Saturday, October 12, 2013

भरत जिनके नाम से भारतवर्ष है

● रिषभ देव पुत्र भरत -1 ● 
<> सन्दर्भ : भागवत : स्कन्ध -1 , 5 , 11
 ** बंशावली ** 
स्वायम्भुव मनुके पुत्र प्रियब्रत ,प्रियब्रतसे आग्निध्र ,आग्निध्रसे नाभि और नाभिसे ऋषभ देव पैदा हुए। रिषभदेव 08वें विष्णुके अवतार थे और इनके पुत्र हुए भरत ।रिषभ देव जैनधर्म में पहले तीर्थंकर माने जाते हैं । ऋगवेदमें रिषभदेव का सन्दर्भ मिलता है और सिन्धु घाटी की सभ्यताके सन्दर्भ में की गयी खुदाइयों में इनके प्रमाण मिले हैं । 
 °° भरत °° 
 * स्वयाम्भुव मनु ब्रह्मावर्तके सम्राट थे ,ब्रह्मावर्तकी राजधानी
 थी , बहिर्षमती। यमुनातटके इस क्षेत्रमें सरस्वती नदी पूर्वमुखी थी और दुसरे वाराह अवतारमें प्रभु पृथ्वीको रसातलसे ऊपर इसी क्षेत्रमें ले कर आये थे ।
 * स्वायम्भुव मनुकी कन्या देवहूतिका ब्याह कर्मद ऋषि (विन्दुसरआश्रम ) से हुआ था और 05वें अवतारके रूपमें कर्मदके पुत्र रूपमें कपिल का जन्म हुआ । कपिलके सम्बन्धमें प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ( गीता 10.26 ) सिद्धानां कपिलः मुनिः अस्मि । कपिल मुनि सांख्य योगके जनक कहे जाते हैं ।कर्मद ऋषि ब्रह्मा की छाया से पैदा हुए थे ।
 * रिषभदेवका ब्याह इंद्रकी पुत्री जयंतीसे हुआ और इनके 100 पुत्रोंमें भरत बड़े पुत्र थे । रिषभदेव भरतको राज्य देकर स्वयं अवधूत जीवन गुजारा , ब्रह्मावर्तको त्याग कर कुटकाचल (कर्नाटक ) के जंगलमें अजगर बृति अपना ली और दिगंबरके रूपमें जंगलकी दावाग्निमें अपना शरीर त्यागा लेकिन जैन शास्त्र कहतेहैं कि इनके महा निर्वाणका क्षेत्र कैलाश है । 
* भरतका ब्याह पंचजनीसे हुआ और पांच पुत्र पैदा हुए ।भरत एक करोड़ साल राज्य किया। अजनाभवर्ष इनके नामसे भारतवर्ष हो गया। भरत राज्य पुत्रोंमें बाट कर स्वयं हरिहर क्षेत्र पुलहाश्रम,गण्डकी नदी ,शालग्राममें पहुंच गए। वहाँ आश्रममें ध्यान किया लेकिन एक हिरनके बच्चेसे आसक्त हो गए और साधना खंडित हो गयी फलस्वरूप इनको अगला जन्म हिरनके रूपमें कालंजर पर्वत पर हुआ । भरतको उनका पिछला जन्म याद था अतः कालंजर पर्वतको त्याग कर पुनः शालग्राम क्षेत्र पुलहाश्रम , गण्डकी नदीके तट पर आ गए और गण्डकी नदीमें हिरनके रूप में जल समाधि ले ली ।
 * भरतका तीसरा जन्म अंगिरस गोत्रमें एक ब्राह्मण कुलमें
 हुआ । भरतको यहाँ जड़ भरत के नाम से देखा गया । जड़ भरत सिंध सौबीर राज्यके राजा रहूगणको इक्षुमती नदीके तट पर ज्ञान दिया । इक्षुमती नदी कुरुक्षेत्रसे गुजरती थी और सरस्वती - सिंध नदियोंकी तरह अरब सागरमें जा मिलती थी । 
 ~~~ ॐ ~~~

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