गरुण पुराण अध्याय नौ का अब आखिरी भाग देखते हैं जो कुछ इस प्रकार से है------
मृत्यु के समय हिंदू परम्परा में गंगा जल पिलाया जाता है और गंगा जल पीनें से एक हजार चंद्रायन व्रत का फल मिलता है/जब प्राण निकल रहा हो तब उस ब्यक्ति के कंठ में एक बूँद उतरा गंगा जल परम गति दिलाता है/
वह ब्यक्ति जो अपनी आखिरी श्वास भर रहा हो यदि उस घडी गंगा में नौका विहार करनें के भाव से भावित हो तो वह सीधे आवागमन से मुक्त हो कर परम धाम में पहुँचता है /
पहले यह बताया गया है कि शालिग्राम की श्रद्धा से पूजन करनें से परम धाम मिलता है और शालिग्राम के पूजन में उनके स्नान वाले जल को पीनें से मनुष्य का अन्तः करण तीन गुणों की ऊर्जा से मुक्त होता है और वह ब्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है
वेदों का निरंतर पाठ करना , उपनिषदों में अपनें को बसानें का अभ्यास करना और शिव – विष्णु की भक्ति में स्वयं को रमाये रहनें का अभ्यास मनुष्य को भोग से योग में पहुंचा कर सीधे तत्त्व – वित्तु बनाता है एवं तत्त्व – वित्तु परम धाम का यात्री होता है /
आगे गरुण पुराण कहता है …....
इस देह के पांच तत्त्व अपनें-अपनें मूल तत्त्वों में मिल जाते हैं और इन्द्रियाँ एवं मन आत्मा के साथ नया देह खोजते हैं/वह ब्यक्ति जो अतृप्त मन स्थिति में मौत से लड़ाई करते हुए आखिरी श्वास भरता है उसका मन उसकी आत्मा को ऐसे देह खोजनें को विवश करता है जीसको प्राप्त करके वह मन तृप्त हो सके/इस सन्दर्भ में आप गीता श्लोक –8.6 , 15.7एवं15.8को एक साथ देख सकते हैं/
==== ओम्========