Friday, December 31, 2010

इतनी छोटी यात्रा , और ----

इतनें मोड़

बश इतना ही सोच पाया था की स्वयं को संभालना कठिन हो गया और ......
भागता हुआ मैं उस गाँव के बाहर स्थित एक बिरान स्थान पर पहुँच कर .....
खूब रोया , वहां कौन सुननें वाला था , क्या करता , अपनें बश में कुछ न था , उस घड़ी ॥

लगभग अब अन्धेरा हो चला था , उठा और उस जगह को देखनें लगा
इतनें में पीछे से कोई आया और पूछा - भाई साहब !
आप इस बस्ती में पहली बार दिखे हो , नए लग रहे हो , किसके यहाँ आये हो , क्या पंडित जी
के करम पर तो नहीं आये ? इतनें सारे प्रश्न और मैं , क्या करता बोला तो जा नहीं रहा था लेकीन
अपनें को संभाल कर बोलना ही पडा - मैं बोला, आप ठीक कह रहे हो ॥
उस ब्यक्ति की बातों में दम था , वह ब्यक्ति था भी ऐसा ॥
पंडितजी को मरे आज ठीक बारह दिन हो चुके थे
और आज कर्म - काण्ड का आखिरी दिन है , इतनें लोग आये हैं ?

मैं पंडितजी को बचपन से जानता हूँ , बहुत ही नेक दिल इंसान थे - पंडितजी ।
पंडित जी को किस - किस नें नहीं चूसा ;
बेटी , बेटा , पत्नी , पास - पड़ोस वाले
और जब हमलोग हॉस्टल
में इक्कठे रहते थे तब भी वहाँ जिसको मौक़ा मिला , उसनें पंडितजी को ऐठ लिया
लेकीन पंडितजी
सदैव खुश रहा करते थे ॥
आज पंडितजी तो गए , लोग जसम मना रहे हैं
और कुछ समय बाद सबलोग अपनें - अपनें घर को चले जायेंगे और ......
कल कौन जानता है .....
किसका ....
नया दिन हो ....
किसका ----
आखिरी दिन हो .....
जब हो तो ......
उस खुदा को भी अपना ही समझो .....
जो .....
सब का , सभी घटनाओं का ....
अकेले मालिक है ॥

=== ॐ =====

Tuesday, December 28, 2010

मन - मंदिर



मन - मंदिर का गहरा सम्बन्ध है ----
मकान तो पशु - पक्षी सभी बनाते हैं ----
उत बिलाव को तो एक उत्तम आर्किटेक माना जाता है ....
लेकीन मंदिर मात्र इंसान बनाते हैं , ऐसा क्यों ?
इंसान में सभी जीवों से सर्वोत्तम मन - बुद्धि तंत्र की ब्यवस्था प्रकृति की ओर से किया गया है , अतः इंसान
बहुत से ऐसे काम करता है जैसे मंदिर बनाना आदि ।
क्या आप इनके बारे में कभी सोचते हैं ...........
() अजन्ता - अलोरा की कृतियों के बारे में ----
() एलिफेंटा के मंदिरों के बारे में -----
() खजुराहो के मंदिरों के बारे में -----
() पागान [ मेमार ] की पहाड़ियों को काट कर एक मंदिरों का शहर बनाया गया था ,
अबसे लगभग तेरह सौ साल पहले - उसके बारे में -----
() () यदि आप इन के बारे में कभी गंभीरता से न सोचा हो तो अब सोचना की .....
जो लोग ऐसा किये थे उनके अन्दर कैसी उर्जा प्रवाहित हो रही होगी , क्योंकि ----
जहां इनको बनाया गया है उस स्थान पर कोई देखनें वाला उन दिनों तो आसानी से पहुँच नहीं सकता
रहा होगा , उनके अन्दर कोई अहंकार रहा हो , वे ऐसा करके नाम कमाना चाहते रहे हों , ऐसा भी
नहीं लगता , फिर ऐसे - ऐसे काम करनें वाले कौन लोग रहे होंगे ?

