Thursday, August 29, 2013

यशोदाके वे तीन माह

●● यशोदाके वे तीन माह ●●
°° भागवत स्कन्ध - 10 , अध्याय 82-84 में 163 श्लोकोंके माध्यमसे यशोदा और कृष्ण - बलराम मिलनको ब्यक्त करनेंकी कोशिश की गयी है जिसके आधार पर यह प्रस्तुति है ।
°° नन्द परिवार गोप - गोपियाँ और यदु कुलके लोग कुरुक्षेत्रमें तीन माह एक साथ गुजारा
°° इस अवसर बसुदेवजी ऋषियोंके आदेश पर एक यज्ञ किया
°° यह अवसर था सर्वग्रास सूर्य ग्रहण का , ऐसा ग्रहण प्रलय काल में लगता है
°° इस अवसर पर यहाँ मत्स्य ,उशीनर ,कोसल विदर्भ ,कुरु ,सृंजय ,काम्बोज , कैकेय , मद्र ,कृति ,आनर्त ,केरल एवं अन्य सभीं जगहों से लोग आये हुए थे
°° ब्यास ,नारद ,च्यवन ,देवल ,असित ,विश्वामित्र ,शतानंद ,भरद्वाज ,गौतम ,परसुराम वसिष्ठ ,गालव ,
भृगु ,पुलस्त्य ,कश्यप ,अत्रि , मार्कंडेय ,बृहस्पति , सनत कुमार , अंगीरा ,अगस्त्य ,याज्ञवल्क्य और वाम देव जिदे ऋषि मुनि भी आये हुए थे अब आगे :-
** आजका कुरुक्षेत्र मथुरासे 320 किलो मीटर है । सर्वग्रास सूर्य ग्रहण जैसा प्रलयके समय लगता है वैसा लगनें वाला था , यह बात बर्षा ऋतु प्रारम्भ होनेंके लगभग 03 माह पहले की है अर्थात यह ग्रहण फरवरी में लगा होगा । यह घटना महाभारत युद्धसे पहलेकी है लेकिन उस समय तक प्रभु श्री कृष्णकी तीसरी पीढ़ी प्रौढ़ हो चुकी थी । द्वारकासे यदु कुलके लोग कुरुक्षेत्र आ गए थे पीछे द्वारकाकी सुरक्षा हेतु यदु सेनाध्यक्ष कृतवर्मा और प्रभुके पौत्र अनुरुद्ध वहाँ रुक गए थे ।
^^ नंदको पता चला कि उनका कान्हा कुरुक्षेत्रमें है , यह हवा पुरे ब्रजमें फैल गयी और नन्द परिवार , गोप और गोपियाँ चल पड़े कुरुक्षेत्रके लिए .......
● सोचना इस दृश्यके सम्बन्धमें , इस स्थिति की गहरी सोच अपरा भक्तिमें पहुंचा सकती है
^^ कान्हा 11 सालके थे जब माँ यशोदासे जुदा हुए थे , वह माँ जो एक पलभी कान्हा बिना नहीं रह सकती थी वही माँ आज लगभग 50 - 60 सालके बाद अपनें कान्हासे मिलनें जा रही है , उसके अन्तः करणमें किस उर्जा का संचार हो रहा होगा ? जरा सोचिये इस बात पर ।50-60 वर्ष एक अनुमान है क्योंकि प्रभु जब परम धाम गए उस समय उनकी उम्र थी 125 साल की थी और इस समय उनके पौत्र भी जवान हो चुके हैं अतः यह ग्रहण महाभारत के पूर्व प्रभु के मध्य उम्रकी बात हो सकती है ।इस ग्रहण में कौरव और पांडव दोनों पक्ष के लोग प्यार पूर्वक भाग लिया था ।
¢ प्रभु मात्र 11 सालके थे जब क्रूरजी उनको मथुरा ले गए थे । कंश बधके बाद पुनः प्रभु और बलराम यशोदा - नन्दसे मिलनें कभीं नहीं गए जबकि मथुरा से नन्द गाँव 30 किलो मीटर दूर है। कन्हैया जब 06 सालके थे उनको गाय चरानें की अनुमति मिल गयी थी और वे नन्द गाँव से वृन्दावन जो लगभग 50 किलो मीटर दूर है , गाय चरानें हेतु जाते थे लेकिन मथुरा जाने के बाद उनको 30 किलो मीटर पर स्थित नन्द गाँव पुनः माँ यशोदा , नन्द और अपनी प्यारी गोपियोंसे मिलनें का वक़्त न मिल पाया ।
