Sunday, March 18, 2012

गरुणपुराण अध्याय दो भाग तीन

एक हाँथ का प्रेत [ मृतक के मरनें के बाद बना शरीर ] सौम्य पुर के बाद सारिपुर पहुंचता है जहाँ का राजा जंगम होता है / जंगम कुछ देखनें में इस प्रकार का होता है कि प्रेत उसे देख कर भय में डूब जाता है एवं सिकुड़ा हुआ प्रेत अपनी पीछली जिंदगी की स्मृतियों में पहुँच कर पछताता रहता है और यम दूत उसे उसकी स्मृतियों से बाहर नहीं निकलनें देते /

सारी पुर में वह प्रेत त्रिपाक्षिक श्राद्ध को ग्रहण करता है और अपनों की याद में डूबा तीसरे पड़ाव नगेन्द्र भवन कि ओर चल पड़ता है / नागेन्द्र भवन में एक घनघोर बन आता है जो इतना भयानक होता है कि वह प्रेत उसे देख कर रोने लगता है / प्रेत इस बन को दो माह में पार करता है / प्रेत तीसरे माह गंधर्वपुर पहुंचता है जहाँ उसे त्रैमासिक पिण्ड दान प्राप्त होता है / यहाँ के कष्टों को भोग कर प्रेत आगे शैलागमपुर पहुंचता है जहाँ उसे चौथे माह का पिण्ड दान मिलता है / पांचवे माह प्रेत क्रौचपुर पहुंचता है और यहाँ के दुःख को भोग कर वह आगे क्रूरपुर पहुंचता है जहाँ उसे छठें माह का पिण्ड दान मिलता है / क्रूरपुर के बाद का अगला पड़ाव होता है विचित्र भवन जहाँ का राजा यमराज का भाई विचित्र होता है / विचित्रपुर से बाहर निकलते ही वैतरणी नदी आती है जो सौ योजन विस्तार वाली है , जिसमे पानी नहीं पीव , रक्त , पेशाब एवं मल भरा होता है / इस नदी एन सुयी की नोक की भांति अति शूक्ष्म जीव होते हैं [ बैक्टीरिया जैसे ] जो प्रेत को काटते रहते हैं /

आगे का विस्तार अगले अंक में -------

====ओम्======


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