Sunday, May 29, 2011

गीता के200 ध्यान सूत्र

यहाँ हम गीता के200ऐसे सूत्रों को देख रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध ध्यान से है/

जिस दिन यह श्रंखला समाप्त होगी उस दिन आप के पास दो सौ गीता के ऐसे सूत्र होंगे जिनको आप अपना कर ध्यान मे उतर सकते हैं / आइये देखते हैं कुछ और सूत्रों को -------

गीता सूत्र5.4

कर्म करनें की चाह , कर्म – फल की रचना एवं कर्म की रचना प्रभु नहीं करते , यस सब स्वाभाव आधारित होते हैं //

गीता सूत्र18.23

राग – द्वेष रहित कर्म सात्त्विक कर्म हैं //

गीता सूत्र18.24

कामना एवं अहंकार की ऊर्जा से जो कर्म होते हैं वे राजस कर्म हैं //

गीता सूत्र18.25

मोह आधारित कर्म तामस कर्म हैं //

गीता सूत्र3.5

कर्म कर्ता हम नहीं गुण होते हैं और एक क्षण के लिए भी कोई कर्म मुक्त नहीं हो सकता //

गीता सूत्र18.11

कर्म मुक्त होना तो संभव नहीं लेकिन कर्म में कर्म - फल की चाह का त्याग ही कर्म – त्याग

होता है //

गीता सूत्र3.27

कर्म कर्ता तो तीन गुण हैं लेकिन मैं कर्ता हूँ की भावना अहंकार की छाया होती है //

गीता सूत्र2.45

तीन गुणों से जो कर्म होते हैं उनका सम्बन्ध सीधे भोग से है और ऐसे कर्मों के फल की प्राप्ति की

पूरी गणित वेदों में दी गयी है //


=====ओम======


Thursday, May 26, 2011

गीता के200ध्यान – सूत्र


अगले सूत्र

3.33 , 18.59 , 18.60 , 3.8 , 18.19

गीता के पांच सूत्र क्या कह रहे हैं?


सूत्र – 3.33 , 18.59 , 18.60

प्रभु इन सूत्रों के माध्य से अर्जुन को बता रहे हैं कि … ....

अर्जुन!

तीन गुण मनुष्य के स्वभाव का निर्माण करते हैं और स्वभाव कर्म – ऊर्जा का श्रोत है /

Here Lord Krishna says …....

Three natural modes form the nature of human being and man does the work according to

his nature . In fact man is not the doer work is done by the energy of modes .

सूत्र – 3.8 , 18.19

प्रभु यहाँ इन सूत्रों के माध्यम से कह रहे हैं-------

नियत कर्मों का त्याग करना उचित नहीं/नियत कर्म ऐसे कर्म हैं जो प्रकृति की जरूरतों को

पूरा करते हों और जिनके करनें में कोई संकल्प – विकल्प न हो/

दूसरी बात यहाँ प्रभु कह रहे हैं------

ज्ञान,कर्म और कर्म – कर्ता गुणों के आधार पर भौतिक रूप में तीन – तीन प्रकार के होते हैं/

Here Lord Krishna says …...

Renunciation of the most vital actions which are the basic requirement of the nature is not

the right way , one must do such basic actions but there should not be attachment , desire , ego

and anger behind the performance of actions .


गीता को कम से कम शब्दों में ब्यक्त करना गीता के सूत्रों की मौलिकता को अधिक खराब नहीं करता

अतः मेरा प्रयास यह है की गीता के सूत्रों के मर्म को आप समझ कर स्वयं की ऊर्जा उन पर लगाएं/

मैं अपनें शब्दों में आप को बाधना नहीं चाहता आखिर आपमें वही प्रभु बसा है जो मेरे में है,

आप हो सकता है मुझसे कुछ अधिक समझ रखते हों//


=====ओम======



Thursday, May 19, 2011

गीता के दो सौ ध्यान सूत्र

अगले सूत्र

[]गीता सूत्र –3.8

[]गीता सूत्र –18.48


सूत्र –3.8

प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं-----

अपनें नियत कर्मों को करो ; कर्म न करनें से कर्म करना उत्तम है //


सूत्र –18.48

यहाँ प्रभु कह रहे हैं----

कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो लेकिन सहज कर्मों को करते रहना चाहिए //


गीता के इन दो सूत्रों को आप अपना बना लो और केवल एक बात पर अपनी उजा केंद्रित रखो /

वह बात क्या है ?

