Monday, February 27, 2012

गरुण पुराण अध्याय एक भाग दो

गरुण पुराण अध्याय एक के पिछले अंक में दो प्रश्न उठे थे जो इस प्रकार से हैं-----

सौनक ऋषि गण नैमिषारण्य में स्वर्ग प्राप्ति हेतु एक हजार साल की यज्ञ का आयोजन क्यों किया ?

गरुण जी जो विष्णु भगवान के संग हर पल रहते हैं उनके मन में यम यात्रा की बात कैसे आयी ?

नैमिषारण्य क्या और कहाँ है?

सौनक ऋषियों , नैमिषारण्य तथा हिंदू पुराणों का गहरा सम्बन्ध है / यह बन पंचाल एवं कोशल महाजन पदों के मध्य गोमती नदी के तट पर आज के सीतापुर [ लखनऊ के समीप ] , उत्तर प्रदेश के इलाके में था जहां दधीच जी हुआ करते थे जिनकी अस्थियों से बज्र का निर्माण हुआ था , असुरों के संहार के लिए / जब सौ़नक ऋषियों को कलि - युग आनें का भय सतानें लगा तब वे ब्रह्मा के पास गए यह पुछनें के लिए कि अब कहाँ रहना उचित होगा जहाँ कलि का कुप्रभाव न रहे / ब्रह्माजी उन ऋषियों को इस बन को उचित स्थान बताया / नैमिषारण्य वह बन है जहां वेद्ब्यास जी पुराणों की रचनाएँ की थी / यह इलाका विष्णुजी का है / सौनक ऋषि गण स्वर्ग प्राप्ति को क्यों चाहते थे ? यहाँ आप गीतासूत्र 2.42 – 2.46 , 14.15 , 6.40 – 6.45 , 9.20 – 9.22 को आप देखेंजहां प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --- सात्विक गुण धारी को तब स्वर्ग मिलता है जब की साधना खंडित हो जाती है / प्रभु कहते हैं , स्वर्ग प्राप्ति साधना का लक्ष्य नहीं यह भोग से तृप्त होनें का एक अवसर है / प्रभु आगे कहते हैं , दो प्रकार के योगी होते हैं ; एक ऐसे योगी है जिनकी साधना वैराज्ञ में पहुंचनें के बाद खंडित हो जाती है और दूसरे ऐसे हैं जो अभी वैराज्ञ में नहीं पहुंचे होते हैं उनकी साधना खंडित हो जाती है / पहले प्रकार के योगी स्वर्ग न जा कर सीधे किसी योगी कुल में जन्म लते हैं और जन्म से वैरागी होते हुए आगे की साधना करते है और दूसरे प्रकार के योगी कुछ समय के लिए स्वर्ग में पहुंचते हैं जहां उनको ऐश्वर्य भोग मिलते हैं / ऐसे योगी वहाँ तबतक रहते हैं जबतक कि उनकी साधना का असर समाप्त नहीं हो जाता और तब वे पुनः किसी कुल में जन्म ले कर साधना में लग जाते हैं / प्रभु श्री कृष्ण गीता में कहते हैं ,

वेदों में भोग प्राप्ति एवं स्वर्ग प्राप्ति के बहुत प्रभावी एवं दिलचस्ब वर्णन दिए गए हैं जो लोगों के मन को मोह लेते हैं लेकिन हे अर्जुन तुम योग – क्षेम चाहत के परे के अन्तः करण वाला बन और परम गति को प्राप्त कर / अप् राप्ति के प्राप्ति का उपाय योग है और प्राप्त बस्तु की सुरक्षा का नाम है क्षेम /


वेद और गीता कुछ दूरी साथ – साथ तय करते है और फिर गीता परम धाम की ओर रुख करता है और वेद भोग प्राप्ति के लिए नाना प्रकार के यज्ञों में जुट जाते हैं/गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं,गीता योगी का वेदों से सम्बन्ध नाम मात्र का रह जाता है/

और कुछ रोचक बातें आप को अगले अंक में मिलेंगी


====ओम्======


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