Sunday, December 19, 2021

प्रश्न उपनिषद् सार

 



🕉️ प्रश्न - उपनिषद् अथर्व वेद - उपनिषद् है 🕉️

अथर्ववेद में 20 काण्ड हैं और श्लोकों की संख्या 5987 बताई जाती है । 5987 श्लोकों में से 730 श्लोक ऋग्वेदीय श्लोक हैं अतः इस प्रकार अथर्ववेद के अपने मूल श्लोकों की संख्या 5,257 बनती है । 

अथर्वेदके 31 उपनिषद् बताये जाते हैं जिनमें से एक प्रश्नोपनिषद् भी है 

💐 अथर्व वेद में ब्रह्मज्ञान, देवताओं की स्तुतियाँ , और विभिन्न प्रकारके रोगोंके उपचार हेतु विभिन्न प्रकार की जड़ी - बूटियोंके प्रयोग की विधियों को बताया गया है । 

💐 आयुर्विज्ञान , शल्य चिकित्सा ,  टोना - टोटका और जंत्र - तंत्र भी इस वेद् के प्रमुख बिषय हैं ।

 💐 राजनीतिके गुह्य सूत्र भी यहाँ मिलते हैं । 

💐 अथर्ववेद की 09  शाखायें हैं जिनमें से 07 लुप्त हो चुकी हैं ।

⚛ प्रश्नोपनिषद् अथर्ववेदीय पिप्लाद शाखा के ब्राह्मण द्वारा 06  ऋषियों द्वारा पूछे गए 06 प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं ।

☸ यहाँ प्रवक्ता आचार्य पिप्पलाद हैं  जो कदाचित् पीपल के गोदे खाकर जीते थे , और ..

💐 निम्न 06 विद्यार्थी हैं ⤵️

 1 - कात्यायन कवंधी

2 - भार्गव वैदर्भि

3 - कौशल्य अश्वालयन

4 - सौरयनिन गर्ग्य

5 - सैब्य सत्यकाम 

6 - सुकेसन भारद्वाज हैं 


प्रश्न: 01

ऋषि कात्यायन कवन्धी का प्रश्न ⤵️

प्रजा ( सृष्टि ) - उत्पत्ति करता कौन है ?

उत्तर
प्रजा वृद्धि की इच्छा वाले प्रजापति ब्रह्मा मिथुन - कर्म माध्यम से रयि - प्राण नामक एक युगल द्वारा प्रजा की उत्पत्ति करायी । 

यहाँ प्राण गति प्रदान करनेवाला चेतन तत्त्व  है । रयि , प्राण को धारण करके विविध रूप देने में समर्थ है जिसे  प्रकृति कहते हैं ।

 अर्थात

प्रकृति ( रयि ) और प्राण के संयोग से प्रजा की  उत्पत्ति हुयी

👉 सांख्य योग और पतंजलि योग दर्शन में  सृष्टि रचना का आधार प्रकृति - पुरुष संयोग को माना  गया है । 


प्रश्न : 2 

ऋषि भार्गव वैदर्भि का प्रश्न ⤵️

➡️ प्रजा धारण करनेवाली देवताओं की संख्या  कितनी है ? और उनमें वरिष्ठ कौन है ?

उत्तर 

🌷 पञ्च महाभूत , 11 इन्द्रियाँ और प्राण , प्रजा धारण करने वाले देवता हैं और इनमें वरिष्ठ प्राण है । प्राण इन सभीं देवताओं का आश्रय है ।


प्रश्न : 3 

ऋषि कौसल्य आश्वलायन का प्रश्न ⤵️

☸ प्राण की उत्पत्ति कहाँ से होती है ?

 ☸ यह शरीर में कैसे प्रवेश करता है ? 

☸ यह कैसे शरीर से निकल जाता है ? 

☸ और  दोनों के मध्य कैसे रहता है ?

