Friday, October 31, 2014

भागवत से - 26

   ●● श्रीमद्भागवत पुराणकी झलक - 01●● 
°° कुछ मूल बातें °° 
 (क) भागवत को कौन - कौन किसको - किसको और कब - कब सुनाया ? 
 1> द्वापरके अंतमें व्यासजी अपनें आश्रम में भागवत की रचना करनें के ठीक बाद इसे अपने पुत्र शुकदेवजीको सुनाय । व्यास जीका आश्रम नदीके पश्चिमी तट पर साम्याप्राश आश्रमके साथ था । साम्याप्राश वह आश्रम था जहां बेरोंका जंगल हुआ करता था और इस आश्रममें हर समय यज्ञ हुआ करते थे । 
1.1 > 16 वर्ष के थे व्यास पुत्र शुकदेव जी जब परीक्षितको भागवत सुनाया था अर्थात शुकदेव जी रहे होंगे 5-6 सालके जब भागवतकी रचना व्यास जी द्वारा की गयी होगी । 
1.2 कलियुगके प्रारंभ होनें से लगभग 10 साल बाद भागवत की रचना हुयी होगी ।
 2- भागवत कथा प्रभु कृष्ण उद्धवको उस समय सुनाया जब द्वारकाका  अंत होनें वाला था और यदु कुल का लगभग अंत हो चूका था तथा स्वयं स्वधाम जानें ही वाले थे। यह घटना प्रभाष क्षेत्र में पीपल बृक्षके नीचे घटित गयी थी ।
 3- भागवत कथा ब्रह्मा नारदको सुनाये ।
 4-   भागवत कथा सनकादि नारदको आनंद आश्रम गंगा घाट पर भक्ति के ज्ञान - वैराग्य पुत्रों के उद्धारके लिए सुनाये थे । 
5- सूत जी नौमिष आरण्यमें सौनक ऋषि एवं अन्यको उस समय सुनाया जब सौनक आदि ऋषि कलियुगके प्रभाव से मुक्त रहनें केलिए एक हजार वर्ष चलनें वाले यज्ञका आयोजन किया
 था । 
6- भागवत कथा शुकदेवजी परीक्षितको सुनाया गंगा तट पर , उनके मौतके ठीक पहले । 2572 श्लोक प्रति दिन के हिसाब से 16 वर्षीय सुखदेव परीक्षित को इतना विशाल पुराण सुनाया था जिससे परीक्षित जो परम गति मिल सके ।
 6.1> भागवतमें 18000 श्लोक हैं जो 12 स्कंधों में विभक्त हैं। 
6.2 > भागवतकी रचना महाभारत के बाद की है । 
7- नारायण सरोवर परम पवित्र सरोवर हैं ।
 7.1-  नारायण सरोवर सिंध नदी और सागर के संगम पर स्थित है।
 8 - विन्दुसर सरोवर सरस्वती नदीके जल का सरोवर था और यह सरीवर तीन तरफ से सरस्वती से घिरा हुआ था ।
 8.1 - यहाँ कर्दम ऋषि 10000 वर्ष  तप किये थे स्वेक्षासे पत्नी प्राप्ति हेतु ।कर्मद ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे और देवहूति से उनका ब्याह हुआ था । देवहुति के पुत्र थे कपिल मुनि जिनको पांचवा अवतार रूप में देखते हैं और जो सांख्य योग के जन्मदाता माने जाते हैं । गीता में कृष्ण कहते हैं : सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ ।
 :::: ॐ :::::

Monday, October 27, 2014

भागवत से - 25 [ श्रुतियाँ कहती हैं ... ]

