Wednesday, December 4, 2013

भागवत -गीता के साधना सूत्र - 1

1~ सात्विक गुण प्रभुका दर्शन कराता है ।
2~ सृष्टि प्रभुके नारायण रूप से जो 16 कलाओंसे युक्त है ( कलाएं - 10 इन्द्रियाँ + 5 महाभूत + मन ) उससे है ।
3~ प्रभु सभींके अन्दर - बाहर एक रस है ( गीता - 13.15 ) ।
4~ प्रभुका कोई प्रिय - अप्रिय नहीं (गीता - 5.14-5.15 + 9.29 ) ।
5~ धर्म के चार चरण ----- *तप+सत्य+दया+पवित्रता *
6~ होशका एक घडीका जीवन बेहोशीके सौ सालके जीवनसे अधिक आनंददायी होता है
7~ वैराज्ञमें गुण तत्त्वोंकी पकड़ नहीं होती (गीता - 2.52 )।
8- दुःख संयोग वियोगः योगः (गीता - 6.23 )। 9~ योगमें आसन , श्वास , आसक्ति , इन्द्रियों की गति , मनकी चाल पर नियंत्रण रखनेंका अभ्यास किया जाता है ।
10~ मायातीत एक से अनेक होनें में काल, कर्म और स्वभावको स्वीकारा है ।
~~~ ॐ ~~~

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