उत्तर 

👌 प्राण की उत्पत्ति आत्मा से है । 

जैसे शरीर की छाया शरीर से निकलती हैं और शरीर में समा जाती है वही स्थिति प्राण की आत्मा के संग है ; प्राण आत्मा से निकलता है और आत्मा में समा जाता है

👌 मन के संकल्प से यह शरीर में प्रवेश करता है । 

👌 अंत समय मे आत्मामें समाकर बाहर निकल जाता है और दूसरी योनि में चला जाता है ।

प्रश्न : 4 

ऋषि सौरयनिन गर्ग्य👇

👆शरीर में कौन सी इन्द्रिय शयन करती है ? 

👆 कौन सी जाग्रत रहती है ?

👆 कौन सी इन्द्रिय स्वप्न देखती है ? 

👆 और कौन सी इन्द्रिय सुख अनुभव करती है ?

👆और ये सब ( इंद्रियाँ ) किस में स्थित हैं ?

उत्तर 

👉 जैसे सूर्य रश्मियां सूर्य उदय के समय सूर्य से निकलती हैं और सूर्यास्त के समय उसी में समा जाती हैं वैसे ही इन्द्रियां मनसे निकलती हैं और मन में ही समा जाती हैं ।  

👉 इन्द्रियाँ मन आश्रित हैं । जब तक वे फैली हुई है तब तक उनके माध्यम से हमें उनके बिषयों का पता चलता है । जब वे सिकुड़ कर परम् देव मन में केंद्रित हो जाती है तब हम बिषय मुक्त हो जाते हैं । ऐसे मनुष्य की स्थिति सोये हुए व्यक्ति जैसी हो जाती है ।

👉 सोये हुए में प्राण अग्नि जाग्रत रहता है । 

👉 प्राण से सोई हुयी  इन्द्रियाँ बिषयों का केवल अनुभव मात्र करती हैं जबकि वे सोई रहती हैं ।


प्रश्न : 5 

ऋषि सैब्य सत्यकाम 

जीवन भर ॐ का ध्यान करनेवाला किस लोक को प्राप्त करता है ?

उत्तर 

⚛️ ॐ का ध्यानी ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है । ⚛️ तेजोमय सूर्यलोक ही ब्रह्मलोक है । 

⚛️ ओंकार ही परब्रह्म है ।


प्रश्न : 6

ऋषि सुकेसन भारद्वाज

हे भगवान पिप्लाद ! कौशल देश के नरेश राज पुरुष हिरण्यनाभ जी मुझसे 16 कलाओं से युक्त पुरुष के सम्बन्ध में जानना चाहा था पर मैं उन्हें न बता पाया । 

क्या आप ऐसे पुरुष की जानकारी रखते हैं ?

🕉️ यहाँ आगे बढ़ने से पूर्व हिरण्यनाभ को समझते हैं ⤵️

🌷 भगवान श्री राम के पुत्र कुश बंश में कुश से आगे 13 वें बंशज हुए हिरण्यनाभऋषि याज्ञवल्क्य हिरण्यनाभ के शिष्य थे । याज्ञवल्क्य सूर्य पर बहुत से वैज्ञानिक खोजे की थी । महाभारत युद्ध से थीक पूर्व में जब कुरुक्षेत्र में सर्वग्रास सूर्य ग्रहण के समय प्रभु श्री कृष्ण के पिता वसुदेव जी यज्ञ का आयोजन किये थे उस समय वहां उपस्थित 29 ऋषियों में से एक थे , याज्ञवल्क्य ऋषि  ( भागवत : 10.84.3 - 5 ) ।

उत्तर 

💐 जिस पुरुष से 16 कलाएं उत्पन्न होती हैं , 

वह 16 कलाओं से युक्त पुरुष इस शरीर में विद्यमान है । 

💐 उस पुरुषने सर्व प्रथम प्राण का सृजन किया ।  💐 प्राणसे श्रद्धा , आकाश , वायु , ज्योति , 

