Saturday, October 26, 2013

भागवत में यह भी है

● भागवतमें यह भी है - 2 ● 
<> यहाँ जो दिया जा रहा है , उस पर आप दो घडी सोचें :--- 1- भागवत : 10.61 > कृष्णकी 16108 रानियोंसे 161080 पुत्र एवं एक कन्या थी।
 2-भागवत : 10.70 > जरासंध 20800 राजाओं को कैद कर रखा था ।
 3- भागवत : 10.72 > भीम - जरासंध युद्ध 28 दिन
 चला । 
4- भागवत :10.90 > यदु कुलके बच्चोको पढानें हेतु द्वारकामें 03 करोड़ 88 लाख आचार्य थे ।
 5-भागवत : 10.90 > उग्रसेनकी सेना एक नील ( 10,000 billion ) थी । 
6- भागवत : 10.50 > द्वारका का क्षेत्र 48 कोस था ( एक कोस = लगभग दो मील ) ।
 7- भागवत : 9.8 > सगरके 60000 पुत्र गंगा सागर पर कपिल मुनिके तेजसे भष्म हुए थे । 
8 - भागवत : 9.23 > यदुकुलमें शशिबिंदुको 10,000 रानियाँ थी ।
 9 - भागवत : 6.14 > शूरसेन सम्राट चित्रकेतुको 01 करोड़ रानियाँ थी ।
 10 - भागवत : 9.10 > रावणके 14000 पुत्रोंको श्री राम मारे थे ।
 11 - भागवत : 5.7 > ऋषभदेव पुत्र भरत एक करोड़ वर्ष तक राज्य किया ।
 12 - भागवत : 9.20 > दुष्यंत बंशके भरत 27000 वर्ष तक राज्य किया ।
 ~~~ ॐ ~~~

Thursday, October 24, 2013

भागवत में अक्रूर कौन थे ?

●अक्रूर कौन थे ?●
सन्दर्भ : स्कन्ध - 9 + 10
** 1- ब्रह्मा से अत्रि ऋषि ,अत्रिसे चन्द्रमा , चन्द्रमा और ऋषि बृहष्पतिकी पत्नी तारा से बुध पैदा हुए । ** 2- ब्रह्मासे कश्यप ऋषि ,कश्यपसे विवश्वान (सूर्य ) ,सूर्यसे श्राद्धद्रव मनु हुए । श्राद्धदेवसे इला पुत्री पैदा हुयी जो एक माह सुद्युम्न पुत्र रूपमें रहती थी और एक माह इला पुत्री रुपमें। इला पुत्री और बुधसे पुरुरवा हुए जिनसे चन्द्र बंश चला । पुरुरवा और उर्बशी का मिलन कुरुक्षेत्रमें सरस्वती नदीके तट पर हुआ था । पुरुरवासे 06 पुत्र हुए जिनमें आयु के पौत्र ययाति और शुक्राचार्य पुत्री देवयानी से यदु हुए । यदुके 04 पुत्र हुए जिनमें क्रोष्टा के बंश में आगे विदर्भ हुए । विदर्भ के तीन पुत्रों में क्रथके बंश में शकुनि
हुए । शकुनिके बंशमें सात्वक हुए जिनके 07 पुत्र हुए , उन सात में बृण्णिसे श्वफलक और चित्ररथ
हुये । चित्ररथसे कृष्णके दादा शूरसेन हुए और श्वफलक से 12 पुत्रों में एक हुए अक्रूर ।
* अब आगे *
* गोकुलमें बैल रूपमें आये अरिष्टासुरका अंत हो रहा है और उधर मथुरामें नारदजी कंशको सच्चाई बता रहे है कि कृष्ण , बलराम कौन हैं और वह कन्या जिसे तुम मार रहे थे ,वह कौन थी ?
