Thursday, March 17, 2011

gita param shanti sutra

गीता परम शान्ति सूत्र

[क] कर्म - योग से आसक्ति साधाना की उर्जा मिलती है ----
[ख] आसक्ति की ऊर्जा कर्म बंधन से मुक्त करती है ----
[ग] कर्म बंधन मुक्त ब्यक्ति कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है -----
[घ] कर्म में अकर्म देखनें वाला कर्म सन्यासी होता है ......
[च] कर्म संन्यासी वह है जिसका कर्म आसक्ति रहित हो ......
[छ] आसक्ति रहित कर्म निष्कर्म - सिद्धि है -----
[ज] कर्म योग की सिद्धि पर ज्ञान क प्राप्ति होती है ------
[झ] ज्ञान वह है जो प्रकृति - पुरुष का बोध कराये ------
[प] प्रकृतिका बोध साकार का बोध है ------
[फ] प्रकृति का बोध बिकारों का बोध है -----
[**] साकार का बोध निराकार में पहुंचाता है ....
[++] बिकारों का बोध निर्विकार बनाता है ......

यहाँ गीता का वह भाग आप को संक्षेप में दिया गया है
जो -----
आप को प्रकृति के माध्याम से .....
भोग के माध्यम से ......
संसार के माध्यम से .....
जो गृहस्ती के माध्यम से .....
पुरुष को ---
वैराग्य को ---
और अंततः
ब्रह्म की अनुभूति में पहुंचाते हैं ॥

==== ॐ =====

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