पृथ्वी , इन्द्रियां , मन और अन्न का सृजन किया । 

💐 अन्नसे वीर्य , तप , मन्त्र , कर्म , लोक एवं नाम आदि 16 कलाओं का सृजन किया ।

🌷अब इस संदर्भ में श्रीमद्भगवत पुराण में 16 कलाओं के सम्बन्ध में निम्न सन्दर्भों को देखें ⤵️

1 - भागवत : 1.3.1 

यहाँ 11 इन्द्रियाँ + 05 महाभूतों को प्रभु की 16 कलाओं के रूप में बताया गया है ।

2 - भागवत : 2.4.23 

यहाँ  11 इंद्रियों और 05 प्राणों ( प्राण , अपान , उदान , व्यान और समान ) को 16 कलाओं के रूप में बताया गया है । 

🌷 05 प्राणों को निम्न प्रकार से बताया गया है ⤵️

1 - प्राण - हृदयमें रहने वाला वायु को कहते हैं।

 2 - अपान - गुदा में रहने वाले वायु को कहते है । 

3 - उदान - कंठ में रहने वाले  वायु को कहते हैं । 

4 - व्यान - संपूर्ण देह में स्थित वायु को व्यान कहते हैं। 5 - समान - वह वायु है जो नाभि में रहता है ।


~~◆◆ ॐ ◆◆~~

Friday, December 10, 2021

गीता अध्याय - 12 एक झलक

 


श्रीमद्भगवद्गीता  अध्याय - 12

🌷 अर्जुन पूछते हैं - साकार और निराकार उपासकों में उत्तम  उपासक कौन होते  हैं ? 

निराकार उपासक प्रभु को प्राप्त करते हैं । 

साकार उपासक उत्तम योगी होते हैं । 

निराकार उपासना में कष्ट अधिक है

● साधनामें समभावकी स्थिति मिलने पर  साधना सिद्ध होती है ।

★ प्रभु के  वचन 

हे अर्जुन ! तुम  अभ्यास योग से मुझ पर अपनें चित्त को केंद्रित करो ⤵️

या  अपनें कर्मों को तूँ मुझे समर्पित करो ⤵️

या फिर चाह रहित कर्म करो ।

1⃣ प्रभु श्री कृष्ण की इन 03 बातों में  पूरा वेदांत  दर्शन ज्ञान - सार और पतंजलि योग दर्शन  का पूरा ज्ञान - सार छिपा है।


2⃣ अभ्यास सिद्धि से पूर्ण समर्पण का भाव जागृत होता है ।  


 3⃣ पूर्ण समर्पण में ईश्वर  भाव से मन  की वृत्तियाँ क्षीण होती हैं , बुद्धि निर्मल होती है और कर्म बंधनों के मुक्ति मिलती है ।


 4⃣ वितृष्ण ( वैराग्य ) की ऊर्जा  प्रवाहित होने से आसक्ति मुक्त कर्म होने लगता है जो ज्ञानयोग की परानिष्ठा है।


~~◆◆ ॐ ◆◆~~

गीता अध्याय - 9 की एक झलक

 


श्रीमद्भगवद्गीता : अध्याय - 9

गीता अध्याय : 09 के आकर्षण👇

💐 गीता अध्याय - 8 में श्लोक : 1 - 2 के माध्यम से अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में प्रभु श्री के  71 श्लोक हैं ( श्लोक : 8.3 से श्लोक : 10.11) और इस प्रकार अध्याय : 09 इस उत्तर का एक अंश है ।

🌷प्रभु अपनें 34 श्लोकों में से 32 श्लोकों के माध्यमसे 65 उदाहरण दे कर बता रहे हैं कि मुझे इनमें देखो , ये सब मैं ही  हूँ।

अनन्य भक्ति , मुक्ति - मार्ग है । 

  दैवी और आसुरी प्रकृति के लोगों के सम्बन्ध में  गीता अध्याय : 16 जैसी बातें बताई गई हैं ।

