Thursday, June 23, 2011

गीता के दो सौ ध्यान सूत्र

अगले कुछ सूत्र

सूत्र – 9.10

प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं … ..

मुझसे प्रकृति है , प्रकृति से जड़ – चेतन हैं और जस – चेतन से यह जग है //

सूत्र –18.40

तीन गुणों से मुक्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई सूचना नहीं //

सूत्र –13.20

प्रकृति - पुरुष अनादि हैं ; विकार प्रकृति जन्य हैं //

सूत्र –13.24

प्रकृति - पुरुष का बोधी मुक्ति पाता है //

सूत्र –13.3

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है //

और

क्षेत्र प्रकृति से है एवं पुरुष क्षेत्रज्ञ है //


प्रकृति-पुरुष

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ

गुण – विकार

को समझनें के लिए देखें-----

गीता अध्याय –13एवं अध्याय –14


=====ओम=======



Thursday, June 16, 2011

गीता के दो सौ ध्यान सूत्र

अगले कुछ सूत्र

सूत्र –15.17

क्षर – अक्षर से परे मैं हूँ . प्रभु कह रहे हैं //

सूत्र –14.19

तीन गुणों से अछूता ब्यक्ति मुझे समझता है //

सूत्र – 14.5

तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं //

सूत्र –14.10

तीन गुणों का अमिकरण मनुष्य का संचालक है ; जब एक गुण शक्तिशाली होता है तब अन्य दो

कमजोर हो जाते हैं //

सूत्र –3.5 , 3.27 , 3.33

तीन गुण कर्म कर्ता हैं कर्ता भाव अहंकार से आता है , गुणों से स्वभाव बनाता है और

स्वभाव से कर्म होता है //

गीता के कुछ सूत्र आप को दिए जा रहे हैं जो आप को रह रह कर याद दिलाते रहेंगे ,

यह जाननें के लिए कि आप की यात्रा का रुख किधर का होना चाहिए और

वर्त्तमान में किधर को है //


==== ओम ======


Saturday, June 11, 2011


गीताके 200 सूत्र


यहाँ इस श्रृखला मे देखिये निम्न सूत्रों को------


7.4 , 7.5 , 7.6 , 13.6 , 13.7 , 14.3 , 14.4 , 14.27 , 13.20 , 15.16


सूत्र 7.4 – 7.6तक


सूत्र कहते हैं ….


अपरा प्रकृत्ति के आठ तत्त्व;पञ्च महाभूत[प्रथ्वी,जल,अग्नि,वायु एवं आकाश] ,मन,


बुद्धि एवं अहंकार तथा परा प्रकृति[चेतना]ब्रह्म,आत्मा एवं प्रभु से जीव हैं/


सूत्र 13.6 , 13.7


यहाँ सूत्र कहते हैं …...


अपरा एवं परा प्रकृति,ब्रह्म,आत्मा-परमात्मा के साथ दस इन्द्रियाँ,पांच इन्द्रिय बिषय,


सभीं द्वैत्य,सभीं विकारों के साथ जीव शरीर के साथ हैं/


गीता सूत्र 14.3 – 14.4 , 14.27


ये सूत्र कहते हैं …..


ब्रह्म जो अब्यय है,शाश्वत है प्रभु के अधीन है वह जीव का बीज धारण करता है और


बीज स्वयं प्रभु हैं/


सूत्र 13 .20


प्रकृति-पुरुष का योग ही जीव है;दोनों सनातन शाश्वत हैं अनादि हैं,सभीं विकार प्रकृति से हैं/


सूत्र 15.16


क्षर एवं अक्षर दो प्रकार के पुरुष हैं;देह क्षर है और देह में आत्मा अक्षर है//


गीता के दस सूत्रों को आप गीता में देखें और …..


इन सूत्रों पर अपना मन एवं बुद्धि को केंद्रित करें//


धीरे-धीरे गीता के सूत्र आप के मन मे बसनें लगेंगे और आप


एक भोगी से योगी के रूप मे रूपांतरित होनें लगेंगे//




====ओम=====




Sunday, June 5, 2011

गीता के200 साधना सूत्र

अगले कुछ सूत्र

माया, प्रकृति- पुरुष

गीता सूत्र- 18.40

प्रभु के अलावा और कोई ऎसी सूचना कहीं भी नहीं जो गुणों से अछूती रहे//

गीत सूत्र - 7.14

माया से माया मे ब्रह्माण्ड है , माया तीन गुणों का माध्यम है और प्रभु निर्मित है //

गीता सूत्र- 7.12

तीन गुण प्रभु से हैं लेकिन प्रभु गुणातीत है//

गीता सूत्र - 7.13

गुनाधीं गुणातीत को नहीं समझता //

गीता सूत्र –7.15

माया का गुलाम असुर होता है//

गीता सूत्र – 14.26

गुणातीत योगी ब्रह्म स्तर का होता है //

गीता के इन सूत्रों को अपना कर …...

मैं कौन हूँ के रहस्य को समझो//


====ओम======


Friday, June 3, 2011

गीता के200ध्यान सूत्र

अगले कुछ सूत्र

गीता सूत्र- 3.28

प्रभू कहते हैं … ....

गुण-विभाग एवं कर्म-विभाग का बोध ही तत्त्व वित् बनाता है/


He who knows the true character of natural modes and action as the result of their inter actions , he

understands the ultimate reality


गीत सूत्र- 18.15

देह,मन एवं वाणी कर्म – माध्यम हैं//

Body , mind and voice these three are the modes of actions .


गीता सूत्र- 14.19

गुणों को कर्म कर्ता रूप में देखनें वाला प्रभु मय होता है //


He who sees modes as the doer of actions , he is filled with the divine – energy .


गीता सूत्र –2.69


या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी /

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने : //

What is night for all beings is the time of waking for the Yogins ;

and what is the of waking for all beings is night for the sages .

भोगी के लिए भोग परम है और योगी के लिए प्रभु की किरण का इन्तजार ही परम् है//


==== ओम ====