गरुण पुराण अध्याय –02
गरुण जी भगवान विष्णु से जानना चाहते हैं-------
यमलोक का मार्ग कितना दुखदायी होता है?
भगवान विष्णु कह रहे हैं-----
भोजन,हवा,पानी एवं विश्रम के लिए कोई स्थान नहीं है,यम लोक की यात्रा में/
मार्ग में बारह सूर्य की गरमी का सामना करना पड़ता है/
बर्फ जैसी ठंढी हवाओं का सामना करना पड़ता है/
मार्ग में काटें उगे होते हैं/
विषधर सर्प एवं नाना प्रकार के अन्य विषैले जीवों के विष को सहन करना होता है /
घनघोर जंगलों से गुजरना होता है जो दो हजार योजन लंबा - चौड़ा होता है [ एक योजन = 16.4 km ] /
मार्ग में खून की , पत्थरों की , आग की और कहीं गर्म पानी की वर्षा होती रहती है /
कभी रक्त से भरे , कभीं पीव से भरे कभी विष्ठा से भरे कुंडों से गुजरना होता है /
वैतरणी नदी में सूई जैसी चुभन वाले बारीक कीड़े होते हैं जो काटते रहते हैं /
वैतरणी नदी में बहुत शालाव होते हैं जिनको पार करना कठिन काम होता है /
वैतरणी नदी पापियों के लिए निर्मित की गयी है जिसका आदि - अंत नहीं दिखता /
शेष अगले अंक में-----
==== ओम्======
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