Monday, December 10, 2012

आदि श्री सत् गुरु नानक जी की परम पवित्र यात्रा


आदि गुरु श्री नानक जी साहिब , पंजाब से जेरुसलम तक , मथुरा से द्वारिका तक एवं काशी से काबा तक की धरती पर अपनीं परम प्रीति को गाते रहे और इस में उनका साथ दिया भक्त मरदाना / मीरा कन्यैया के परम प्रीति में मथुरा से द्वारका तक नाचती रहीं ; कभी प्यार में नाचती तो कभीं वियोग में / कबीरजी साहिब शिव नगरी काशी में राम केंद्रित बैठे - बैठे वहाँ के पंडितों के अहंकार पर हथौड़ा मारते रहे , भक्तों की अपनी - अपनी अलमस्ती होती है और वे अपनी इस मस्ती को किसी भी तरह अपनें से जुदा नहीं होनें देते / भक्त जब प्रभु से जुद्तःई तब नाचता है , गाता है और जब उसके तार प्रभु से टूटते से दिखाते हैं तब वह वियोग – भक्ति में वियोग का मजा लेता है लेकिन देखनें वाले उसे दुखी समझते हैं और उसे पहचानने में भ्रमित हो कर चूक जाते हैं , हाँथ आये हीरे को खो देते हैं /
क्या आप कभी सोचते हैं , नानक जी पंजाब से काबा तक की यात्रा क्यों की ?
सिद्ध योगी यात्रा नहीं करते उनको प्राचीनतम सिद्ध योगियों के क्षेत्र चुम्बक की भांति अपनी ओर
खीचते हैं / जहां भूत काल में सिद्ध - योगी लोग तप , जप और ध्यान किये हुए होते हैं , वह क्षेत्र उनकी उर्जाओं से परिपूर्ण हो गया होता है लेकिन भोगी लोग ऐसे परम पवित्र क्षेत्रों की निर्विकार ऊर्जा के ऊपर विकार ऊर्जा की चादर डालते रहते हैं , फल स्वरुप ऐसे क्षेत्र आनें वाले खोजिओं के ऊपर कोई गहरा प्रभाव नहीं डाल पाते । परम पवित्र क्षेत्र सिद्ध योगियों को अपनी ओर खीचते रहते हैं , जैसे - जैसे कोई योग – सिद्धि में पहुँचता है , वह किसी न किसी तपो भूमि के खिचाव में आ ही जाता है और वह सिद्ध योगी वहाँ जा कर उस क्षेत्र को चार्ज करता है / आदि गुरु नानक जी की काशी से कर्बला , पुरी से काबा तक की जो यात्राएं की वह उनकी तपस्या का अब्यक्त , अचिंतनीय लक्ष्य था जिसको वे भी न जानते रहे होंगे / कर्बला से जेरूसलम , जेरूसलम से काबा तक की यात्रा का जो मार्ग है वह शूफी फकीरों का मार्ग है और नानकी साहिब जहां पैदा हुए वह भूमी शूफी फकीरों की भूमि है / इस मार्ग पर अदृश्य प्राचीनतम एवं अनेक रहस्यों से भरा शूफियों का परम तीर्थ अलकूफा भी है / अलकूफा की खोज हजारों साल से की जा रही है लेकिन अभीं तक किसी को मिल नहीं पाया है / शूफी परम्परा इस्लाम से बहुत प्राचीन है और अरब के शूफी फकीर कुछ – कुछ ऐसे दिखते हैं जैसे भारत में नागा साधू दिखते हैं /
आदि गुरु नानकजी साहिब एक सिद्ध शूफी फकीर थे / कहते हैं , अलकूफा सिद्ध शूफी संतों की आत्माओं की बस्ती है जो ऐसे लोगों को अपनी ओर खीचती रहती है जिनकी ऊर्जा उस क्षेत्र के अनुकूल होती है / जो लोग बुद्धि स्तर पर अलकूफा को खोज रहे हैं वे तो पहले पहुँच नहीं पाते और यदि पहुँच भी गए तो वहाँ से वापिस आनें पर वहाँ के बारे में बतानें लायक नहीं होते / अलकूफा हजारों सालो से एक रहस्य है और रहस्य ही रहेगा / अलकूफा पहुँचते हैं श्री गुरु नानक जी साहिब जैसे फकीर जो निर्गुण निराकार के साकार रूप होते
हैं / कर्बला हुसेन साहिब की जगह है और अलकुफा के क्षेत्र में पड़ता है जो सूफी फकीरों की आत्माओं का अति सघन क्षेत्र है । नानक जी ईराक में जिस मार्ग से गुजरे हैं वह भाग बैबीलोंन - सुमेरु सभ्यता का क्षेत्र है जहां से ज्योतिष - गणित का जन्म हुआ है । मक्का , मदीना एवं जेरुसलेम मोहम्मद साहिब , जेसस क्राइस्ट एवं मूसा जी [ मोजेस ] का क्षेत्र है जो दुनियाँ का प्राचीनतम सभ्यता का क्षेत्र है /