** पहले मंदिर उनके द्वारा बनाए जाते थे जो अपने सघन ध्यान में कुछ अनुभव किये होते थे और
उस निराकार अनुभव को साकार रूप में ढालनें के लिए लोग जो प्रयत्न करते थे ,
उसको मंदिर कहा जाता था ।

जिस जगह पहुंचनं पर ........
# मन रिक्त होता हो
# तन में कुछ - कुछ होनें लगता हो
# जहां से वापस आनें को मन न करता हो
ऐसे स्थान मंदिर होते हैं ॥

आप एक काम करें ======
मन अन्दर मन अन्दर मन अन्दर - एक श्वास में बोलते रहे जैसे गाना गाते हैं ...
और अपनें परिवार के किसी को कहदे की .....
आप जो गा रहे हैं उसे वह रिकार्ड कर ले ....
और तब आप उस रिकार्डिंग को सुनना ....
उसकी धुन जो होगी , वह होगी ....
मदिर मंदिर मंदिर की

==== ॐ =====

Saturday, December 25, 2010

रामलला और हम

त्रेता युग .....
सुर्यबंशी चक्रवर्ती राजा दशरथ ....
जो अयोद्ध्या के 63 वें राजा थे ...
उनके महल में .....
उनके पुत्र रूप में ....
प्रभु श्री राम अवतरित हुए थे ॥

ऐसा कहा जाता है ----
जहां प्रभु निराकार से साकार रूप में एक पुत्र रूप में अवतरित हुए थे ....
उस स्थान पर ...
सम्राट बाबर संन 1528 में ....
बाबरी मस्जिद बनवा दिया था ....
जिसको ....
468 साल बाद
सन 1992 में गिरा दिया गया ॥

** जिस समय बाबरी मस्जिद बना उस समय तुलसीदास जी चार साल के थे ॥
** बाबरी मस्जिद बनानें के ठीक 28 साल बाद ----
भारत का सम्राट बना ----
अकबर जिसको हिन्दुओं से भी बहुत प्यार था ॥
अकबर के गद्दी पर बैठनें के लगभग 15 - 20 साल बाद .......
तुलसी दासजी अयोद्ध्या में रामलला चौतरे के साथ बैठ कर .....
श्री राम चरित मानस की रचना प्रारम्भ की ---
कुछ दिनों बात वे स्वेच्छा से काशी चले गए ....
और काशी में दो साल सात माह के करीब समय में .....
रामचरितमानस को पूरा किया ॥

ऐसा भी कहा जाता है ----
** अकबर की रानी राजस्थान राजपूत घरानें की बेटी थी
और हिन्दू सभी त्यौहार महल में मनाये जाते थे ॥
** तुलसी दास जी को अकबर एक बार सम्मानित भी किये थे ॥

अब
अकबर के समय क्या कोई हिन्दू बाबरी मस्जिद की बात को उठाया था ?
तुलसीदासजी को चित्रकूट में तीर - धनुष धारी के रूप में श्री राम नज़र आये लेकीन ....
जब राम चौतरे पर बैठ कर रामचरितमानस की रचना
अयोद्ध्या में कर रहे थे
उस समय उनको
क्या
बाल राम नज़र नहीं आये ?
इतना बड़ा ग्रन्थ लिख डाला लेकीन -----
उस ग्रन्थ में एक लाइन भी ....
रामलला जन्म स्थान पर ....
मस्जिद होनें के सम्बन्ध में न लिख पाए ...
आखिर कारन क्या था ?
कारण यह था ----
की ....
चाहे राजा हो ...
चाहे फकीर हो ...
सब में राज नीति आगे आगे चलती है और
बन्दा पीछे - पीछे ॥
लगता है .....
चार सौ अडसठ सालबाद ....
तुलसी का पुनर्जम किसी रूप में हुआ होगा
जिनकी प्रेणना से
बाबरी को तोड़ा गया ॥
आपकी
राय क्या है ?

