नारायण बलि [ भगवान विष्णु की पूजा ]
भगवान विष्णु स्वयं अपनी पूजा की विधि कुछ इस प्रकार से बता रहे हैं ----------
पूजन करनें वाला स्नान करके कुछ देर अपनें मन को शांत रखनें के लिए ध्यान करे
पूजक का मन काम,क्रोध,लोभ,मोह एवं भय रहित होना चाहिए
न्याय से जो कमाई हुयी हो उस के पैसों से शुद्ध सोनें की 32 माशे की प्रतिम बनवानी चाहिए
प्रतिमा को सप्त तीर्थों से लाये गए जल से स्नान कराना चाहिए
प्रतिमा को दो पीले रंग के वस्त्रों को पहनाना चाहिए
प्रतिमा को आभूषणों से सजाएं
प्रतिमा के पूर्व भाग में श्रीधर की … ...
प्रेमा के पश्चिम भाग में वामदेव की … ..
प्रतिया के उत्तर भाग में गदाधर की …..
प्रतिमा के दक्षिण भाग में मधुसूदन की …...
प्रतिमा के मध्य भाग में ब्रह्मा एवं महेश्वर को स्थापित करें
सभीं के प्राण प्रतिष्ठा के बाद सबकी विधिवत पूजा करें
प्रेत को घट दान करें-------
शुद्ध सोनें का बना एक घड़ा हो जिसको घृत र्एवं दूध से भरें
वरुण,यम,इंद्र एवं कुबेर आदि सभीं लोक पालों का आह्वान करें
विधिवत पूजन के बाद घड़े को प्रेत को दान करें
पूजन की समाप्ति पर सभीं देवों का विधिवत विसर्जन करें
राजा जंगल से वापिस जा कर अपनें महल में उस प्रेत की मुक्ति के लिए नारायण बलि एवं घडा दान का आयोजन किया और जब प्रेत इस पूजन से मुक्त हुआ तब राजा को महामणि दे कर अंतर्ध्यान हो गया /
गरुण पुराण अध्याय सात का समापन
==== ओम् =====