Tuesday, December 17, 2013

प्रभु रामका बंश

● हे राम ●
~ भागवत आधारित कथा ~
* द्रविण देशके योगी सत्यब्रत जो पिछले कल्पके अंत में हुयी नैमित्तिक प्रलयके एक मात्र द्रष्टा थे , इस कल्पमें विवस्वान् के पुत्र, सातवें मनु श्राद्धदेव हुए । श्राद्धदेवको वैवस्वान मनु भी कहते हैं ।
* श्राद्धदेव पुत्र प्राप्ति हेतु यमुना तट पर 100 वर्ष तक तप किया और 10 पुत्र प्राप्त हुए जिनमें बड़े थे इक्ष्वाकु और इक्ष्वाकुके बड़े पुत्र थे विकुक्षि ।इक्ष्वाकु मनुके छीकनें से उनकी नासिका से पैदा हुए थे । विकुक्षिके बंश में आगे 15वें बंशज हुए युवनाश्व।युवनाश्वके दाहिनें कोख से मान्धाता ( 16वें बंशज - विकुक्षि के ) पैदा हुए । मान्धाताकी पुत्री विन्दुमतीके वंशमें ( 17वें बंशज ) आगे हुए पुरुकुत्स(18वें बंशज -विकुक्षिके ) । पुरुकुत्स नागोंकी बहन नर्वदासे ब्याह किया।
* इस बंशमें आगे त्रिशंकु हुए ,त्रिशंकु के पुत्र थे हरिश्चन्द्र । इस परिवार में आगे रघु हुए , रघुसे दशरथ और दशरथसे श्री राम । श्रीरामके पुत्र कुशके बंशमें कुश के आगे 26 वां बंशज हुआ तक्षक । तक्षक परीक्षित को डसा और परीक्षितका अंत हुआ । ** आप देख रहे हैं कि मान्धाता पुत्री विन्दुमती के पुत्र पुरुकुत्सबंशमें श्री राम पैदा हुए और पुरुकुत्स का ब्याह नागों की बहन से हुआ अर्थात श्री रामके अन्दर सर्प बंशका भी DNA था और श्री राम के बाद उनका 27वां बंशज तक्षक हुआ जो जब चाहे सर्प बन जाए और जब चाहे मनुष्य ।
** यह वही तक्षक है जो ज्ञान -विज्ञान की संसारका पहला विश्वविद्यालय स्थापित किया उस स्थान पर जो संसारके ब्यापारिक मार्गोंका संगम था और जिका नाम रखा गया तक्षिला जो आज पाकिस्तान में इस्लामाबाद के पास है ।तक्षिलासे पाणिनि , चरक और कौटिल्य जैसे ज्ञानी - विचारक पैदा हुए ।
~~ ॐ ~~

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