गरुण पुराण अध्याय एक का आखिरी भाग
विष्णु भगवान गरुण जी को बता रहे हैं -----
मृतक का पुत्र दस दिन तक जो पिंड दान देता है उसकी गणित इस प्रकार से है … ...
प्रतिदिन का पिंड दान चार भागों में विभक्त हो जाता है कुछ इस प्रकार -----
दो भाग पञ्च महाभूतों को मिलता है , एक भाग यमदूतों को मिलता है और एक भाग मृतक को मिलता है /
पहले नौ दिनों के पिंड दान की गणित -----
पहले दिन के पिंड दान से सर एवं मस्तक बनता है
दूसरे दिन के दान से कंधा , तीसरे दिन के दान से ह्रदय , चौथे दिन से पीठ , पांचवे दिन से नाभि , छठवें दिन से कमर एवं उसके नीचे के अंग , सातवें दिन के दान से जंघा , आठवें दिन के दान से जांनू , नौवें दिन के दान से पाँव का निर्मा होता है और दसवें दिन के दान से देह में क्षुधा एवं तृष्णा का आगमन होता है / दस दिनों के पिंड दान से इस प्रकार एक फूट का एक आकृति बनती है जिसको नर्क में जाना होता है , वहा की यातनाओं को सहनें के लिए /
शेष अगले अक में -----
==== ओम् ======
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