केवल उन कर्मों को करो जो … ..

[ ] नियत कर्म हों

[ ] सहज कर्म हों


नियत कर्म उन कर्मों को कहते हैं जिनके न करनें से प्रकृति में बने रहना कठीन हो जाए

और नियत कर्मों में सहज कर्मों की परख होनी चाहिए;सहज कर्म उन कर्मों को कहते हैं

जिसके होनें में किसी अन्य जीब के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो//


जीवन के लिए क्या करना जरूरी है ? और उनमें किस के करनें में किसी अन्य जीवधारी का

जीवन जोखिम में न पड़ता हो , बश इन दो बातों को अपनें साथ रख कर आगे चलते रहिये /


बहुत कठिन काम है;कौन ऐसा करेगा और जो करेगा वह …..

प्रभु समान ही होगा लेकिन ….

ऐसे कर्म – योगी दुर्लभ होते हैं जिनको ….

बुद्ध कहते हैं//


==== ओम ======


Monday, May 16, 2011

गीता के200 ध्यान सूत्र

अगला सूत्र

गीता सूत्र –4.18

कर्मणि अकर्म य : पश्येत् अकर्मणि च कर्म य : /

: बुद्धिमान् मनुष्येषु स : युक्त : क्रित्स्त्र्न् - कर्म - कृत् //

कर्म मे अकर्म और अकर्म में कर्म देखनें वाला बुद्धिमान होता है और कर्मों का

गुलाम नहीं बनता//


He who in his action sees inaction and action in inaction , he is wise among men ,

he is yogin and does not controlled by his actions .

What is Akarma ?


Action performed without attachment , without desire , without passion ,

without delusion and ego is said Akarma .


पहले के अंको में आप को बताया गया ….....

कर्म रहित कोई नहीं हो सकता क्योंकि कर्म गुणों से हैं , गुणों की ऊर्जा कर्म

होनें का कारण है / कर्म में गुण तत्त्वों की पकड़ को समझना ही कर्म – योग है /

गीता यह नहीं कहता कितुम बाएं चलो या दाहिनें गीता कहता है तुम

जो भी कदम उठाओ वह होश से परिपूर्ण हो और गुण – ऊर्जा के सम्मोहन में न

उठा हो/

लोग कर्म के एक – एक तत्त्वों की साधना बताते हैं जो संभव नहीं क्योंकि कर्म

के सभीं तत्त्व एक दूसरे से सम्बंधित हैं ; जब एक को पकड़ा जाता है तब कई अन्य

प्रभावित होते हैं / गीता कर्मों के बीज को समाप्त नहीं करता बीज को शुद्ध करता है /

गुणों से गुणातीत को देखा जा सकता है

भोग से योग की लहर को देखा जा सकता है

और

प्रकृति से पुरुष की समझ जगाई जा सकती है//


===== ओम ======



Saturday, May 14, 2011

गीता के दो सौ ध्यान सूत्र

अगला सूत्र

न कर्मणां अनारम्भात् नैष्कर्म्यम् पुरुषः अश्नुते/

न च सन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति//

गीता- 3.4

गीता कह रहा है …...

कर्म को त्याग देनें से नैष्कर्म्यसिद्धि नहीं मिल सकती//

Here Gita says …...

By stopping doing work one can not achieve the perfection of Karma – Yoga .

Naishkarmya is the state where one is not affected by the result of the work .