🌷कोई हर पल दुराचारी नहीं रहता , कभीं उसमें सत् भाव भी भरता ही है । 

मैं ( प्रभु श्री कृष्ण ) सबमें समभाव से हूँ ।

◆  मेरा कोई प्रिय - अप्रिय नहीं ।

पूजाके प्रकार 

1 -  देव पूजन

2 -  पितर पूजन

3 -  भूत पूजन

4  प्रभु पूजन

◆ जो जिसे पूजता है , वह उसे ही प्राप्त करता है ।

~~◆◆ ॐ◆◆~~

Tuesday, December 7, 2021

गीता अध्याय - 4 की एक झलक

 


एक  झलक ⬇️

गीता अध्याय - 4

श्रीमद्भागवतगीता अध्याय - 4 के बिषय👇

क्र सं

बिषय

श्लोक 

योग


● अर्जुन का चौथा प्रश्न

◆ पिछले जन्मों को जानना ● प्रभु से परिचय ● वर्ण व्यवस्था

1 - 14

14


# राग , भय , क्रोध मुक्त योगी

# देव पूजन से कर्म फल प्राप्ति

# कर्म 

15 - 19

05


आसक्ति , समभाव 

20 - 23

04


यज्ञ

24 - 33

10


ज्ञान 

34 - 42

09

योग

➡️

➡️

42


गीता अध्याय : 4 > ध्यानोपयोगी श्लोक

5

10

12

18

19

20

21

22

23

29

30

35

36

37

38

40

41

41

योग👉

18


अध्याय - 4 की एक झलक ⬇

★ अध्याय - 4 में प्रभु श्री कृष्ण अपनें 41 श्लोकों नें से 07 श्लोकों ( 6 - 9 , 11 , 13 , 14 ) के माध्यम से अपने को निम्न प्रकार व्यक्त करते हैं 👇

★ मैं अजन्मा , अविनाशी , सभीं प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ ।

★ जब जब धर्म घटता है , अधर्म बढ़ता है तब तब साधु पुरुषों के उद्धार एवं पापियों के संहार के लिए मैं  निराकार से साकार रूप में अवतरित होता हूँ।

★ मेरे जन्म और कर्म निर्मल एवं दिव्य हैं , जो इसे तत्त्वसे जान लेता है वह मुझे प्राप्त करता है ।

★ चार वर्णों की रचना मेरे द्वारा उनके गुण - कर्म के आधार पर की गई है।

★ कर्म मुझे नहीं बाधते और जो मुझे जान लेता है उसे भी कर्म नहीं बाध पाते।

★ श्लोक : 4.4 के माध्यमसे अर्जुनका गीता में चौथा प्रश्न निम्न प्रकार है ⤵

⚛आपका जन्म अभीं हाल का है और विवस्वान् ( सूर्य )का जन्म बहुत पुराना है । अतः मैं कैसे समझूँ कि कल्पके प्रारंभमें यह योग आप सूर्य को बताये थे ?

💐 अध्याय  : 3  में श्लोक - 3.36 के माध्यमसे अर्जुन का प्रश्न था कि मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों कर बैठता है ?  इस प्रश्नके उत्तरमें अध्याय : 3 के आखिरी 07 श्लोकों के साथ अध्याय : 4 के प्रारंभिक 03 श्लोक भी  हैं ।


● आगे  अध्याय - 4 में पिछले जन्मों  की स्मृतियों में लौटने के सम्बन्ध में संकेत दिया गया है जिसे बुद्ध आलय विज्ञान और महाबीर जाति स्मरण कहते हैं ।

● बीतराग भय और क्रोध मुक्त ज्ञानी प्रभु में होता है , यह सूत्र भी अध्याय - 4 का ही है ।

श्लोक : 24  - 33 यज्ञ से संबंधित हैं और जिनमें श्लोक : 28 + 29 में पूरक , कुम्भक और रेचक प्राणायाम को बताया गया है । 

◆ ज्ञान सम्बंधित श्लोक > 24 - 25 +34 - 42

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