Tuesday, March 20, 2012

गरुण पुराण अध्याय दो का समापन

छठें महीनें जीव वैतरणी नदी पार करता है और जो पार करानें वाले हैं वे पूछते हैं - क्या तुमनें कोई अच्छे काम किये हैं ? सातवे महीनें जीव ब्रह्वापद नगर में पहुंचता है जहाँ श्राद्ध को खा कर आगे

दुखद पुर पहुँचता है जहाँ आठवें माह का पिंडदान खा कर कुछ समय विश्राम करनें के बाद आगे की नानकन्दपुरनौवें माह की समाप्ति तक पहुँच जाता है / यहाँ नाना प्रकार के भूत – प्रेत उस जीव को भयभीत करते हैं और यमदूत उसे फिर सुतप्त भवन ले जाते हैं / दसवें माह सुतप्त भवन और ग्यारहवें माह में रोद्र नगर और ग्यारहवें माँह के मध्य तक वह पयोवर्षणपुर पहुँचता है / यहाँ ऐसे मेध बरसते हैं जो जीव के अंदर सघन दर्द एवं भय पैदा करते हैं / यहाँ से आगे आता है शीताढ्य नगर जहाँ हिमालय से सौ गुना अधिक ठंढ पड़ती है / वहाँ दसों दिशाओं में वह जीव देखता है इस उम्मीद से कि शायद कोई उसका अपना मिले और उसे इस भयानक ठंढ से बचाए पार ऐसा होता नहीं / बारहवें माह का पिण्ड दान प्राप्त करके वह जीव यमपुर के समीप नगर बहुभीति पहुँचता है / यहाँ उसे जो एक हाँथ लंबा शरीर मिला हुआ होता है त्यागना होता है

धर्म राज पूरी के चार द्वार हैं जिनमें से अभीं तक जो कुछ भी बताया गया है उसका सम्बन्ध दक्षिण द्वार से है जहाँ से पापी यमपुरी में प्रवेश करता है /

गरुण पुराण अध्याय – 02 यहाँ समाप्त होता है , तीसरा अध्याय आप को आगे मिलेगा लेकिन ------

यहाँ तक की यात्रा के सम्बन्ध में दो बातें-----------

  • माँ के गर्भ में जीव भय में रहता है

  • जीव का जीवन भय में गुजरता है

  • प्राण भी भय में निकलता है

और

यमदूत उसे भय में डुबो कर यमपुरी की यात्रा करते हैं लेकिन पुनः जब वही जीव मृत्यु लोक में गर्भ में आता है तब क्या उसमें भय नहीं रहता?

==== ओम्=======


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