==== जय श्री राम =====

Tuesday, December 21, 2010

मन से

मन की यात्रा तो ---
तन की यात्रा को आमंत्रित ...
करती है ॥

मन से दो यात्राएं एक साथ तो नहीं लेकीन अलग - अलग की जा सकती हैं ।
एक यात्रा ज्यादा लम्बी तो नहीं होती लेकीन दूसरी यात्रा बहुत लम्बी होते हुए भी छोटी लगाती है ।
एक यात्रा मन से बिषय की है
और
दूसरी यात्रा है मन से अनंत की ॥

मन से बिषय की यात्रा के ही हम फल हैं ;
भोग से भोग में हमारा जन्म हुआ है
और
भोग से भोग में अंत हो जानें वाला है ॥

हमें मनुष्य की योनी मिली है , प्रकृति की कुछ जिम्मेदारियां भी गर्भ से मिली हुयी हैं लेकीन ....
उनके प्रति हम कितनें जागृत हैं , इस बिषय के बारे में हमें गंभीरता से सोचना है ॥
मन से बिषय की यात्रा बेहोशी की यात्रा है ,
यह यात्रा ऎसी है जैसे हिमालय की उंची शिखर से पानी
नीचे की ओर चलता है
और .....
मन से अनंत की यात्रा पथ रहित यात्रा है ;
यह संसार के गुरुत्वा शक्ति के बिपरीत की यात्रा है , जिसमें
पग - पग पर गुणों के अवरोध मिलते हैं
और
यह भी सभव है की ......
यात्रा मात्र एक कदम की ही शेष रहे
और हमारा रुख नीचे की तरह स्वतः हो जाए ॥
गीता कहता है -----
बैराग्य में पहुँच कर भी योगी भोग में उतर आते हैं ॥
आप को कौन सी यात्रा प्रीतिकर हो सकती है ......
एक यात्रा पर आप - हम हैं
और दूसरी का कोई अनुभव अभी तक तो मिला नहीं लेकीन ....
प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं .......

बिषय से बैराग्य -----
बैराग्य से मुझ तक की ....
यात्रा का दूसरा नाम है .....
परम आनंद ॥

