गीता परम शांति सूत्र
यहाँ इस श्रृंखला में आप को मिल रहे हैं गीता के लगभग दो सौ ऐसे सूत्र जो सम्पूर्ण
गीता को अपनें में धारण किये हुए हैं |
गीता साधना के ये साधना - सूत्र भोग – योग , कर्म – अकर्म , जन्म – जीवन ,
मृत्यु - परम गति और कर्म – योग – ज्ञान – योग को स्पष्ट तो कृते ही हैं साथ यह भी बताते हैं
कि मनुष्य के मार ्ग और अन्य जीवों के मार्ग में क्या अंतर है एवं मनुष्य किस तरह इस
गुणों से परिपूर्ण संसार में गुनातीत कि अनुभूति से गुजर सकता है ?
आइये अब उतरते हैं गीता के परम सूत्रों में :--------------
गीता सूत्र – 18.2 और 6.10
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ------
जिस कर्म के होनें में कामना कि ऊर्जा न हो वह क्रम , कर्म संन्यास होता है |
गीता सूत्र – 6.4
जिस कर्म के होनें में कोई चाह न हो , वह कर्म योगारूढ़ कि स्थिति में पहुंचाता है |
गीता सूत्र – 2.55 , 2.70
कामना , ममता , स्पृहा एवं अहंकार रहित कर्म करनें वाला स्थिर प्रज्ञ योगी होता है |
गीता के पांच सूत्रों को यहाँ आप को दिए जा रहा है जो आज के लिए पर्याप्त हैं ; आप
इन सूत्रों में अपनें अहंकार को पिघलानें का प्रयत्न करें और जब अहंकार पीघलता है तब
श्रद्धा की धार फूटती है जो सीधे प्रभु में बहा कर ले जाती है |
===== ओम ======
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