Sunday, May 19, 2013

श्रीमद्भागवत [ भाग - 05 ]

भक्ति और नारद मिलन 

विशालापुरी में सनकादि चारों निर्मल ऋषि सत्संग के लिए आये हुए थे और वहाँ चिंतातुर नारद जी भी कहीं से आते हुए दिखे / सनकादि ऋषियों ने पूछा , ब्रह्मन्! आप  का आगमन कहाँ से हो रहा है ? और आप चिंता में किस कारण से उलझे हुए दिख रहे हैं ? नारद जी कहते हैं , मैं सर्वोत्तम लोक समझ कर पृथ्वी लोक पर आया था / यहाँ पुष्कर , प्रयाग , काशी , गोदावरी [ नासिक ] , हरिद्वार , कुरुक्षेत्र , श्रीरंग और सेतुबंध कई तीर्थों में विचरता रहा लेकिन कहीं मन को शांति  मिली / यहाँ कलियुग  का  गहरा कुप्रभाव है /
 यहाँ कलियुग सबको पीड़ित कर रखा है / 

मैं पृथ्वी पर विचरते हुए यमुना तट पर बृंदाबन आ पहुंचा / वहाँ मुझे एल युवती मिली , युवती कहती है ,मेरा नाम भक्ति है , मैं द्रविण  देश में पैदा हुयी , कर्नाटक में मेरा पालन हुआ , महाराष्ट्र नें मुझे अपनाया और फिर मैं गुजरात जा पहंची . गुजरात में कलि युग के प्रभाव में लोग अंधे हो चले हैं , उनको कुछ पता नहीं कि दिन क्या है और रात क्या है और वहाँ मैं धीरे - धीरे अपना युवापन खोती  गयी और बूढ़ी हो गयी / इनको देखिये , मेरे पास ये दो बूढ़े जो सो रहे हैं , ये मेरे पुत्र - ज्ञान एवं वैराज्ञ हैं / मैं गुजरात से चल पडी और यहाँ बृंदावन आ गयी / यहाँ आनें के बाद मैं धीरे - धीरे जवान होनें लगी लेकिन ये मेरे दोनों पुत्र वैसे ही जीव रहित मुर्दे की भांति दिन - रात सोए हुए रहते हैं / मुझे इनकी चिंता सता रही है / आप तो देवर्षि हैं , आप ही इनको ठीक करनें का कोई उपाय बताएं ?

नारद भक्ति से कहते हैं , भक्ति ! यह बृंदावन है , यहाँ भक्ति सदैव युवा रहेगी लेकिन यहाँ ज्ञान - वैराज्ञ के लिए कोई जगह नहीं / नारद जि वेद - उपनिषद और गीता के मध्यम से ज्ञान - वैराज्ञ को जगानें की पूरी कोशिश की लेकिन उनको सफलता न   मिली / बदरीबन में वहाँ उनको पुनः सनकादि ऋषि मिले और नारद से ये बचन बोले , नारद हरिद्वार के पास एक आनंद नामक गंगा घाट है जहाँ हर समय सिद्ध योगी, महात्मा और ऋषि समूह रहता है / आप तुरंत वहाँ गंगा तट पर श्रीमद्भागवत यज्ञ का आयोजन करें और इस यज्ञ में भक्ति स्वयं अपनें दोनों बेटों के साथ आएगी और भागवत सुननें से इसके दोनों बेटे ठीक हो जायेंगे /

नारद जी सनकादि ऋषियों की बात मानी और आनंद के लिए यात्रा प्रारम्भ कर दी / आनंद घाट पर जब नारद पहुंचे तो वहाँ सनकादि ऋषियों ने भागवत यज्ञ कराया और भक्ति के दोनों पुत्र पुनः युवावस्था में आ गए और भक्ति प्रसन्न हो कर नाचनें  लगी /

