Saturday, April 21, 2012

गरुण पुराण अध्याय सात का समापन

नारायण बलि [ भगवान विष्णु की पूजा ]

भगवान विष्णु स्वयं अपनी पूजा की विधि कुछ इस प्रकार से बता रहे हैं ----------

  • पूजन करनें वाला स्नान करके कुछ देर अपनें मन को शांत रखनें के लिए ध्यान करे

  • पूजक का मन काम,क्रोध,लोभ,मोह एवं भय रहित होना चाहिए

  • न्याय से जो कमाई हुयी हो उस के पैसों से शुद्ध सोनें की 32 माशे की प्रतिम बनवानी चाहिए

  • प्रतिमा को सप्त तीर्थों से लाये गए जल से स्नान कराना चाहिए

  • प्रतिमा को दो पीले रंग के वस्त्रों को पहनाना चाहिए

  • प्रतिमा को आभूषणों से सजाएं

  • प्रतिमा के पूर्व भाग में श्रीधर की … ...

  • प्रेमा के पश्चिम भाग में वामदेव की … ..

  • प्रतिया के उत्तर भाग में गदाधर की …..

  • प्रतिमा के दक्षिण भाग में मधुसूदन की …...

  • प्रतिमा के मध्य भाग में ब्रह्मा एवं महेश्वर को स्थापित करें

  • सभीं के प्राण प्रतिष्ठा के बाद सबकी विधिवत पूजा करें

प्रेत को घट दान करें-------

  • शुद्ध सोनें का बना एक घड़ा हो जिसको घृत र्एवं दूध से भरें

  • वरुण,यम,इंद्र एवं कुबेर आदि सभीं लोक पालों का आह्वान करें

  • विधिवत पूजन के बाद घड़े को प्रेत को दान करें

  • पूजन की समाप्ति पर सभीं देवों का विधिवत विसर्जन करें

  • राजा जंगल से वापिस जा कर अपनें महल में उस प्रेत की मुक्ति के लिए नारायण बलि एवं घडा दान का आयोजन किया और जब प्रेत इस पूजन से मुक्त हुआ तब राजा को महामणि दे कर अंतर्ध्यान हो गया /

गरुण पुराण अध्याय सात का समापन

==== ओम् =====


Wednesday, April 18, 2012

गरुण पुराण अध्याय सात भाग दो

गरुण पुराण अध्याय सात में श्री गरुण जी भगवान विष्णु से उन उपायों को जानना चाहते हैं जिनसे यातो नरक जानें से बचा जा सके या फिर प्रेत योनि जिनको मिली हुयी है उनको वहाँ से उद्धार कैसे किया जा सकता है/भगवान इस सम्बन्ध में श्री गरुण जी को एक कथा सुना रहे हैं जो कुछ इस प्रकार से है ….......

कथा

एक राजा शिकार खेलनें हेतु जंगल में पहुंचे और कुछ समय के लिए एक जलाशय के नजदीक एक सघन बृक्ष के नीचे लेते हुए थे और देखा की एक प्रेत उनकी ओर आ रहा है / प्रेत राजा का अभिवादन किया और राजा से प्रार्थना किया कि वे उसे प्रेत योनि से मुक्त कराएं / प्रेत कहता है , हे राजन ! मैं इसी आर्यवर्त देश के वैदेश नगर का निवासी था / सी धार्मिक नगर में मेरा निवास था और वैश्य कुल में मेरा जन्म हुआ था / मेरे लाख युक्ति के बाद भी मेरे घर पुत्र न जन्म ले सका और पुत्र बिहीन स्थिति में मेरा अंत आ आया और मुझे प्रेत की योनि मिली / मैं सुना हूँ कि वह जिसकी षोड्श मासिक श्राद्ध न की गयी हो वह प्रेत योनि में पहुँचता है और यह श्राद्ध मात्र पुत्र कर सकता है / हे राजन ! आप कृपया और्ध्व दैहिक क्रिया करके मेरा उद्धार करो क्योंकि राजा प्रजा का यह क्रिया कर सकता है / आप यदि मुझे प्रेत योनि से मुक्त करवाते हैं तो मैं आप को मणि रत्न दूंगा /

प्रेत कहता है , हे राजन ! अब मैं आप को नारायण बलि [ विष्णु पूजा ] की विधी को बताता हूँ /

