Monday, January 31, 2011

गीता ध्यान

भाग - 08

गीता सूत्र - 4.29

गीता का यह सूत्र ध्यान की तीन बिधियों को बता रहा है
जिसमे से एक बिधि को हम यहाँ देखते हैं -----

सूत्र -
जो श्वास आप ले रहे हैं उसके प्रारम्भिक बिंदु पर अपनें ध्यान को केन्द्रित करना ॥

यह ध्यान दो तरह से संभव है ;

[क] नासापुटों के अग्रिम भाग पर ध्यान को
केन्द्रित करना जहां से श्वास नासिका में प्रवेश करती है ॥
[ख] श्वास लेते समय नाभि ऊपर की ओर उठती है
अतः ज्योंही यह ऊपर उठनें लगे उस बिंदु पर
अपनें ध्यान को केन्द्रित करनें का प्रयत्न करना चाहिए ।
ध्यान केन्द्रित करनें का अर्थ हैं - उस बिंदु का द्रष्टा बनें रहना ॥
द्रष्टा वह है जो साक्षी हो ; जो भावातीत की स्थिति में रहते हुए दृष्टा रहे ॥
आप इस ध्यान को कुछ दिन करें ,
यह ध्यान .....
चित्त की बृत्ति को नियंत्रित करता है ॥

===== ॐ ======

Monday, January 24, 2011

गीता ध्यान

भाग - 07

ध्यान के सम्बन्ध में अब आज हम विषय - इन्द्रियों को ले रहे हैं ......

विषय- इन्द्रिय - ध्यान में हमें निम्न बातों पर विशेष रूप से अपनी ऊर्जा केन्द्रित करनी चाहिए .......

[क] पांच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हमारा मन - बुद्धि तंत्र संसार से जुड़ता है .....
[ख] विषय ज्ञानेन्द्रियों को पकड़ कर रखते हैं ......
कर्म योग का यह पहला चरण है अतः इस चरण को ठीक से समझना अति आवश्यक है ।

हमारी पांच ज्ञानेन्द्रिया हमारे सर में स्थिति हैं और सर के अन्दर , मन है । मन का अन्दर का छोर
बुद्धि है और बाहरी छोर पांच भागों में बिभक्त है जिसको ज्ञानेन्द्रियाँ कहते हैं ।
संसार से डाटा इकट्ठा करनें का काम ये इन्द्रियाँ करती हैं और उन आकड़ों की अनेलिसिस मन करता है ।
मन और बुद्धि का गहरा सम्बन्ध हैं और इन दो को अलग करना कठिन है ।
डाटा एनेलिसिस के बाद जो निर्णय लिया जाता है उसके आधार पर कर्म इन्द्रियों को वैसा आदेश मिलता है - मन के माध्यम से ठीक वैसा कर्म करनें के लिए ।
मन ध्यान की दृष्टि से -----
हमें अपनी ऊर्जा को अपनें ही ज्ञानेन्द्रियों पर रखनी होती है ,
ज्योंही कोई इन्द्रिय अपनें विषय में पहुंचे उसी समय - ठीक उसी समय
उसे वहाँ से पकड़ कर वापिस ले आना चाहिए लेकीन कोई जोर - जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए ।
इन्द्री - विषय योग से जो भाव उस विषय के प्रति मन में उठता है उस भाव से सम्बंधित गुण को भी पहचानना होता है और उस गुण को अप्रभावित करनें के लिए वैसी ब्यवस्था बनानी पड़ती है जिसको आगे चल कर गुण साधाना में देखा जाएगा ।
इन्द्रियों के प्रति होश बनाना .....
बिषयों के स्वभाव पर नज़र रखनी .....
बिषय के सम्बन्ध में मन कैसा विचार करता है ? इस बात पर नज़र रखनी .....
ये सभी बातें कर्म - योग में आती हैं ।
योग या ध्यान का सीधा सम्बन्ध है .....
मन से ....

