Thursday, November 21, 2013

कृष्ण भक्त सुदामा और सुदामा

● कृष्ण भक्त दो सुदामा ( भाग -1)
 भागवत सन्दर्भ : 10.40+10.80+10.81 
# प्रभु कृष्णके एक नहीं दो सुदामा परम भक्त भक्त थे एकसे सभीं परिचित हैं लेकिन दूसरे सुदामा की स्थिति त्रिवेणीमें सरस्वती जैसी है ।
 * जब प्रभु कृष्ण 11 वर्षके होगये तब नारदकी बातोंसे प्रेरित होकर कंश कृष्ण - बलराम , नन्द -यशोदा और अन्य ब्रज बासियों को धनुष यज्ञ उत्सव देखनें केलिए अक्रूर के माध्यमसे आमंत्रित किया ।अक्रूर यदु बंशी थे ,कृष्णके चाचा लगते थे पर रहते थे मथुरा में ।अक्रूर कृष्ण -बलराम को लेकर नन्द गाँव से सुबह यात्रा प्रारम्भ की और सूर्यास्त होते होते मथुरा आ पहुंचे । आज नन्द गाँव - मथुराकी दूरी 30-32 km है ,उस समय और कम रही होगी ।
 * मथुरा क्षेत्रमें पहुँचनें पर अक्रूर चाहते थे अपनें घर ले जाना लेकिन कृष्ण मथुराके बहार ब्रज बासियोंका डेरा डालवाये और अक्रूर से बोले ,मैं और दाऊ आप के घर कंश बधके बाद आयेंगे । अक्रूर कंशको कृष्ण आगमनकी सूचना दी और अपनें घर चले
 गए । 
 * अगले दिन तीसरे पहर कृष्ण -बलराम और उनके साथी ग्वाल मथुरा नगर देखनें निकले और इस यात्रामें उनकी मुलाक़ात कंश प्रेमी धोबीसे हुयी , कृष्ण प्रेमी दर्जी मिला और फिर प्रभु गए अपनें अनन्य भक्त माली सुदामा के घर :---- 
<> प्रभु अक्रूरके घर जानेंके लिए मना कर दिया था लेकिन बिन बुलाये गए सुदामा माली के घर । सुदामा एक साधारण माली
 था ,उसे पता भी न था कि प्रभु उसके घर आ रहे हैं ,प्रभु भक्त सुदामा जो हर पल प्रभुकी स्मृतिमें रहा करता था आज उसकी सभीं स्मृतियाँ उसके सामनें खड़ी थी और वह उनमें डूबा हुआ था। लोग समझते रहे कि सुदामा कंश का माली है लेकिन वह था कृष्ण भक्त जिसके सभीं कर्म कृष्णके लिए होते थे । अभीं तक वह काल्पनिक कृष्णके लिए जो मालाएं बनाता रहा और जिनका प्रयोग कंश करता रहा पर उसे कोई दुःख न था ,क्योंकि वह कंश में कृष्णको देखता था पर आज उसका वह काल्पनिक कृष्ण जिसे वह कभीं न देखा था उसके सामनें खड़ा था और उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह उनको पहचानता है । फिट क्या था ? सुदामा माली की कई जन्मोंकी साधानामें फूल खिल उठे और उन फूलोंकी मालाएं बना कर वह प्रभु कृष्ण और शेष जी ( बलरामजी ) को पहना कर उनमें स्वयं को बिलीन कर दिया । 
* कहते हैं , भक्त प्रभुकी तलाशमें तब तक भागता है जबतक वह अपरा भक्ति में होता है और अपरा भक्ति परा भक्ति का द्वार है । अपरासे पराका द्वार खुलता है , उस भक्तकी भाग समाप्त हो जाती है और संसारको प्रभु से प्रभुमें देखता हुआ वह भक्त शून्यकी स्थिरतामें बस जाता है । 
** कृष्ण प्रेमी दूसरे सुदामा थे ब्राह्मण सुदामा ,एक निर्धन सुदामा जो उज्जैन में सान्दीपनि कश्यप गोत्री मुनिके आश्रममें कृष्ण के सखा थे और 64 दिन तक कृष्णके संग रहे । कृष्ण 11 वर्ष की उम्रसे लगभग 30-35 सालकी उम्र तक मथुरा में रहे लेकिन भागवतके अनुसार सुदामा उनसे मिलनें कभी न आये पर उनसे मिलनें द्वारका पहुंचे ,वह भी पत्नीके सुझाव पर ,उस समय जब उनकी गरीबी उनको जीना मुश्किल कर दिया ,तब ।
 * एक सुदामा वह माली था जिसके घर प्रभु गए ,मिलनें और एक सुदामा यह ब्राह्मण कृष्ण सखा थे जो हजारों km की यात्रा करके प्रभु से मिलनें गए ,अपनी गरीबी दूर करनें हेतु लेकिन वहाँ जा कर कुछ बोल न सके , बोलते भी तो कैसे ? प्यारमें मांगकी उर्जा होती ही नहीं । 
** दोनों सुदामाओं को वहसब बिनु मांगे मिला जो संसारमें बनें रहनें केलिए जरुरी है लेकिन उसके साथ इन दोनोंको 
परमधाम - द्वार की चाभी भी मिल गयी । 
<> कृष्ण और कृष्ण भक्त दोनों सुदामाओंकी यह कथा भागवत आधारित है ।
~~ ॐ~~

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