Thursday, February 10, 2011

गीता ध्यान




ब्रह्म - ध्यान

सन्दर्भ - गीता सूत्र 8.12 एवं 8.13
गीता कहता है :
ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है [ गीता - 12.3 - 12.4 ]
और
यह भी कहता है :
एक समय एक बुद्धि में एक साथ
भोग और भगवान् को रखना संभव नहीं [ गीता - 2.42 - 2.44 तक ]

अब देखिये गीता सूत्र - 8.12 - 8.13 में गीता क्या कह रहा है ?

देह में उन मार्गों को बंद करें जिनसे मन - बुद्धि में संसार की हवा आती है ।
मन को अपनें ह्रदय में स्थापित करें ।
ॐ के माध्यम से प्राण - ऊर्जा को तीसरी आँख पर ले जा कर उसे वहीं केन्द्रित करें ।
जिस घडी .....
जिस पल .....
ऐसा संभव होगा ....
उस घड़ी ....
आप समाधि में होंगे
और ....
वहाँ आप को जो मिलेगा ...
वह ही है ....
अक्षरं ब्रह्म परमं [ गीता -8.3 ]
अगले अंक में तीसरी आँख को खोजा जाएगा ॥
==== ॐ =====

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