पूजन सामग्री

32 माशे स्वर्ण की नारायण की एक प्रतिमा

दो पीले वस्त्र इस प्रतिमा के लिए

सप्त तीर्थों का जल

श्रीधर , मधुसूदन , वामदेव , गदाधर , ब्रह्मा , महेश्वर , गंध , पुष्प , घी , दूध , दही , हल्दी , कुश , नैवेद्य , पंचामृत , सरकरा , कच्चा सूत , आम की सूखी लकडी , तिल , जौ , चावल , शहद , गाय का गोबर और अन्य पूजन सामग्रियां

सप्त तीर्थ क्या हैं?

गरुण पुराण अध्याय – 16 में सप्त तीर्थ के रूप में निम्न का नाम है -----

अयोध्या,मथुरा,हरिद्वार,काशी,कांची,उज्जैन,द्वारिका

वेदों में सप्त सिंधु , सप्त ऋषि , सप्त अन्न , सप्त तीर्थ और सात दिन का अपना रहस्य है , आखिर वेदिक लोगों को सात और नौ संख्याओं से इतना गहरा लगाव क्यों था ?

शेष अगले अंक में-----

==== ओम्======


Sunday, April 15, 2012

गरुण पुराण अध्याय सात भाग एक

वभ्रू वाहन प्रेत संस्कार वर्णन

गरुण जी अपनें अगले प्रश्न में पूछते हैं--------

हे प्रभु! कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे नरक न जाना पड़े और सत् गति प्राप्त हो सके?

गरुण पुराण अध्याय सात में हमें गरुण जी के ऊपर दिए गए प्रश्न के साथ निम्न बाते देखनें को मिलती हैं …......

  • पुत्र हीन ब्यक्ति नरक की यात्रा करते हैं

  • पुत्र प्राप्ति के उपाय

  • पुत्र की परिभाषा

  • और प्रेत योनि से उद्धार के सम्बन्ध में एक कथा

आइये अब देखते हैं अध्याय सात को …...

श्री विष्णु भगवान कह रहे हैं------

हे गरुण जी! पुत्रवान धर्मात्मा पुरुष कभीं नरक की यात्रा नहीं करता और पुत्र हीन एवं पापी लोग नरक की यात्रा करते हैं/ पुत्र प्राप्ति के लिए हरिबंश पुराण की कथा सुननी चाहिए, शतचंडी का पाठ करवाना चाहिए या शिब की आराधना करनी चाहिए/ वह, जो पुन्नाम नरक से एवं वैतरणी आदि की यात्रा से मुक्त कराये, पुत्र होता है/ एक धर्मात्मा पुत्र सारे कुल को तार सकता है/ पुत्र के मात्र मुख देखनें से ही मनुष्य पित्री ऋण से मुक्त हो जाता है और पौत्र का स्पर्श मात्र देव, पितृ एवं मनुष्य ऋणों से मुक्त होना संभव है/ वेद विधि से जो ब्याह हो उससे जो पुत्र मिलता है वह सीधे स्वर्ग भेज सकता है और रखैल से प्राप्त पुत्र नरक की यात्रा कराता है/ पुत्रों के द्वारा किये गए श्राद्धों से द्वारा मुक्ति

मिलती है/

अगले भाग में आप को एक कथा मिलेगी जो प्रेत योनि से मुक्ति प्राप्त करने के सम्बन्ध में गरुण पुराण में दी गयी है/ आप एक बात को अपनी बुद्धि में बैठा लें कि मैं यहाँ गरुण पुराण को ठीक उस तरह से आप को देना चाह रहा हूँ जैसा यह पुराण है, आप इसे पढ़ें और अपना अर्थ लगाए, मैं इतना काबिल नहीं की गरुण पुराण को अपनें शब्दों में ढाल सकूं/

====ओम्=======



Friday, April 13, 2012

गरुण पुराण अध्याय छः का आखिरी भाग

गरुण पुराण अध्याय – 06 भाग एक में हमनें देखा कि गर्भ में जीव के आनें की प्रक्रिया को और गर्भ में जीव को भूख प्यास पांचवें माह से प्रारम्भ हो जाती है / भाग दो में हमनें देखा कि गर्भ में जीव को सातवें माह में ज्ञान होता है और गर्भ में मिल रहे दुखों की संवेदनाएं उसे प्रभु की स्मृति में पहुंचानें लगती हैं और वह जिव सातवें माह से पैदा होनें तक प्रभु - प्रार्थना में रहता है , गर्भ से मुक्त होनें के लिए और अब आगे अध्याय – 06 का तीसरा भाग ----------

