Tuesday, December 31, 2013

भागवत स्कन्ध - 11.1 कथा सार

● भागवत स्कन्ध - 11-1 ● 
~ इस स्कन्ध में 31 अध्याय हैं और उनमें 1345 श्लोक हैं ।
 * भाग - 01 ( द्वारका का अंत ) *
 ~ सन्दर्भ : स्कन्ध -1.13 से 1.16 तक + 11.6-11.30+11.31~ 
महत्वपूर्ण बातें : मैरेयक -वारुणी मदिरा , प्रभास क्षेत्र जहाँ से पश्चिम में सरस्वती सागर से मिलती थी , शंखोद्धार क्षेत्र , पीपल बृक्ष जहां से प्रभु स्वधामकी यात्रा की , दारुक प्रभु का सारथी , उद्धव ,मैत्रेय , जरा ब्याध , एरका घास जो यदु कुल के अंत का कारण बनी।द्वारकाके अंत समय सात माहसे अर्जुन द्वारका में 
थे । 
** कथा **
 <> जब द्वारका अंत नज़दीक आया तब  निम्न ऋषि लोग वहाँ प्रभु से मिलने पहुंचे थे   और  द्वारकाके पिंडारक क्षेत्रमें रुके हुए 
थे - विश्वामित्र + असित + कण्व + दुर्बासा + भृगु + अंगीरा + कश्यप + वामदेव+ अत्रि + वसिष्ठ और नारद । 
* ब्रह्मा प्रभु को   कह रहे हैं > आप को पृथ्वीका भार उतारनें हेतु आये 125 वर्ष हो चुके हैं ,आप पृथ्वी को पाप मुक्त बना दिये है अब आपको अपनें परम धाम जाना चाहिये । प्रभु कहते हैं ,आप ठीक कह रहे हैं लेकिन अभीं मुझे यदु कुलका अंत भी करना है । 
 * पिन्डारकर क्षेत्र में ऋषियोंके सामनें कृष्ण पुत्र साम्बको स्त्री बना कर सभी किशोर यदु बंशी ले आये और यह पूछा कि इस स्त्री से पुत्र होगा या पुत्री ? ऋषियों को क्रोध आ गया और बोले - यह ऐसा मूसल पैदा करेगी जो यदु कुलका अंत करेगा । सम्राट उग्रसेन उस मूसलका चुरा बनवा कर समुद्र में भेकवा दिए ,जिसके एक टुकडेको एक मछली निगल गयी थी ।वह टुकड़ा मछली के पेट से एक ब्याध ज़रा को मिला और वह उससे तीरकी नोक बना किया । वह ज़रा ब्याध प्रभु को उसी तीर से उनके पैर में हिरण समझ कर मारा भी था ।समुद्र में फेका गया मूसलका पाउडर बिना गाँठ की एरका घास का रूप ले किया और उस घासको यदु बंशी अंत समयमें अस्त्र रूप में प्रयोग किया था ।
 * जब द्वारका का अंत नज़दीक आया तब वहाँ अपशगुन हो रहे 
थे । प्रभु अपनों को द्वारका से प्रभास क्षेत्र आनें के किये सलाह 
दी , सभीं द्वारका वासी प्रभास क्षेत्र आगये । बच्चे ,बुजुर्ग और स्त्रियाँ शंखोद्धारक क्षेत्र में गये और अन्य सभीं प्रभास क्षेत्र 
पहुंचे । वहाँ पूजा - ध्यान किया और सूर्यास्तके समय सभीं लोग मदिरा पी कर आपस में लड्नें लगे और देखते ही देखते वहाँ लाशें इकट्ठी होनें लगी । बलराम ध्यम माध्यम से शरीर त्याग दिए और बलराम के बाद प्रभु सरस्वती नदी के तट पर पीपल पेड़ के नीचे बैठे रहे जहाँ उद्धव और मैत्रेय ऋषि भी आ गए थे । प्रभु का सारथी दारुक जब वहाँ पहुँचा तब प्रभु उसे द्वारका भेजा इस सन्देश के साथ कि मैं परम धाम जा रहा हूँ ,आज से ठीक 07 दिन बाद द्वारका समुद्र में समा जाएगा वहाँ जो लोग हैं उनको अर्जुन के साथ इन्द्रप्रष्ठ चले जाना चाहिए । दारुण रोता हुआ ज्योंही चलनें लगा प्रभुका गरुण रथ वहाँ उतरा और प्रभु स्वधाम चले गए ।
 * अर्जुनके संग द्वारकासे लोग इन्द्रप्रष्ठ आ गए। बज्र ,कृष्णके प्रपैत्र को मथुरा और शूरसेनका शासक बनाया गया और हस्तिनापुरका सम्राट हुए परीक्षित क्योंकि पांडव लोग स्वर्गारोहण करनें हेतु हिमालय की यात्रा पर निकल गए थे ।
 ~~~ ॐ ~~~

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