* अक्रूरजी कृष्ण बंशसे सम्बंधित थे लेकिन रह रहे हैं मथुरामें अतः कंश अक्रूरको ब्रज भेज रहा है ,कृष्ण और बलराम को लेनें हेतु । कंश मथुरामें धनुष यज्ञका आयोजन कर रहा है और यह आयोजन मात्र एक बहाना है ।
* आज नन्द गाँव और मथुराकी दूरी 32 km है और अक्रूरजी इस दूरीको एक दिन में पूरी कर रहे हैं ; वे सुबह चल रहे हैं और सूर्यास्तके समय नन्दके यहाँ पहुंच रहे हैं । नन्दके गौशालाके पास कृष्ण - बलरामजी अक्रूरजी से मिले और सादर उनको घरके अन्दर ले गए ।
*कंश बध के बाद बलराम और कृष्ण अक्रूर जी के घर भी गए ।
* कृष्णकी पत्नी सत्यभामा के पिता हैं सत्राजित जो सूर्यके भक्त थे और सूर्यसे उनको स्यमन्तक मणि मिली थी । कृष्ण उस मणि को द्वारकानरेश उग्रसेन जी को देनें की राय दी पर सत्राजित ऐसा न कर सके। उस मणि को सत्राजित के भाई प्रसेन पहनकर शिकार खेलने बनमें गए और एक शेर उनको मार कर मणि ले ली और अंततः वह मणि जाम्बवान के पास पहुँच गयी । कृष्णका नाम आनें लगा की वे प्रसेन जो मार कर मणि ले लिए हैं अतः कृष्ण मणिका पता करते हैं और 28 दिन तक जाम्बवान से युद्ध करते
हैं , जाम्बवान अपनी पुत्री जाम्बवंतीके साथ उस मणिको कृष्ण को दे देता है । कृष्ण उस मणि को सत्राजित को वापिस करते हैं । कृष्ण और बलदेव हस्तिनापुर आये हैं और उधर द्वारका में अक्रूर और कृतवर्मा शतधन्वाको सत्राजितके खिलाफ तैयार कर रहे हैं , फलस्वरुप शतधन्वा सत्राजित को मारता है । मणि अक्रूर जी के पास रख कर शतधन्वा कृष्ण के भय के कारण भाग निकलता है । कृष्ण - बलराम उसका पीछा करते हैं और मिथिला पूरी के पास पहुंचते पहुंचते सतधन्वा को कृष्ण मारते हैं पर मणि तो उसके पास है नहीं । बलराम कई साल विदेहके पास रहे और कृष्ण द्वारका वापिस आगये । अक्रूरजी से उस मणि को लेकर कृष्ण उग्रसेन को देते हैं ।
* कंश बधके बाद कृष्ण अक्रूरजीको हस्तिनापुर भेजते हैं यह पता लगानें हेतु कि कौरओं का पांडवों के साथ कैसा ब्यवहार है । पांडु की मौत हो चुकी है , धृतराष्ट्र हस्तिना पुरके सम्राट बन गए हैं लेकिन अपनें पुत्रोंके बशमें होनेंके कारण उनका पांडवों के साथ ब्यवहार ठीक नहीं है । अक्रूर कई माह हस्तुनापुर में रहते हैं , स्थिति का अध्यन करनें हेतु और वापिस आकर कृष्ण को वहाँ की स्थिति से अवगत कराये हैं। ~~~ ॐ~~~

Monday, October 21, 2013

एक तरफ सुख और दूसरी तरफ दुःख

● सुख और दुःख ●
* सन्दर्भ : भागवत स्कन्ध - 10 *
** आप सभीं लोग जरा इस प्रसंग पर सोचना ।
* कृष्ण और बलराम ब्रजमें 11 साल रहे और कंशको जब नारद द्वारा यह पता चला कि सभीं ब्रजबासी विष्णु भक्त देवता हैं और नन्दके पुत्र रूप में रह रहे , कृष्ण - बलराम बसुदेवके पुत्र हैं , कृष्ण विष्णुका अवतार है और बलराम शेषजीका अवतार