● भागवत से - 25 
 <> भागवत : 10.22.29 - 10.22.38 तक + 10.23के 52 श्लोको में सिमटी यह भागवत कथा <>
# देखिये ! यह कितना प्यारा प्रश्न है ? " श्रुतियाँ कहती हैं , जो प्रभुको प्राप्त हो गया ,वह वापिस संसार में नहीं लौटता , आप अपनें इस देव वाणीको सत्य करें । " 
** ब्राह्मण पत्नियाँ प्रभु से मिलनें के बाद उस समय कही बात को कहती हैं जब प्रभु उनको वापिस जानें की बात कहते हैं । आइये ! चलते हैं भागवतके इस प्रसंग में :--- 
* यमुना उस पार वृन्दावन में ( आजके वृन्दावन बस्ती में नहीं उस समयके उस सघन विस्तृत वनमें जहाँ प्रभु गौओंको और बकरियोंको चराया करते थे ) प्रभु ,बलराम और अपनें अन्य साथियोंके संग गृष्म ऋतु में गौओं को चराते -चराते बन में बहुत दूर निकल गए । वहाँ उनके कुछ साथियोंको भूख सतानें लगी और वे बलराम जी को अपनें भूखके सम्बन्ध में बताया । बलराम जी तो चुप रहे पर प्रभु कहते है ," पास में अशोक बन है ।वहाँ मथुराके ब्राह्मण स्वर्ग प्राप्ति हेतु अंगिरस नामक यज्ञ कर रहे हैं । आप सब वहाँ जा कर मेरा और दाऊ जीका नाम लेकर कुछ भोजन ले आयें ।" प्रभुके ग्वाले साथी वहाँ गए पर वेद पाठी कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिए और सभीं ग्वाले वापिस आकर वहाँ की घटनाको प्रभुको सुनया । 
* प्रभु अपनें साथियों को पुनः कहा कि इस बार आप सब ब्राह्मण पत्नियोंके पास जायें और भोजन ले आयें ।
 * ग्वाले वहाँ गए और प्रभुका नाम ले कर भोजन माँगा । ब्राह्मण पत्नियाँ तो कृष्णरस में पहले से डूबी थी और चार प्रकारका भोजन बना कर स्वयं लेकर प्रभु की ओर ग्वालोंके संग चल पड़ी ।उनमें कुछको उनके पतियोंनें रोक भी पर कृष्ण प्यारकी भूखी ब्राह्मण पत्नियोंके ऊपर उनके पतियोंका अवरोध कामयाब न हो सका ।
 * ब्राह्मण पत्नियों को प्रभु धन्यबाद किये और बोले ," अब आप सब वापिस चले जाएँ ।" 
 * ब्राह्मण पत्नियाँ प्रभु के आदेश को सुन कर कहती हैं ," अन्तर्यामी श्यामसुंदर ! श्रुतियाँ कहती हैं कि जो प्रभुको एक बार प्राप्त कर लिया ,वह दुबारा संसार में कदम नहीं रखता ,आप अपनें इस देव वाणी को सत्य करें । " 
 * प्रभु कहते हैं ," आप सब अपना-अपना मन मुझ पर केन्द्रित रखें और तन से अपनें -अपनें परिवार में रहें । "
 ## यह भागवत की एक 62 श्लोकों ( 10.22.29-38 + 10.23 के 52 श्लोकों ) में सिमटी एक कथा ही नहीं है ,यह ध्यान का एक बिषय है । भागवत के वेद पाठी ब्राह्मणोंकी पत्नियों और प्रभुके मिलन सन्दर्भके माध्यमसे स्वयंको कृष्णमय बना सकते
हैं ।
 ** सगुण रूप में आप हैं और निर्गुण रूप में सर्वत्र ब्याप्त कृष्ण
 हैं ; इस सगुण को अपनें मूल निर्गुण से एकत्व स्थापित करनें में आप भागवत के ऊपर ब्यक्त 62 श्लोकोंकी मदद ले सकते हैं । 
# ब्राह्मण पत्नियों की बात बुद्धि आधारित ध्यान का माध्यम बन सकती है और प्रभु की बात भक्ति योग की बुनियाद है , प्रभु कहते हैं मन में मुझे बसाए हुए तन से तुम सब अपनें - अपनें परिवार में रहो यह अभ्यास जब मजबूत हो जाता है तब परा भक्ति की किरण निकलती है । 
~~ हरे कृष्ण ~~

Tuesday, October 14, 2014

भागवतसे - 24 : माया क्या है ?