मन को गुण तत्वों से बचाना और उन तत्वों के प्रति होश बनाना ही .....
ही ....
मन - ध्यान है जो .....
बुद्धि - योग का एक भाग है ॥

===== ॐ =======

Saturday, January 22, 2011

गीता ध्यान

भाग - 06

ध्यान में कैसा भोजन उपयोगी होता है ?

गीता को यदि आप ध्यान के लिए प्रयोग कर रहे हैं तो .......

** सात्त्विक भोजन के लिए गीता कहता है ॥

सात्त्विक भोजन क्या हैं ?
अन्न , बनस्पतियां , फल , फूल , दूध एवं दूध की अन्य बस्तुएं लेकीन इनमें
ऎसी चीजें वर्जित हैं जिनमें चिकनाई हो जैसे काली दाल और .....
लहसुन , प्याज , गर्म मसाले , मिर्च , लाल दाल ऎसी बस्तुएं भी वर्जित हैं ।
भोजन ताजा होना चाहिए , फ्रीज में रखा भोजन दाधक के लिए उत्तम नहीं होता ॥

भोजन का क्या असर ध्यान पर पड़ता है ?
प्रकृति से हम जो कुछ भी ग्रहण करते हैं जैसे ------
भोज्य पदार्थ .....
पेय पदार्थ .....
वायु .....
पांच ज्ञानेन्द्रियों से जो कुछ भी हमारा मन प्राप्त करता है .....
कर्म इन्द्रियों से हम जो कुछ भी प्राप्त करते हैं ......
और मन में संगृहीत सूचनाओं के मनन से जैसा भाव मन में उठता है ......
इन सब से हमारे अंदर का गुण समीकरण बदलता है और गुण समीकरण में आया परिवर्तन ही
हमारे वर्तमान को चलाता है ॥
जैसा गुण समीकरण अन्दर होगा , वैसे बिचार मन - बुद्धि में उठेंगे ....
जैसे बिचार उठते हैं वैसे हम कर्म करते हैं ......
जैसे हम कर्म करते हैं वैसा फल हमें मिलता है ....
और कर्म के आधार पर हमारा अगला जन्म भी आधारित होता है ॥
भोजन बनाना .....
भोजन सामग्री .....
भोजन बनानें वाले और करनें वाले की मन की स्थितियां ......
ऎसी कुछ बातें हैं जिनको हमें ध्यान रखना चाहिए ।
आम तौर पर लोग भोजन के समय टीवी देखते रहते हैं ....
या अखबार पढ़ते रहते हैं या कुछ और करते रहते हैं लेकीन ऐसा करना उचित नहीं ,
क्यों की ----
मन में दो चीजे एक साथ नहीं बसती , मन एक समय में एक बिषय को पकड़ता है और हम
सम्पूर्ण संसार को एक साथ भरना चाहते हैं जो संभव नहीं और यहीं हम भूल कर जाते हैं ॥
छोटी - छोटी बातें हैं जो गंभीर असर हम सब के जीवन पर डालती हैं ॥

==== ॐ ======

Wednesday, January 19, 2011

गीता ध्यान




भाग - 05

ध्यान कोई कृत्य नहीं , यह प्रभु का प्रसाद है ॥
ध्यान करना एक कृत्य है जिसमें तन - मन को ऐसा तैयार किया जाता है
जैसे पौध लगानें के लिए नर्सरी
की तैयारी की जाती है ।
जैसे जब नर्सरी तैयार जो जाती है तब उसमें पौध उन बीजों से आते हैं
जिनको इस में रोपा जाता है ठीक वैसे ही ध्यान नर्सरी में
सात्त्विक गुण के पौध आते हैं जो प्रभु को ध्यानी के ह्रदय में उतारते हैं ।

