Thursday, March 22, 2012

गरुण पुराण अध्याय तीन भाग एक

गरुणपुराण में अध्याय तीन का प्रारम्भ गरुण जी के प्रश्न से होता है, प्रश्न है------

हे भगवान!जीव यम – मार्ग को पार करके जब यमलोक में पहुँचता है तब उसको कैसी-कैसी यातनाएं मिलती हैं?

प्रश्न के उत्तर में श्री विष्णु भगवान कहते हैं ----------

बहुभीतिपुर से आगे 44 योजन पर यम पुर है यम दूत जीव को ले कर यमपुरी के द्वार पर पहुंचते हैं वे द्वारपाल को सूचना देते हैं कि पापी जीव को वे ले कर आये हैं / द्वारपाल उनको चित्रगुप्त के पास भेज देता है जिनके पास उस पापी जीव के कर्मों का लेखा जोखा होता है / श्रवण लोग एवं उनकी पत्नियां श्रवणी जो ब्रह्मा जी के पुत्र – पुत्र बधू हैं हर पल सभी लोको में भ्रमण करते रहते हैं और हर जीव के कर्मों के लेखा जोखा का हिसाब रखते हैं / चित्र गुप्त जी पाप जीव के कर्मों को जानते हुए भी श्रवण लोगों से पूछते हैं और अपनें पास की सूचनाओं एवं श्रवण लोगों द्वारा प्राप्त सभीं सूचनाओं को वे यम को देते हैं जब कि यम को भी उस जीव के कर्मों का लेखा - जोखा पहले से ही मालूम रहता है /

यहाँ इस बात को एक बार फिर समझ लें--------

मृत्यु लोक में मनुष्य जो भी करता है जैसे भी करता है जहाँ भी करता है उसकी सम्पूर्ण सूचना,श्रवण एवं उनकी पत्नियों को मिलती रहती हैं,यम दूतों को मिलती रहती हैं,चित्र गुप्त को मिलती रहती हैं,सभी देवताओं को मिलती रखती हैं और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जितनी भी सूचनाएं हैं उन सबको मालूम रहता है कि जीव मृत्यु लोक में क्या कर रहा है?

वैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखें तो हमें यह मालूम होना चहिये की सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में वह कौन सा माध्यम है जो सबको जोड़ कर रहता है ? इस सम्बन्ध में आप गीता श्लोक 7.7 को देख सकते हैः जो इस प्रकार है ------

मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनञ्जय

मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव


प्रभु कह रहे हैं,सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाए एक माले की मणियों जैसी हैं जिनको जोडनें वाला मूल सूत्र मैं हूँ/इस बात कोC.G. JUNG Cosmic mindके रूप में ब्यक्त करते हैं/

[ ] एक घटना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक कौन सा माध्यम पहुचाता है ?

[ ] उस घटना को वह किस माध्यम से समझता है ?

इन दो बातों को आप अपनें ध्यान का विषय बन सकते हैं

श्रवण एवं उनकी पत्नियां जो ब्रह्मा जी के पुत्र एवं पुत्र बधू हैं , सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सूचनाओं को एकत्रित करते रहते हैं ; श्रवण का अर्थ है सुनना और सुना जाता है कानों से और सभीं सुनी जा रही बाते सच नहीं भी हो सकती लेकिन यह सिद्धांत मनुष्य के कानों के लिए तो ठीक है पर श्रवण के कान जो भी सुनते हैं वह सत् ही होता है , ऐसा क्यों है ? गुणों के प्रभाव में जो काम इन्द्रियाँ करती हैं उनका सत् से सम्बन्ध न के बराबर होता है लेकिन द्रष्टा की इन्द्रिया जो भी करती हैं वह सत् ही होता है /




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