Tuesday, February 8, 2011

गीता - ध्यान




भाग - 11

ॐ पर ध्यान

गीता में प्रभु कहते हैं .......
वेदों का आत्मा एक ओंकार - मैं हूँ ॥
वेदों के मन्त्रों पर आप एक नजर डालें और तब आप को यह यह्शाश होगा की ॐ क्या है जो
वेदों के हर मंत्र के साथ किसी न किसी रूप में जुड़ा है ।

आइये ! बैठते हैं ॐ - ध्यान में
संध्या का समय [ सूर्योदय से ठीक पूर्व का समय या सूर्यास्त के ठीक बाद का समय ] अति उतं समय
ॐ - ध्यान के लिए समझा जाता है ।
किसी शुद्ध स्थान पर सूर्य की ओर मुह करके पद्मासन में किसी बिछावन के ऊपर बैठें ।
देह के किसी भी भाग में कोई तनाव नहींहोना चाहिए ,
दो मिनट केवल अपनें देह के चारों तरफ अपनी बंद आँख की दृष्टि को घुमाते रहें ।
जब देह पूर्ण विश्राम स्थिति में आजाये तब -----
दोनों हांथों की हथेलियों को एक दूसरे पर रखें कुछ इस प्रकार की , दोनों अंगूठे आपस में मिलते हों ।
हथेलियाँ उलटी हों क्योंकि सीधी हथेलियों को रखना कुछ कठिन होता है ।
अब दोनों हथेलियों के जोड़ को अपने नाभि के संपर्क में ले आयें ।
ऐसा करनें से दोनों हांथों की सबसे छोटी उंगलियाँ आप के पेट को छू रही होंगी
और -----
उनके ऊपर गिनती करनें के निशाँन ऊपर की ओर होंगे ।
अब आगे ......
ॐ को ऐसे गुनगुनाये की -----
आप के तन के हर कण में ॐ की धुन गुजनें लगे पर बाहर वह धुन सुनाई न पड़ती हो ।
एक मिनट ऐसा करनें के बाद आप सोचें की ......
दोनों अंगूठो से साथ - साथ ॐ की लहर पुरे हथेलियों के परिधि पर घूम रही है और .....
दो मिनट ऐसा करनें के बाद पुनः सोचें की ------
यह लहर आप नाभि के माध्यम से आप के अन्दर प्रवेश कर रही है ।
जब भावातीत की स्थिति में आप के अन्दर ऎसी सोच उठेगी तब ......
आप के रोम - रोम में सिहरन उठनें लगेगी लेकीन घबडाना नहीं चाहिए ,
यह .....
एक शुभ लक्षण है ॥
अगले अंक में आगे कुछ और बातें मिलेंगी ॥
====== ॐ ========

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