भाग –03

शिशु अवस्था में पराधीन स्थिति में वह जीव अवाक स्थिति में दुःख भोगता रहता है और जब रोता है तब माँ उसकी वेदना को समझनें का प्रयाश करती है और दूध या औषधि उसे पिलाती रहती है /

पांच साल की अवस्था पार कर के वह जिस अवस्था में पहुँचता है उसे पोगंड कहते हैं / यहाँ से अध्ययन प्रारम्भ होता है / धीरे - धीरे वह आसुरी संपत्ति प्राप्त करानें वाली यौवन अवस्था में

पहुँचता है जहाँ वह बिषय एवं इंद्रियों का गुलाम बन कर रहता है और काम , कामना , क्रोध , लोभ , भय , मोह एवं अहँकार के इशारों पर अपनें तन , मन एवं बुद्धि को चलाता रहता है / यही जीव जब गर्भ में था तब सातवें माह से जन्म लेनें तक प्रभु को अपने स्मृति में रखे हुआ था और जब युवा अवस्था में पहुँचता है तब उसकी पीठ स्वतः प्रभु की ओर हो जाती है और भोग पर उसका तन , मन एवं बुद्धि टिक जाती है /

जीव भोग को भगवान समझ कर जीनें वाला प्रभु निर्मित तीन गुणों कि माया में उलझा आसुरी स्वभाव में पड़ा धीरे - धीरे मौत की ओर सरकता हुआ आगे चलता रहता है और पिछली मौत से लेकर वैतरणी नदी में पाए गए कष्टों को तथा नरक में जो दुःख झेले हुए था उन सबको वह भूल जाता है और यह समझनें लगता है की वह अमर है और अन्य सभी नाशवान हैं / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं [ श्लोक – 16.21 ] , काम , क्रोध एवं लोभ नरक के द्वार हैं और भोग में उलझा जीव इन द्वारों के चौखटों के सहारे नरक में पुनः पहुंचता है / गीता कहता है [ श्लोक – 2.62 – 2,63 ] मन में बिषयों के प्रति उठा मनन आसक्ति को पैदा करता है , आसक्ति से कामना - संकल्प का जन्म होता है , कामना टूटनें की उम्मीद कमाना ऊर्जा को क्रोध में बदल देती है और क्रोध पतन का कारण होता है //

गरुण पुराण अध्याय –06यहाँ समाप्त होता है//

=====ओम्======


Wednesday, April 11, 2012

गरुण पुराण अध्याय - 06 भाग दो

जीव की गर्भ में क्या स्थिति होती है?

जीव माँ के गर्भ में जहाँ रहता है वह स्थान जैसा है उसकी कल्पना कोई भी कर सकता है , आज वैज्ञानिक युग में / जीव जिस मार्ग से गर्भ से बाहर आता है वह मार्ग है मूत्र मार्ग अर्थात उस मार्ग से मूत्र बाहर आता रहता है और आगे ------

  • गर्भ में वह नीचे सिर और ऊपर पैर करके रहता है

  • वह एक अंड के आकार में रहता है

  • उसकी पीठ धनुष की भांति मुडी होती है और सिर दोनों भुजाओं के मध्य रहता है

  • माता जब कड़वी,तीखी वास्तु खाती है तब उसे दुःख होता है

  • गर्भ में जरायु झिल्ली में ऐसे बधा रहता है जैसे बोरे में अनाज रखा जाता है

  • एक पिजड़े में जैसे एक पंक्षी कैद रहता है वैसे जीव गर्भ में कैद रहता है

  • गर्भ में शूक्ष्म कीटाणु उसे समय समय पर काटते रहते हैं

  • गर्भ के सातवे माह में जीव को कुछ ज्ञान आता है

  • वह गर्भ में जल चरों की भांति एक पल के लिए भी शांति में नहीं रहता

  • गर्भ में बोध आनें पर जीव प्रभु से आराधना करता है और अपनें द्वारा किये गए पापों के लिए क्षमा चाहता है

