Friday, December 12, 2014
मन रहस्य
Wednesday, November 26, 2014
Geograthy of seven continents based on Bhagawat
Thursday, November 13, 2014
सम्राट कुरु और उनका क्षेत्र कुरुक्षेत्र
कौन थे राजा कुरु ?
विश्वामित्र और परशुराम में क्या सम्बन्ध था ?
Wednesday, November 12, 2014
बुद्धत्व क्या है
कुरु और कुरुक्षेत्र भाग - 1
Tuesday, November 11, 2014
भागवत से - 29
Monday, November 10, 2014
भागवत से - 28 [ परीक्षित का प्रश्न - 1 ]
Friday, November 7, 2014
भागवत से -27
<> भागवत से एक कथा <>
भागवत सन्दर्भ : 7.15 + 11.21
1- भागवत : 7.15 > " नारद - युधिष्ठिर वार्ता : नारद कह रहे हैं ," वैदिक कर्म दो प्रकार के होते हैं - प्रवित्ति परक और निबृत्ति परक ।"
2- भागवत :11.21>" कृष्ण - उद्धव वार्ता : कृष्ण कहरहे हैं ,":वेदों में तीन कांड हैं - कर्म , उपासना और ज्ञान । वेदों के तीन काण्ड अपनें - अपनें ढंगसे ब्रह्म -आत्मा के एकत्व के रहस्य को स्पष्ट करते हैं । "
# ऊपर बतायी गयी भागवत की दो बातों को समझाना ही कर्मयोग और ज्ञान योग के रहस्य से पर्दा उठाना है ,तो आइये ! चलते हैं इस रहस्य -यात्रा में दो -चार कदम ।
# प्रबृत्ति और निबृत्ति परक -दो प्रकार के कर्म हैं ; प्रबृत्ति परक भोग से जोड़कर रखता है और निबृत्ति परक कर्म वह कर्म हैं जनके होनें के पीछे भोग - बंधन तत्त्वों का प्रभाव नहीं रहता ।
# भोग - बंधन तत्त्व क्या हैं ?
* प्रकृति की उर्जा तीन गुणों की उर्जा है और तीन गुण हैं - सात्विक ,राजस और तामस। इन तीन गुणों की बृत्तियाँ भोग उर्जका निर्मान करती हैं । गुण तत्त्वों के सम्मोहन में जो कर्म होता है उसेभोग कर्म या प्रबृत्ति परक कर्म कहते हैं और जिन कर्मों के होनें में गुणों की ऊर्जा नहीं होती ,उन कर्मों को निबृत्ति परक कर्म कहते हैं । निबृत्ति अर्थात प्रभु केन्द्रित गुणातीत और प्रबृत्ति परक अर्थात पूर्ण तूप से भोग केन्द्रित ।
* भोग में भोग - तत्त्वों के प्रति होश बनाना , कर्म योग -साधना है । भोग कर्म जब बिना आसक्ति होते हैं तब उस कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मीलती है । नैष्कर्म्य की स्थिति ज्ञान - योगका द्वार है ।
* भोग में आसक्ति ,कामना ,क्रोध , लोभ , मोह ,भय आलस्य और अहंकार को समझना ही कर्म योग की साधना है । भोग कर्म जब योग बन जाता है तब ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
* क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है ।
* ज्ञान विज्ञान में पहुँचाता है ।
* जिस सोच से सबको प्रभु के फैलाव रूप में समझा जाता है, उसे विज्ञान कहते हैं ।
~~ ॐ ~~
Friday, October 31, 2014
भागवत से - 26
Monday, October 27, 2014
भागवत से - 25 [ श्रुतियाँ कहती हैं ... ]
Tuesday, October 14, 2014
भागवतसे - 24 : माया क्या है ?