आदि गुरू नानकजी अपनी पूरी यात्रा में जब काशी पहुचे , कबीर जी साहिब उनका स्वागत किया ; कहते हैं श्री नानक जी साहिब तीन दिन कबीर जी के साथ रहे लेकिन उन दो महान भक्तो में कोई वार्ता न हुयी , दोनों मौन की वार्ता करते रहे , एक दूसरे को देते और लेते रहे लेकिन कबीर जी साहिब के शिष्यों को बड़ी मायूसी हुयी / कहते हैं जब नानक जी साहिब जानें लगे तब दोनों परम पवित्र भक्त गले मिले और दोनों की आँखें भर आयी और नानक जी आगे पुरी के लिए प्रस्थान किया और कबीरजी साहिब अपनी कुटिया में वापिस आ गए / कितना प्यारा दृश्य रहा होगा जब तो आत्माएं आपस में गले मिली होंगी / कबीर जी के भक्तों ने पूछा , गुरु जी आप लोगों में कोई वार्ता क्यों न हुयी , हम सब इस इन्तजार में थे की दो गुरु जब आमानें - सामनें होंगे तो उनके मध्य हो वार्ता होगी उस से हम सब को भी आनंद आएगा लेकिन ऐसा हो न पाया , आखिर कारण क्या था ? कबीर जी मुस्कुराए और बोले , बेटे ! वार्ता तो हुयी लेकिन तुम न सुन सके तो मैं क्या करूँ ? जो उनको मुझे बताना था , बताया और जो मिझे उनको देना था वह मैंनें उन्हें दिया , बश और क्या होना था ?
भारत भूमि पर काशी , द्वारका , अयोध्या , मथुरा , उज्जैन , हरिद्वार और काँची सात परम तीर्थ हैं जिनमें
काशी को सर्वोच्च स्थान मीला हुआ है / भारत मे चार आदि शक्ति पीठ हैं ; जगन्नाथ पूरी ,
बरहम पुर ओडिसा , कामाक्ष्या [ गुवाहाटी के पास ] , दक्षिणेश्वर कोलकता और 52 शक्ति पीठ है
जिनमें काशी भी एक है / भारत में 11 ज्योतिर्लिंगम हैं जिनमें से एक काशी में काशी
विश्वनाथ मंदिर के अंदर है / काशी मे शूफी फकीरों की आत्माओं से बनाया गया एक मस्जिद भी है जिसके
सम्बन्ध में कहा जाता है की अरब से आ कर शूफी फकीरों की आत्माएं इस मस्जिद का निर्माण किया है /
भारत भूमि पर गुरु वानियों को गुनगुनाते हुए आप अमृतसर - हरमंदर साहिब से काशी तक की यात्रा करें
हो सकता है आप को रास्ते में कहीं आदि गुरु नानक जी साहिब का दर्शन हो जाए । गुरु आप के साथ हर पल है , गुरू की निगाह हर पल आप पर होती है , लेकिन क्या आप उसे देखना चाहते भी हैं मिलना चाहते भी हैं ? क्या कभीं उसे प्यार से पुकारते भी हैं ? कभीं किसी गुरु द्वारा के किसी एकांत जगह में कुछ घडी बैठ कर इमानदारी से इन बातों पर सोचना , हो न हो वहाँ आप को कोई छाया नज़र आ जाए और आप का तन – मन गुरु की ऊर्जा से भर जाए 

एक ओंकार सत् नाम //


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