हैं । यह सारा तंत्र देवताओं और विष्णुका फैलाया हुआ है , आपको मारनें के लिए । आपके अंत की सभीं तैयारियां हो चुकी हैं केवल वक़्त का इन्जार किया जा रहा है , अब ऐसी परिस्थितिमें अपनें बचनेंका उपाय आप सोच सकते हैं तो सोचें , देर करना उचित नहीं ।
* कंश बसुदेव कुलके सदस्य अक्रूरके माध्यम से कृष्ण , बलराम , नन्द और सभीं ब्रज बासियोंको मथुरा आनेंका आमंत्रण भेजते हैं , मथुरामें धनुष यज्ञका महा उत्सव आयोजित किया जा रहा है ।कृष्ण सहित सभीं ब्रज बासी मथुरा आते हैं और मथुराके बाहर डेरा डालते हैं ।
* कंश बधके साथ दो घटनाएँ एक साथ घटित होती हैं ; कृष्ण जो अभीं तक यशोदा की उंगली पकड़ कर कन्हैयाके रूपमें ब्रजकी गलियोंमें सबके जीवन रेखाके रूपमें घूमते रहते थे , वही कन्हैया माँके सामनें आ कर कह रहे हैं कि अब आप लोग ब्रजको वापिस लौट जाय , मैं आप सबसे मिलनें आऊंगा , आप को दुःख तो होगा लेकिन वक़्त की चाह यही है और दूसरी घटना यह है की दोनों भाई मथुरा से लगभग 600 km दूर उज्जैन सान्दिपनी मुनिके आश्रम शिक्षा प्राप्तिके लिए जाते हैं ।
**अब दो बातें जो ध्यान - माध्यम हैं **
1- उज्जैन में सांदीपनी मुनिके यहाँ 64 दिनों में 64 विद्याओंको ग्रहण करना ।
2- कृष्णके बिना यशोदाका मथुरासे ब्रज की यात्रा जो लगभग 30 km है किस तरह से कटी होगी ?
* कृष्ण शिक्षा प्राप्तिके बाद माँ यशोदा से स्वयं मिलनें न जा कर अपने मित्र उद्धव को भेजते हैं।
* कृष्ण 11 सालके थे जब मथुरा आये और फिर लौटके यशोदा - नन्द से मिलनें कभीं नहीं गए ।
* माँ यशोदा और नंद को जब पता चला कि कुरुक्षेत्र में सर्बग्रास सूर्य ग्रहणके अवसर पर उनका कान्हा वहाँ आ रहे हैं तब सम्पूर्ण ब्रज , माँ यशोदा एवं नन्द कुरुक्षेत्र आये और सभीं तीन माह कान्हाके साथ रहे लेकिन उस समय उनका कान्हा लगभग 75-80 साल का हो चूका था ,यह घटना महाभारत युद्धसे पहले की है ।
** भक्ति मार्गी यशोदा के ह्रदय पर ध्यान करें ।
* और *
** ज्ञान योगी कृष्णके ऊपर ध्यान करें ।
~~~ ॐ ~~~

Friday, October 18, 2013

भागवत स्कन्ध - 3 भाग - 1

● भागवत स्कन्ध 3 भाग - 1 ( सार ) 
 <> स्कन्ध - 3 में 1410 श्लोक 33 अध्यायों में हैं ।
 <> यह स्कन्ध ऋषि मैत्रेय और विदुरका संबाद है । 
# विदुर महाभारत युद्धसे ठीक पूर्व धृतराष्ट्र को जो सलाह दिए उसे विदुर नीतिके नामसे जाना जाता है । महाभारत युद्धसे ठीक पहले कृष्ण हस्तिनापुर आये , समझौता करानें लेकिन विफल
 हुए , इसी सन्दर्भमें विदुर को अपमानित किया गया और विदुर हस्तिनापुर छोड़ कर तीर्थ यात्रा पर निकल गए ।
