Sunday, November 18, 2012

गीता कहता है --- 1


तुम हर पल कुछ न कुछ कर रहे हो , जो तुमसे हो रहा है उसके पीछे कोई कारण भी होगा , जो तुम कर रहे हो उनसे तुमको कभीं सुख तो कभी दुःख मिलता होगा , सुख में तुम फैलते होगे और दुःख में सिकुड़ते होगे , क्या कभीं इस सुख – दुःख की आंख मिचौनी को गंभीरता से समझनें की कोशिश किये हो ? यदि कोशिश किये होगे तो तुम अब गीता योगी बन गए होगे और यदि नहीं किये तो आज से करना प्रारम्भ करो और देखो की इस अभ्यास से तुम कैसे किसी नये ऐसे आयाम में पहुँच जाते हो जहाँ प्रभु श्रो कृष्ण के मंदिर की तलाश नहीं , अपितु तुम स्वयं प्रभु श्री कृष्ण मय हो जाते हो / गीता कुछ देता नहीं , गीता जीनें का एक मार्ग है यहाँ जो भी है वह द्वैत्य से परे , विकारों से परे , अपने - पराये से परे , संदेह से परे , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य एवं अहंकार से परे है और यहाँ जो भी है वह सब का है लेकिन सभीं उसकी ओर पीठ किये खड़े हैं / 
गीता श्लोक – 2.69 कहता है …...
या निशा सर्भूतानाम् तस्यां जागर्ति संयमी
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने : //
योगी के लिए जो रात्रि जैसा है वह भोगी का दिन है
और भोगी के रात्रि जैसा जो है , वह योगी का दिन है
"गीता कहता है" के 33 समीकरण भोग - कर्म से कर्म - योग में पहुंचाते है , जहाँ कर्म के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति होती है और ज्ञान परम धाम का एक मात्र राह है /आज पहला समीकरण दिया जा रहा है / 

======= हरे कृष्ण ============

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