Wednesday, March 9, 2011

गीता परम शांति

 

गीता परम शांति में आप को गीता के 70 श्लोकों की एक माला दी जा रही है जो

भोग में बैराग्य मार्ग के प्रारम्भ की एक झलक दे सकती है //

राजा जनक भोग जीवन में रहते हुए जैसे विदेह कहलाये वैसे कोई भी गीता साधना से

सांसारिक भोग जीवन में ठीक राजा जनक जैसा जीवन जी कर विदेह की अनुभूति को प्राप्त करके धन्य हो सकता है //

आइये , अब हम चलते हैं अपनी यात्रा पर ---------

मात्रा स्पर्शा : तु कौन्तेय

शीत - उष्ण सुख - दुःख दा:

आगम अपानीय : अनित्या :

तान्तितिक्षस्व भारत //

गीता – 2.14

Pleasure – pain of senses do not last long . One should endour them .

गीता क्षणिक सुख - दुःख को भोग तत्त्व के रूप में देखता है और उन्हें

भोग - तत्त्व की संज्ञा देता है , गीता की यात्रा द्वैत्य से अद्वैत्य की यात्रा है जहां

द्वैत्य का अनुभव अद्वैत्य के द्वार को खोलता है

अतः ------

द्वैत्य से भागना गीता से भागना है

और द्वैत्य में होश बनाना ,

गीता साधना है //

==== ओम =========

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