Tuesday, December 25, 2012

आदि गुरु श्री नानक जी साहिब की परम पवित्र यात्रा - iii

काशी से कर्बला तक ------

आदि गुरु श्री नानक जी की काशी की यात्रा का पता श्री कबीर जी साहिब को चल गया था , श्री कबीर जी साहिब के शिष्यों में एक कौतुहल की लहर बह रही थी , वे यही सोच रहे थे कि वह परम पवित्र घडी कब आयेगी जब इस पृथ्वी के दो परम सिद्ध योगी हम सब के बीच होंगे / श्री कबीर जी साहिब के शिष्य सोच रहे थे कि देखते हैं इनके मध्य किस प्रकार की  चर्चा होती  है ? 
एक दिन वह घडी आ ही गयी ; श्री नानक जी और श्री कबीर जी गले मिले और तीन दिन तक श्री नानक जी साहिब श्री कबीर जी साहिब के यहाँ मेहमान बन कर रहे और चौथे दिन सुबह नानक जी पूरी को प्रस्थान
 किया /श्री कबीर जी साहिब अपनी कुटिया से श्री नानक जी साहिब के साथ बाहर निकले , दोनों गले मिले , दोनों कि आंखे भरी थी और फिर नानक जी आगे चल पड़े  और कबीर जी साहिब अपनी कुटिया में प्रवेश
 किया /
श्री नानक जी तीन दिनों तक श्री कबीर जी के साथ रहे लेकिन दोनों योगी आपस में कोई वार्ता नहीं किये , लेकिन उन दोनों का मौन यह जरुर ब्यक्त करता था की दोनों की सोच एक है , दोनों की पहुँच एक है और दोनों ऐसे हैं जैसे एक गंगा जल दो बोतलों में भरा हुआ हो / 
काशी ! काशी  वह स्थान  है जहाँ कभी भूकंप नहीं आता और जिस दिन काशी भूकंप के झटके को देखेगा , समझना प्रलय बहुत दूर नहीं / शिव की नगरी काशी वह तीर्थ है जहाँ सभीं प्रश्नों के समाधान हैं / काशी और कैलाश , दो ऐसे स्थान हैं जहाँ की ऊर्जा साधकों को अपनी ओर खीचती रहती है और दोनों तीर्थों का सम्बन्ध शिव से हैं /
काशी,  काश शब्द से बना है जो एक आर्य - प्रजाति हुआ करती थी / सिंध घाटी की सभ्यता से काशी और अयोध्या का सीधा सम्बन्ध है लेकिन अभी तक शोध कर्ता इस बिषय को अपनें शोध का बिषय नहीं बना सके हैं / काशी वह तीर्थ है जहाँ न दिन होता है न रात और जिनको  वहाँ दिन - रात दिखता है ,  वे काशी में रह कर भी काशी से दूर हैं / आज का काशी उस शिव नगरी काशी का द्वार है जहाँ निराकार शिव की ऊर्जा एक वर्तुल में एक चक्र की भांति गतिमान रहती है और जो समयातीत है / काशी ; शिव की काशी,  जहाँ शिव - ऊर्जा के अलावा और कुछ नहीं , वह तीर्थ उनको दिखता है जो -----
काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहँकार को गंगा में प्रवाहित करके परम ज्योतिर्लिंगम काशी विश्वनाथ के पास खीचे चले जाते हैं / वह जिसको परम ज्योति दिख जाती है वे ऐसे हो उठाते हैं जैसे एक कस्तूरी मृग / 
क्रमशः .......[  अगले अंक में ]

==== ओम् ==== 



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