अब कुछ सोचनें की बातें 

[क] गुजरात में भक्ति की दुर्दशा 
[ख] आनद घाट आज ऋषिकेश के नाम से जाना जाता है 
[ग] बृंदावन में ज्ञान - वैराज्ञ के लिए कोई जगह नहीं लेकिन भक्ति अपनें अलमस्ती में रहती है 
वह भक्ति जो वैराज्ञ से ज्ञान में न पहुंचा सके उसे अपरा भक्ति कहते हैं 

=== ओम् =====

Sunday, May 5, 2013

श्रीमद्भागवत [ भाग - 04 ]

पात्र - परिचय 

वेद ब्यास 

वेद ब्यास एक ऐसे बुद्धिजीवी द्वापर युग में पैदा हुए जिनका नाम सभीं 18 पुराणों से उनके लेखक के रूप में
 जुड़ा है / सुधन्वा राजा शिकार खेलनें के लिए कहीं दूर जंगल में निकल गए थे / उनकी पत्नी रजस्वला हुयी और अपनें शिकारी पालतू पंक्षी से राजा को अपनें रजस्वला होनें का समाचार भेजा / रजस्वला स्त्री की एक दशा होती है जब वह मासिक धर्म से बाहर निकलती है / हर माह में स्त्री मासिक धर्म से गुजरती है और ठीक मासिक धर्म के बाद यदि वह स्त्री पुरुष के साथ सम्बन्ध बनाती है तो वह   गर्भ धारण कर सकती है / 
राजा सुधन्वा पेड़ के पत्तों से एक दोना बनाया और उस दोनें में अपना वीर्य रख कर उस पंक्षी के चोच में फसा दिया / दोना पेड़ों के पत्तों से कटोरे की आकृति जैसी  एक रचना होती है जिसका प्रयोग आज भी किया जाता है / 
वह शिकारी पंक्षी यमुना नदी के ऊपर से राज्य को वापिस लौट रहा था कि ऊपर आकाश - मार्ग में कोई और शिकारी पंक्षी से उसकी लड़ाई हो गयी /दूसरा पंक्षी दोनें में भोजन होनें की संभावना को देख रहा था // दोनों पंक्षियों में लड़ाई चल रही थी  लेकिन वह दोना यमुना में गिर गया / यमुना में मछली रूप में एक अपसरा रहती थी जो उस वीर्य को निगल गयी / मछली को एक नाविक पकड़ा और उसके गर्भ से एक पुत्री और एक पुत्र
 पैदा हुए / नाविक दोनों बच्चों को ले कर राजा सुधन्वा के पास गया / राजा की अपनी कोई औलाद न थी अतः उसने लड़के को अपने पास रख लिया / 

पुत्री एक दिन नदी में नौका विहार कर रही थी जहाँ ऋषि पराशर ध्यान में मग्न थे / ऋषि जब उस कन्या को देखा तो वे काम  - सम्मोहन में आ गए और उस कन्या एवं पराशर ऋषि के योग से जो पुत्र उत्पन्न हुआ , वह
 वेद ब्यास के नाम से विख्यात हुआ / 

सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर शाम्याप्रास नाम का एक आश्रम हुआ करता था जहाँ हर वक्त यज्ञ हुआ करते
 थे ,उस आश्रम से पास में वेद ब्यास जी का अपना आश्रम हुआ करता था / इस स्थान के चरों तरफ बेरों का जंगल हुआ करता था /

इस कहानी में एक बात ध्यान के लिए है ----

" सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर "इस बात पर आप सोचें ,
 अर्थात
  •  इस स्थान पर सरस्वती नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहा करती होगी 
  • इस स्थान पर बैर का जंगल था अर्थात यह इलाका राजस्थानी इलाका रहा होगा 
  • सरस्वती नदी कहाँ से निकलती थी और उसका मार्ग क्या था , कुछ कहना कठिन है लेकिन 
  • सरस्वती नदी अरब सागर में जहाँ मिलती थी वह स्थान उस स्थान के आस पास ही था जहाँ आज सिंध नदी सागर से मिलती है /
=== ओम् ========