Tuesday, May 29, 2012

गरुण पुराण अध्याय नौ का आखिरी भाग

गरुण पुराण अध्याय नौ का अब आखिरी भाग देखते हैं जो कुछ इस प्रकार से है------

मृत्यु के समय हिंदू परम्परा में गंगा जल पिलाया जाता है और गंगा जल पीनें से एक हजार चंद्रायन व्रत का फल मिलता है/जब प्राण निकल रहा हो तब उस ब्यक्ति के कंठ में एक बूँद उतरा गंगा जल परम गति दिलाता है/

वह ब्यक्ति जो अपनी आखिरी श्वास भर रहा हो यदि उस घडी गंगा में नौका विहार करनें के भाव से भावित हो तो वह सीधे आवागमन से मुक्त हो कर परम धाम में पहुँचता है /

पहले यह बताया गया है कि शालिग्राम की श्रद्धा से पूजन करनें से परम धाम मिलता है और शालिग्राम के पूजन में उनके स्नान वाले जल को पीनें से मनुष्य का अन्तः करण तीन गुणों की ऊर्जा से मुक्त होता है और वह ब्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है

वेदों का निरंतर पाठ करना , उपनिषदों में अपनें को बसानें का अभ्यास करना और शिव – विष्णु की भक्ति में स्वयं को रमाये रहनें का अभ्यास मनुष्य को भोग से योग में पहुंचा कर सीधे तत्त्व – वित्तु बनाता है एवं तत्त्व – वित्तु परम धाम का यात्री होता है /

आगे गरुण पुराण कहता है …....

इस देह के पांच तत्त्व अपनें-अपनें मूल तत्त्वों में मिल जाते हैं और इन्द्रियाँ एवं मन आत्मा के साथ नया देह खोजते हैं/वह ब्यक्ति जो अतृप्त मन स्थिति में मौत से लड़ाई करते हुए आखिरी श्वास भरता है उसका मन उसकी आत्मा को ऐसे देह खोजनें को विवश करता है जीसको प्राप्त करके वह मन तृप्त हो सके/इस सन्दर्भ में आप गीता श्लोक –8.6 , 15.7एवं15.8को एक साथ देख सकते हैं/

==== ओम्========


Friday, May 25, 2012

गरुण पुराण अध्याय नौ भाग दो

पिछले अंक में गरुण पुराण की कुछ अहम् बातों को रखा गया था और अब इन बातों को

भी देखें----

  • जिस जगह शालिग्राम की विधिवत स्थापना की गयी हो जिसको प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं उस स्थान कर जिस ब्यक्ति के देह का अंत होता है उसकी आत्मा को यम पूरी नहीं जाना होता,वह सीधे अपनें मूल श्रोत परमात्मा में जा मिलती है/

  • जो ब्यक्ति पूर्ण होश में अपनें मृत्यु का साक्षी बन कर अपने अंत समय में गंगा - जल एवं तुलसी की पत्ती को अपनें मुख में रखता है वह यम पूरी नहीं जाता सीधे परम गति प्राप्त करता है /

  • काला तिल प्रभु के पसीनें से उपजी समझी जाती है अतः काली तिल के बीजों को बिखेर कर उस पर लेट कर प्रभु की स्मृति में जो अपना प्राण त्यागता है उसे सीधे परम गति मिलती है /

  • एक और बात पिछले अंक में कही गयी थी कि कुशा की चटाई बिछा कर उस पर लेट कर प्राण त्यागने वाला आवागमन से मुक्त हो जाता है , क्या है ऎसी बात कुशा की चटाई में ? कुश एक प्रकार की घास होती है जिसकी पत्ती का अगला भाग सूई की भाति नुकीला होता है / गरुण पुराण कहता है - कुशा की जड़ में ब्रह्मा , मध्य में विष्णु भगवान एवं अग्र भाग में शिवजी रहते हैं अतः यह कभीं भी अपवित्र नहीं होता / गाय के गोबर से लिपी हुयी जगह पर ब्रह्मा , विष्णु , शिव अग्नि , एवं अन्य सभीं देवताओं का बॉस होता है अतः हिंदू परम्परा में ऐसे सभीं स्थान को गोबर से पोतते हैं जहाँ कोई धार्मिक अनुष्ठान करना होता है /

अगले अंक में कुछ और बातों को देखना

आज यहीं तक

====ओम्=====



Tuesday, May 22, 2012

गरुण पुराण अध्याय नौ भाग एक

श्री गरुण जी का नवां प्रश्न …....

हे प्रभु!आप कृपा करके हमें यह बताएं कि मनुष्य को प्राण – त्याग के समय क्या करना चाहिए जिससे उसे सद्गति मिल सके?