प्रभु के प्रसाद रूप में गीता को पकड़ कर रखिये
बाक़ी ....
सब ठीक ही होता रहेगा ॥


==== ॐ शांति ====

Monday, December 20, 2010

काशी विश्वनाथ की यात्रा



आप में बहुत से लोग काशी की यात्रा कर चुके होंगे , कुछ मात्र गए होंगे , कुछ पानें की उमीद से तो कुछ
गए होंगे वह सब देखनें जिसके बारे में अपनें बुजुर्गों से कभी बचपन में सूना हो गा , आप लोगों में से कुछ बहुत खुश हुए होंगे इस यात्रा से तो कुछ बिचारों के अरमान फीके पड़ गए होंगे क्योंकि उनकी जो सोच यात्रा - पूर्व में रही होगी वह ब्यर्थ गयी होगी । तीर्थों में जाना , वहाँ कुछ दिन रहना , वहाँ साधू - महात्माओं के साथ का लुत्फ़ उठाना , अति उत्तम है लेकीन यह जरुर सोचना चाहिए की क्या हम जिस तीर्थ में जा रहे हैं , उसमें प्रवेश की हमारे में योग्यता भी है ? आप सोच रहे होंगे की - इसमें योग्यता कहाँ से आ टपकी ? लेकीन यह
अति आवश्यक बात है ।
भारत में जितनें भी प्राचीन तीर्थ हैं उनमें जब कोई बुद्धि जीवी पहुंचता है तो उसे उनकी हालत को देख कर दुःख होता है क्योंकि उनके मन में कहीं न कहीं यह बात जरुर होती है की जब इतना बड़ा तीर्थ है तो वह स्वर्ग सा तो होंगा ही , स्वर्ग जिसका गुणगान हमारे परम वेदों में खूब किया गया है उसका राजा हैं - इन्द्र और काशी का राजा हैं - स्वयं शिव जिनको आदि देव भी कहा जाता है पर काशी में पहुंचनें के बाद तो ऐसा दिखता है की यह अति गंदा शहर है - जहां श्वास लेना , पानी पीना भी कठिन है ।
मेरे प्यारे मित्रों !
आप - हम जिस काशी को देखते है , जिस काशी को जाते हैं , जहां काशी विश्वनाथ के रूप में ज्योतिर्लिन्गम बिराजमान हैं , वह काशी नहीं है , वह है काशी का एक द्वार जहां से शिव काशी में प्रवेश मिलता है ।
क्या बात है ?
काशी आदि शंकारा चार्य गए और उनका भी अहंकार वहाँ टूटा -----
काशी में सौ साल से भी अधिक समय तक कबीरजी साहिब रहे ......
कबीरजी साहिब से मिलनें श्री नानकजी साहिब भी अपने पूरी यात्रा के दौरान , काशी में कुछ दिन रुके .....
ऐसा कौन है जिसको सत की राह की तलाश रही हो और वह काशी न गया हो - आदि शंकराचार्य से कृष्णामूर्ति तक के सत के प्रेमियों पर आप एक नज़र दौड़ा कर देख सकते हैं ।
काशी जानें का जब कभी आप का प्रोग्राम बनें तो आप वहाँ जानें की पहले तैयारी करलें और अपने अन्दर से
उस उर्जा को निकाल कर जो आप में भरी पड़ी है उसके स्थान में शिव उर्जा को भरनें का यत्न करें यह तब संभव होंगा जब आप कुछ दिन किसी शिव मंदिर में कुछ ध्यान करें ।
वह जो शिव - ऊर्जा से परिपूर्ण होंगा , उसे काशी की गंदगी नज़र न आयेगी , उसे वहां के पाकेटमार न समझ में आयेंगे , उसे गंगा की अपवित्रता नज़र न आयेगी , उनको तो -----
वहाँ पहुंचनें पर वह चाभी नज़र जरुर आनें लगेगी जिस से इस काशी रूपी द्वार को खोल कर आदि काशी में प्रवेश
कर सकें । ऐसा सत का प्रेमी जो काशी जाता है वह पुनः लौट कर नहीं आता ॥
आज लोग गंगा सफाई पर खूब हवा उड़ा रहे हैं लेकीन उनको यह नहीं पता चलता की यह गंगा भारत की गंगा हैं , अमेरिका की नहीं ....
यह गंगा वह गंगा नहीं जो ब्रह्मा के कमनडल से चली थी , यह गंगा तो उस गंगा का एक भाग हैं ।
वह जो ब्रह्मा के कमनडल को न देख पाया ......
वह जो मूल गंगोत्री को न देख पाया ....
वह जो शिव को न समझ पाया ....
वह जो ज्योतिर्लिन्गम को न समझ पाया .....
वह मूल काशी में कैसे प्रवेश कर सकता है ॥
आदि शंकर को आदी काशी में प्रवेश के लिए छ महीनें लगे थे।
इस बात को फिर कभी लेंगे ।
आज इतना ही
आज शिव की ऊर्जा में रहें
===== ॐ ======


Friday, December 17, 2010

ॐ की ओर



गीता में प्रभु कहते हैं -----
[क] वेदों में ओंकार मैं हूँ .....
[ख] ऋग्वेद , यजुर्वेद और सामवेद मैं हूँ .....
यहाँ आप देखें गीता - श्लोक .... 7.8 , 9.17 , 10.25

ॐ की ओर यात्रा करनें से पहले आप लोगों से मेरा एक प्रश्न --------
मैं गीता की ओर यात्रा पर वैसे तो लगभग दस वर्षों से हूँ लेकीन ब्लोक के माध्यम से आप सब के
साथ गीता - माध्यम से मुझे जुड़े हो गए होंगे चार वर्ष के करीब ।
आप लोगों में कितने ऐसे हैं जिनके पास मूल गीता की एक प्रति है ?
बाज़ार में गीता से सस्ती शायद ही कोई और किताब हो , ऐसा समझे की .....
एक किलो बैगन न लेकर
आप गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित 502 गीता की एक प्रति आसानी से
खरीद सकते हैं कोई हर्ज़ नहीं पड़ता
आप पढ़ें सब के द्वारा लिखे गए भाष्यों को लेकीन
मूल गीता तो मूल ही है ॥