  • वह गर्भ से मुक्त हो कर प्रभु की स्मृति में रहना चाहता है

  • जीव प्रभु से आगे कहता है-मैं समझता हूँ कि संसार में आकर मैं पुनः भोग बंधनों में उलझनें वाला हूँ अतः मैं गर्भ से बाहर नहीं जाना चाहता और यहीं राह कर आप की स्मृति में रहता हुआ अपना उद्धार करना चाहता हूँ

  • जीव अंत के दो माह तक गर्भ में प्रभु की स्मृति में रहता है

  • जीव गर्भ में जरायु के बंधन में रहता है और बाहर आनें पर प्रभू की माया उसे घेर लेती है

  • जीव गर्भ से बाहर आनें के बाद से मृत्यु तक माया में डूबा रहता है

  • कालान्तर में कोई एकाध ऐसा जीव अवतरित होता है जो मायामुक्त रह पाता है लेकिन ऐसे जीव दुर्लभ हैं /

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं[गीता श्लोक –7.15 ] -------

माया के सम्मोह में जो रहता है वह आसुरी प्रकृति वाला मुझसे दूर रहता है//

==== ओम्======




Monday, April 9, 2012

गरुण पुराण अध्याय 06 भाग एक

गरुण जी का पाँचवाँ प्रश्न

हे केशव!नरक में आया हुआ जीव माता के गर्भ में कैसे आता है एवं गर्भ में दुःख कैसे भोगता है?

भगवान विष्णु गरुण जी को बताते हुए कह रहे हैं--------

स्त्री का रज एवं पुरुष का वीर्य जब गर्भाशय में एक साथ मिलते हैं तब गर्भ में जीव आता है / जीव का गर्भ में आनें की घटना को कुछ इस प्रकार से समझते हैं ---------

  • मासिक धर्म के प्रारंभिक तीन दिनों में जो गर्भ में जीव आता है वह नरक से आता है

  • मासिक धर्म के चौथे दिन स्त्री स्नान करके पवित्र हो जाती है

  • वीर्य की अधिकता लडके को गर्भ में लाती है

  • रज की अधिकता से लड़की गर्भ में आती है

  • दोनों के बिभाजन से एक से अधिक बच्चे गर्भ में आ सकते हैं

  • जीव अपनें कर्मों के अनुसार वीर्य के विन्दुओं में आश्रय लेता है

  • मासिक धर्म के दस दिन बात रज अंडाकार बन जाता है

गर्भ में जीव के आकार का निर्माण

पहले माह सिर , दूसरे माह भुजा , तीसरे माह नाख़ून – बाल – हड्डी - खाल – लिंग का निर्माण होता है चौथे माह मांस रुधिर , मेदा , मज्जा , एवं धातुओं का निर्माण होता है / छठें महीनें झिल्ली बनती है जिसको जरायु कहते हैं / जरायु में लिपटा हुआ जीव दाहिनें कोख में भ्रमण करता रहता है / जरायु वह माध्यम है जिसमें जीव की सुरक्षा होती है और माँ जो भी ग्रहण करती है जैसे खान , पान एवं

संवेदनाएं , ये सब गर्भ में स्थित बच्चे को इस झिल्ली के माध्यम से मिलती रहती हैं / जरायु एक हर पल बदलती रहनें वाली रासायनिक एवं जैविक झिल्ली होती है जिससे तरह – तरह की दुर्गन्ध आती रहती है /

कुछ अगली बाते अगले अंक में …......