ध्यान में तन मन एवं ह्रदय की सफाई होती है ;
सफाई का भाव है - निर्विकार बनाना ।

इस बात को हमेशा याद रखें की :
भोजन ....
संगति.....
निद्रा ....
ब्यवहार ....
रहन - सहन ....
भाषा ....
भजन .....
इन सब के प्रति होश बनाना ही ध्यान है ॥

==== ॐ =======


Tuesday, January 11, 2011

गीता ध्यान

भाग - 04


यदि आप ध्यान को अपनाना चाहते हैं तो निम्न बातों को भी देख लें -----

** कुछ दिन ध्यान के लिए आप अपनें घर को ध्यान स्थान के रूप में प्रयोग करें ॥
** ध्यान का प्रारम्भ कहीं नयी जगह पर करना मैं उचित नहीं समझता ॥
** आगे चल कर आप को स्वतः मह्शूश होगा की ध्यान का प्रारम्भ किसी अनजानें स्थान से नहीं
करना चाहिए - क्यों ?
** आप अपनें घर में कोई एक जगह चुनें जो .....
# लोगों के आवागन से कुछ हट कर हो .....
# जहां सूर्य की किरणें आती हों .......
# जहां वायु का आवागमन अच्छा हो ....
ध्यान करते समय अधिकाँश लोगों को नीद आनें लगती है ,
यदि आप लेट कर ध्यान कर रहे हों तो .....
आप का सीर उत्तर दिशा में होना चाहिए और पैर दक्षिण दिशा में , कभी भी
पूर्व - पश्चिम दिशा में लेट कर ध्यान में न उतरें ॥

पहले बताया गया है की ....
ध्यान में आँखें तीन चौथाई खुली होनी चाहिए , इसके दो कारण हैं -----
[क] जब आँखें पुरी बंद होती हैं तब मन में विचार तेज गति से उठते हैं ।
[ख] विचार शून्यता नीद को आमंत्रित करती है जबकि ध्यान में सो जाना ध्यान को खंडित करता है ।
आप को आप का ध्यान निर्वाण तक पहुंचाए ,
और आप .....
प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा से परिपूर्ण हों ,
मैं तो एक छोटा आदमी हूँ , यही कामना कर सकता हूँ ॥

==== ॐ =====

Thursday, January 6, 2011

गीता ध्यान



गीता ध्यान भाग - 02

ध्यान कहाँ और कब करना चाहिए ?

पहली बात .....

ध्यान कोई कृत्य नहीं है , यह किसी के बश में नहीं ,
लेकीन उनके लिए यह कृत्य सा है जो
इन्द्रिय ....
मन ....
और देह के माध्यम से स्वयं को परखना चाहते हैं ॥

दूसरी बात .....

यदि आप अभी - अभी ध्यान से आकर्षित हुए हो तो ....
** ध्यान के लिए सभी जगह नहीं बैठना चाहिए
** ध्यान के लिए आप कोई प्राचीन मंदिर को चुनें तो उत्तम होगा
** ध्यान का समय ठीक सूर्योदय - पूर्व या ठीक सूर्योदय बाद उत्तम होता है जिसको ....
गोधुली या संध्या कहते हैं ॥
** जिस स्था पर आप बैठना चाहते हैं ,
वह स्थान समतल होना चाहिए और कोई साफ़ बिछावन जमीन पर बिछा
कर उस पर बैठना चाहिए ।
** आप की मुद्रा कोई भी हो सकती है जिसमें आप को आराम मिलता हो ॥
** ध्यान में बैठनें के बाद तीन - चौथाई आँखों को बंद रखना चाहिए ॥
** दृष्टि देह से दो फूट तक सिमित रखें तो अच्छा रहेगा ॥
कुछ और बातें अगले अंक में

==== ॐ ====

Sunday, January 2, 2011

गीता ध्यान




गीता ध्यान भाग - 01

आज से हम ॐ शांति ॐ में गीता - ध्यान श्रृंखला प्रारम्भ कर रहे हैं ,
जो लोग ध्यान को अपनाना चाहते हैं ....
ध्यान को अपना मार्ग बनाना चाहते हैं ....
जो ध्यान से समाधी तक की यात्रा करना चाहते हैं .....
वे ....
सादर आमंत्रित हैं ॥

