Friday, November 30, 2012

अकाल मूरत


हिमगिरी के उतुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष भीगे नैनों से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
नीचे जल था ऊपर हिम था
एक तरल था एक सघन
एक तत्त्व की ही प्रधानता
कहो उसे जड़ या चेतन 

बाबू जयशंकर प्रसाद सन् उन्नीस सौ छत्तीस में यह कबिता लिखी और अगले साल उनका निधन हो गया/ 
वह उर्जा जो उनके अंदर बह रही थी वह वह थी जिसको आदि गुरु श्री नानकजी  साहिब अकाल मूरत कहते हैं 
प्रकृति अकाल मूरत से है प्रकृति करता है और अकाल मूरत उस कृत्य का द्रष्टा एवं साक्षी 
बाबू जयशंकर प्रसाद अपनी मौत के एक साल पहले इस कबिता को लिख कर यह दिखाया की अंत समय में जो दिखता है वही है अकाल मूरत 
परम सत्य की छाया में बैठा यह कवि वह देख रहा है जिसको देखनें वाले परम  सिद्ध  योगी होते हैं और वे जो देखते हैं उसे ब्यक्त नहीं कर पाते लेकिन बाबू जयशंकर प्रसाद जी उसे ब्यक्त करनें में पूर्ण रूप से कामयाब रहे 
मैं उनको प्रणाम करता हूँ 
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Wednesday, November 28, 2012

गीता कहता है - 02

राजस गुण के तत्त्वों पर ध्यान करो :

1- गीता 14.7 आसक्ति , कामना , राग एवं रूप का आकर्षण राजस गुण से हैं
2- गीता 14.12 लोभ राजस गुण का तत्त्व है
3- गीता 4.10   राग , भय , क्रोध से अप्रभावित ज्ञानी होता है
4- गीता 2.56   राग , भय , क्रोध से अछूता स्थिर प्रज्ञ समभाव योगी होता है
5- गीता 3.34   सभीं पांच बिषयों में राग - द्वेष की ऊर्जा होती है
6- गीता 2.64   राग - द्वेष से अछूता अनन्य भक्ति में होता है
7- गीता 2.65   राग - द्वेष रहित प्रभु प्रसाद स्वरुप परम आनंद में रहता है
8- गीता 6.27   राजस गुण से अप्रभावित ब्रह्म मय होता है
9- गीता 3.37   काम का रूपांतरण ही क्रोध है और काम राजस गुण से है
=== ओम् ======

Sunday, November 18, 2012

गीता कहता है --- 1


तुम हर पल कुछ न कुछ कर रहे हो , जो तुमसे हो रहा है उसके पीछे कोई कारण भी होगा , जो तुम कर रहे हो उनसे तुमको कभीं सुख तो कभी दुःख मिलता होगा , सुख में तुम फैलते होगे और दुःख में सिकुड़ते होगे , क्या कभीं इस सुख – दुःख की आंख मिचौनी को गंभीरता से समझनें की कोशिश किये हो ? यदि कोशिश किये होगे तो तुम अब गीता योगी बन गए होगे और यदि नहीं किये तो आज से करना प्रारम्भ करो और देखो की इस अभ्यास से तुम कैसे किसी नये ऐसे आयाम में पहुँच जाते हो जहाँ प्रभु श्रो कृष्ण के मंदिर की तलाश नहीं , अपितु तुम स्वयं प्रभु श्री कृष्ण मय हो जाते हो / गीता कुछ देता नहीं , गीता जीनें का एक मार्ग है यहाँ जो भी है वह द्वैत्य से परे , विकारों से परे , अपने - पराये से परे , संदेह से परे , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार से परे है और यहाँ जो भी है वह सब का है लेकिन सभीं उसकी ओर पीठ किये खड़े हैं / 
गीता श्लोक – 2.69 कहता है …...
या निशा सर्भूतानाम् तस्यां जागर्ति संयमी
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने : //
योगी के लिए जो रात्रि जैसा है वह भोगी का दिन है
और भोगी के रात्रि जैसा जो है , वह योगी का दिन है
"गीता कहता है" के 33 समीकरण भोग - कर्म से कर्म - योग में पहुंचाते है , जहाँ कर्म के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति होती है और ज्ञान परम धाम का एक मात्र राह है /आज पहला समीकरण दिया जा रहा है / 