====ओम्======




Saturday, April 7, 2012

गरुण पुराण अध्याय पञ्च आ अंतिम भाग



विष्णु भगवान पाप कर्म करनें वालो के सम्बन्ध में कुछ और बातों को कुछ इस प्रकार से यहाँ बता रहे हैं ------------
  • छोटी बालिका के साथ ब्याभिचार करने वाला अजगर की योनि में पहुँचता है
  • गुरु की पत्नी के साथ सम्बन्ध स्थापित करनें वाला विषखोपडा बनता है
  • रानी और मित्र की पत्नी से जो सम्बन्ध रखता है वह गधे की योनि में पहुँचता है
  • गुदा द्वार से मैथुन करनें वाला सूअर बनता है
  • शुद्र नारी के साथ सम्बन्ध स्थापित करनें वाला बैल या घोड़ा बनता है
  • देवताओं के अंश का भोजन जो करता है वह मुर्गा बनता है
  • ब्रह्म हत्या करनें वाला गधा या ऊँट या भैंस बनता है
  • शराबी भेडिया कुत्ता या सियार बनता है
  • दूसरे की पत्नी को हडपने वाला , किसी की धरोहर को अपनानें वाला ब्रह्म राक्षस कहलाता है
  • बरहन के धन पर अधिकार जमानें वाले की सात पीढियां नश्र हो जाती हैं
  • बलात्कार एवं चोरी का धन मनुष्य का कुल चन्द्रमाँ एवं तारामंडल तक नाश होता है
  • ब्राह्मण के धन से तैयार की गयी सेना कभी सफलता नहीं प्राप्त करती
  • ब्राह्मण की वह जमीन जो डान में उसे मिली होती है उको हडपने वाला 60,000 सलों तक विष्ठा का कीड़ा बन कर रहता है
  • जो स्वयं दान दी गयी जमीन को पुनः अपनें कब्जे में लेता है वह महा प्रलय तक नरक में रहता है
  • ब्राह्मण की आजीविका को छीननें वाला बन्दर या कुत्ता बनता है
बुरे कर्म करनें वाले नरक की यातनाओं को भोग कर ऊपर बतायी गयी योनियों में जन्म लेते हैं और हजारों सालों तक यातनाओं को झेलते रहनें के बाद पुनः पक्षियों की योनियों में जन्म लेते हैं जहाँ वर्षा , जाड़ा , धुप आदि का दुःख भोग कर पुनः मनुष्य योनि उनको मिलती है / अंडज , स्वेदज , उद्भज और जरायुज ये चार प्रकार की योनियाँ हैं / मनुष्य अपनें कर्मों के आधार पर बिभिन्न योनियों से गुजरता है और बार – बार जन्म लेता है और मरता है , यह क्रम तबतक चलता रहता है जबतक मनुष्य योनि में वह कुछ ऐसा नही करता जो उसे परम गति प्रदान कराये / परम गति प्राप्त करने वाला दुबारा जन्म नहीं लेता /
गरुण पुराण अध्याय पांच का अंतिम भाग यहाँ समाप्त होता है

===== ओम् =========



Thursday, April 5, 2012

गरुण पुराण अध्याय पञ्च भाग तीन

गरुण जी के आग्रह पर विष्णु भगवान वर्त्तमान में किये गए कर्मों के आधार पर किसको कौन सा अगला जन्म मिलता है , इस बात को बता रहे हैं और यहाँ हम इस सन्दर्भ में पाचवें अध्याय का तीसरा भाग देखनें जा रहे हैं -------

  • विष खा कर आत्मा हत्या करनें वाला सर्प योनिमें जन्म लेता है

  • सदा उद्दण्ड रहनें वाला जंगली हाँथी बनता है

  • जो ब्राह्मण गायत्री का जाप नहीं करते मन में दुष्टता रखते हैं और दिखावे में साधू सा दिखते

    हैं , वे बगुला बनते हैं

  • जो यज्ञ करनें के अधिकारी नहीं उनसे जो यज्ञ कराते हैं वे सूअर की योनि में जन्म लेते हैं

  • सुपात्र को विद्या दान न करनें वाला ब्राह्मण बैल बनाता है

  • वह शिष्य जो गुरु की सेवा न करे , पशु बनता है

  • विबाद करके ब्राह्मण को जीतनें वाला और गुरु को जबाब देनें वाला ब्रह्म राक्षस बनता है

  • सियार की योनि उसको मिलती है जो दान का वायदा करनें के बाद दान नहीं देता

  • मित्र द्रोही पहाडी गीद्ध बनाते हैं

  • वर्णाश्रम का बिरोधी कबूतर बनता है

  • ब्यापारी - ठगी , उल्लू बनते हैं

  • माता - पिता , गुरुजन , भाई – बहन से द्वेष रखनें वाला गर्भ में ही मर जाता है

  • वह स्त्री जो सास को गाली दे वह जोंक योनि में पहुंचती है

  • जूँ की योनि उसे मिलती है जो पति का सम्मान न करे

  • दूसरे पति के साथ सम्बंध बनाने वाली स्त्री चमगादड़ बनती है या दो मुख वाली सर्पिणी