** कन्हैया और गोपियाँ शरीरसे 50 साल और बूढ़े हो चले हैं , जब एक दूसरेके आमनें सामनें हुए तब दोनों पक्ष मूक संबाद करनें लगा । गोपियाँ जो पूछती थी उसका जबाब प्रभु मौन से देते थे और प्रभु क्या पूछेंगे ,वे तो त्रिकाल दर्शी हैं । इस अवसर पर गोपियाँ और प्रभु कृष्ण वहाँ से एकाएक गायब हो
गए , लोग उन्हें खोजनें लगे लेकिन कहीं उनकी सुध न लग पायी । कान्हा और उनकी गोपियाँ सरस्वती के तट पर महारासमें लीन हो हो गए थे । इस महारासको कोई भौतिक आँखोंसे ।तो देख नहीं सकता था ।
** यशोदा -नन्द और गोप -गिपियाँ कुरुक्षेत्रमें तीन माह रहे और जब बरसात के दिन आने को हुए तब नन्द बाबा -यशोदा को भेटें देकर बिदा किया गया और यदु कुल सरस्वती तट से द्वारका के लिए चल पड़ा ।
अगले अंक में देखना कि आगे यशोदाके साथ क्या घटना घटी ?
~~~ ॐ ~~~~

Thursday, August 15, 2013

भागवतसे ..... 03

भागवतमें गंगा -- 02
सन्दर्भ : भागवत : खंड - 01 माहात्म्य + 1.13 + 1.19 + 3.20 + 6.4 + 9.22 + 9.23
एक सोच :

  • त्रेता युगमें सरयू अयोध्याको अपनेंमें बिलीन कर लिया था 
  • द्वापरमें अरब सागर जिसमें द्वारका एक 48 बर्ग मील का टापू था , उसे अपनेंमें बिलीन कर लिया 

और 

  • हस्तिना पुर जो गंगाके तट पर सम्पूर्ण पृथ्वी की राजधानी के रूप में था उसे गंगा बहा ले गयी 

इस बात से ----

  • काल की गति स्पष्ट होती है 

और
 काल की गति अर्थात प्रकृतिमें हर पल हो रहा बदलावसे एक ध्वनि निकलती है
 जिसको यदि वैज्ञानिक पकड़ सकें तो वह धुन है
 एक ओंकार की 

पीछले अंक में आप देखे की गंगा मेरु पर्वत पर उतरते ही 04 रूपों में विभक्त होजाती है और जिस गंगा को हम सब भारतीय समझते हैं वह गंगा अलकनंदाके रूप में हेम कूट पर्वत और हिमालय को पार करती हुयी भारत वर्ष में प्रवेश करती हैं और गंगा सागर संगम से हिंद महासागर में उतर कर सागर बन जाती है /
अब कुछ और बातें भागवत से ही :-----
1- सांतनु जो यदि भूल कर भी किसी बृद्ध को स्पर्श कर देते थे तो वह युवा हो उठत था , उनसे और गंगा से भीम का जन्म हुआ /
2- गंगा हिमायायके दक्षिणमें सप्त ऋषियों के लिए सात भागों में विभक्त हो जाती हैं  जिसको सप्त श्रोत कहते हैं / यह वह जगह है जहाँ हार समय सिद्ध योगी रहते हैं और इस स्थान पर धृत राष्ट्र एवं गांधारी अपना आपना शरीर त्याग किया था /
3- कुशावर्त क्षेत्र जो गंगा द्वार [ हरिद्वार ] के समीप है , वहाँ मैत्रेय ऋषि का आश्रम हुआ करता था , जहाँ विदुर को तत्त्व - ज्ञान मिला था 
4- गंगा द्वार के समीप ही आनंद तट जहाँ नारद को सनकादि ऋषि भागवत की कथा सुनायी थी  /