Sunday, October 12, 2014
परीक्षित के प्रश्न भाग - 1
Sunday, October 5, 2014
भागवत से -23
Tuesday, September 23, 2014
भागवत से - 22
<> भागवतकी बायो टेक्नोलोजी <>
# स्वयाम्भुव मनु से स्त्री - पुरुष संयोग से सृष्टि रचना प्राम्भ हुयी , इनसे पहले स्त्री - पुरुष योग के बिना संतान उत्पन्न होती थी।
# भागवत सन्दर्भ :4.13+9.6+9.13 #
# पहले स्वयंभुव मनुके छठवें बंशज बेन थे। बेनकी जब मृत्यु हुयी तब कोई सम्राट न था जो राज्य को चलाता । ब्राह्मण ( ऋषि ) लोग बेन की दाहिनी भुजका मंथन किया और फल स्वरुप पृथुका जन्म हुआ ।
# पृथु स्वायम्भुव मनुके सातवें बंशजका जन्म एक नर के देह से संभव हुआ ।
<> इक्ष्वाकु के 100 पुत्रों में दुसरे पुत्र थे राजा
निमि । निमिको ऋषि बसिष्ठके कारण देह त्यागना पडा था । निमिको ब्राह्मण लोग ( ऋषि समुदाय ) पुनः ज़िंदा करना चाहा लेकिन राजा निमि निबृत्ति परायण योगी थे जिनको देह से कोई लगाव न था ,वे पुनः देह में वापिस लौटनें से इनकार कर दिये ।
<> फिर राजा निमिके देह का मंथन किया गया और जो नर पैदा हुआ उसका नाम पड़ा मिथिल ,बिदेह और जनक । सीताजीके पिता जनक परम्पराके 21वें जनक थे । भागवत में जनक परम्पराके 51 बिदेहोंका वर्णन मिलता है ।
** आज बायो टेक्नोलोजी में जो हो रहा है , उसका तरीका हो सकता है अलग हो लेकिन ऐसा काम किसी न किसी रूप में पहले भी होता रहा है ।
~~ ॐ ~~
Wednesday, September 3, 2014
भागवत से - 21
Thursday, August 28, 2014
भागवत से - 20
Monday, July 21, 2014
भागवत से - 19
* भागवत : स्कन्ध - 12
* भागवत में कलियुग की दी गयी झलकका एक अंश आप यहाँ देखें :---
* गृहस्थ और गधे में कोई फर्क न होगा ।
* अन्न के पौधे बावनें आकारके होंगे ।
* राजा लुटेरे होंगे ।
* सर्वत्र लुटेरों का आलम होगा ।
* धनवान कुलीन - सदाचारी माने जायेंगे और वे न्याय ब्यवस्थाको अपनें अनुकूल ढाल लेंगे।
* बोल -चाल में चतुर लोगों को ग्यानी समझा
जाएगा ।
* कहीं अति बृष्टि होगी तो कहीं एक बूँद भी नहीं पड़ेगी।
* बहुत तेज गर्मी पड़ेगी ,बहुत तेज जाड़ा पड़ेगी ।
~ ॐ ~
Tuesday, July 15, 2014
भागवत से - 18
Tuesday, July 8, 2014
भागवत की कौशिकी नदी
● भागवत की कौशिकी नदी ●
<> कौशिकी नदी <>
^ यहाँ भागवके उन प्रसंगोंको दिया जा रहा है जिनका सीधा सम्बन्ध कौशिकी नदी से है । आप इनको देखें और स्वतः कौशिकी ऐतिहासिक नदी के सम्वन्ध में सोचें ।
^ सन्दर्भ : 9.14+9.15 , 1.18.24-37, 10.78-10 .79 ,
1- भागवत : 9.14+9.15
● कुरुक्षेत्रमें सरस्वतीके तट पर राजा पुरुरवा और उर्बशी का मिलन हुआ । पुरुरवा -उर्बशी को 06 पुत्र हुए जिनमें 5वें पुत्र विजय के बंश में 7वें बंशज गाधि के पुत्र हुए विश्वामित्र और कन्या हुयी सत्यवती ।सत्यवती यमदाग्नि की माँ थी और यमदाग्नि के पुत्र थे परसुराम ।बाद में सत्यवती परम पवित्र कौशिकी नदी बन गयी थी।
