Saturday, March 24, 2012

गरुण पुराण अध्याय तीन का आखिरी भाग

श्री विष्णु भगवान श्री गरुण जी को आगे बताते हैं --------

  • धर्म राज एक बिशाल भैसे के ऊपर आसीन रहते हैं

  • उनकी बत्तीस भुजाओं में शस्त्र रहते हैं

  • उनकामुख,नासिका एवं अन्य अंग भयानक होते हैं

चित्र गुप्त जो स्वयं भयानक शरीर वाले हैं , धर्म राज के साथ होते हैं और उनके साथ होते हैं ज्वर रोग एवं मृत्यु / अब इस स्थिति में चित्र गुप्त अपना निर्णय सुनाते हुए कहते हैं … ......

अरे दुराचारी पापी तुम धन इकट्ठा करने में लगे रहे , पापी लोगों की संगत की , प्रसन्नता से पाप किया और अब तूं इन कर्मों के फल के रूप में यहाँ की यातनाओं को भोग / धर्म राज की आज्ञा के अनुकूल प्रचंड और चंडक यमदूत उस पापी को नरक में पहुंचाते हैं / नरक में एक पांच योजन चौड़ा एवं एक योजन ऊँचा बृक्ष है जिसे जलती हुयी अग्नि का बृक्ष कह सकते हैं / यमदूत उस बृक्ष से बाँध कर पिटाई करते हैं / यम दूत उस पापी के अतीत में किये गए पापों को बताते हुए उसे खूब पीटते हैं / पीटाई के समय शालमली बृक्ष के पत्ते जो गिरते रहते हैं वे उस पापी के देह में सूई की भांति छेड़ करते रहते हैं /

नरक चौरासी लाख प्रकार के हैं जिनमें से कुछ के नाम कुछ इस प्रकार से हैं … ....

तामिस्र , लौह्शंक , महारौरव , शाल्मली , रौरव , कुडमल , काकोल , सविस , संजीवन महापथ , अविची , तपन आदि / इन नरकों में नाना प्रकार के किये गए कर्मों को भोगना होता है / यहाँ इन नरकों में पापी कल्पों तक भोगता रहता है और जब सभीं यातनाएं भोग लेता है तब अंत में वह बिषय – वासना भोग [ स्त्री - पुरुष सह्बास ] के लिए अन्धतामिस्त्र , रौरव , आदि नरकों में जाता है / अब हम अगले अंक में अध्याय – 04 के प्रसंगों को देखेंगे /


======ओम्======



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