5- गंगा के तट पर विन्ध्याचल एक शक्ति पीठ है मिर्ज़ापुरके पास , वहाँ पहाड़ों में एक अघमर्षण तीर्थ हुआ करता था जहाँ प्रजापति दक्ष घोट तप किये थे /
6- गंगा में पेटारी में रखा हुआ एक बच्चा अधीरत को मिला था जो कुंती का पुत्र कर्ण था
 और अधीरत निःसंतान थे /
7- परीक्षित से आजतक का समय [ भागवत : 12.1-12..2 ] 3450 वर्ष हो चुका है [ 2013 तक ] /
8- परीक्षित के बाद पांचवीं पीढ़ी में नेभीचक्र सम्राट हुए जिनके समय में गंगा हस्तिनापुरको बहा ले गयी थी  और नेभिचक्र प्रयागके पास कौशाम्बीमें अपनी राजधानी बसायी थी /कौशाम्बी बुद्धके समय सर्व संपन्न ब्यापारिक केन्द्र था , जहाँ प्रायः बुद्ध आया करते थे /
9- जनमेजय याज्ञवल्क्य एक महान गणितज्ञ एवं  खगोल शात्री से शिक्षा ग्रहण की थी 

=== ओम् ====

Tuesday, August 13, 2013

श्रीमद्भागवत से ..... 02

भागवत में गंगा जी
भागवत में गंगाका सन्दर्भ : 9.8 + 9.9 + 5.16 + 5.17 
पहले दो बातें :
1- हरिद्वारके बाद गंगा सागर तक की यात्रामें से यदि प्रयाग और  काशी को हटा कर देखें तो गंगा एक साधारण नदी के रूप में दिखती हैं 
2- गंगा की 2525 Km की यात्रा में मात्र 12नदियाँ गंगासे  मिलती हैं जिनमें 04 दाहिनें तट की ओर और अन्य 08 बाएं तट की ओर से  / जो नदियाँ गंगा की सहायक नदियाँ हैं उनमें से अधिकाँश ऐतिहासिक नदियाँ हैं जैसे
 गंडकी , गोमती , यमुना , पुनपुन , कोशी और महानंदा आदि / 
अब भागवत से -----
त्रिशंकुका नाम सभीं जानते हैं ; कहते हैं त्रिशंकु न स्वर्ग में हैं न मृत्यु लोकमें अपितु ये अंतरिक्ष में लटक रहे हैं जिनका सर नीचे पृथ्वी को देख रहा है और पैर ऊपर स्वर्ग  जाना चाहते हैं / त्रिशंकू के बंश में हरिश्चंदके बाद आठवें सम्राट हुए सम्राट सगर/ सम्राट सगर अश्वमेघ यज्ञ हेतु घोड़ा भेजा था जिसको इन्द्र चुरा कर आज के गंगा सागर पर छिपा दिया था जहाँ उस संमय सिद्ध योगी कपिल जी तप कर रहे थे /  कपिल जी को पाँचवाँ विष्णु का अवतार कहा जाता है और गीता में कृष्ण कहते भी हैं कि सिद्धानां कपिलः अहम् अर्थात सिद्ध योगियों में कपिल मुनि मैं हूँ / कपिल जी का आश्रम सरस्वतीके तट पर विन्दुसर था जो द्वापर का तीर्थ तो था ही आज भी तीर्थ है / विन्दु सरोवर पांच पवित्र सरोवरों में से एक है जो कपिल जी के पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और इस स्थान पर कर्मद ऋषि 10,000 वर्ष तप में गुजारे थे / सगरके पुत्र घोड़ा खोजते खोजते वहाँ पहुंचे और सोचा कि यह योगी जो ध्यान में है , हो न हो हमारे घोड़े को यहाँ छिपा रखा हो और इस भ्रान्ति में वे सभीं कपिल को बिना समझे बुरा भला कहनें लगे और उनको  मारनें पर भी उतर आये / कपिल जी समभाव योगी थे , उनके आँख खुलते ही वे सभीं सगर के पुत्र वहीं जल कर राख हो गए /