2- भागवत :1.18.24-37
●राजा परीक्षित शिकार खेलते हुए बहुत दूर निकल गए और जब वे भूख - प्यास से ब्याकुल होनें लगे तब पासमें स्थित एक आश्रम में प्रवेश कर गए जहाँ समीक मुनि समाधि में उतर चुके थे । वे मुर्तिवर वहाँ थे , आश्रम में सम्राटके स्वागत के लिए कोई न था । परीक्षित आवाजें लगाते रहे लेकिन वहाँ कौन था जो उनका अभिबादन करता ? सम्राटको क्रोध आया और वे बिना सत्य को समझे समीक मुनिके गले में एक मृत सर्प को लटका कर आश्रम से बाहर चले गए । ● कुछ दूरी पर समीक मुनि का पुत्र श्रृंगी कौशकी नदी के तट पर ही थे , जब उनको अपनें पिताके अपमानके सम्बन्ध में पता चला तब वे कौशिकी नदीमें आचमन करके सम्राट परीक्षितको श्राप दिया - " सम्राट ! तूँ जा लेकिन ठीक आज से सात दिन बाद तेरी मौत तक्षकके डंक मारनेंसे होगी ।
● ब्राह्मणके श्रापका पता परीक्षितको मिला और परीक्षित गंगा तट पर अपनें मौतकी तैयारीमें जुट
गए ।
3- भागवत :10.78+10.79
● महाभारतके समय बलरामकी तीर्थ - यात्रा ●
# बलराम युद्धके पक्षमें न थे और जब उनको यकीन हो गया कि अब युद्ध को टाला नहीं जा सकता तब वे तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े । प्रभास क्षेत्र से वे उस दिशा में चल पड़े जिधर से सरस्वती आ रही थी । सरस्वती के किनारे - किनारे वे पृथुदक, विन्दुसर, मितकूप, सुदर्शन तीर्थ,विशाल तीर्थ ,ब्रह्म तीर्थ , चक्र तीर्थ , और पूर्ववाहिनी तीर्थों की यात्रा की । इसके बाद यमुना के तट पर स्थिर तीर्थो पर गए और फिर गंगा तट के तीर्थो में पहुँच कर पूजा किया । गंगा तट से वे नैमिष आरण्य गए जहां ऋषियों का सत्संग चल रहा था । नैमिष आरण्य से कौशिकी नदी के तट पर आये और स्नान करके उस सरोवर पर गए जहां से सरयू नदी चलती हैं । सरयू नदी के तट से कुछ यात्रा की फिर तट को छोड़ कर प्रयाग गए ।
~~ यहाँ आप देखें ~~
● सरयू नदी बहराइच नें करनाली नदी एवं महा काली ( शारदा ) नदियों के संगम से प्रारम्भ होती है । करनाली नदी मानसरोवर क्षेत्र से और महाकाली पिथौरागढ़ के कालापानी क्षेत्र से आती है ।
● कुछ लोग मध्य प्रदेश में भिंड क्षेत्र में कौशकी नदी के होनें की बात करते हैं लेकिन भागवत के ऊपर दिए गए सन्दर्भों से…
● यह नदी गोमती और गंगा के मध्य होनी चाहिए ।
--- ॐ ---
Saturday, July 5, 2014
भागवत की तीन नदियाँ
Sunday, June 29, 2014
भागवत से - 17
Wednesday, June 25, 2014
भागवत से - 16
Tuesday, June 24, 2014
भागवतसे - 15
Friday, June 20, 2014
भागवत से - 14
● कनखल और हरिद्वार ( भाग - 1 ) ●
# भागवत : खंड - 1 महात्म्य : अध्याय -3 #
<> गंगाद्वारके समीप आनंद आश्रम पर सनकादि ऋषियोंद्वारा नारदको भागवत कथा सुनाई गयी थी । नारद भक्ति एवं भक्ति पुत्रों ज्ञान - वैराग्यके उद्धार हेतु इस कथाका आयोजन किया था । जरा सोचना कि यह स्थान कहाँ रहा होगा ?