प्रभु गरुंजी के इस प्रश्न के सन्दर्भ में जो कहे हैं उन बातों को देखनें से पहले आप निम्न सन्दर्भों को भी देखें -------

[]देखें गीत श्लोक –5.13 , 5.26 , 5.27 , 6.27 , 6.28 , 8.6 , 8.12 , 8.13 , 15.8

[]जैन परम्परा में संथारा ध्यान

[]तिब्बत में बारडो[ Bardo meditation ]

पहले बताया जा चुका है कि ऐसे ब्यक्ति जिनके जीवन का केन्द्र प्रभु रहा होता है उनको शरीर त्याग के समय का आभास हो जाता है और वे अपना आखिरी समय मात्र इस साधना में गुजारते हैं जिससे उनको परम गति प्राप्त हो और वे आवागमन से मुक्त हो कर प्रभु में बिलीन हो सकें / प्रभु श्री गरुण जी के प्रश्न के सन्दर्भ में कह रहे हैं ---------

  • तुलसी के पौधे के पास गाय के गोबर से पुताई करके स्थान तैयार करें यह सोच कर कि उनको आखिरी श्वास यहीं भरना है और वह भी उस श्वास का द्रष्टा बन कर/

  • उस स्थान पर कपडे का छत बनानी चाहिए/

  • कूशे की चटाई पिछानी चाहिए/

  • पास में सोनें का कोई टुकड़ा,गीता एवं गंगा जल होना चाहिए/

  • कुशा की चटाई बिछा कर उसके ऊपर तिल के बीज को बिखेर देना चाहिए/

  • शालिग्राम की स्थापाना उस जगह पर करें/

प्राण निकलनें के मार्ग हैं - मुख , नेत्र , नासिका , कान [ पवित्र ब्यक्ति के प्राण यहाँ से निकलते हैं ]

योगी ; ऐसा योगी जो तत्त्ववित् होता है उसका प्राण सहस्त्रार अर्थात सिर का वह भाग जहाँ हिंदू लोग शिखा रखते हैं , वहाँ से निकलता है और वे अपनें प्राण के निकलनें का द्रष्टा बनें रहते हैं /

भोगी ब्यक्ति जिनका सारा जीवन मात्र काम वासना एवं नाना प्रकार के भोगों के लिए गुजरा होता है उसका प्राण मल – मूत्र द्वारों से निकालता है और ऐसे लोग मृत्यु से संघर्ष करते हैं/

अगले अंक में कुछ और बातें देखनें को मिलेंगी //

===ओम्=====


Monday, May 14, 2012

गरुण पुराण अध्याय आठ भाग चार

गौ दान

गरुण पुराण अध्याय आठ भाग चार में हम गो - दान के सम्बन्ध में देख रहे हैं / श्री गरुण जी को प्रभु बता रहे हैं की पुत्र द्वारा पिता के उद्धार के लिए उसके क्रिया - कर्म में गौ का दान करना अति महत्व रखता है / गौ दान के सम्बन्ध में निम्न बातों को ध्यान मन रखना चाहिए … .....

गौ दान वेदपाठी ब्राह्मण को दिया जना चाहिए

गौ गाय का रंग लाल या कली होनी चाहिए

गाय दूध देनें वाली हो और उसका बछड़ा होना चाहिए

गाय की सींगों को सोनें से ढकी होनी चाहिए

गाय का खुर चांदी से ढका होना चाहिए

कांसे की दोहनी होनी चाहिए

दो काले कपड़ों से गाय को ढक कर रखें और फिर --------

कपास पर ताम्बे का कलश रखें , कलश के ऊपर लोहें की दंड रखें और सोनें की एक यम की प्रतिमा को भी रखें / एक कासं का कटोरा ले , उसे घी से भरें और वहाँ रखें / ईंख एवं रेशमी धागों से एक नावबनाएँ / मिटटी खोद कर एक नाली बनाएँ जिसे वैतरणी नदी के रूप में देखें और नाली में पानी भरें / नाली में नाव को रखें और नाव पर गाय को खडा करें , गाय की पूंछ दान कर्ता के हाँथ में होनी चाहिए और संकल्प एवं वैदिक विधि से दान करना चाहिए /

आगे गरुण पुरान का नौवां अध्याय देखा जाएगा//

=====ओम्======


Thursday, May 10, 2012

गरुण पुराण अध्याय आठ भाग तीन

जब मनुष्य को यह प्रतीत होनें लगे की अब उसका सांसारिक भौतिक जीवन कुछ समय का रह गया है तब उसे भोग की तरफ पीठ करनें का अभ्यास करना चाहिए / भगवान विष्णु इस अभ्यास – योग के सम्बन्ध में कहते हैं -------

[]शालिग्राम का नियमित पूजन करना चाहिए

[]ओम् नमः शिवाय का जाप करते रहना चाहिए

[]ओम् वासुदेवाय नमः का जप करते रहना चहिये

[]भगवान के10अवतारों को अपनें स्मृति में रखना चाहिए

[]विष्णु शहस्त्र नाम का जप करते रहना चाहिए

[]निम्न प्रकार के दान करते रहना चाहिए ….....