 # विदुर इस यात्रामें सरस्वती के तटके 11 तीर्थो का सेवन किया जो निम्न प्रकार से हैं । त्रित , उशना ,मनु , पृथु , अग्नि , असित , वायु , सुदास , गौ , गुह और श्राद्धदेव । # विदुर जब यात्रासे वापिस हुए तब पहले बृंदाबनमें कृष्णके बाल सखा उद्धवसे मिले और फिर कुशावर्त गंगा तट पर ( हरिद्वारके समीप ) मैत्रेयजीके आश्रम पर उनसे ज्ञान प्राप्त किया ।उद्धव देखनेंमें एकदम कृष्ण जैसे थे और 05 साल की उम्रमें कृष्णकी प्रतिमाएं बनाया करते थे । उद्धवजी असुरोंको भी प्रभु भक्तके रूपमें देखते हैं , उद्धव कहते हैं , असुर लोग द्वेष भावसे ही सही लेकिन हर पल प्रभुको अपनी बुद्धिमें बैठाए तो रहते ही हैं । 
# उद्धव प्रभु की बाल लीलाओं का वर्णन विदुर को सुनाया ।
 # विदुर उद्धवसे मिल कर कुशावर्त क्षेत्र हरिद्वार पहुंचे जहां मैत्रेय का आश्रम था । जब द्वारका एवं यदुकुलका अंत हुआ और प्रभु स्वधाम गए तब मैत्रेय प्रभास क्षेत्रमें सरस्वती तट पर पीपल पेड़के नीचे प्रभुके साथ बैठे थे । 
# मैत्रेयका सृष्टि विज्ञान : स्कन्ध 2.5में ब्रह्माके सृष्टि विज्ञान और यहाँ स्कन्ध -3.5 में मैत्रेय के सृष्टि विज्ञानमें कोई विशेष अंतर नहीं है :
 * तामस अहंकार और कालसे ब्रह्माके विज्ञानमें भूतों की उत्पत्ति होती है और भूतोंसे तन्मात्रों की और यहाँ मैत्रेय तन्मात्र से भूतों की रचना बता रहे हैं ।
 मैत्रेय कहते हैं --- 
# तामस अहंकार और कालसे महत्तत्त्व बना
 * महत्तत्व और कालसे शब्द उपजा हो दृश्य -द्रष्टाका बोध कराता है । + शब्दसे आकाश है । 
* आकाश और कालसे स्पर्श उपज + स्पर्शसे वायु है ।
 * वायु और कालसे रूप उपजा । 
* रूपसे तेज है ।
 * तेज और कालसे रस उपजा । 
* रससे जल है ।
 * जल और कालसे गंध उपजा । 
* गंध से पृथ्वी है ।
 ** 23 तत्त्व ( 11 इन्द्रियाँ + 5 भूत +5 तन्मात्र +अहंकार + महत्तत्त्व ) प्रभुकृपा से आपसमें मिले और अधिपुरुष की उत्पत्ति हुयी ।अधिपुरुषसे सृष्टि आगे बढ़ी ।
 ** स्कन्ध - 3 का यह पहला भाग है ।
** भाग - 2 अगले अंकमें आप देख सकते हैं । 
~~~ ॐ ~~~

Tuesday, October 15, 2013

परशुराम और विश्वामित्र

● परशुराम-विश्वामित्र ●
हिन्दू शास्त्रों में विश्वामित्र और परशुरामका महत्वपूर्ण स्थान है और दोनों की मूल भी एक है ।
* ब्रह्मासे अत्रि ऋषि हुए ,अत्रिसे चन्द्रमा और चन्द्रमा वृहस्पतिकी पत्नी तारासे बुध पैदा हुए।
* बुधसे पुरुरवा पैदा हुए । पुरुरवा और उर्बशी का मिलन कुरुक्षेत्र में सरस्वती तट पर हुआ और दोनों ब्याह बंधन में जुड़ गए । पुरुरवा से 06 पुत्र हुए ।
* पुरुरवाके पुत्रोंमें एक थे विजय जिनका पुत्र था
जुह्नु । जुह्नु बंशमें आगे 5वें बंशज हुए कुशाम्बु । कुशाम्बूके पौत्र हुए विश्वामित्र और कुशाम्बू की पौत्री से जम्दाग्नि पैदा हुए जिनके पुत्र थे परशुराम।
* कुशाम्बुके पुत्र गाधि और गाधिके पुत्र विश्वामित्र
थे ।गाधिकी पुत्री सत्यवतीके पुत्र थे जमदाग्नि और जमदाग्निके पुत्र थे परशुराम ।
* सत्यवती बाद में कौशकी नदी बन गयी थी । कौशकी नदी सरयू और गंगाके मध्य हुआ करती
थी ।कौशकी नदीके तट पर श्रृंगी ऋषि परीक्षितको श्राप दिया था ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, October 12, 2013