    बनती है

  • स्वगोत्र की स्त्री से सम्बन्ध स्थापित करनें वाला भालू बनता है

  • तपस्वी स्त्री के साथ सम्बन्ध स्थापित करनें वाला मरुस्थल में पिशाच योनि में जन्म लेता है


=====ओम्======




Tuesday, April 3, 2012

गरुण पुराण अध्याय पांच भाग दो

कैसे पता चले की कौन सा ब्यक्ति कौन सा पाप किया है ? अर्थात पापियों की पहचान बताते हुए प्रभु श्री विष्णु भगवान आगे कह रहे हैं ----------

  • विष देनें वाला पागल होता है

  • किसी के घर में आग लगाने वाला गंजा होता है

  • किसी के विवाह में बिघ्न डालनें वाले का होंठ कटा होता है

  • पुस्तक चुराने वाला जन्मांध होता है

  • रत्नों की चोरी करनें वाला नीच कुल में जन्म लेता है

  • सोना चुरानें वालों के नाख़ून खराब होते हैं

  • धातु-चोर निर्धन होता है

  • अन्न चुरानें वाला चूहा बनता है

  • जल – चोर चातक बनता है

  • विष – चोर बिच्छू बनता है

  • पौधों के पत्तों का चोर मोर बनाता है

  • गंध वाली वस्तुओं का चोर छछूंदर बनता है

  • शहद का चोर मक्खी बनता है

  • मांस – चोर गीद्ध बनता है

  • नमक – चोर चीटी का जन्म पाता है

  • फल – चोर बन्दर बनता है

  • घास – कपास का चोर भैस होता है

    =====ओम्======



Sunday, April 1, 2012

गरुण पुराण अध्याय पांच भाग एक

अध्याय पांच का प्रारम्भ गरुण जी के प्रश्न से हो रहा है,गरुण जी पूछ रहे हैं------

बिभिन्न प्रकार के पापों की पहचान क्या है ? और कौन सा पापी किस योनि को प्राप्त होता है ?

विष्णु भगवान इस अध्याय में गरुण जी के प्रश्न के सम्बन्ध में 72 उदाहरणों के माध्यम से पापों की पहचान एवं पापियों को नरक भोग के बाद मिलनें वाली योनियों को ब्यक्त करते हैं / यहाँ हम उन उदाहरणों में से अधिकाँश को दे रहे हैं जो इस प्रकार हैं --------

  • ब्रह्म हत्यारा जन्म के बाद क्षय रोग से पीड़ित रहता है

  • गो ह्त्या करनें वाला कुबड़ा तथा मुर्ख होता है

  • कन्या को बेचनें वाला कुष्ट रोगी होता है

  • स्त्री को मारनें वाला एवं भ्रूण हत्यारा भील जाति में पैदा होता है और जन्म भर रोगी रहता है

  • अगम्य स्त्री के साथ सम्भोग करनें वाला नपुंसक बनाता है

  • मांस भक्षी के दात लाल रंग के होते हैं

  • मदिरा पीनें वालों के दात काले होते हैं

  • अभक्ष्य भोजन खाने वाला पंडित जलोधर रोग से पीड़ित रहता है

  • जो दूसरों को दिखा-दिखा कर मिष्ठान खाता है वह गलगंड रोग से पीड़ित रहता है

  • श्राद्ध में अशुद्ध अन्न देनें वाला सफ़ेद कुष्ट रोगी होता है

  • गुरु का जो अपमान करता है वह मिरगी रोग से पीड़ित रहता है

  • पाण्डु रोगी वे होते हैं जो वेद – शात्रों कि निंदा करते हैं

  • झूठी गवाही देनें वाला गूंगा बनता है

  • ब्राहमण एवं गौ को लात मारनें वाला लंगड़ा होता है

  • झूठ बोलनें वाला हकलाता रहता है

  • असत्य को सुननें वाला बहरा होता है

  • गरुण पुराण में जो कुछ है उसे आप को मैं सेवार्पित कर रहा हूँ , आप स्वयं समझे की यह पुराण क्या है ?

अगले अंक में आगे की बातें-------

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