तिल,लोहा,सोना,कपास,नमक,सप्त धान्य,भूमि,गौ

सप्त धान्य में चावल , गेहू , जौ , मूंग , उर्द , चना , कंगुनी अन्न आते हैं / लोहा दानके सम्बन्ध में हमें देखना चाहिए कि भारत में Iron Age कब था ? इतिहास की खोज यह बताती है कि भारत में लौह युग लगभग 1800 BCE प्रारम्भ हो गया था / लौह दान से प्राणी यम लोक नहीं जाता , ऎसी बात गरुण पुराण कहता है / श्री विष्णु भगवान आगे कहते हैं , तीन प्रकार के तिल होते हैं जिनका जन्म मेरे पसीनें से हुआ है और इनके दान से असुर , दानव एवं दैत्य तृप्त होते हैं / सफ़ेद , काले एवं पीले दिलों का दान शरीर , मन एवं वाणी में संचित पाप नष्ट होते हैं / सोना दान से पृथ्वी , पाताल एवं स्वर्ग के देवता प्रसन्न होते हैं और धर्म राज के सभा के सदस्य भी प्रसन्न होते हैं / कपास का दान यमदूतों के भय से मुक्त कराता है , नमक दान से यम का भय दूर होता है , सप्त धान्य के दान से यमपुर के पूर्व , पश्चिम एवं उत्तर के द्वारों के अधिष्ठाता खुश होते हैं / जितनी जगह पर सौ गौ रह सकें उतनी जमीन का दान करनें से ब्रह्म हत्या का पाप दूर होता है / वह जो हरी - भरी जमीन दान करताहै वह सीधे इन्द्रलोक जाता है /

गोदान के सम्बन्ध में आप अगले अंक में देखें


===== ओम्========


Monday, May 7, 2012

गरुण पुराण अध्याय आठ भाग दो

पिछले अंक में गरुण पुराण अध्याय – 08 का सारांश दिया गया था जिसमें यह बताया गया कि सात्त्विक ब्यक्ति को जब यह पता लग जाता है कि अब उसकी उम्र मात्र छः माह और शेष है तब वह क्या - क्या करता है जिससे नरक में उसे न जाना पड़े /

कैसे मालूम पड़ता है की अब उम्र मात्र06 माह की ही शेष है?

इस सम्बन्ध में विष्णु भगवान गरुण जी से कहते हैं--------

मनुष्य को जब प्राण की आवाज न सुनायी दे तब उस ब्यक्ति की शेष उम्र मात्र छः माह की राह जाती है / क्या है प्राण की आवाज ? दोनों कानों को बंद करें और अपने ध्यान को उस आवाज पर केंद्रित करें जो शब्द रहित तो होती हैलेकिन गूज भी रही होती है , यह ध्वनि रहित ध्वनि है प्राण की

आवाज /

कहीं - कहीं यह भी मिलता है कि जब किसी ब्यक्ति को उसके नाशिका का अग्रिम भाग दिखना बंद हो जाता है तब उसकी शेष उम्र मात्र छः माह की राह जाती है और कहीं यह भी कहा गया है कि जब सप्त ऋषि मंडल में अरुंधती तारा न दिखे तब उस ब्यक्ति की शेष उम्र मात्र छः माह की और बचती

है /

गरुण पुराण के इस अध्याय में विष्णु भगवान यह भी बताते हैं कि मनुष्य का जन्म कर्म के लिए होता है , वह कर्म करते हुए जीवन में चलता रहता है और जैसा कर्म करता है उसे अगला वैसा जीवन मिलता है /

अगले अंक में दान के सम्बन्ध में गरुण पुराण अध्याय – 08 क्या कहता है , इस सम्बन्ध में हम देखेंगे /


=====ओम्=======


Friday, May 4, 2012

गरुण पुराण अध्याय आठ का सार

गरुण पुराण अध्याय –08

भाग –01

इस अध्याय का प्रारम्भ श्री गरुण जी के सातवें प्रश्न से हो रहा है जो कुछ इस प्रकार से है -------

हे भगवान ! आप मुझे पवित्र आत्माओं के पारलौकिक कृयाओं को बताएं ?

अर्थात

सात्त्विक गुण धारी ब्यक्ति अपनें आखिरी समय में आवागमन से मुक्ति प्राप्त करनें केलिए

क्या - क्या करता है ?

श्री गरुण जी के इस प्रश्न के सम्बन्ध में प्रभु जो बातें बताते हैं उनका सम्बन्ध निम्न बातों से है /

[]सात्विक ब्यक्ति को कैसे पता चलता है कि अब उसका आखिरी समय आ रहा है?

[]आत्त्विक गुण धारी अपनें आखिरी छः माह की शेष उम्र में मुक्ति प्राप्ति के लिए निम्न कृयाओं को करता है …......

[ ख – १ ] श्री शालिग्राम जी का पूजन

[ ख – २ ] ओम् वासुदेवाय का जप

[ ख – ३ ] ओम् नमः शिवाय का जप

[ ख – ४ ] भगवान के सभीं अवतारों को स्मृति में रखेनें का अभ्यास करना

[ ख – ५ ] विशेष प्रकार के दानों को देना जैसे ------

[ ख – ५. ]

तिल का दान,लोहा-दान,सोना-दान,कपास – दान,नमक – दान,सप्त धान्य – दान,

भूमि-दान और गौ-दान//

अगले अंक में इन सभीं बातों पर चर्चा होगी/

====ओम्======