 सगरके पौत्र थे अंशुमान जो जन्म से सिद्ध थे , सगर  अंशुमान को घोड़ा खोजनें हेतु भेजा , वे गए और घोड़ा ले आये / अंशुमान ज्यों ही कपिल के ऊर्जा क्षेत्र में पहुंचे , कपिल की ऊर्जा उनको अपनी ओर खीच ली और वे झुक कर प्रणाम किया और वहीं बैठ गए /
 एक अवतार और एक अवतार को समझनें वाला सिद्ध योगी आमनें सामनें थे कुछ पल के लिए / कपिल अंशुमान को बोले , अंशुमान ! इन लोगों का उद्धार तब होगा जब गंगा का जल इन पर पडेगा / 
अंशुमान , अंशुमन के पुत्र दिलीप तप किये गंगा को लानें हेतु लेकिन सफल न हो सके लेकिन  दिलीप के पुत्र भगीरथ  सफल हुए और गंगा को ले आये / आगे आगे भगीरथ  चल रहे थे और पीछे पीछे गंगा  चल रही थी , गंगा सगर के पुत्रों के राख के ढेर के ऊपर से  होती हुयी सागर से जा मिली / आज गंगा सागर संगम तीर्थ है / 

गंगा भगीरथ से एक प्रश्न किया था आनेंसे  पहले जो महत्वपूर्ण है और इस प्रकार से है -----
गंगा कहती हैं .....
 लोग अपनी गन्दगी मुझ में धोयेंगे लेकिन मैं निर्मल कैसे होउंगी ?
 भागीरथ बोले ...
 आप के तट पर अनेक सिद्ध योगी तप करते  होंगे उन लोगों के स्पर्श से आप सदैव पवित्र बनी रहेंगी /

गंगा जम्बू द्वीप के  मध्य में स्थित इलाबृत्तवर्ष के मध्य में स्थित मेरु पर्वत पर उतरी और चार भागों में विभक्त हो गयी , इस प्रकार -----

* भद्रा के रूप में उत्तर दिशा में चल पडी जो रम्यक एवं हिरण्य वर्षों तथा नील , श्वेत और श्रृंगवान  पर्वतों को पार करके कुरु होती हुयी सागर से जा मिलती हैं 
** अलखनंदा के रूप में दक्षिण दिशा में बहती हुयी निषध , हेमकूट और हिमालय पर्वत को पार करती हुयी और हरिवर्ष , किम्पुरुष वर्षों को पार करती हुयी भारतवर्ष में प्रवेश करती हैं / 
*** सीता के रूप में मेरु पर्वत से चल कर गंध मादन पर्वत से होती हुयी भद्राश्ववर्ष से हो कर सागर में मिलती हैं 
**** चक्षु के रूप में पश्चिम दिशा में चल कर केतुमाल वर्ष और माल्यावान पर्वत से हो कर सागर से मिलती हैं /

> हिमालय के उत्तर में तीसरा पहाड है मेरु जो जम्बू द्वीप का केन्द्र है 
> हिमालय के उत्तर में छठवांवर्ष है कुरु जो जम्बू द्वीप का आखिरी वर्ष है 
> हिमालय के दक्षिण में एक वर्ष है भारत 
ऊपर दी गयी सूचनाएं शोध के बिषय हैं 

=== ओम् =======


Sunday, August 11, 2013

श्रीमद्भागवत से ----[ 01 ]

रास और महारास भाग - 01 

सन्दर्भ : भागवत > 10.20 - 10.22 , 10.29 - 10.33 , भागवत द्वितीय खंड महात्म्य 

भागवतके 08 अध्यायों एवं भागवत महात्म [ भागवत खंड - 02 ] के 181 श्लोकों का सार :---
यहाँ आप बुद्धि स्तर पर उसकी एक झल्लाक देखनें जा रहे हैं जो बुद्धिके परे की अनुभूति है /
क्या है रास और महारास ?

