Thursday, December 5, 2013

भागवत साधना सूत्र - 2

1- भागवत : 1.2 > शब्दसे दृश्य एवं द्रष्टा का बोध होता है और शब्द आकाशका गुण है।
2- भागवत : 1.3 > सृष्टि पूर्व न दृश्य था न द्रष्टा
था , जो था , वही परमात्मा है ।
3- भागवत : 3.5> द्रष्टा और द्रश्यका अनुसंधान करनें की उर्जा ही माया है ।
4- भागवत : 1.3> संसारमें दो प्रकारके लोग खुश
हैं ; एक वे जो मूढ़ हैं और दुसरे वे जो स्थिर
प्रज्ञ हैं ।
5- भागवत : 1.3 > अनात्मा बस्तुयें हैं नहीं , हैं जैसा प्रतीत होती हैं ।
6- भागवत : 1.3 > विषयोंका रूपांतरण ही काल का आकार है ।
7- भागवत : 2.1> काल प्रभुकी चाल है ।
8- भागवत :3.21.41> ब्रह्म काल चक्रकी धूरी हैं । 9- भागवत : 7.7 > बुद्धि की बृत्तियाँ - जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्तिकी अनुभूति करनें का श्रोत , भगवान है ।
10- गीता - 10.30 > कालः कलयतां अहम् । 11- भागवत : 5.1> इन्द्रियोंका गुलाम जन्म - मृत्युके भयमें बसता है ।
~~ ॐ ~~

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