Thursday, March 1, 2012

गरुण पुराण अध्याय एक भाग चार

गरुण पुराण अध्याय –01के अगले प्रसंग में श्री विष्णु भगवान गरुण जी से कहते हैं--------

दो प्रकार के लोग हैं और दोनों का प्राण अपने - अपने ढंग से बाहर निकलता है / ऐसे लोग जिनके जीवन का केंद्र प्रभु होते हैं , वे जो भी करते है वह प्रभु के लिए होता है और जो भी पाते हैं उसे प्रभु का प्रसाद समझते हैं है ऐसे लोग गुणातीत योगी होते हैं / गुणातीत योगी अपने मौत का भी द्रष्टा होता है और समभाव में वह उस क्रिया का द्रष्टा बन रहता है जो आखिरी वक्त घटित होती है / दूसरे प्राणी ऐसे होते हैं जिनके जीवन का केंद्र काम – भोग रहा होता है ऐसे लोग मरना नहीं चाहते , उनका प्राण कठिन संघर्ष के बाद मल या मूत्र के मार्गसे बाहर निकलता है / दैवी प्रकृति के लोगों के लिए मौत एक प्राकृतिक घटना है जिससे वे प्रभावित नहीं होते और दूसरे प्राणी वे होते है जो आसुरी प्रकृति के होते हैं , उनमें दो श्रेणियाँ हैं , एक ऐसे होते हैं जिनका जीवन काम केंद्रित रहा होता है और अन्य ऐसे होते हैं जिनके जीवन का केन्द्र भय रहा होता है / काम केंद्रित जीवन वालेजब मरते है तब प्राण निकलते समयउनका वीर्य भी बाहर निकल जाता हैऔरतामस गुण धारियोंका जब प्राण निकलता है तबउनका मल – मूत्र बाहर निकल जाता है / हिंदू सभ्यता में मुर्दे को स्नान करानें का रिवाज हैऔर स्नान कराके मुर्दे को स्मसान ले जाते हैं , चन्दन , देसी घी एवं अन्य खुशबू पदार्थों को उसके देह में लगते हैं और तब जलाते हैं / स्नान करानें का मात्र इतना उद्देश्य होता है कि यदि मल – मित्र या वीर्य बहार निकला हो तो उसे धो दिया जाए और निर्मल स्थिति में मुर्दे को बिदा किया जाए /


===ओम्====


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