<> माया क्या है  ?
# बुद्धि स्तर पर माया को समझना संभव तो नहीं लेकिन समझना तो है ही तो आइये चलते हैं उसे समझनें की कोशिश करते हैं जिसका द्रष्टा अनन्य भक्त होता है ।
 # मार्कंडेय ऋषि नारायण से माया देखनें का आग्रह किया था और नारायण उनको माया दिखानें का आश्वासन देकर बदरिकाश्रम चलेगये थे । मार्कडेय ऋषि का आश्रम उस क्षेत्र में हुआ करता था जहां आज मानस सरोवर है । <> गीता - 7.14 <>
 # कृष्ण कहते हैं ," दैवी गुणमयी मेरी माया दुस्तर है पर जो मुझ पर केन्द्रित रहते हैं , वह मायामुक्त होकर संसार से तर जाते हैं । " 
 <> गीता - 7.15 <>
 # माया आश्रित ब्यक्ति आसुरी स्वभाव वाला होता है । 
<> भागवत से <> 
* भागवत स्कन्ध - 11 . 3 * 
> विदेह - जनक राजा निमि और नौ योगिश्वारों के संबाद में तीसरे योगीश्वर अन्तरिक्ष जी माया के सम्बन्ध में जो बातें कहते हैं ,उन्हें हम यहाँ देखते हैं ।
 1- माया अनिर्वचनीय है । उसका निरूपण उसके कार्यों से हो सकता है । माया असीमित प्रभु से प्रभु में वह माध्यम है जिससे प्रभु की रचनाएँ हैं । 
2- पञ्च महाभूतों से निर्मित देह में प्रभु का सभीं के हृदय में बसना माया से संभव होता है । 
2.1 -यहाँ इस सम्वन्ध में गीता - 14.5 को देखना चाहिए जो कहता है ,"देह में जीवात्मा को तीन गुण बाध कर रखते हैं ।
 3- देह में मन आश्रित जीवात्मा को सुख - दुःख के मध्य रहना और संसार में भटकते रहना प्रभु की माया है ।
4- जन्म ,जीवन , मृत्यु का घटित होते रहना माया की ओर इशारा देता है ।
5- प्रलय कालमें ब्यक्तका अब्यक्त की ओर खीचे चले जाना ,प्रभु की माया है । 
6-प्रलय काल में पृथ्वी का जल में बदलना ,जल का अग्नि में बदलना ,माया है । और अग्नि के स्वरुप को अंधकार लेलेता है ,अग्नि वायु में बदल जाती है , आकाश वायु से स्पर्श छीन लेता है , वायु आकाश में लीन हो जाती है , काल आकाश से शब्द छीन लेता है , आकाश तामस अहंकार में बदल जाता है । तामस अहंकार काल में प्रभाव में महतत्त्व में लीन हो आता है , महतत्त्व माया में लीन हो जाता है और माया सनातन है - यह सब माया ही तो है । 
7- भागवत :6.5 . 16
 > माया दोनों तरफ बहनें वाली नदी जैसी है जो सृष्टि - प्रलय के मध्य बहती रहती है । 
8- भागवत : 2.9 
> माया बिना आत्मा का दृश्य पदार्थों से सम्बन्ध संभव नहीं । 
9 - भागवत : 3.5.25 > दृश्य- द्रष्टा का अनुसंधन करता माया है । 
10-भागवत : भक्त माया का द्रष्टा होता है ।
 ~~ ॐ ~~

Sunday, October 12, 2014

परीक्षित के प्रश्न भाग - 1

# परीक्षित के प्रश्न भाग - 1
 ** दो शब्द ** 
<> कौशिकी नदीके तट पर शमीक मुनिके पुत्र श्रृंगी ऋषि सम्राट परीक्षितको श्राप देते हैं कि जा सम्राट ! आज से ठीक सातवें दिन तक्षक सर्पके काटनें से तुम्हारी मौत हो जायेगी ।
 * हस्तिनापुरके पास जहाँ गंगा पूर्व वागिनी हुआ करती थी  वहाँ गंगा के दक्षिणी तट पर उत्तर दिशा में मुह करके कुशके बिछावन पर सम्राट परीक्षित ध्यान माध्यम दे मौत का इन्तजार कर रहे हैं । कुश -बिछावन इस तरह से बीछाया गया है कि कुशका अग्र नुकीला भाग पूर्व दिशा की ओर थे । 
## आज हस्तिनापुर के साथ गंगा पूर्व मुखी नहीं है । गंगा हस्तिनापुर को बहा ले गयी थी और उस समय परीक्षित बंश के नेमी चक्र ( परीक्षित के बाद पाँचवे बंशज ) हस्तिनापुर समाप्त होनें पर प्रयाग के पास कौशाम्बी में अपनी राजधानी बनायी थी । कौशाम्बी बुद्ध का प्रिय स्थान होता था जो एक व्यापारिक केंद्र हुआ करया  था । उस समय प्रयागका स्थान कौशाम्बी की तुलना में छोटा था ।
 * ब्यासके 16 वर्षीय पुत्र श्री शुकदेवजीका आगमन होता है ।शुक देव जी मौनी बाबा थे जो किसी स्थान पर उतनी देर रुकते थे जितनी देर में एक गाय दूही जा सकती है । मौनी बाबा जिस स्थान में जब रुकते थे तब उस घडी वह स्थान तीर्थ बन जाता था । 
* मौनी बाबा 12 स्कन्ध , 335 अध्याय और उनमें स्थित18000 श्लोकों वाले ब्यास जी द्वारा रचित श्रीमद्भागवत पुराण की कथा सुनाते हैं ।
 ## ज़रा सोचना - सात दिनों में 18000 श्लोकों की कथा करना एक। मौन रहनें वाले योगी के लिए कितना कठिन रहा होगा ?
 # जब शुकदेव जी रहे होगे 5-6 सालके या इससे भी कुछ कम उम्रके तब व्यास जी भागवत की रचना करके शुकदेव जी को सुनायास था ।सरस्वती नदी के तट पर शम्याप्रास नामक आश्रमके पास जहाँ बेरका सुन्दर बन हुआ करता था , वहाँ व्यास जीका आश्रम होता था।शम्याप्रास आश्रम सरस्वती के पश्चिमी तट पर होता था अर्थात व्यासजीके आश्रमके पास सरस्वती उत्तर से दक्षिण की दिशा में बहती रही होंगी ।
 ## भागवत में परीक्षित के 58प्रश्न हैं ; प्रश्न - 3 में कुल 23 प्रश्न हैं । 
-- शेष भाग अगले अंक में --- 
~~ ॐ ~~

