Monday, February 28, 2011

गीता - ध्यान

स्वयं को परम ऊर्जा से भरो

मनुष्य के देह में नाभि का अपना अलग स्थान है ; बच्चा जब माँ के गर्भ में होता है तब वह माँ से
अपनें नाभि के माध्यम से भोजन ग्रहण करता है और माँ की सभी संवेदनाओं को भी
अपनें विकास से समय में ग्रहण करता रहता है ।
तंत्र साधना में नाभि को भय एवं मोह का केंद्र मानते हैं और गीता गुण रहस्य साधाना में नाभि को तामस
गुण का केंद्र मानते हैं ।
नाभि चक्र की तुलना अयोध्या तीर्थ से करते हैं क्योंकि ------
राजा दशरथ ; भगवान श्री राम के पिता का अंत मोह में हुआ था ।

जब प्रकृति का कोई द्रष्टा न होगा ------
जब संसार का कोई साक्षी न होगा -----
जब सृष्टि का अंत हो रहा होगा ------
तब जो रहता है , वह एक ध्वनि रहित ध्वनि होती है जिसको ॐ कहते हैं ।
तत्त्व - ग्यानी कहते हैं :-----
सृष्टि - अंत के बाद जो एक ओंकार की धुन रहती है वही धुन समाधि में योगी को मिलती है और
समाधि टूटनें के बाद उस योगी की स्थिति एक कस्तूरी मृग की तरह हो जाती है ,
वह पुनः उसी को पकड़ना चाहता है
लेकीन वह अनभूति कभी उसी तरह किसी को नसीब नहीं होती ।
आप अपनें नाभि के माध्यम से उस अनुभूति के लिए ध्यान कर सकते हैं ,
कुछ इस प्रकार ------
[क] इस ध्यान के लिए सुबह की गोधुली का समय या सूर्यास्त के बाद का समय उचित होता है ॥
सूर्य की ओर मुह करके पद्मासन में बैठें .....
दोनों हांथों की हथेलियों को अपने नाभि के संपर्क में रखें .....
हथेकियों के अन्दर का भाग नीचे की तरफ होना चाहिए
अर्थात पृथ्वी की ओर अँगुलियों के पोर होनें चाहिए .....
दो मिनट इस प्रकार अपनी हथेलियों को नाभि के साथ मिला कर रखे फिर ......
दोनों हथेलियों को नाभि से हटा कर सीधे बाएं वाली को बाएं तरफ और दाहिनें वाली को दाहिनें तरफ
ले जाएँ जो जमींन के समानांतर रहें तो अच्छा रहेगा
आँखे बंद रहनी चाहिए .......
अब ----
ॐ की धुन को ऐसे बोले की आवाज बाहर न सुनाई पड़े लेकीन आप की देह में भर्ती हो रही सी दिखे ....
दोनों हथेलियों को धीरे - धीरे नाभि की ओ र ले आयें और यह क्रम दस मिनट तक चलना चाहिए ......
जब हथेलियाँ नाभी को बार - बार छुएंगी तब नाभि के माध्यम से अस्तित्व से एक ओंकार की ऊर्जा
का एक सर्कल का निर्मित हो रहा होगा और .....
उस सर्कल के केंद्र से ॐ ऊर्जा आप की नाभि के माध्यम से आप के ह्रदय में प्रवेश करती रहेगी ....
यह ध्यान ....
तन को ....
मन को ....
निर्मल करके .....
आप को परम ऊर्जा से भर देगा ॥

===== ॐ =====

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