Friday, November 8, 2013

भागवतमें द्वारका - 01

<> भागवतमें द्वारकाके सम्बन्धमें जो उपलब्ध है उसका सार आप यहाँ देखें --
 1-10.50> द्वारकाका क्षेत्र 48 कोस में फैला था । सत्रह बार 23-23 अक्षौणी सेना के कर मगध नरेश जरासंध मथुरा पर आक्रमण किया जिसमें उसकी सारी सेना तो मारी जाती पर वह बच निकलता। 18वीं बार युद्ध होना था कि कालयबन 03 करोड़ म्लेक्षों की सेना लेकर मथुरा पर आक्रमण कर दिया ।प्रभु सोचे , उधर जरासंध भी आ रहा है और इधर कालयबन आ पहुंचा है , इस परिस्थिति में समस्या गंभीर है अतः उन्होंने समुद्रके अन्दर द्वारकाका निर्माण करके मथुरा बासियोंको वहाँ भेज दिया । 2-11.1 पिन्दारक क्षेत्र द्वारकाके अति समीप था ,एक टापूके रूपमें जहाँ वे 11 ऋषि प्रभुसे मिल कर रुके हुए थे जिनके श्रापसे द्वारकाका अंत हुआ था ।ऋषियोंके नाम इस प्रकार से हैं : विश्वामित्र , नारद ,वसिष्ठ , कश्यप , दुर्बासा, कण्व , असित , भृगु , अंगीरा, वामदेव,अत्रि ।
 3- 11.30 > प्रभास क्षेत्र द्वारकाके लोगोंका तीर्थ था जहाँ पहुँचनेके लिए नावोंसे समुद्र पार करके रथों से जाना होता था । प्रभास क्षेत्रमें यदुबंशके लोगोंका आपस में लड़नें से अंत हुआ था और प्रभु यहाँ से परमधाम गए थे तथा बलरामजी अपना शरीर यहीं त्यागा था ।यहाँ सरस्वती पश्चिम की और सागरसे मिलती थी । 
4-1.10+5.10 > द्वारका से हस्तिना पुर का मार्ग :---- द्वारका - आनर्त - जाभीर - सौभीर ( सिंध का भाग जहां इक्षुमती नदी बहती थी । यह नदी कुरुक्षेत्रसे हो कर द्वारका की ओर जाती थी )।- मरुध्वन - सारस्वत - मत्स्य - कुरुक्षेत्र - ब्रह्मावर्त ( यमुना का तटीय प्रदेश ) - शूरसेन - पांचाल - कुरु जंगल - हस्तिनापुर 
5-4.11> ब्रह्मावर्त में सरस्वती पूर्वमुखी थी 
 6- 1.10 > जामीरके पश्चिममें आनर्त था जहाँ बलराम जी का ब्याह हुआ था । 
7-5.10 > यहाँ ऐसा दिखता है कि सौवीर जो सिंधका भाग था वहाँसे इक्षुमती नदी बहती थी । 
8-11.7 > प्रभुके परम धाम जानेंके बाद ठीक सातवें दिन द्वारका समुद्रमें समा गया था ।
 9- आज का द्वारका समुद्र तलसे न ऊंचाई पर है न नीचे है । 10-खम्भातकी खाड़ीकी खोज बताती है कि जो वहाँ का भाग समुद्र में डूबा था उसके होने की अवधि लगभग 7500 BC से 3500 BC का हो सकता है लेकिन भागवत के अनुसार यह समय लगभग 3400 वर्ष बनता है । 
~~~ ॐ ~~~

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