आइसे अब चलते हैं ॐ की ओर .......
आप , लोगों से निम्न तरह की बातों को तो सूना ही होगा ?
[क] आज पांच बजे मुझे मंदिर जाना है ----
[ख] आज रात्री में मेरी मौसी काशी जा रही हैं ....
[ग] अगले वीरवार को मेरी माँ रामेश्वरम की यात्रा पर जा रही हैं .....
[घ] अगले साल मैं और मेरी माँ केदार नाथ - बद्री नाथ की यात्रा पर जानें वाले हैं ....
[च] परसों मेरे पड़ोसी हरिद्वार जा रहे हैं ... आदि ,
क्या इन बातों से आप के अन्दर बह रही ऊर्जा
की फ्रिक्विन्सी पर कोई असर पड़ता है ?
यदि पड़ता है तो आप में अभी प्राण है ......
यदि नही पड़ता तो आप चलते - फिरते मुर्दे हैं .....
आप एक काम करें -----
एकांत में बैठ कर मात्र दो मिनट के लिए इस प्रयोग को करें .....
आँखे बंद हो .....
किसी का आना - जाना उस स्थान पर न हो ....
अपनी दोनों हथेलियों को अपने सीनें पर रख कर स्वयं से प्रश्न करना की .....
क्या तीर्थों के नाम से .....
क्या पीर - फकीरों के नाम पर ......
क्या तीर्थ - यात्राओं के आम पर ....
आप के अन्दर कभी कुछ हुआ है ?
यदि आप की स्मृति कमजोर हो तो आगे आप जरूर ध्यान रखना ,
क्या पता यह आप को
रुपांतरी करदे ॥
दिनमें एक मिनट के लिए ही सही ....
अपनें दिलमें कभी - कभी ही सही ....
अपनें तीर्थों की स्मृति में अपनें को लेजाना कोई बुरी बात तो नहीं
और .....
यदि ऐसा संभव नही तो ....
तीर्थों के तीर्थ राज .....
अपनी माँ को ही सही ऐसे याद करें
जैसे .....
आप उसकी गोद में लेते हुए हों एक छ : माह के अबोध बाल रूप में ॥
आज और अभी कर के देखो .....
आप एक पल के लिए उस जन्नत में अपनें को पायेंगे जिसके लिए
कुछ करना नहीं मात्र अपनी स्मृति में जाना है ॥
प्रभु आप के साथ है ....
प्रभु आप के ह्रदय में है ....
फिर भी आप यह सब क्यों कर रहे हो ?

आज इतना ही -----

=== ॐ एक मार्ग है ======

Thursday, December 16, 2010

क्या आप कभी सोचे हैं ?