भरत जिनके नाम से भारतवर्ष है

● रिषभ देव पुत्र भरत -1 ● 
<> सन्दर्भ : भागवत : स्कन्ध -1 , 5 , 11
 ** बंशावली ** 
स्वायम्भुव मनुके पुत्र प्रियब्रत ,प्रियब्रतसे आग्निध्र ,आग्निध्रसे नाभि और नाभिसे ऋषभ देव पैदा हुए। रिषभदेव 08वें विष्णुके अवतार थे और इनके पुत्र हुए भरत ।रिषभ देव जैनधर्म में पहले तीर्थंकर माने जाते हैं । ऋगवेदमें रिषभदेव का सन्दर्भ मिलता है और सिन्धु घाटी की सभ्यताके सन्दर्भ में की गयी खुदाइयों में इनके प्रमाण मिले हैं । 
 °° भरत °° 
 * स्वयाम्भुव मनु ब्रह्मावर्तके सम्राट थे ,ब्रह्मावर्तकी राजधानी
 थी , बहिर्षमती। यमुनातटके इस क्षेत्रमें सरस्वती नदी पूर्वमुखी थी और दुसरे वाराह अवतारमें प्रभु पृथ्वीको रसातलसे ऊपर इसी क्षेत्रमें ले कर आये थे ।
 * स्वायम्भुव मनुकी कन्या देवहूतिका ब्याह कर्मद ऋषि (विन्दुसरआश्रम ) से हुआ था और 05वें अवतारके रूपमें कर्मदके पुत्र रूपमें कपिल का जन्म हुआ । कपिलके सम्बन्धमें प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ( गीता 10.26 ) सिद्धानां कपिलः मुनिः अस्मि । कपिल मुनि सांख्य योगके जनक कहे जाते हैं ।कर्मद ऋषि ब्रह्मा की छाया से पैदा हुए थे ।
 * रिषभदेवका ब्याह इंद्रकी पुत्री जयंतीसे हुआ और इनके 100 पुत्रोंमें भरत बड़े पुत्र थे । रिषभदेव भरतको राज्य देकर स्वयं अवधूत जीवन गुजारा , ब्रह्मावर्तको त्याग कर कुटकाचल (कर्नाटक ) के जंगलमें अजगर बृति अपना ली और दिगंबरके रूपमें जंगलकी दावाग्निमें अपना शरीर त्यागा लेकिन जैन शास्त्र कहतेहैं कि इनके महा निर्वाणका क्षेत्र कैलाश है । 
* भरतका ब्याह पंचजनीसे हुआ और पांच पुत्र पैदा हुए ।भरत एक करोड़ साल राज्य किया। अजनाभवर्ष इनके नामसे भारतवर्ष हो गया। भरत राज्य पुत्रोंमें बाट कर स्वयं हरिहर क्षेत्र पुलहाश्रम,गण्डकी नदी ,शालग्राममें पहुंच गए। वहाँ आश्रममें ध्यान किया लेकिन एक हिरनके बच्चेसे आसक्त हो गए और साधना खंडित हो गयी फलस्वरूप इनको अगला जन्म हिरनके रूपमें कालंजर पर्वत पर हुआ । भरतको उनका पिछला जन्म याद था अतः कालंजर पर्वतको त्याग कर पुनः शालग्राम क्षेत्र पुलहाश्रम , गण्डकी नदीके तट पर आ गए और गण्डकी नदीमें हिरनके रूप में जल समाधि ले ली ।
 * भरतका तीसरा जन्म अंगिरस गोत्रमें एक ब्राह्मण कुलमें
 हुआ । भरतको यहाँ जड़ भरत के नाम से देखा गया । जड़ भरत सिंध सौबीर राज्यके राजा रहूगणको इक्षुमती नदीके तट पर ज्ञान दिया । इक्षुमती नदी कुरुक्षेत्रसे गुजरती थी और सरस्वती - सिंध नदियोंकी तरह अरब सागरमें जा मिलती थी । 
 ~~~ ॐ ~~~

Tuesday, October 8, 2013

बुद्ध पुरुष का महानिर्वाण

● बुद्धका निर्वाण ● 
 ~ बुद्ध पुरुष अपनी मौतका द्रष्टा होते हैं । 
~ बुद्ध पुरुष स्वेच्छासे प्राण त्यागते हैं । 
~ बुद्ध पुरुषकी मौत इन्तजार करती है । 
<> बुद्ध पुरुष कैसे प्राण त्याग करते हैं ? 
