आत्मा
गीता श्लोक –2.17
अविनाशी तु तद्विद्धि येंन सर्वमिदं ततम् /
विनाश मव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति //
गीता श्लोक –2.18
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता शरीरिण : /
अनाशिन : अप्रमेयस्यतस्माद्युध्यस्व भारत //
संभवतः भारत भूमि पर कोई ऐसा मिले जो यह कहनें में कोई संकोच न करे की वह आत्मा को नहीं जानता ? लेकिन क्या लोग आत्मा रहस्य को समझते भी हैं ? ऊपर गीत अध्याय – 2 के लगभग 13 आत्मा सम्बंधित भगवान श्री कृष्ण के सूत्र हैं जिनमें से हम यहाँ दो को ले रहे हैं / ऊपर गीता के दो श्लोकों में आत्मा के लिए प्रभु श्री कृष्ण निम्न शब्दों का प्रयोग किये हैं --------
अविनाशी[ Indestructible]
सर्वत्र [ Pervades everywhere ]
अब्यय[ immutable ]
अनाशिन [ Indestructible ]
अप्रमेय[ Incomprehensible ]
अर्थात
आत्मावह है जो सर्वत्र हो , जो अविनाशी हो , जो न घटता हो न बढ़ता हो और जिसको गणित के मापों के अंतर्गत न लाया जा सके /
मैं आप को आत्मा के सम्बन्ध में प्रभु श्री कृष्ण की कही गयी बातों के सम्बन्ध में अपनें सीमीत बुद्धि से असीम को बाधनें का काम कर रहा हूँजो संभव नहीं / मैं एक साधारण ब्यक्ति हूँ जिसको स्वयं आत्मा का बोध नहीं लेकिन सोचता हूँ क्या पता यदि इसी तरह गीता को पकड़ा रहा तो आप सब के माध्यम से मुझे भी एक दिन आत्मा का बोध हो जाए /
======ओम्=======
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