According to law of Physics......

Every action has equal and opposite reaction and so one is suppose to be affected by

his action but Gita,s Karma – Yoga gives the Physics which is not the subject of

intelligence but it is the realization through consciousness .

गीता-गणित जो कर्म – योग से सम्बंधित है उसका एक भाग हमनें पीछले कुछ

सूत्रों के माध्यम से देखा जिनका सर यहाँ पुनः दिया जा रहा है/

गीता कहता है-----

कोई एक पल के लिए भी कर्म रहित नहीं रह सकता क्यों कि कर्म मनुष्य नहीं करता,कर्म

मनुष्य के अंदर स्थित गुण समीकरण करता है/कुछ लोग कर्म – त्याग करके

योग में उतरना चाहते हैं और यह उचित नहीं क्योंकि योग की सिद्धि,

मन – बुद्धि के अंदर उपजी नैष्कर्म की स्थिति है जो बिना कर्म किये कैसे मिल सकती है?

कर्म में कर्मों की पकड़ को समझना,कर्म – योग है और कर्म – तत्त्वों की समझ ही

नैष्कर्म की स्थिति में पहुंचाता है//


====ओम=====


Wednesday, May 11, 2011

गीता के दो सौ श्लोक

अगला श्लोक

गीता श्लोक18 . 50

सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथा आप्नोति निबोध मे /

समासेन एव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा //


नैष्कर्म की सिद्धि ज्ञान योग कि परा निष्ठा है जिसमे ब्रह्म की अनुभूति होती है //

Here The Lord Krishna says …. .....


The perfection of Action – Yoga called naishkarma – siddhi takes into the space of wisdom .

Wisdom is an energy field in mind – intelligence network where realization of the

Supreme Brahman takes place .

इस श्लोक के पहले हमनें पिछले अंक में देखा था गीता सूत्र 18 . 49 जिस में

प्रभु कहते हैं …...

आसक्ति - कामना रहित कर्म नैष्कर्म्य योग की सिद्धि है और यहाँ कह रहे हैं ------

नैष्कर्म्य योग कि सिद्धि ज्ञान योग कि परा निष्ठा है //

परा निष्ठा क्या है ?

परा एक मन – बुद्धि कि स्थिति होती है और यह स्थिति तब आती है जब ….

तन , मन एवं बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा बह रही होती है //

तन , मन एवं बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा तब बहती है जब उस ब्यक्ति को …..

सम्पूर्ण ब्रहमांड ब्रह्म के फैलाव स्वरुप दिखनें लगता है //


==== ओम ======


Sunday, May 8, 2011

गीता के दो सौ सूत्र


अगला सूत्र –18.49

असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगत – स्पृह : /

नैष्कर्म्य - सिद्धिं परमां संयासेन अधिगच्छति //

आसक्त रहित कर्म का होना ही नैष्कर्म – सिद्धि है//

Action without attachment indicates that the yogin in action is in the space of

actionlessness .

What is naishkarmya – siddhi [ actionlessness ] ?

It is a state of mind – intelligence system where man in action

does not have the feeling that he is the doer ; he feels that the performer

of this action is guna [ natural modes ] and I am just the witnesser .


गीता साधना का एक पॅकेज है जिसमें … ....

भक्ति है

कर्म – योग है

ज्ञान – योग है

और सांख्य – योग है

अतः जो गीता को एक मार्गी बनाना चाहा है यह उनकी महान भूल है /

कर्म – योग में नैष्कर्म्य – सिद्धि से वह चाभी मिलती है जिस से प्रभु के द्वार को खोला

जाता है //


==== ओम ======




Thursday, May 5, 2011

गीता के दो सौ सूत्र


अगला सूत्र –18 . 49

असक्त – बुद्धि:सर्वत्र जितात्मा विगत – स्पृह: /

नैष्कर्म – सिद्धिम् परमां संयासेन अधिगच्छति//

आसक्ति रहित कर्म,कर्म – योग की सिद्धि है/


action without attachment is the symptom of the perfection of the Karma – Yoga .

