Wednesday, December 25, 2013

भागवत स्कन्ध -6 के सार

●भागवत स्कन्ध - 6 ●
°° इस स्कन्धके 19 अध्यायों में 848 श्लोक हैं ।
* इस स्कन्धकी कुछ अमूल्य बातें :---
1- कर्म से पाप वासनाएं समाप्त नहीं हो सकती लेकिन भोग - कर्म आसक्ति रहित कर्म बन सकता
है । आसक्ति रहित कर्म को कर्म योग कहते हैं और इससे नैष्कर्म्य की सिद्धि प्राप्ति के बाद ज्ञान प्राप्त होता है । ज्ञान एवं वैराग्य साथ साथ रहते हैं और दोनों परम गति की यात्राजे उर्जा श्रोत हैं ।
2- धर्मक्या है ? वेदआधारित कर्म ही धर्म है।
3- जीवधारी बिना कर्म एक पल भी नहीं रह सकता : देखें यहाँ गीता : 3.5+18.11सूत्रों को भी ।
4- माया दोनों ओर बहनें वाली नदी जैसी है : एक है सृष्टि और दूसरी है प्रलय।
5- 25 तत्त्वोंके घरमें पुरुष रहता है : 25 तत्त्व हैं - 10 इन्द्रियाँ + 04 अन्तः करण + गुण + 05 महाभूत +05 बिषय ।।
6- काल निरंतर चलता हुआ चक्र है और काल प्रभु का ही नाम है ।
7- बिषयोंका गहरा अनुभव वैराज्ञमें पहुंचाता है ।
8- मनुष्य जीवनका एक लक्ष्य है ; ब्रह्म और आत्माके एकत्वको समझना ।
9- तीन गुण आत्माके नहीं प्रकृतिके हैं ।
10- स्त्रियाँ अपनी कालासाओं केलिए कुछ भी कर सकती हैं । वे अपनीं लालसाओं की कठपुतली होती हैं ।
* अब कुछ और बातें :---
^ शूरसेनके सम्राट चित्रकेतुको एक करोड़ पत्नियां थी पर थे औलाद हीन ।
^ चित्रकेतु एक करोड़ वर्ष तक सुमेरु पर्वतकी घाटीमें विहार किया ।
^ विन्ध्याचल पर्वतके साथके पर्वतों पर अघमर्षण तीर्थ है जहां दक्षको प्रभुके दर्शन हुए थे ।
^ दक्ष पञ्चजन कन्या असिक्नीसे ब्याह किया और 10,000 पुत्र पैदा किये ।
~~~ ॐ ~~~

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