यहाँ आप देख सकते हैं भारतीय दर्शनों के मूल मन्त्रों को जो अपनें - अपनें दर्शनों के प्राण स्वरुप हैं ।
समस्या क्या है ?
पहले हर दर्शन के अपनें - अपनें स्कूल हुआ करते थे और उनके माननेवाले भी अलग -अलग हुआ करते थे । आज समस्या यह है कि ये सारे दर्शन अलग - अलग न रह कर मिलसे गए हैं । पहले एक दर्शन के स्कूल का आचार्य दूसरे दर्शन की चर्चा अपनें स्कूल में नहीं करते थे । आज के दर्शनाचार्य हर दर्शन की चर्चा करते हैं । जब वेदांत पर चर्चा होती है तब वे माया , ब्रह्म , आत्मा की बात करते हैं और वही गुरु जो मूलतः वेदांत को मानने वाले हैं , जब सांख्य पर बोलते हैं तब कहते हैं प्रकृति को माया समझो , पुरुष को आत्मा समझो या फिर कहते हैं पुरुष ही ब्रह्म है । इस प्रकार आज आप जहाँ भी पढ़ेंगे या देखेंगे आपको संकर दर्शन दिखाई / सुनाई देगा । परिणाम यह होता है कि सुनने /देखने वाला संकर दर्शन को देखता / समझता है ।
इस समस्या के कारण भारतीय दर्शनों के लोगों का दिल भर सा जा रहा है और लोग भ्रमित हो चुके हैं ।
क्या आप इसका कारण जानते हैं कि सबसे ज्यादा हिन्दू धर्म परिवर्तन कर रहे हैं / क्या इसके कारण को आप जानते हैं ? इसका कारण है उनके अपने धर्म दर्शन के प्रति उनकी भ्रम की मानसिक स्थिति ।
हिन्दू के धार्मिक आचार्य आपस में लड़ते हैं , एक ही बात को अलग - अलग ढंग से बताते हैं और उनकी आपस में लड़ाई हो जाती है लेकिन ऐसी बात अन्य धर्मों के आचार्यों में नहीं देखी जाती ।
आदि शंकराचार्य बोल गए - ब्रह्म सत्य है , जगत् मिथ्या है । 3 - 4 सौ साल बाद रामानुजाचार्य जो वेदांत दर्शन के ही आचार्य है आदि शंकर के कथन में सुधार करते हुए बोले - ब्रह्म तो सत्य है लेकिन जगत् मिथ्या नहीं है । समाज में इसका क्या असर हुआ ? वेदान्त के लोग दो में बट गए । ऐसी ही स्थिति आज भी बनी हुई है । अतः आपसे प्रार्थना है कि आप पढ़ें सबको लेकिन उनमें से एक को अपनाएं ।
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