Sunday, October 5, 2014

भागवत से -23

भागवत से - 23 
*  शन्तनु की पत्नी सत्यवती और पराशर ऋषि से वेदव्यासका जन्म हुआ । वेदव्यास आश्रम शम्याप्रास परम पवित्र आश्रम के पास था जहाँ सरस्वती नदी पश्चिम मुखी थी । आश्रमके पास सुन्दर बेर - बन होता था । शम्याप्रास आश्रम पर हर वक़्त यज्ञ हुआ करते थे ।
 <> यह जगह Haryana में Sirsa और Bhiwani बेल्ट में होना चाहए <> 
* एक समय सुबह -सुबह सरस्वती नदी में स्नान करके वेदव्यास जी कुछ असंतुष्ट मुद्रा में अकेले बैठे थे । उस घड़ी वहाँ नारद का आना हुआ । नारद वेदव्यास से उनकी असंतुष्ट होनें का कारण जानना चाहा ।
* वेदव्यास कहते हैं , नारद ! महाभारत की रचना से मैं वेदों के रहस्य को स्पष्ट कर दिया है पर अब भी मुझे कुछ ऐसा लगता है जैसे कुछ बाकी रह गया हो । मैं यहाँ बैठे इसी बात पर सोच रहा हूँ । 
* नारद कहते हैं , मैं समझता हूँ , आप प्रभु के परम यश का गान नहीं हुआ है और जिस शास्त्र या ज्ञान से प्रभु खुश नहीं होते वह शास्त्र या ज्ञान अधूरा होता है । वह ज्ञान जिसमें भक्ति रस की कमी हो ,मोक्ष का द्वार नहीं खोलता । हे व्यास जी ! अब आप सम्पूर्ण जीवों को बंधन मुक्त करनें के लिए समाधि माध्यम से प्रभु की लीलाओं का वर्णन 
करें । 
 * नारद कहते हैं , आप इस बात को समझें , आप प्रभु के कला अवतार हैं । आप अजन्मा हैं फिरभी जगत - कल्याण हेतु आप जन्म लिया है । 
 * नारद कहते हैं , मनुष्य संसार से वैरागी हो कर ही प्रभु से जुड़ सकता है । तीन गुणों वाली माया से सम्मोहित ब्यक्ति की पीठ प्रभु की ओर होती हैऔर आँखें भोग - वासना में गड़ी रहती हैं । प्रभु की लीलाओं में मन केन्द्रित करके मनुष्य माया मुक्त हो सकता है और मया मुक्त ब्यक्ति प्रभु तुल्य होता है अतः आप प्रभु श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करके लोगों के लिए भोग - बंधन मुक्ति का एक सरल मार्ग दिखाएँ । 
* वेद व्यास जी इस बात पर भागवत की रचना की और सबसे पहले अपनें पुत्र शुकदेवजी को सुनाया । उस समय शुकदेव जी की उम्र पांच सल से कम की रही होगी ।* 16 वर्षीय शुकदेव जी परीक्षित को भागवत सुनाया । 
~~~ ॐ ~~~