यहाँ गीता मे प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को क्या कह रहे है?इस बात को आप बाद में सोचना,यहाँ अब इस श्लोक को भी देख लो-------

कर्मणि एव अधिकार;ते

मा फलेषु कदाचन/

मा कर्मफल हेतु:भू:मा

ते संग:अस्तु अकर्मणि//

गीता सूत्र –2.47

कर्म करना सब का अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन कर्म – फल की चाह किसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता/अतः तुम अपनें कर्म का कारण समझो और बिना फल – कामना अपनें कर्म को करो/

इस सूत्र का आधा भाग भोगियों को भा गया[कर्म करना मेरा अधिकार है]और रात – दिन

लग गए भोग कर्म में,संसार का नंबर एक ब्यक्ति बननें के इरादे से/आप देखते हैं मनुष्य की चालाकी को?

फल की कामना कर्म में न आनें पाए,इसकी साधना के लिए प्रभु कर्म को माध्यम बना रहे हैं लेकिन हम लोग कर्म – फल की सोच के बिना एक कदम भी आगे नही रखते और कहते हैं …...

भाई,क्या करें गीता कहता है,कर्म करो और मैं गीता का भक्त हूँ/

संत पुरुष,बुद्ध लोग,साकार रूप में अवतरित हुए प्रभु चाहे जो कहते हों लेकिन उनकी

बातें हमें प्रिय लगती हैं क्यों?

क्योकि उनकी बातों का अर्थ तो हमारा ही होता है//

बुद्ध पुरुष हमारी भक्ति से खुश और हम अपनें स्वार्थ की बात सुन कर खुश,सभी खुश हैं

लेकिन हमारी खुशी दुःख के बीज रूप में होती है और बुद्ध पुरुष खुशी के आलावा और कुछ समझता ही नहीं//


======ओम======



Sunday, May 1, 2011

गीता के दो सौ सूत्र

अगला सूत्र …...

गीता सूत्र –13 . 3

क्षेत्रज्ञं च अपि मां विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत /

क्षेत्र क्षेत्र – ज्ञयो : ज्ञानं यत् तत् ज्ञानं मतं मम //


प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --------

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध जो कराये वह ज्ञान है //

Lord Krishna says …....

The awareness of body and the operator of the body – the Soul , is knowledge .

Here this knowledge means the purest form of knowledge known as wisdom .


आदि गुरू शंकराचार्य , माधवाचार्य से ले कर सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक एक नहीं अनेक

दर्शन से जुड़े लोगों नें गीता के इस सूत्र का ठीक ऐसा ही अनुबाद किया है जैसा ऊपर बताया गया /

सब नें ज्ञान की परिभाषा यही दिया है की क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है लेकिन कहीं किसी नें

इस परिभाषा के आधार पर गीता में जहां - जहां भी ज्ञान शब्द आया है उसको इस परिभाषा

से नहीं देखा , सब किताबी ज्ञान को ज्ञान कहा है अर्थात वह जो शास्त्रों या ग्रंथों से मिलता है /


प्रो.आइन्स्टाइन कहते हैं--------

जब मैं गीता में ब्रह्माण्ड रचना के सम्बन्ध में पढता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की गीता से और उत्तम

ब्रह्माण्ड रचना के सम्बन्ध में कहीं और नहीं होंगी/

आइन्स्टाइन आगे कहते हैं ….....

ग्रंथों से जो ज्ञान मिलता है वह मुर्दा ज्ञान होता है लेकिन वह जो चेतना से टपक कर बुद्धि में

आता है,वह ज्ञान सजीव – ज्ञान होता है//

आप जब कभी गीता उठायें और गीता में ज्ञान शब्द को देखें तो ज्ञान की यह

परिभाषा ही अपनें अंदर रखें//


===== ओम ========