Sunday, March 20, 2011

Gita Param Shanti Sutra

गीता परम शांति सूत्र

अर्जुन पूछते है .......
यदि ज्ञान कर्म से उत्तम है तो आप मुझे कर्म के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ?
गीता - 3.1

अर्जुन कहते हैं .......
आप कर्म योग एवं कर्म संन्यास दोनों की बातें कर रहे हैं लेकीन कृपया मुझे यह बताएं की ------
मेरे लिए इस घड़ी में कौन सा उत्तम रहेगा ?
गीता - 5.1

अर्जुन कहते हैं -------
हे प्रभु !
आप मुझे बताएं की कर्म किस को कहते हैं ?
गीता - 8.1

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अब आप सोचें की ------
अर्जुन के मन - बुद्धि की स्थिति किस प्रकार की है ?
अध्याय दो , तीन , चार , पांच , छः और अध्याय सात जा चुके हैं जिनमें ......
कर्म - योग की सारी बातें बताई जा चुकी हैं और ज्ञान कैसे प्राप्त होता है ,
ज्ञानी कैसा होता है ,
यह सब बातें
बताई जा चुकी हैं और अब -------
आठवी अध्याय में अर्जुन पूछ रहे हैं की .......
कर्म क्या है ?
जो ब्यक्ति कर्म की परिभाषा तक नहीं जानता ------
वह ......
कर्म - योग ----
कर्म संन्यास ---
को क्या ख़ाक जानेंगा ?
प्रभु कहते हैं -----
मोह में .....
बुद्धि का ज्ञान अज्ञान से ढक जाता है .....
बुद्धि दिशाहीन हो जाती है .....
अस्थिर मन - बुद्धि प्रश्न के कारखानें जैसा ब्यवहार करनें लगते हैं .....
और ----
यह बात यहाँ सत्य दिखती है की अर्जुन .....
पहले कर्म - ज्ञान की बात उठाते हैं ....
फिर ----
कर्म योग एवं कर्म संन्यास की बात उठाते है .....
और फिर ......
कर्म ही परिभाषा जानना चाहते हैं ॥

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