रभु दाह संस्कार के सम्बन्ध में निम्न बातों को श्री गरुण जी को बता रहे हैं : ---------

  • दाह - संस्कार करना की जगह को गाय के गोबर से पोतना चाहिए

  • उस स्थान पर बेदी बनाएँ

  • बेदी पर कुशा को अनामिका एवं अंगूठे से पकड़ कर तीन रेखाएं खींचें

  • रेखाओं के मध्य भाग से मिटटी को निकालें

  • जहाँ से मिटटी निकाली जा रही हो उन स्थानों में अग्नि की स्थापना करें

  • क्रब्यादसंज्ञक देवता का विधि पुर्बक पूजन करें

  • पूजन में लोमभ्यः स्वाहा , त्वग्भ्य : स्वाहा , मज्जभ्यः स्वाहा आदि मन्त्रों से होम करना चाहिए

  • फिर प्रार्थना करनी चाहिए कि हे देव ! आप भूतों के पालक हैं , जगत की योनि हो , आप इस प्रेत को स्वर्ग भेजें

  • फिर चन्दन,पलास,पीपल तुलसी की लकडियों स चिता तैयार करें

  • चिता पर मृतक को रखें

  • एक पिण्ड मृतक के सीनें पर और एक पिण्ड दाहिनें हाँथ पर रखें

  • दोनों पिंडों को देते समय अमुक प्रेत नाम संबोधन करें

  • फिर पुत्र को अग्नि देनी चाहिए

  • पंचकों में दाह संस्कार नहीं करना चाहिए

  • अर्ध घनिष्ठा नक्षत्र से रेवती नक्षत्र तक पांच नक्षत्रों में दाह संस्कार करना अशुभ होता है

  • यदि पंचकों में दाह करना हो तो------

  • कुशा के चार पुतले बनाएँ

  • पुतलों को मृतक के साथ रखें

  • नक्षत्रों के मन्त्रों से एवं प्रेताजायत मन्त्र के माध्यम से मृतक के नाम के साथ हवन करें

  • फिर दाह संस्कार करें

कुछ और बातों को अगले अंक में देखें

आज इतना ही

====ओम्======








Friday, June 1, 2012

गरुण पुराण अध्याय दस भाग एक

गरुण पुराण अध्याय – 10 का प्रारम्भ गरुण जी के निम्न प्रश्न से हो रहा है ---------

श्री गरुण जी पूछ रहे हैं ….....

हे प्रभु ! आप कृपया मुझे मनुष्य के शरीर – दाह का बिधान बताएं और यदि उसकी पत्नी सती हो तो उस सती की महिमा भी बताएं /

दाह संस्कार से सम्बंधित गरुण पुराण में दी गयी बातें-----

  • या तो सबसे बढ़े पुत्र या सबसे छोटे पुत्र द्वारा पिता - माँ के देह का दाह संस्कार होना चाहिए

  • दाह संस्कार करनें से पुत्र को पितृ - ऋण से मुक्ति मिलती है

  • पिता के मौत के ठीक बाद सभीं पुत्रों द्वारा सर – मुंडन करवाना चाहिए

  • नाखून एवं बगल के बालों को नहीं कटवाना चाहिए

  • साफ़ – धुले वस्त्र को धारण करें

  • मृतक को स्नान करानें

  • मृतक को प्रेत शब्द से संबोधन करते हैं

  • मृतक के मस्तक पर गंगा जी की मिटटी का लेप करें

  • अमुक नाम प्रेत संबोधन से उसका पिण्ड दान करें

  • पुनः द्वार पर उसका पिण्ड दान करें

  • द्वार पर प्रेत का पूजन करें

  • अर्थी को कंधा दे कर श्मशान ले जाएँ

  • अर्थी को कंधा देनें से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है

  • घर एवं श्मशान के मध्य पहुंचनें पर उस स्थान पर रुके

  • उस स्थान को साफ़ करके गौ के गोबर से लेप करें

  • यहाँ प्रेत को विश्राम कराएं

  • यहाँ पुनः पिण्ड दान देन

  • श्मशान में प्रेत का सर उत्तर दिशा में रखना चाहिए

अगले अंक में आगे की बातें मिलेंगी

===== ओम्======



Tuesday, May 29, 2012

गरुण पुराण अध्याय नौ का आखिरी भाग

गरुण पुराण अध्याय नौ का अब आखिरी भाग देखते हैं जो कुछ इस प्रकार से है------

मृत्यु के समय हिंदू परम्परा में गंगा जल पिलाया जाता है और गंगा जल पीनें से एक हजार चंद्रायन व्रत का फल मिलता है/जब प्राण निकल रहा हो तब उस ब्यक्ति के कंठ में एक बूँद उतरा गंगा जल परम गति दिलाता है/

वह ब्यक्ति जो अपनी आखिरी श्वास भर रहा हो यदि उस घडी गंगा में नौका विहार करनें के भाव से भावित हो तो वह सीधे आवागमन से मुक्त हो कर परम धाम में पहुँचता है /

पहले यह बताया गया है कि शालिग्राम की श्रद्धा से पूजन करनें से परम धाम मिलता है और शालिग्राम के पूजन में उनके स्नान वाले जल को पीनें से मनुष्य का अन्तः करण तीन गुणों की ऊर्जा से मुक्त होता है और वह ब्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है

वेदों का निरंतर पाठ करना , उपनिषदों में अपनें को बसानें का अभ्यास करना और शिव – विष्णु की भक्ति में स्वयं को रमाये रहनें का अभ्यास मनुष्य को भोग से योग में पहुंचा कर सीधे तत्त्व – वित्तु बनाता है एवं तत्त्व – वित्तु परम धाम का यात्री होता है /

आगे गरुण पुराण कहता है …....

इस देह के पांच तत्त्व अपनें-अपनें मूल तत्त्वों में मिल जाते हैं और इन्द्रियाँ एवं मन आत्मा के साथ नया देह खोजते हैं/वह ब्यक्ति जो अतृप्त मन स्थिति में मौत से लड़ाई करते हुए आखिरी श्वास भरता है उसका मन उसकी आत्मा को ऐसे देह खोजनें को विवश करता है जीसको प्राप्त करके वह मन तृप्त हो सके/इस सन्दर्भ में आप गीता श्लोक –8.6 , 15.7एवं15.8को एक साथ देख सकते हैं/

==== ओम्========