* आनंद आश्रमके चारो तरफ हांथी ,शेर जैसे जानवर भी प्यार से रहा करते थे।यहाँ गंगा की रेत अति कोमल होती थी और यहाँ हर समय कमल की गंध रहती थी। इस आश्रम पर सिद्ध ऋषियों का आवागमन लगा रहता था ।
* भागवत : 3.5 > मैत्रेय ऋषिके आश्रमके सम्बन्ध में यहाँ द्वार शब्द आया है ।विदुर जी को जब प्रभात क्षेत्र पहुँचने पर पता चला कि अब महा भारत युद्ध समाप्त हो गया है ,हस्तीनापुर के सम्राट युधिष्ठिर हैं तब वे वहाँ से सरस्वती तटसे वापिस होते हुए बृंदा बन पहुंचे जहाँ उनकी मुलाकात उद्धव से हुयी थी । उद्धव उनको तत्त्व ज्ञान प्राप्त करनें हेतु द्वार समीप मैत्रेयके आश्रम जानें की बात कही थी । गंगा द्वार के समीप वह कौन सी पवित्र जगह हो सकती है जहाँ मैत्रेय ऋषि का आनंद आश्रम हुआ करता था ?
* भगवत : 3.20 : मैत्रेयका आश्रम कुशावर्त क्षेत्र में था ।यहाँ मैत्रेय आश्रम को कुशावर्त क्षेत्रमें बताया गया है जो द्वार के पास में था ।
* भागवत : 11.1+11.30 जब यदुकुलके अंत जा समय आया ,उस समय प्रभु अकेले सरस्वती नदी के तट पर पीपल पेड़के नीचे शांत हो कर बैठे थे । प्रभात क्षेत्र का यह वह स्थान था जहाँसे पश्चिम दिशामें सरस्वती सागर में गिरती थी । उस समय वहाँ उद्धव और मैत्रेय ऋषि उनके साथ थे । इन दोनो को प्रभु तत्त्व ज्ञान दे रहे थे । प्रभु जब तत्त्व ज्ञान दे चुके तब मैत्रेयको बोले कि आप इस ज्ञान को विदुर जी को देना और उद्धव जी से बोले कि अब तुम बदरिकाश्रम जा कर वहाँ समाधि योग में स्थित हो जाओ ,वह भी मेरा ही क्षेत्र है ।
~~ ॐ ~~
Tuesday, June 17, 2014
शुक्रताल का रहस्य
Saturday, June 7, 2014
भागवत से - 13
Tuesday, June 3, 2014
भागवत से - 12
Thursday, May 29, 2014
भागवत से - 11
Sunday, May 18, 2014
भागवत से - 10
1- भागवत : 11.3 > दुःख निबृत्ति और अहंकार की तृप्ति केलिए हम कर्म करते हैं पर होता क्या है ? दुःख और। बढ़ता जाता है और अहंकार और सघन होता जाता है ।
2- भागवत : 11.21 > वेद कर्म ,उपासना और ज्ञान माध्यम से ब्रह्म -आत्मा की एकता की अनुभूति कराते हैं ।
3- भागवत : 11.21.> कामना दुःख का बीज है । 4- भागवत :11.21 > निर्वाण के तीन मार्ग हैं -कर्म योग , भक्ति योग और ज्ञान योग ।
5- भागवत : 11.21 > वेदों में तीन काण्ड हैं जो अपनें - अपनें ढंग से ब्रह्म -आत्मा की एकता को स्पष्ट करते हैं ,ये काण्ड हैं - कर्म , उपासना और ज्ञान।
6- भागवत : 11.25 > गुण का प्रभाव स्वभावका निर्माण करता है ,स्वभावतः लोग अलग -अलग प्रकार के होते हैं ।
7- भागवत : 11.25 > मनुष्य शरीर दुर्लभ है जिससे तत्त्व ज्ञान एवं विज्ञान की प्राप्ति संभव है । 8- भागवत : 11.25 > इन्द्रियों की दौड़ से परे मन यात्रा नहीं करता ।
9- भागवत : 11.28 > परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप में जो है वह आत्मा ही है ।
10- भागवत : 3.26 > प्रकृति के कार्य : 10 इन्द्रियाँ , 5 भूत , 5 तन्मात्र , मन ,बुद्धि ,अहंकार और चित्त ।
~~~ ॐ ~~~