======= हरे कृष्ण ============

Monday, November 12, 2012

गीता से गीता में ------

केवल एक बार .......
मात्र पन्द्रह दिन .....
नित्य ......
प्रातः कालीन संध्या बेला में 
अपनें द्वारा जो हो रहा हो उसे गीता दर्पण में देखनें का प्रयाश करो ......
यदि आप  इस ध्यान विधि में स्वयं को पूर्ण रूप से दुबोनें में कामयाब हुए तो .....
एक दिन ....
प्रातः कालीन संध्या बेला में ......
गीता दर्पण पर आप अपनें कृत्यों के स्थान पर .....
प्रभु श्री कृष्ण को देखनें में कामयाब हो सकते हैं .....
लेकिन .....
आप में समर्पण की पूर्ण ऊर्जा होनी चाहिए //
==== ओम् =====

Sunday, November 4, 2012

हम कहाँ हैं ?

" I do not believe in future , it comes so soon " , says Albert Einstein 

आज का विज्ञान जिसकी सोच पर खडा है , वह कह रहा  है -
 मैं भविष्य के ऊपर विश्वास नहीं रखता क्योंकि वह इतना जल्दी आ खडा हो जाता है / अब आप सी सोच भविष्य के सम्बन्ध में क्या हो सकती है ?
भूत , वर्तमान और भविष्य ; समय को समझनें की एक परिकल्पना है लेकिन समय तो समय ही है जो ब्यक्त किया नहीं जा सकता मात्र जिसके होनें का अनुभव जरुर होता रहता है / जहाँ हम हैं , जो हमारा अस्तित्व है जहाँ से भूत - भविष्य में हम कभीं - कभी झांकते रहते हैं , वह है हमारा वर्तमान / वतमान को कुछ इस प्रकार से भी समझा जा सकता है - भूत का आखिरी क्षण और भविष्य का प्रारंभिक क्षण को समझिए और इस समझ के आधार पर इन दोनों के मध्य की स्थिति को भी देखिये , वह आयाम है हमारे वर्तमान का / 

हमारा वर्तमान भविष्य के ब्लू - प्रिंट बनानें में गुजर रहा है जिस पर भूत का रंग स्पष्ट झलकता है पर ताज्जुब होता है कि इस ब्लू - प्रिंट पर कहीं वर्तमान की छाया तक नहीं दिखती जो हमारा ब्यक्त जीवन है / 
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -
 ऐसा कभीं न था जब हम , तुम ,  ये सभीं राजा लोग न थे और आगे भी ऐसा न होगा जब हम सब न होंगे लेकिन मेरे और तुममें एक अंतर है , मैं अपनें भूत की स्थतियों को देख रहा हूँ और तुम्हारी स्मृति में  तेरे भूत की स्थितियां धूमिल हो चुकी है / अपनें भूत कालीन जीवनों को वर्तमान में देखनें का विज्ञान बुद्ध - महाबीर के समय तक था , बुद्ध इस ध्यान को आलय विज्ञान कहा करते थे और महाबीर जाति स्मरण लेकिन आज अगर कोई कहे की मैं पिछले जीवन में सम्राट था या भिखारी  था तो लोग क्या कहेंगे ?
रविन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं .......
Butter fly counts not months but moments and has time enough 
यदि जीवन का मजा लेना चाहते हो तो :..............

  • वर्तमान पर भूत की छाया न पड़नें दो 

और 

  • इसे भविष्य के अँधेरे में खोनें भी न दो 

खुदा यह नहीं देखेगा कि तुम पिछले जीवन में क्या किया
खुदा यह नहीं सोचेगा कि तुम्हारी अगले जीवन की क्या सोच है
वह तो यह पूछेगा कि -----
मैं तुमको इतना सब दिया और तुम फिर भिखारी बन कर  खाली हाँथ आ रहे हो ?
कुछ तो सोचा होता ? कम से कम इतना तो सोचा होता कि मैं कहाँ जानें वाला हूँ ?
जीवो और मस्ती से जीवो 
लेकिन आप की मस्ती का केंद्र परमात्मा हो 
==== ओम् ======