Thursday, October 24, 2013

भागवत में अक्रूर कौन थे ?

●अक्रूर कौन थे ?●
सन्दर्भ : स्कन्ध - 9 + 10
** 1- ब्रह्मा से अत्रि ऋषि ,अत्रिसे चन्द्रमा , चन्द्रमा और ऋषि बृहष्पतिकी पत्नी तारा से बुध पैदा हुए । ** 2- ब्रह्मासे कश्यप ऋषि ,कश्यपसे विवश्वान (सूर्य ) ,सूर्यसे श्राद्धद्रव मनु हुए । श्राद्धदेवसे इला पुत्री पैदा हुयी जो एक माह सुद्युम्न पुत्र रूपमें रहती थी और एक माह इला पुत्री रुपमें। इला पुत्री और बुधसे पुरुरवा हुए जिनसे चन्द्र बंश चला । पुरुरवा और उर्बशी का मिलन कुरुक्षेत्रमें सरस्वती नदीके तट पर हुआ था । पुरुरवासे 06 पुत्र हुए जिनमें आयु के पौत्र ययाति और शुक्राचार्य पुत्री देवयानी से यदु हुए । यदुके 04 पुत्र हुए जिनमें क्रोष्टा के बंश में आगे विदर्भ हुए । विदर्भ के तीन पुत्रों में क्रथके बंश में शकुनि
हुए । शकुनिके बंशमें सात्वक हुए जिनके 07 पुत्र हुए , उन सात में बृण्णिसे श्वफलक और चित्ररथ
हुये । चित्ररथसे कृष्णके दादा शूरसेन हुए और श्वफलक से 12 पुत्रों में एक हुए अक्रूर ।
* अब आगे *
* गोकुलमें बैल रूपमें आये अरिष्टासुरका अंत हो रहा है और उधर मथुरामें नारदजी कंशको सच्चाई बता रहे है कि कृष्ण , बलराम कौन हैं और वह कन्या जिसे तुम मार रहे थे ,वह कौन थी ?
* अक्रूरजी कृष्ण बंशसे सम्बंधित थे लेकिन रह रहे हैं मथुरामें अतः कंश अक्रूरको ब्रज भेज रहा है ,कृष्ण और बलराम को लेनें हेतु । कंश मथुरामें धनुष यज्ञका आयोजन कर रहा है और यह आयोजन मात्र एक बहाना है ।
* आज नन्द गाँव और मथुराकी दूरी 32 km है और अक्रूरजी इस दूरीको एक दिन में पूरी कर रहे हैं ; वे सुबह चल रहे हैं और सूर्यास्तके समय नन्दके यहाँ पहुंच रहे हैं । नन्दके गौशालाके पास कृष्ण - बलरामजी अक्रूरजी से मिले और सादर उनको घरके अन्दर ले गए ।
*कंश बध के बाद बलराम और कृष्ण अक्रूर जी के घर भी गए ।
* कृष्णकी पत्नी सत्यभामा के पिता हैं सत्राजित जो सूर्यके भक्त थे और सूर्यसे उनको स्यमन्तक मणि मिली थी । कृष्ण उस मणि को द्वारकानरेश उग्रसेन जी को देनें की राय दी पर सत्राजित ऐसा न कर सके। उस मणि को सत्राजित के भाई प्रसेन पहनकर शिकार खेलने बनमें गए और एक शेर उनको मार कर मणि ले ली और अंततः वह मणि जाम्बवान के पास पहुँच गयी । कृष्णका नाम आनें लगा की वे प्रसेन जो मार कर मणि ले लिए हैं अतः कृष्ण मणिका पता करते हैं और 28 दिन तक जाम्बवान से युद्ध करते
हैं , जाम्बवान अपनी पुत्री जाम्बवंतीके साथ उस मणिको कृष्ण को दे देता है । कृष्ण उस मणि को सत्राजित को वापिस करते हैं । कृष्ण और बलदेव हस्तिनापुर आये हैं और उधर द्वारका में अक्रूर और कृतवर्मा शतधन्वाको सत्राजितके खिलाफ तैयार कर रहे हैं , फलस्वरुप शतधन्वा सत्राजित को मारता है । मणि अक्रूर जी के पास रख कर शतधन्वा कृष्ण के भय के कारण भाग निकलता है । कृष्ण - बलराम उसका पीछा करते हैं और मिथिला पूरी के पास पहुंचते पहुंचते सतधन्वा को कृष्ण मारते हैं पर मणि तो उसके पास है नहीं । बलराम कई साल विदेहके पास रहे और कृष्ण द्वारका वापिस आगये । अक्रूरजी से उस मणि को लेकर कृष्ण उग्रसेन को देते हैं ।
* कंश बधके बाद कृष्ण अक्रूरजीको हस्तिनापुर भेजते हैं यह पता लगानें हेतु कि कौरओं का पांडवों के साथ कैसा ब्यवहार है । पांडु की मौत हो चुकी है , धृतराष्ट्र हस्तिना पुरके सम्राट बन गए हैं लेकिन अपनें पुत्रोंके बशमें होनेंके कारण उनका पांडवों के साथ ब्यवहार ठीक नहीं है । अक्रूर कई माह हस्तुनापुर में रहते हैं , स्थिति का अध्यन करनें हेतु और वापिस आकर कृष्ण को वहाँ की स्थिति से अवगत कराये हैं। ~~~ ॐ~~~

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