Wednesday, October 31, 2012

परमात्मा हो रहा है ----

परमात्मा है नहीं,  हो रहा है ------
बुद्ध का यह वचन उनको नास्तिक की संज्ञा दिया 
लेकिन जब बुद्ध इस बात को बोला था उस समय एक शिव लिंगम के अलावा और कोई मूर्ति रही हो जिसे पूजा जाता रहा हो , कहना कठिन सा दिखता है / बुद्ध - महाबीर के समय या उनके पहले साकार रूप में परमात्मा को किस ढंग से पूजा जाता रहा होगा ?
बुद्ध - महाबीर मूर्ती पूजा के पक्ष में न थे लेकिन जब वे भौतिक स्तर पर इस संसार में न रहे तब क्या हुआ ? हम सब बुद्ध - महाबीर के बताए मार्ग पर तो चल न सके लेकिन उनकी मूर्तियां बनानें में कोई कसर भी  न छोडी और आज यह कहना कोई गलत न होगा कि बुद्ध - महाबीर के बाद मूर्ति कला खूब फैली /
गाँवों में आप जाते होंगे तो देखते होंगे कि नीम - पीपल के पेड़ के नीचे एक नहीं अनेक अनगढे छोटे - छोटे पत्थर के टुकड़ों पर लोग जल चढाते हुए दिखते हैं , यह अनगढ़ पत्थर के टुकड़े क्या कह रहे हैं ?
ये अनगढ़ टुकड़े यही बात कह रहे हैं जिस बात को बुद्ध बोले थे / प्रकृति उसका नाम  है जो हो रहा है और जो हो रहा है उसकी परिभाषा बनाना संभव नहीं / प्रकृति में स्थित पुरुष हर पल प्रकृति के माध्यम से एक से अनेक हो रहा है और यह क्रम हल रहा है और चलता ही रहेगा /
अनगढ़ पत्थर के टुकड़े कहते हैं .......
आप का स्वागत है , मैं  हूँ नहीं हो रहा हूँ और एक दिन आप के इस जल से अपनी क्रूरता खो दूंगा और बन जाऊँगा शिव लिंगम और उसके बाद भी मैं परिवर्तन से गुजरता रहूँगा /
अनगढ़ पत्थर के टुकड़ों की पूजा के मध्यम से  प्रकृति के चल रहे क्रियता को समझना , क्या प्रभु के रहस्य में झाँकने जैसा नहीं है ?
आप कभी गाव जाए तो अनगढ़ पत्थरों की पूजा को जरुर देखें 
===== ओम् =====

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