Saturday, April 24, 2021

समाधि क्या है ? भाग - 1

 समाधि - भाव का जागृत होना 

महर्षि पतंजलि के अष्टांगयोग का आखिरी अंग समाधि है। समाधि पतंजलि की दृष्टि में एक नहीं कई प्रकार की होती है जिनका विवरण पतंजलि योगसूत्र के आधार पर आगे के अंकों में आप देख सकेंगे ।

नीचे दी गयी स्लाइड में देखिये , महर्षि कह रहे हैं कि 

समाधि भाव जब जागृत होता है तब चित्त तनु अवस्था में आ जाता है । तनु अवस्था क्या है ?

#अब आगे देखिये स्लाइड को ⬇️



Thursday, April 22, 2021

महर्षि पतंजलि विभूति पाद सूत्र - 2 ध्यान क्या है

 महर्षि पतंजलि ध्यान ( Meditation ) को परिभाषित कर रहे हैं ⤵️

महर्षि कह रहे हैं ⤵️

किसी सात्त्विक आलंबना ( स्थूल या सूक्ष्म ) से पूर्ण रूप से चित्त को बाधना , ध्यान है । 

यहाँ बाधना शब्द यह बता रहा है कि साधक का ध्यान में उतरना , उसके प्रयाश का फल है । ध्यान  अष्टांग योग की समाधि का द्वार है ।

महर्षि पतंजलि मुख्य रूप से तीन प्रकार की समाधियाँ बताते हैं । इस बिषय को देखें अगके अंक में ।। ॐ ।।

Sunday, April 18, 2021

पतंजलि योग सूत्र में धारणा क्या है ?

 

⬆️ श्रद्धा , समर्पण और सात्त्विक गहरी इच्छा शक्ति का प्रवल होना , योग साधना में धारणा को स्थिर और मजबूत बनाते हैं।

➡️ स्थूल या सूक्ष्म किसी भी सात्त्विक आलंबन पर चित्त को रोकने का अभ्यास , धारणा अभ्यास है । जब धारणा सिद्ध होती है अर्थात जब चित्त में आलंबन के अतिरिक्त और कुछ नहीं आता - जाता तब योग की उच्च भूमियों की यात्रा प्रारंभ होती है ।। ॐ ।।

Wednesday, April 14, 2021

साधना की तीसरी भूमि प्राणायाम क्रमशः

 




◆साधना की तीसरी भूमि प्राणायाम - 1

 

साधना की तीसरी भूमि प्राणायाम का पहला भाग ऊपर स्लाइड में दिया जा रहा हैं। अगले भागों में पूरक , रेचक , कुम्भक प्राणायामों के सम्बन्ध में जो कुछ भी  कहा जायेगा वह महर्षि पतंजलि के 195 योग सूत्रों के आधार पर होगा ।

ऊपर दी गयी स्लाइड में श्वास नियंत्रण बोध के संबंध में जो बातें दी गयी हैं , उन्हें ठीक - ठीक समझना आवश्यक हैं क्योंकि आगे के अंकों में कही जाने वाली बातों का सीधा संबंध इन बातों से होगा।। ॐ ।।


Wednesday, April 7, 2021

कान्हा भक्ति

 भक्ति वैराग्य का फल है । सुनने में तो यह बात विरोधाभाषी लगती है लेकिन है सत्य ।

भक्ति दो के मध्य प्रारम्भ होती है , जिसमें एक भक्त छीत है और दूसरा उसका आलंबना स्वरुप कोई स्थूल या सूक्ष्म होता है ।

भक्त में जैसे - जैसे भक्ति की ऊर्जा भरने लगती है , वह अपनें भक्ति -आलंबना में घुलता चला जाता है और अंततः वह घुलकर स्वयं आलंबना बन जाता है , अपने लिए नहीं , भक्त की अगली पीढ़ियों के लिए ।