* पहले योग्य जगहकी तलाश करते हैं । 
* उसका इन्तजार करते हैं जिसे अपनी ज्योति देनी होती है । 
°° फिर °° 
° वाणीको मनमें ---- 
° मनको प्राणमें ----
 ° प्राणको अपान वायुमें ---
 ° अपान वायुको उसकी क्रियाओं सहित मृत्युमें --- 
° मृत्युको पञ्चभूतमय शरीरमें लीन करते हैं । 
 ^^ यह भागवतका सार है ^^ 
~~~ ॐ ~~~

Wednesday, October 2, 2013

भागवत स्कंदग - 2 ( सार )

● भागवत स्कन्ध - 2 ( सार ) 
 <> भागवत स्कन्ध - 2 में निम्न बातें हैं । 
* 10 अध्याय हैं । 
* 382 श्लोक हैं ।
 * यह स्कंध शुकदेव - परीक्षित संबादके रूपमें है । 
°° स्कन्धके ध्यान सूत्र °°
 1- भोगीका दिन धन संग्रह और रात स्त्रीकी तलाशमें गुजरती
 है । 
2- जीवोंमें मात्र मनुष्य ऐसा जीव है जिसके अन्दर प्रभुकी सोच किसी न किसी रूपमें होती है । 
3- होशमय एक घडीका जीवन बेहोशीके 100 वर्षके जीवनसे उत्तम जीवन है ।
 4- शुकदेव जी कह रहे हैं , परीक्षित अभी तुम्हारी मौत सात दिन आगे है तुम चाहो तो वैराज्ञ माध्यमसे मोह ,माया मुक्त हो कर परम गति प्राप्त कर सकते हो । 
5- आसन , श्वास ,इन्द्रिय और आसक्ति नियंत्रणसे वैराज्ञमें उतरा जा सकता है । 
6- वह जिसको अंत समय तक देश -कालसे विरक्ति हो जाती है वह परम गतिका राही होता है । 
7- भागवत : 2.5 : ब्रह्मा का सृष्टि विज्ञान : 
 * माया पर कालके प्रभावसे > महतत्त्वकी उत्पत्ति हुयी । 
* महतत्त्व पर कालका प्रभाव हुआ और तीन अहंकार उपजे । 
* सात्विक अहंकारसे मन और इन्द्रियोंके अधिष्ठाता देवोंकी उत्पति हुयी ।
 * राजस अहंकारसे 10 इन्द्रियाँ , बुद्धि और प्राण बना ।
 * तामस अहंकारसे आकाश बना और आकाशका गुण है शब्द तन्मात्र । 
^ आकाश पर कालका प्रभाव वायुको उत्पन्न किया और वायुका तन्मात्र है स्पर्श । 
^ वायु कालके प्रभावमें तेजको पैदा किया , तेजका तन्मात्र है
 रूप । 
^ तेज और कालसे जल बना , जलका तन्मात्र है रस । 
^ जल और कालसे पृथ्वी बनी ,पृथ्वीका तन्तात्र है गंध ।
 ^^ 05 बिषय ( तन्मात्र ), 05 महाभूत ,11 इन्द्रियाँ ,
 बुद्धि ,तीन अहंकार और तीन गुणों से ब्रह्माण्ड एवं देह पिंडकी रचना है । 
8- भागवत : 2.9 में भागवतके 10 लक्षणों को ब्यक्य किया गया है जो निम्न प्रकारसे हैं । 
* सर्ग *विसर्ग *पोषण * ऊति *मन्वन्तर *ईशानुकथा *निरोध *मुक्ति *आश्रय । # सर्ग : महतत्त्व +महाभूत +अहंकार + इन्द्रियोंकी उत्पति सर्ग है । # विसर्ग : ब्रह्माकी उत्पत्तियाँ जिंक्स आधार सर्ग हैं , विसर्ग कहलाती हैं । 
< भागवत स्कन्ध - 2 समाप्त < 
~~ ॐ ~~