गंगा और यमुना एक गर्भ से जन्म ले कर एक दुसरे के समानांतर एक दुसरे को झांकती हुयी अपनी - अपनी
यात्रा तब तक करती रहती हैं जबतक उनकी यात्रा के हिसाब से मध्य उम्र नहीं आ जाती ।
गंगा का पानी सफ़ेद और यमुना का गहरा नीले रंग जैसा दिखता है । गंगा और यमुना जहां मिलती हैं उस
जगह को प्रयाग कहते हैं ।
क्या आप कभी प्रयाग संगम पर स्नान किये हैं ? यदि नहीं तो वहाँ जानें
का कभी प्रोग्राम बनाना और जब वहाँ पहुँच जाना तब मेरी एक बात जरूर सोचना ।
संगम से आप कोई एक नाव करना , नाव को बीच धारा से चलानें के लिए मल्लाह से बोलना , अच्छा होगा यदि आप संगम से पहले ही गंगा से अपनी यात्रा करें और वह जगह अपनें आप आजायेगी जहां यमुना आकर गंगा से मिलती हैं , फिर नाव को आप मुख्य धारा से बहनें दे और अपनी नज़र धारा पर रखना । संगम से काफी आगे तक सफ़ेद और नीले रंग की दो धाराएं साफ़ - साफ़ नज़र आती हैं और उसके बाद यमुना अपना अस्तित्व खो कर स्वयं गंगा बन जाती हैं । जहां दोनों धाराओं का यह मिलन होता है या यों कहे की जहां यमुना अपनें को गंगा में पूर्ण रूप से मिला देती है , वहाँ गंगा के किनारे पर एक छोटा सा अति प्राचीन मंदिर है जहां आज से चालीश साल पहले कोई नहीं जाता था ।
क्या है उस मंदिर में जहां यमुना की आत्मा गंगा में बिलीन हो जाती है ? मैं नहीं चाहता आप को बताना लेकीन जब आप एक दिन उस मंदिर के साथ अपनें को जोडनें में सफल हो जायेंगे तो आप को परम सत्य की एक किरण आप के ह्रदय में एक परम ऊर्जा की लहर जरुर पैदा कर देगी और आप
उस स्थिति में उस संगम को देख कर धन्य हो उठेगें जो सही संगम है ॥
प्रभु आप की यात्रा मंगल मय बनाए रखे
ॐ की तरंगें ह्रदय में गूंजती रहे .........
दृष्टि प्रभु पर टिकी रहे .......
तब सम्पूर्ण अपना सा ही दिखता है ......
यहाँ कौन है पराया ?
सब यात्रा पर हैं और सब एक - एक करके लुप्त होते जा रहे हैं , फिर .....
क्या ?
कौन ?
है , अपना और पराया ॥

===== ॐ शांति ॐ ====

Tuesday, December 14, 2010

ॐ शांति ॐ





जप ....

तप ....

ध्यान ......

पूजा ......

प्रार्थना ....

योग ......

कीर्तन .....

भजन ....

आदि से क्या होता है ?

गीता कहता है :

प्रभु का रस उस मन - बुद्धि में बहता है जिनमे .....

कोई संदेह न हो -----

कोई हाँ - ना का भाव न हो ....

सभी द्वत्य से मन बुद्धि अप्रभावित रहते हों .....

और यह सब तब होता है जब .....

कर्म - इन्द्रियों की चाल -----

ज्ञान - इन्द्रियों की चाल ----

मन की चाल , और ......

बुद्धि की चाल एक हो ॥

भोगी आदमी में उसकी ऊर्जा अन्दर से बाहर की ओर भागती है और योगी अपनें अन्तः करन को ऐसा

बना लेता है की .....

बाहर की ऊर्जा अर्थात कासमोस - उर्जा उनके अन्दर भरनें लगती है ।

वैज्ञानिक अब कहनें लगे हैं ------

आम आदमी मेंजो ऊर्जा इन्द्रियों से चेतना की ओर बहती है उसकी आबृत्ति लगभग दो सौ साइकल

प्रति सेकण्ड होती है लेकीन वही आदमी जब ध्यान की गहराई में पहुंचता है तब यह आबृत्ति लगभग

दो लाख साइकल प्रति सेकंस से भी अधिक हो जाती है और तब उस ध्यानी को :..............

यह आभाष होनें लगता है की -----

वह देह नहीं , वह स्वयं को अपने ही देह के बाहर महशूश करनें लगता है , इस स्थिति को .....

समाधी कहते हैं जहां .....

प्रभु की अनुभूति होती है ।

प्रभु की अनुभूति उसे होती है जिसकी -----

इन्द्रियाँ , मन और बुद्धि निर्विकार हों और उनके अन्दर बहनें वाली ऊर्जा ऎसी हो जैसी ऊपर बताई गयी है ॥



==== ॐ शांति ॐ =====

Wednesday, December 8, 2010

Who is Gita tatva Vittu ?

Within the mind - intelligence frame ,
through various parameters ,
some of them may be constants and some
of them may be variables ,
the yogin who walks towards
the ultimate cosmos reality , is called -
Gita Tattva Vittu .