Saturday, May 17, 2014
भागवत से - 09
1- भागवत : 7.1 > प्रभुसे बैर -भाव रखनें वाला प्रभु से जितना तन्मय हो जाता है उतनी तन्मयता भक्ति से प्राप्त करना अति कठिन है ।
2- भागवत : 1.2 > जीवन का सार है तत्त्व - जिज्ञासा ।
3 - भागवत : 7.11 > मन बिषयों का संग्रहालय है ,बिषयों का उचित ढंग से प्रयोग करनें से वैराग्य मिलता है ।
4- भागवत : 6.1 > वेद आधारित कर्म धर्म है ।
5- भागवत : 7.15 > वैदिक कर्म दो प्रकार के हैं - निबृत्ति परक और प्रबृत्ति परक ; पहला वैरागी बनाता है और दूसरा भोग में आसक्त रखता है ।
6- गीता 18.48- 18.50 + 3.5+ 3.19-3.20 4 23, + 4.18 > कर्मकरनें से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है ,बिना कर्म यह संभव नहीं । सभी कर्म दोष युक्त हैं पर सहज कर्म तो करना ही चाहिए । आसक्ति रहित कर्म नैष्कर्म्य की सिद्धि में पहुँचाता है । नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान योग की परानिष्ठा है ।
7- भागवत : 8.5 > माया मोहित अपनें मूल स्वभाव से दूर रहता है ।
8- गीता :7.15 > माया मोहित असुर होता है ।
9- माया को भागवतके निम्न सूत्रों नें देखें :--- 9.1- भागवत : 1.7 > माया मोहित प्रभु को भी गुण अधीन समझता है ।
9.2 - भागवत : 2.9 > माया बिना आत्मा का दृश्य पदार्थों से सम्बन्ध संभव नहीं ।
9.3- भागवत : 3.5 > दृश्य - द्रष्टाका अनुसंधान करता माया है ।
9.4 - गीता :14.5 > तीन गुण ( माया ) आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं ।
9 .5 - भागवत : 11.3 > भक्त माया का द्रष्टा होता है ।
9.6- भागवत : 6.5 > माया वह दरिया है जो सृष्टि -प्रलय के मध्य दोनों तरफ बहती है ।
9.7- भागवत : 11.3 > सभीं ब्यक्त का अब्यक्त में जाना और अब्यक्त से ब्यक्त होना माया आधारित है । 9.8- भागवत : 11.3 > तत्त्वों की प्रलय में वायु पृथ्वी के गुण गंध को खीच लेता है और गंध हीन पृथ्वी जल में बदल जाती है । जल से उसका गुण रस को वायु लेलेता है और जल अग्नि में बदल जाता है - यह सब माया से संभव है ।
9.9 - भागवत : 9.24 > जीव के जन्म ,जीवन और मृत्यु का कारण प्रभु के मायाका बिलास है ।
10 - भागवत : 9.9 > गंगा पृथ्वी पर उतरनेसे पूर्व बोली , " मैं पृथ्वी पर नहीं उतर सकती क्योंकि लोग अपनें पाप मुझ में धोयेंगे और मैं उन पापों से कैसे निर्मल रह पाउंगी ? भगीरथ बोले ," आप चिंता न
करें ,आपके तट पर ऐसे सिद्ध योगी बसेंगे जिनके स्पर्श मात्र से आप निर्मल हो उठेंगी " ।
11- भागवत : 10.16 > 5 महाभूत , 5 तन्मात्र ,इन्द्रियाँ ,प्राण , मन ,बुद्धि इन सबका केंद्र है चित्त । 12- भगवत : 10.87 > श्रुतियाँ सगुण का ही निरूपण करती हैं और उनके द्वारा ब्यक्त भाव की गहरी सोच निर्गुण में पहुंचाती है ।
13- भागवत : 11.13 > आसन - प्राण वायु पर साधक का नियंत्रण होता है ।
14- भागवत : 11.7 > कल्पके प्रारम्भ में पहले सतयुग में एक वर्ण था -हंस ।
15- भागवत : 11.13 > बिषय बिपत्तियों के घर हैं।
~~ ॐ ~~