गीता अध्याय - 06

गीता कहता है ----

ध्यान निर्वाण का द्वार है ॥
किसी - किसी को ध्यान के माध्यम से ....
प्रभु की आहट उसके ह्रदय में मिलती है ॥
ध्यान में डूबे योगी का मन ऐसे शांत होता है .....
जैसे वायु रहित स्थान में रखे गए दीपक की ज्योति अचलायमान होती है ॥
शांत मन दर्पण पर जो ....
प्रतिबिंबित होता है ....
वह होता है ---
परम श्री कृष्ण ॥
जिसका मन प्रभु का निवास है , वह गुनातीत योगी है ॥

मन प्रभु और मनुष्य के मध्य एक ऐसा माध्यम है ....
जो जब विकार - ऊर्जा से भरा होता है तब .....
नरक की ओर रुख कर देता है , और ....
जब इसमें निर्विकार ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है तब ....
यह मुक्ति का माध्यम होता है ॥

ध्यान ---
कब , कहाँ , कैसे करना चाहिए ? .....
इन प्रश्नों के सम्बन्ध में हम देखते हैं ....
अगले अंक में ॥

==== हरी ॐ =====

Saturday, January 1, 2011

परम क्या है ?



हम सब में सभीं यही सोचते हैं ------
हमारी सोच परम है ....
लेकीन यदि ऎसी बात है ....
तो फिर
हम स्वयं अपनें किये पर क्यों आशू बहाते हैं ?

बिश्वीं शताब्दी के प्रारम्भ में -----
आइन्स्टाइन के बिरोध में हिटलर लगभग सौ वैज्ञानिकों को खडा कर दिया था
और ....
आइन्स्टाइन जो भी कहते थे उनका मूल गणित तो बाद में बनता था
लेकीन उसके बिरोध का गणित
सर्वत्र उपलब्ध हो जाता था ,
पर आज .....
कौन उन बिरोधियों को जानता है ?

आज बैज्ञानिक जगत में इस बात पर चर्चा चल रही है की -------
आइन्स्टाइन एक ......
वैज्ञानिक थे , या फिर ....
ऋषि थे ॥
जब लोगोंनें आइन्स्टाइन को उनके बिरोध में खड़े लोगों के सम्बन्ध में बताया तब
उनका कहना था ....
यदि मैं गलत हूँ ----
तो फिर इतनें लोगों की क्या जरुरत है .....
एक ही काफी होगा , क्योंकि .....
गलत का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता ......

अब आप सोचिये की ----
ऎसी बात जो करता है वह वैज्ञानिक होता है
या फिर ऋषि ?

गीता - 2.16 कहता है ----

नासतो विद्यते भावो
नाभावो विद्यते सत :
अर्थात ....
सत को खोजनें की जरुरत नहीं , वह सर्वत्र है ही ....
और असत का तो अपना कोई अस्तित्व होता ही नहीं ,
फिर चिंता क्या करना ॥

अब आप सोचिये की ....
आइन्स्टाइन की बात और गीता - ज्ञान में क्या ....
कोई फर्क भी है ?
आइन्स्टाइन को ब्रह्माण्ड के नक़्शे को दिखानें वाला -
श्रीमद्भागवद्गीता ही था .....
क्या आप जानते हैं ,
नहीं तो देखिये , यहाँ ,
आइन्स्टाइन क्या कह रहे हैं .........
When i read Bhagvadgita
i reflect upon how God created this universe ,
everything
else seems superfluous in this regards .
Einstein feels :
Gita has the mystery of the origin and the end of this ......
UNIVERSE ....
which is limited in
four coordinated structure called ....
TIME - SPACE
enjoy Gita ....
and ...
thus ...
enjoy yourself being ...
embodied one

==== om ======