Let us see those parameters : ------
[a] CONSTANTS
[b] VARIABLES
Constants
** consciousness
** soul
** The Supreme Almighty

[b] Variables
## various elements of satvik - guna
## various elememts of rajas - guna
## various elements of tamas - guna
Elements of Satvik - Guna
01- austerity of wisdom
02- mind - intelligence frame does not have doubts
03- awareness about ....
manifested and
unmanifested
04- winnesser of .....
passion
dullness
05- fearlessness
06- mind - intelligence frame settled in .....
choiceless awareness
07- alway marching towards .....
NIRVANA

Elements of Rajas - Guna
01- mind is always engaged with ....
five objects of wisdom - senses
02- attachment
03- sex and desire
04- ignorance
05- unstable .....
mind and intelligence
06- anger and greed

Elements of tamas - Guna
01- mineness
02- delusion
03- fear
04- dullness

we shall be going through all these
elements one by one
in coming issues .

enjoy
KRISHNA CONSCIOUSNESS

===== ॐ shanti ======

Sunday, December 5, 2010

symptoms of delusion



gita chapter one shlokas -----

1.28
1.29
1.30

under these shlokas ......

arjun says ......

[a] my limbs quil .......
[b] my mouth goes dry .....
[c] my body shakes ....
[d] my hairs stand on ends .....
[e] my bow slips .....
[f] my skin has burning ......
[g] i am not in position to stand even ....
[h] my mind is reeling .......

these are the few statement that arjuna has made
after seeing his relatives, gurus and
near and dear in the battle field of kurukshetra .

these three arjuna,s shlokas are the seeds of gita .

in the next issue we can have few more shlokas related to delusion .

delusion is an element of tamas - guna [ dullness - mode ] .

====ॐ shanti =====

kinetics of mind - 06



under kinetics of mind series , here we can see
few more gita - sutras related to the
mind - mechanism .

[a] gita - 2।55


a man whose mind is free from attachment
and desire is a man of having
settled intelligence .

[b] gita - 5।13

there are nine doors in our body as gita says .........
a man whose mind does not get affected by
his actions , is a person of full of
happiness living in the structure
of nine doors ।

gita further says ------

work without attachment makes one karm - yogin ।

[c] gita - 6.5

a man having his mind in his control ,
then his mind
becomes his good freind ।

[d] gita - 6.6

freindship wth mind could take one to nirvana ।


===== ॐ shanti =====

Saturday, December 4, 2010

kinetics of mind - 05

gita - 2.60
impetuous senses carry off mind by force .

gita - 3.6
controlling movement of senses , does not give
positive result , it increases the depth
of ego .

gita - 3.7
yogin has freindship with his senses and
this becomes possible by understanding
the behaviour of senses through mind .

gita - 3.37
anger is a form of sex- enegy .

gita - 3.40

sex - energy keeps its control over senses ,
mind and intellect .

==== ॐ ====

Thursday, December 2, 2010

kinetics of mind - 04



Under kinetics of mind ,

Gita says :

[a] Gita - 6.20 - 6.23

When a meditator touches the deepest layer of meditation which is absolute silent , his
mind becomes a witnesser of senses and the actions being taken by them .

[b] Gita - 15.8

When physical body is not in a state to
carry further the spirit , the spirit along with mind
and senses leaves the body and remains in search of another suitable body . Till a new
body is available it wonders in the cosmos.

[c] Gita 4.38

The siddhi of yogas or meditation is the source of wisdom .
wisdom is that which makes one awared
about kshetra - kshetragya .

Kshetra is physical body and kshetragya
is spitit - the source of living - energy .

===== ॐ shanti ======

Wednesday, December 1, 2010

kinetics of mind - 03



Let us see few more Gita sutras related to kinetics of mind ------

[a] Gita - 2.42 - 2.44

Only steady silent mind has so strong gravity to
attract the cosmic ultimate pure energy .

[b] Gita - 6.6

Man having controlled mind , is his own freind .

[c] Gita - 6.6

controlled mind becomes freind .

[d] Gita - 6.7

Silent mind is a gateway to the Supreme One .


==== ॐ shanti ========