Thursday, August 25, 2011

गीता के दो सौ सूत्र अगला कदम

इस गीता यात्रा के अगले कुछ और कदम

गीता सूत्र –10.28

प्रजन : च अस्मि कन्दर्प :


प्रजनन की ऊर्जा काम देव मं हूँ , यह बात श्री कृष्ण कह रहे हैं


गीता सूत्र –16.21


त्रिविधं नरकस्य इदं द्वारं … .....

काम : क्रोध : तथा लोभ : …...


नर्क के तीन द्वार हैं जहां से प्रवेश मिलना सुगम है ; काम , क्रोध एवं लोभ


गीता सूत्र –5.23

काम – क्रोध के प्रति हूश मय होना ही सुख है



गीता सूत्र –3.37 , 14.7


कामः एष : क्रोध : एष : रजो - गुण समुद्भवः गीता 3 . 37


रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णा संग समुद्भवम् गीता 14.7


काम – क्रोध , तृष्णा [ लोभ ] राजस गुण के तत्त्व हैं


सूत्र – 14.12


लोभ – आसक्ति राजस गुण के तत्त्व हैं


सूत्र –18.17


अहंकार रहित कर्म कर्म म्बधन मुक्त कर्म होता है और ऐसा कर्म करनें वाला मन का गुलाम नहीं होता


गीता के सूत्रों की ब्याख्या करना गीता के सूत्रों पर चादर डालनें जैसा है और मैं नहीं चाहता की गीता की प्रकाश किरानोंऔर आप के मध्य मैं एक अवरोध का काम करूँ / गीता के सूत्र आप के सामनें हैं , आप को कैसे देखते हैं , यह आप को देखना है //


=======ओम==========


Wednesday, August 17, 2011

बुद्धि योग सूत्र

इस श्रृंखला के अगले कुछ सूत्र -------


सूत्र – 3.40

यहाँ प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं … .........

काम का सम्मोहन आत्मा को छोड़ सब पर होता है //

सूत्र –10.22

इन्द्रियाणां मनश्चास्मि

प्रभु कह रहे हैं , इन् द्रियों में मन मैं हूँ //


भूतानां अस्मि चेतना

यहाँ प्रभु कहते हैं , चेतना मैं हूँ //


सूत्र –7.10

बुद्धि : बुद्धि - मताम् अस्मि


बुद्धिमानों में बुद्धि मैं हूँ , ऎसी बात श्री कृष्ण कह रहे हैं //


सूत्र –18.29


गुणों के आधार पर बुद्धि तीन प्रकार की होती है //


सूत्र –2.41 , 2.44


यहाँ प्रभु कहत रहे हैं , बुद्धि दो प्रकार की होती है ; एक ब्यवसायात्मिका बुद्धि और दूसरी

अब्यवसायात्मिका बुद्धि / पहली बुद्धि प्रभु कि ओर ले जाती है और दूसरी बुद्धि भोग में रखती है //


सूत्र –7.11


प्रभु कह रहे हैं , धर्मानुकूल काम मैं हूँ //


गीता के कुछ ध्यान – सूत्र आप को यहाँ मिले आप इनको बुद्धि-योग साधना में

प्रयोग कर सकते हैं//


======ओम=========





Tuesday, August 9, 2011

गीता के दो सौ सूत्र भाग नौ

गीता के दो सौ सूत्रों की श्रृंखला के अगले सूत्र------


सूत्र –3.6


कर्म इन्द्रियों को हठात नियंत्रित करनें से क्या होगा ? मन तो बिषयों पर मनन करता ही रहेगा /

कर्म इन्द्रियों का हठात नियोजन अहंकार को पीना करता है // यह सूत्र सूत्र 2.59 के साथ देखें //


सूत्र –4.39


नियोजित इन्द्रियाँ ज्ञान की ओर ले जाती हैं //


सूत्र –2.68


स्थिर प्रज्ञ की इन्द्रियाँ नियोजित होती हैं //


सूत्र –5.8 , 5.9


संभव योगी अपनी इन्द्रियों की कृयाओं का द्रष्टा तत्त्व – वित् होता है //


गीता के पांच सूत्र आप के सामनें हैं आप इनसे मित्रता स्थापित करके गीता माय होनें की दिशा में

एक कदम और चल सकते हैं //











Tuesday, August 2, 2011

गीता के दो सौ सूत्र भाग आठ

गीता के दो सौ सूत्रों की श्रंखला-----

अगले कुछ सूत्र …...

गीता सूत्र –5.22

इन्द्रिय भोग दुःख के माध्यम हैं और क्षणिक होते हैं//

गीता सूत्र –3.37

काम का रूपांतरण ही क्रोध है//

गीता सूत्र –2.60

इन्द्रियाँ बिषय के सम्मोहन में मन को गुलाम बना लेती हैं//

गीता सूत्र –2.67

गुलाम मन प्रज्ञा को भी सम्मोहित कर सकता है//

गीता सूत्र –3.7

मन से इन्द्रिय नियोजन यदि हो तो अनासक्त कर्म होते हैं//


गीता के कुछ अनमोल सूत्रों को आप देखे,अब इन सूत्रों को अपनी बुद्धि में बसाओ//

गीता कहता है,भीखारी क्यों बनना चाहते हो,श्री कृष्ण तो आप को सम्राट बना रखे हैं;ऐसा

सम्राट जिएके कर्म अहंकार की छाया में नहीं होते ज्ञान के प्रकाश में होते हैं,जिसके कर्म

गुण तात्वों के सम्मोहन में नहीं होते सांख्य – योगी श्री कृष्ण के प्रकाश में होते हैं और

ऐसा सम्राट कहीं बाहर नहीं अपनें में ब्रह्म की अनुभूति करता है//

जहां चाह नहीं ….

वहाँ सत् की राह होती है//


====ओम======