Sunday, February 5, 2012

अभ्यास योग से शांति

मनुष्य आज शन्ति की खोज में ब्यस्त है चाहे वह वैज्ञानिक हो , चाहे वह योग को अपनाया हो या फिर भोगी हो / वैज्ञानिक लोग तन एवं मन की शांति में सुब्यवस्थित रूप से लगे हुए हैं , नयी - नयी औषधियों की खोज कर रहे हैं , ब्यायाम की नयी - नयी विधियों को तैयार कर रहे हैं लेकिन जैसे - जैसे शांति प्राप्ति के मध्यम विकसित हो रहे हैं मनुष्य और अधिक अशांत होता जा रहा है / समाज का एल पहलू है उनका जो अध्यात्मिक माध्यम से शांति की तलाश में हैं और इस समुदाय के लोग तरह – तरह के आसन , ध्यान जैसे साधनों को समाज के लोगों को दे रहे हैं लेकिन इन सब का मनुष्य के ऊपर कैसा प्रभाव हो रहा है , कुछ कहा नहीं जा सकता / समाज आ तीसरा वर्ग है भोगियों का जो बहुत बड़ा सनुदाय है ; आज यह कहना बहुत कठिन हो गया है कि कौन योगी है और कौन भोगी / भोगी भगवान को भी भोग का माध्यम बनाता जा रहा है और भोगी ही वह समुदाय है जोआज मंदिरों का निर्माण करवा रहा है , मूर्तियों का निर्माण करवा रहा है और मूर्तियों की दुकानें भी बना रखी है /

क्या शांति मंदिर जाने से मिलती है?

क्या शांति दवा लेनें से मिलती है?

क्या शांति का सम्बन्ध हमारे कर्मों से है?

गीता में अर्जुन को प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , हे अर्जुन शांति प्राप्ति अभ्यास – योग से जब वैराज्ञ में कोई पहुंचता है तब उसका मन शांत होता है / अभ्यास – योग में मन के साथ होश बनानें का अभ्यास करना होता है ; मन जहाँ - जहाँ रुकता है उसे वहाँ - वहा से खीच कर आत्मा - परमात्मा पर केंद्रित करते रहना ही अभ्यास – योग है /

====ओम्=====


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