युधिष्ठिर को जब  प्रभुके  परम धाम यात्राका पता चला तब युधिष्ठिर बज्रनाभको  मथुरा एवंम शूरसेन मंडलका  राजा बनाया औरअभिमन्युके पुत्र परीक्षितको हस्तिनापुरका सम्राट बना कर अपनें भाइयोंके साथ हिमालय पर स्वर्गारोहण यात्रा पर निकल पड़े / बज्रनाथ प्रभु श्री कृष्णके प्रपौत्र थे / 

परीक्षित जी बज्रनाभ से मिलनें मथुरा आये और बज्रनाभ मथुराकी स्थितिका वर्णन करते हुए दुःख जताया / बज्र नाभ कहते हैं , मैं राजा तो मथुरा  मंडल का हूँ , यह बात तो मैं समझता हूँ लेकिन अब मथुरा मंडल नाम ही नाम है , पता नहीं यहाँके लोग , बंदर , पेड़ - पौधे , झरनें और गौवें आदि कहाँ चले गए , यह मंडल तो एक वीरान धरती है / परीक्षित बज्रनाभ के प्रश्न का समाधान शांडिल्य ऋषिसे करवाते हैं /

पूर्णावतार प्रभु श्री कृष्ण द्वापरके आखिरी चरणमें लगभग 125 वर्षों तक देव , दानव , असुर , पशु , जड़ और चेतनकके साथ जो कुछ भी लीला रूपमें दिखाया वह कलियुग में रख रहे मनुष्योंके लिए एक ऎसी झलक थी जिसकी स्मृति कलियुगके प्रारंभिक चरण में अपना चरण रख रहे लोगोंको कलियुगकके सम्मोहन से दूर रख सकता है / 

शांडिल्य ऋषि बज्रनाभ को सलाह दिए कि राजन जहाँ - जहाँ आप के दादाजी लीला , रास लीला किया है वहाँ - वहाँ आप अपनी छावनियां बनवायें और उन स्थानों को बसाएं / परीक्षित इन्द्रप्रष्ठ से ब्यापारियोंको , बंदरोंको और अन्य लोगों को मथुरा भेजा , मथुरा को पुनः बसानें हेतु /

प्रभुके जब परम धाम जानें का समय  आया तो वे पहले अपनें पार्षधोको स्वर्ग भेज दिया और जो उनके अनन्य प्रेमी थे जो मथुरा मंडल में थे , पहले तो उन सबको द्वारका पहुंचाए और जब द्वारका का अंत होनें का समय आया तब उन सब को उनके मूल स्थानों को भेज दिया और अंत में स्वयं अपनें मूल निवास परम  धाम की यात्रा पर चल पड़े / 

प्रभुके परम धाम जानें का जब समय आया तब उनसे मिलनें  उस समय के सिद्ध 11 ऋषियों का एक दल द्वारका पहुंचा था / ऋषियों और प्रभुके मध्य क्या वार्ता हुयी , यहाँ उसे ब्यक्त करना कठिन है लेकिन उस दिनसे ठीक सात दिन बाद न द्वारका रहा , न यदुकुल रहा , द्वारका समुद्र में एक टापू था जिसका क्षेत्र फल था लहभग 90 वर्ग
 मील , जिए सागर अपनें में छिपालिया / 

मथुरा मंडल क्यों और कैसे रिक्त हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर अगले अंक में आप देख सकेंगे /

==== ओम् =======